विरोध प्रदर्शनों की झलक
दिल्ली की
शर्मसार करने वाली घटना ने सभ्य समाज के सामने कई तरह के सवालों को खड़ा कर दिया है
| देश भर में विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ सी आ गयी है | और हम सब जानते हैं कि समाज
में आक्रोश की यह लहर किसी एक दिन की एक घटना के कारण पैदा नहीं हुयी है , वरन यह
लम्बे समय से सतह के नीचे खदबदाती रही है | ऐसे में , यह समय विवेकपूर्ण निर्णयों
का है , ताकि फिर किसी दामिनी के साथ ऐसा न हो , और नारेबाजी के शोर में मुख्य
मुद्दा ही दबकर रह न जाए |
पढ़िए सिताब
दियारा ब्लाग पर युवा लेखक अस्मुरारी नंदन मिश्र का यह लेख
ताकि फिर किसी ‘दामिनी’ के साथ ऐसा न हो
दुष्कर्म और
दुष्कर्मियों का विरोध एक बड़े आन्दोलन का रूप ले चुका है| सारा देश उबल रहा है, मिशन दामिनी हर पल नयी ऊर्जा के साथ सामने आ रहा
है ,
इसे सार्थक और
सकारात्मक पहल माना ही जाना चाहिए..इसे हरेक वर्ग का समर्थन तो मिलना ही चाहिए कुछ जरुरी
चर्चा भी होनी चाहिए यहीं पर|
आश्चर्यजनक गैर जिम्मेदाराना बयानों के बाद सरकार की भी नींद खुल चुकी है... इसका अंदाजा लग चुका
है , प्रधानमन्त्री ने भी अपनी जबान हिलाने का कष्ट उठा लिया है| लेकिन साथ ही प्रदर्शन उग्र रूप में भी सामने
लाया जा रहा है...बिना वैचारिक आधार और सबल मानसिकता के इसे आसानी से हुल्लड़-बाजी
में बदला जा सकता है|
सरकार और उसकी
शक्तियां आक्रोश को उभार कर ऐसा करने का प्रयास भी कर रही है, इससे सावधानी बेहद अपेक्षित है...यह समय है
आन्दोलन को भावनात्मकता से आगे विचारात्मक रूप दिया जाये..
प्रदर्शनकारियों की मांगों पर पहले ध्यान दें, उनकी मांगें हैं--
१.पीडिता के साथ न्याय हो.... इसे दो हिस्सों में देखें ---
प्रदर्शनकारियों की मांगों पर पहले ध्यान दें, उनकी मांगें हैं--
१.पीडिता के साथ न्याय हो.... इसे दो हिस्सों में देखें ---
क. आरोपियों को
यथाशीघ्र कड़ी से कड़ी सजा हो,
ख. पीडिता को
उचित चिकित्सकीय सुविधा मुहैया हो..
इन दोनों मांगों
की सफलता ज्यादा कठिन नहीं
है| इलाज सही तरीके से चल रहा है और सभी दुष्कर्मी पकडे जा चुके हैं, सजा से भी बचना मुश्किल है... कठोरतम भी हो
सकती है क्योंकि इसी अपराध ( बलात्कार और हत्या) के लिए १० साल पहले किसी को अपने
ही देश में फांसी भी हो चुकी है).
२.स्त्रियों को सुरक्षा मिले
३. ऐसी घटना दुबारा न हो..
पहली मांग तात्कालिकता से जुडी है, किन्तु यहीं तक सीमित नहीं हुआ जा सकता | जरुरी है कि दूसरे- तीसरे मुद्दे को भी संजीदा और सावधान मानसिकता से पकड़ा जाए| इसके साथ ही कुछ छूटे हुए सवालों को भी सामने लाया जाए| जरुरत है इस विरोध प्रदर्शन के फलक को बड़ा करने की| विरोध उन सभी वक्तव्यों और वक्तव्य देने वालों का हो जो लड़कियों के रहन - सहन और परिधानों की ओर अंगुली उठाकर किसी न किसी रूप में बलात्कारियों को शह देते रहे हैं | बैनर, पोस्टर और झंडों में लिखे नारों से इस दिशा में पहल दिखती है लेकिन इसको दोषियों को चिह्नित कर करना होगा.| इसमें बड़े सम्मानित और रसूख वाले लोग शामिल हैं| वैसे भी जो खुद को औरतों के हक़ में खडा बताते रहे हैं|
२.स्त्रियों को सुरक्षा मिले
३. ऐसी घटना दुबारा न हो..
पहली मांग तात्कालिकता से जुडी है, किन्तु यहीं तक सीमित नहीं हुआ जा सकता | जरुरी है कि दूसरे- तीसरे मुद्दे को भी संजीदा और सावधान मानसिकता से पकड़ा जाए| इसके साथ ही कुछ छूटे हुए सवालों को भी सामने लाया जाए| जरुरत है इस विरोध प्रदर्शन के फलक को बड़ा करने की| विरोध उन सभी वक्तव्यों और वक्तव्य देने वालों का हो जो लड़कियों के रहन - सहन और परिधानों की ओर अंगुली उठाकर किसी न किसी रूप में बलात्कारियों को शह देते रहे हैं | बैनर, पोस्टर और झंडों में लिखे नारों से इस दिशा में पहल दिखती है लेकिन इसको दोषियों को चिह्नित कर करना होगा.| इसमें बड़े सम्मानित और रसूख वाले लोग शामिल हैं| वैसे भी जो खुद को औरतों के हक़ में खडा बताते रहे हैं|
यही समय है जब
हम उन दामिनियों की लड़ाई को भी फिर से आग दें जिनकी लड़ाई सत्ता के पत्थर दरवाजों
पर सर पटक- पटक कर लहुलुहान हो रही है| ओडिशा की आरती मांझी,
छत्तीसगढ़ की
सोनी सोरी,
मणिपुर की
मनोरमा,..
कई ऐसे नाम हैं
जिनके साथ भी यही हुआ है |
इस विरोध
प्रदर्शकी सारी सकारात्मकता के बावजूद दिल्ली- दिल्ली शब्द का बार बार प्रयोग इसका
नकारत्मक पक्ष है|
इससे उबरना होगा
|
बलात्कार केवल
दिल्ली की समस्या नहीं है| ऐसी घटना दोबारा
न हो यही महत्त्वपूर्ण है,
साथ ही यह समय
की मांग करता है|
हम किसी भी
सरकार से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि वह प्रत्येक स्त्री को सुरक्षा प्रदान करेगी| कठोरतम क़ानून बने जिसके डर से ऐसी घटनाओं पर काबू
पाया जा सके,
किन्तु एक बड़ा
प्रश्न मानसिकता का है|
आखिर हमारा समाज
बलात्कारी मानसिकता से
क्यों ग्रस्त है इसपर विचार करना बेहद जरुरी है | समस्या के तह में गए बिना निदान खोजना बुद्धिमानी नहीं है| इस बलात्कार में भी एक नाबालिग शामिल है| बलात्कार हो रहे हैं हर जगह
-- आराम देह शयनागारों से लेकर सडकों तक, हरेक उम्र
की स्त्री के
साथ-- नवजात
से लेकर
मरणासन्न
बुढ़िया तक, इसका कारन क्या
है? सीधी सी बात है हमारे मन में स्त्रियों के लिए सम्मान है ही नहीं| आज विरोध में शामिल एक महिला कह
रही थी --''हमारे बच्चों के मन में स्त्रियों के लिए सम्मान होना चाहिए|'' लेकिन हो कैसे ?
इस असम्मान के कई कारन हैं| धार्मिक ,
जातीय , पारंपरिक , सामाजिक ,
आर्थिक सभी तरह के| इस सन्दर्भ
में यह समझ लेना चाहिए कि नारी को देवी का रूप देने के धार्मिक- छल से सम्मान नहीं दिला सकते, बल्कि
यथार्थ की भावनाओं तक पहुँच होनी चाहिए| देवी
से जब भी रुष्ट होते हैं लोग सीधे मूर्ति तोड़ देते हैं|
स्त्रियों की
सामाजिक- आर्थिक अधिकार विहीनता उनके सम्मान को कम करती है, उस
पर दहेज़ जैसी कुरीतियाँ || इस दिशा में प्रयास होने चाहिए कि स्त्रियों के हाथ में अधिकार हो.., यही अधिकार आगे बढ़ कर जीने की अपनी स्वतंत्रता तक पहुंचेगा | जातीय और पारंपरिक रुढियों और कट्टर
विचारों
को आधुनिक, वैज्ञानिक और लोकतांत्रिक विचारों के प्रसार द्वारा चुनौती दी जा सकती है, किन्तु तथाकथित आधुनिकता से सावधान रहने की भी आवश्यकता है|
मैं मानता हूँ कि इस आन्दोलन के बहाने उन सभी प्रश्नों और परिस्थितियों पर बहस होनी चाहिए जिसके कारण स्त्री- अस्मिता को धक्का पहुंचता है| कहने को तो अपने देश में सेंसर -बोर्ड है, किन्तु क्या वह इस मुद्दे पर सतर्क रहता है? आये दिन फिल्मों ,धारावाहिकों और विज्ञापनों में हम देखते हैं कि किस तरह स्त्री अस्मिता को तार तार किया जाता है| हमारे माने हुए स्टार हमें लड़कियां पटाने को प्रेरित करते हैं, दुनिया भर के विज्ञापन बस यही साबित करना चाहते हैं कि उनके उत्पाद के इस्तेमाल से कोई भी लड़की हमारी अंकशायनी हो जाएगी , बड़ी - बड़ी फिल्मों के रोबिन्हुदी नायक लड़की को छेड़ते ही नहीं हैं बल्कि दबंगई से उसे अपना बना कर ही दम लेते हैं| अब इन सब को देखता - बढ़ता किशोर वर्ग छेड्खानियाँ शुरू करता है तो हम इसमें किसको दोष देंगे ? क्रूरतम बलात्कार की शुरुआत छेडखानियों से ही होती है, और सभी जानते हैं कि छेड्खानियाँ किस कदर आम हो चुकी हैं, राजधानी दिल्ली में ही नहीं सुदूर गाँवों में भी | आज की ही खबर है कि रांची के खूंटी में छेड़खानी के आरोप में ग्रामीणों ने पांच मनचलों की जान ली | इन छेडखानियों की मानसिकता को समझना बेहद जरुरी है|
जरुरी है कि हम जड़ तक पहुँचने की कोशिश करें | इस आन्दोलन की पूरी सार्थकता तभी होगी | हमें अपने समाज के रहन सहन को सकारात्मक मोड़ देना होगा और बड़ी बात कि अपनी शिक्षा - व्यवस्था ऐसी करनी होगी कि भावी नागरिक कुंठा ग्रस्त न हो और न ही आधुनिकता के नाम पर संस्कार हीन होता चला जाए |
आइये हम इस विरोध में शामिल हों और इस विरोध को समस्या की जड़ तक ले जाएँ -- उन सभी पीड़ितों को न्याय दिलाने की ओर आगे बढ़ें जो पीड़ा की बरसात तो झेलती रही किन्तु दामिनी नहीं बन सकी , स्त्री- अस्मिता को धक्का देने वाली ताकतों की पहचान कर आन्दोलन को उसके खिलाफ खडा करें एवं अंततः बलात्कार की मानसिकता को ख़त्म करने की पहल करें , तब ही इस मांग का मतलब होगा कि ऐसी घटना दोबारा न हो...
मैं मानता हूँ कि इस आन्दोलन के बहाने उन सभी प्रश्नों और परिस्थितियों पर बहस होनी चाहिए जिसके कारण स्त्री- अस्मिता को धक्का पहुंचता है| कहने को तो अपने देश में सेंसर -बोर्ड है, किन्तु क्या वह इस मुद्दे पर सतर्क रहता है? आये दिन फिल्मों ,धारावाहिकों और विज्ञापनों में हम देखते हैं कि किस तरह स्त्री अस्मिता को तार तार किया जाता है| हमारे माने हुए स्टार हमें लड़कियां पटाने को प्रेरित करते हैं, दुनिया भर के विज्ञापन बस यही साबित करना चाहते हैं कि उनके उत्पाद के इस्तेमाल से कोई भी लड़की हमारी अंकशायनी हो जाएगी , बड़ी - बड़ी फिल्मों के रोबिन्हुदी नायक लड़की को छेड़ते ही नहीं हैं बल्कि दबंगई से उसे अपना बना कर ही दम लेते हैं| अब इन सब को देखता - बढ़ता किशोर वर्ग छेड्खानियाँ शुरू करता है तो हम इसमें किसको दोष देंगे ? क्रूरतम बलात्कार की शुरुआत छेडखानियों से ही होती है, और सभी जानते हैं कि छेड्खानियाँ किस कदर आम हो चुकी हैं, राजधानी दिल्ली में ही नहीं सुदूर गाँवों में भी | आज की ही खबर है कि रांची के खूंटी में छेड़खानी के आरोप में ग्रामीणों ने पांच मनचलों की जान ली | इन छेडखानियों की मानसिकता को समझना बेहद जरुरी है|
जरुरी है कि हम जड़ तक पहुँचने की कोशिश करें | इस आन्दोलन की पूरी सार्थकता तभी होगी | हमें अपने समाज के रहन सहन को सकारात्मक मोड़ देना होगा और बड़ी बात कि अपनी शिक्षा - व्यवस्था ऐसी करनी होगी कि भावी नागरिक कुंठा ग्रस्त न हो और न ही आधुनिकता के नाम पर संस्कार हीन होता चला जाए |
आइये हम इस विरोध में शामिल हों और इस विरोध को समस्या की जड़ तक ले जाएँ -- उन सभी पीड़ितों को न्याय दिलाने की ओर आगे बढ़ें जो पीड़ा की बरसात तो झेलती रही किन्तु दामिनी नहीं बन सकी , स्त्री- अस्मिता को धक्का देने वाली ताकतों की पहचान कर आन्दोलन को उसके खिलाफ खडा करें एवं अंततः बलात्कार की मानसिकता को ख़त्म करने की पहल करें , तब ही इस मांग का मतलब होगा कि ऐसी घटना दोबारा न हो...
परिचय
अस्मुरारी नंदन मिश्र
केन्द्रीय विद्यालय पारादीप, उड़ीसा में शिक्षक
अच्छा आलेख है .सभी बातों से मेरी सहमती है.
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख आज भी उतना ही प्रासंगिक
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