अनुराग सिंह 'ऋषि'
लेखन के क्षेत्र में युवा अनुराग सिंह
‘ऋषि’ के ये आरंभिक कदम हैं | ऐसे प्रत्येक संभावनाशील आरंभिक कदम का सिताब दियारा
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प्रस्तुत है युवा
रचनाकार अनुराग सिंह ‘ऋषि’ की गजलें
एक .... गलतियाँ
इंसान को इंसान बनाती हैं गलतियाँ
अनुभव के साथ ज्ञान भी लाती हैं गलतियाँ
आखिर कमी कहाँ थी क्या बात रह गई
तुमको तुम्हारी भूल बताती हैं गलतियाँ
हर राह पे चलने के कुछ अपने कायदे हैं
ठोकर कि तरह तुमको सिखाती हैं गलतियाँ
आगे पता चलेगा इनकी जरूरतों का
तुमको भले ही आज सताती हैं गलतियाँ
तपने से चमक और निखरती है स्वर्ण की
शायद इसी लिए ही तपाती हैं गलतियाँ
बेहद अज़ीम रिश्ता है इनका मुकाम से
मंजिल अगर दिया है तो बाती है गलतियाँ
“ऋषि” आप सफल हैं तो ये बात और है
असफल तलक का साथ निभाती हैं गलतियाँ
अनुभव के साथ ज्ञान भी लाती हैं गलतियाँ
आखिर कमी कहाँ थी क्या बात रह गई
तुमको तुम्हारी भूल बताती हैं गलतियाँ
हर राह पे चलने के कुछ अपने कायदे हैं
ठोकर कि तरह तुमको सिखाती हैं गलतियाँ
आगे पता चलेगा इनकी जरूरतों का
तुमको भले ही आज सताती हैं गलतियाँ
तपने से चमक और निखरती है स्वर्ण की
शायद इसी लिए ही तपाती हैं गलतियाँ
बेहद अज़ीम रिश्ता है इनका मुकाम से
मंजिल अगर दिया है तो बाती है गलतियाँ
“ऋषि” आप सफल हैं तो ये बात और है
असफल तलक का साथ निभाती हैं गलतियाँ
दो ..... ज़िक्र
जिक्र जिसका मेरे इन ख्यालों मे है
मै अंधेरों मे हूँ वो उजालों मे है
आशियाना हमारा जहाँ मे नही
मै जवाबों मे हूँ वो सवालों मे है
संगमरमर कि बेजान मूरत नही
नाम उसका जहाँ से निरालों मे है
वक्त की दास्ताँ गर बयां है कहीं
इस मकां के पुराने से जालों मे है
इश्क में सच कहें कुछ मिला भी नहीं
जिंदगी कट रही अब निवालों में है
उसकी तारीफ़ मे ''ऋषि'' गजल क्या लिखे
वो मुहब्बत कि उम्दा मिशालों मे है
मै अंधेरों मे हूँ वो उजालों मे है
आशियाना हमारा जहाँ मे नही
मै जवाबों मे हूँ वो सवालों मे है
संगमरमर कि बेजान मूरत नही
नाम उसका जहाँ से निरालों मे है
वक्त की दास्ताँ गर बयां है कहीं
इस मकां के पुराने से जालों मे है
इश्क में सच कहें कुछ मिला भी नहीं
जिंदगी कट रही अब निवालों में है
उसकी तारीफ़ मे ''ऋषि'' गजल क्या लिखे
वो मुहब्बत कि उम्दा मिशालों मे है
तीन ....
मै नही कहता कि बस भगवान होना चाहिए
आदमी के दिल में तो इंसान होना चाहिए
पास ही संसद बसी है प्रेत नेता हैं जहाँ
साथ में हर दम यहाँ लोबान होना चाहिए
हाँ भले बंगले न हो इस आज की अवाम के
पर सभी के पास एक माकान होना चाहिए
कमतरी कपड़ों कि है न प्यार की विश्वास की
नारियों का आज भी सम्मान होना चाहिए
मानता हूँ अतिथि के पूजन कि बातें हैं सही
पर न अंग्रेजों सा वो मेहमान होना चाहिए
हैं नही बेकार बातें पाठ्य पुस्तक में मगर
मुल्क के हालात का भी भान होना चाहिए
हे प्रभु इस देश में हो आरती पूजा सदा
और बगल में साथ ही अजान होना चाहिए
हो नहीं सकते कहीं दंगे कहीं भी ये फसाद
आदमी को एकता का ज्ञान होना चाहिए
मै नही कहता “ऋषी” केवल मुहब्बत ही लिखो
आदमी को बांध दे वो गान होना चाहिए
चार .... "मेरी चाहत"
मै हर मंजिल को पाना चाहता हूँ
ज़माने को दिखाना चाहता हूँ
सहारों की जरूरत अब किसे है
मै खुद को आजमाना चाहता हूँ
ये दर्द-ए-जिंदगानी ही है जिसको
मै ग़ज़लों में सुनाना चाहता हूँ
वो बचपन की बड़ी भोली सी चाहत
मै फिर से चाँद पाना चाहता हूँ
नही ममता है ईंटे पत्थरों में
मै फिर से घर पुराना चाहता हूँ
कई रातें कटी हैं सिसकियों में
मै फिर से गुनगुनाना चाहता हूँ
ये दुनिया अब भी है चलती तेरे बिन
किसी को ये जताना चाहता हूँ
जमाना भूल ना जाये "ऋषी" को
मै लफ़्ज़ों में समाना चाहता हूँ
ज़माने को दिखाना चाहता हूँ
सहारों की जरूरत अब किसे है
मै खुद को आजमाना चाहता हूँ
ये दर्द-ए-जिंदगानी ही है जिसको
मै ग़ज़लों में सुनाना चाहता हूँ
वो बचपन की बड़ी भोली सी चाहत
मै फिर से चाँद पाना चाहता हूँ
नही ममता है ईंटे पत्थरों में
मै फिर से घर पुराना चाहता हूँ
कई रातें कटी हैं सिसकियों में
मै फिर से गुनगुनाना चाहता हूँ
ये दुनिया अब भी है चलती तेरे बिन
किसी को ये जताना चाहता हूँ
जमाना भूल ना जाये "ऋषी" को
मै लफ़्ज़ों में समाना चाहता हूँ
परिचय और संपर्क
अनुराग सिंह “ऋषि”
जन्म-तिथि – 12 अगस्त 1990
जन्म-स्थान – लखनऊ
शोध छात्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
लेखन के आरंभिक प्रयास
मो. न. - 09839109276