शनिवार, 2 मार्च 2013

देवेश की कवितायें


                                      देवेश 


देवेश से मेरी मुलाक़ात पुस्तक मेले में हुयी थी | संकोच और उत्साह से लबरेज इस युवा से मिलना मुझे बहुत अच्छा लगा था | बातचीत में मैंने यह पूछ ही लिया था , कि आप क्या लिखते हैं ? देवेश मुस्कुराए  ‘जी कुछ-कुछ ‘ | और वह ‘कुछ-कुछ’ मैंने उनसे पढने के लिए मांग लिया | पढने के बाद ऐसा लगा , कि इस ‘कुछ-कुछ’ में काफी संभावना है , इसे आप सबके साथ भी मुझे साझा करना चाहिए |

        सिताब दियारा ब्लाग इस युवा कवि ‘देवेश’ का स्वागत करता है    



एक ....

गणित और प्रेम

मैं गणित में शुरू से कमजोर था,
हमेशा एक धन एक बराबर एक
लिखता था....और....
असफल हो जाता था....
मगर तुम तो अव्वल आते थे,
एक और एक दो होते हैं
बखूबी जानते थे....   

आज जब जिंदगी की गणित में हम
अंक हो चुके हैं,
प्रेम के प्रमेय.निर्माण की
कोशिश में हैं....
तुम यहां भी बार.बार
गणित के वही मायने,
एक और एक दो होते हैं
उपयोग में ला रहे हो....
प्रेम.प्रमेय में असफल हो रहे हो....

और मैं मूरख,
एक और एक को एक बताने वाला,
कई प्रमेयों का जनक बना बैठा हूं....



दो ....

माफ करना दोस्त !
मेरी पीठ तुम्हारा खेत नहीं
जिस पर तुम
धोखे का बीज बोओ
चापलूसी की खाद डालो
उसे निंदा रस से सींचो
फिर अपनी
फितरतों का खंजर ला
उगाई फसल की
कटाई करो !



तीन  .....

पहले
भूख
पेट में
चूहे-सी
उछलकूद मचाती थी ,
पर अब
भूख
अपना रूप बदल चुकी है
और ठिकाना भी,
इसी बीच
सुना है
कुछ की आंखों में
एक भेड़िया दिखता है..


चार ..

जबसे
प्रेम को
महसूस किया है,
शरीर का दखल
ख़त्म हो चुका है
ज़िंदगी में..

अब
मेरे हर फैसले
मेरी आत्मा लेती है

तुम्हारी अगोचर
सहमति को सूंघकर....



पांच  ....


तुझे मांगने में भी रिस्क है !

जी करता है,
तुझे मांगू खुदा से,
अपना बना लूं ......
दिल के आलिंद-निलय हाथ खडे कर जाते हैं,
कहते हैं,
खुदा से मुरादें मांगना,
कोई बच्चों का खेल नहीं....
मुरादें टूटतीं हैं,
अच्छे-अच्छे लडखडा जातें हैं....



छः  .....

लेपन

इस मृत्युलोक की मियाद पूरी कर चुके
हे कुल के बोधिवृक्ष
आपका भौतिक पार्थिव शरीर
जो जल सोखे किशमिश सा फूल उठा है,
जैसे  संसार सार निचोड कर पी लिया हो आपने
घी का लेपन करते हुए,
न जाने क्यूं,
बरबस ही ऐसा महसूस करा रहा है...
जैसे बरसों से जाडे की मखमली,
गुनगुनी धूप में,
आपकी देह पर किया स्नेह लेपन
अभ्यास मात्र था,
इस एकमात्र अपरिवर्तनशील,
शाश्वत सच की घडी के लिए,
ताकि, मैं विचलित होते हुए भी
आपकी भौतिकता को तैयार कर सकूं,
आखिरी परीक्षा के लिए....
मैं कर सकूं घी का लेपन,
झोंक सकूं आपके शरीर को अग्नि में....





नाम - देवेश

जन्मतिथि -13/07/1994,
जन्मस्थान – देवरिया , उत्तर प्रदेश
कविता की दुनिया में आरंभिक कदम
                 



42 टिप्‍पणियां:

  1. devesh kee kavitayen bahut achhci hain sabhi, es yuwa kavi bhee bahrpoor sambhavnayen hain. tiwari jee ko dhanywad devesh kee peoms sitab diayra me laane ke leye

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  2. पता नहीं, 'सम्भावनाओं' की गणित हर बार इतनी कमजोर क्यों होती हैं !? खूबसूरत !

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  3. "पूत के पाँव पालने में "............वाली कहावत चरितार्थ होती है ...भाव की पकड़ ..लेखन की समझ ...अभिव्यक्ति की क्षमता ....प्रशंसनीय है !!

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  4. "पूत के पाँव पालने में "............वाली कहावत चरितार्थ होती है ...भाव की पकड़ ..लेखन की समझ ...अभिव्यक्ति की क्षमता ....प्रशंसनीय है !!

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  5. देवेश को सुने हुए बहुत दिन हो गए ... वो यद्यपि मेरा अनुज है ..मगर हम मित्र हैं ..राम जी भाई आभारी हूँ आपका आभारी हूँ सिताबदियारा का कि देवेश की परिपक्व कविताओं को हम तक पहुँचाया, बहुत अच्छा लिख रहे हो देवेश भाई !

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  6. देवेश की कविताओं से यह पहला परिचय बहुत अच्छा लगा ! उनकी संवेदनशीलता,भाषा और बात कहने का ढंग सुन्दर और सहज है ! मैं उनमे बहुत संभावना देख रहा हूँ !उन्हें मेरी शुभकामनाये !

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  7. Devesh ji ki shuruaat prabhavi hai ...
    Aasha hai bhavishya me bhi sambhavnao par khare utarenge.

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  8. ..देवेश वाकई सम्भावना शील युवा हैं .. अच्छी कविताएँ हैं ..सिताब का आभार

    _aharnishsagar

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  9. देवेश की कविताऍं हमें आशा दिला रहीं हैं कि हिंदी साहित्य की युवा पौध उसकी स्वणि॑म यात्रा को गतिमान बनाए रखेगी!
    देवेश एक मुलाकात में ही अापको अपना बना लेते हैं! मुझे विश्वास है कि अपनी सदाशयता से एक अपेक्षाकृत व्यापक पाठक वग॔ तक पहुुँच पायेंगे! शुभकामनाएँ

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  10. सभी कविताएँ अच्छी हैं ...साफ़ और सीधी।ढेरों शुभकानाएँ ....

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  11. इस युवा की कवितायें बहुत प्रौढ़ हैं ..शब्दों और भाषा की समझ ,उसका उपयोग और उस पर नियंत्रण देखते ही बनता है ..कविताएं बहुत सहज और बहुत सुन्दर हैं ..

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  12. देवेश की कविताओं से पहली बार गुजरना हो रहा है. कविताओं का अपना एक माहौल लगा. ये परंपराओं से अभिसिंचित तो अवश्य है किन्तु ये जीती आज में है. आज के दुखों में पौढ़ती हैं. तभी ये कविताएँ हताश न हो कर इतनी संयत हैं.
    वैचारिकता को शब्द देना सदा से कसौटी रहा है. इस पर खरा उतरना जहाँ समय और अनुभव की मांग करता है, वहीं भाव-शब्दों के बीच के शून्य को समझने की अपेक्षा भी करता है. देवेश प्रयासरत रहें...
    भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.. .

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  13. Achchi lagi kavitayein aapki, main bhi ganit mein kamzor thi, bachpan se hi, shayad isliye aur zyada, matlab main sachmuch hisaab mein kumzor thi, lekin aise ki ek baar hal karne ka tareeqa aa jaye to theek ank aa jate the, phir jaana ki ganit ki padhai se bahar, ek bahut bada ganit hai, utha patak, aapki kavitayein in sab daanv penchon ko bahut khuboorati se vyakt karti hain, mitra se yeh guhaar karti, ki mitra ki peeth ko khet na bana daale, apni phasal ka, umda, prem kavitayein bhi umda, badhai, Devesh ji

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  14. देवेश की तरह देवेश की कविताओं ने भी मुझसे आत्मीयता जोड़ ली हैं जहाँ कहीं भी देवेश को सुना और सुनाने का मन हुवा बेहद संकोची स्वभाव के देवेश में एक गंवई ठसक है जो उन्हें बनाए रखनी होगी कवितायें ज़मीनी हैं अतः इश्वर से यही प्रार्थना है महानगरीय विडंबनाओं से दूर रहकर लिखते रहें यहाँ की कृत्रिमता उनपर न छाये कवितायेँ अच्छी हैं और मांजने की जरूरत भी है अच्छा पढ़ें अच्छा लिखने के लिए शुभाकांक्षी माँ .......सुधा उपाध्याय

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  15. देवेश की यह कवितायेँ विशेषतया 2,3,4 एक दम मोहती हैं . छटी कविता ,"जल सोखे किशमिश सा फूलना "जैसे प्रतीक अबिभूत करते हैं . बधाई देवेश ....शुक्रिया सिताब दियारा

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  16. Devesh ki kavitayen padhin.ek apani hi tarah ka nayapan hai in kavitaon me.Abhi keval itna hi. devesh ko shubkamnayen aur sitab diyara ka abhar.
    mukesh manas

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  17. जीवन की इन आरंभिक घड़ियों में भी देवेशजी की कविताओं की प्रौढता और अर्थगौरव उनके सुकोमल हृदय एवं सदाशयता के परिचायक हैं।आशा ही नहीं अपितु,पूर्ण विश्वास है कि निकट भविष्य में ही एक विशाल पाठकवर्ग के हृदयसम्राट् बन विश्व-पटल पर हिंदी और भारत-राष्ट्र के गौरवपूर्ण चरमोत्कर्ष में देवेशजी का पवित्र योगदान होगा।

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  18. जीवन की इन आरंभिक घड़ियों में भी देवेशजी की कविताओं की प्रौढता और अर्थगौरव उनके सुकोमल हृदय एवं सदाशयता के परिचायक हैं।आशा ही नहीं अपितु,पूर्ण विश्वास है कि निकट भविष्य में ही एक विशाल पाठकवर्ग के हृदयसम्राट् बन विश्व-पटल पर हिंदी और भारत-राष्ट्र के गौरवपूर्ण चरमोत्कर्ष में देवेशजी का पवित्र योगदान होगा।

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  19. जीवन की इन आरंभिक घड़ियों में भी देवेशजी की कविताओं की प्रौढता और अर्थगौरव उनके सुकोमल हृदय एवं सदाशयता के परिचायक हैं।आशा ही नहीं अपितु,पूर्ण विश्वास है कि निकट भविष्य में ही एक विशाल पाठकवर्ग के हृदयसम्राट् बन विश्व-पटल पर हिंदी और भारत-राष्ट्र के गौरवपूर्ण चरमोत्कर्ष में देवेशजी का पवित्र योगदान होगा।

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  20. वोह कहते हैं -देवेश you have arrived .बहुत अच्छा लगता है जब शब्दों के जंगल से कुछ धरती के समीप खिले फूल आप को अचानक दिखें। मन से निकलता है वाह।कवितायें सुन्दर हैं। पहले भी कुछ कुछ पढता रह हूँ। संभावनाए दिखती हैं मुझे, देवेश को बहुत आगे चलना है। बहुत लिखना है।

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  21. बेहद खूबसूरत भावों से भरी हुई कवितायें ... कविताओं के माध्यम से सहज,सरल ढंग से गहरी बात कही गयी है ... इस उभरते हुए रचनाकार से भविष्य में बहुत उम्मीदें हैं ... बहुत बधाई और शुभकामनायें ..

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  22. काव्य-जगत निश्चित ही तुम्हारा आभारी रहेगा |

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  23. बहुत सुन्दरता से पिरोई गई भावो की माला,... बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाए

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  24. बढियां कवितायें। देवेश की कवितायें हमें आशान्वित करती हैं।

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  25. देवेश की कवितायें अभी देवेश की ही तरह मासूम हैं ...भाषा और भाव दोनों स्तरों पर ....ये मासूमियत एक ताज़गी का अहसास कराती है लेकिन यही उनकी सीमा भी बन जाती है ....उनका अनुभव संसार जैसे जैसे समृद्ध होगा कविता भी समृद्ध होगी...इस विश्वास के साथ उन्हें शुभकामनायें

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  26. सभी कवितायें बहुत अच्छी लगी......देवेश को पढ़ना सुखद लगा, इनकी सक्रियता के साथ इनकी प्रतिभा दोनों प्रभावशाली हैं .....नयी पीढ़ी के प्रति आश्वस्ति जगाती कवितायें हैं ..... देवेश को आशीष के साथ अनंत शुभकामनायें ......

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  27. बहुत अच्छी कवितायेँ हैँ...देवेश को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं...
    Amit Kumar Gautam

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  28. कुछ साक्षात ऐसे भी होते हैं ,की सारा अहम् अश्रुविगलित बरस पड़ता है
    मन का हर तृषित कोना ,सारी चंचलता ,आन्दोलन भूल ...तृप्त हो जाता है
    वह तपःपूत सारी तड़क भड़क साज सज्जा से दूर सूर्या सा तेजस्वी है
    उसकी स्वयंसिद्ध आँखों ने एक रिश्ता सा कायम किया है उसके मुख मंडल की आभा
    पर्याप्त है भटके हुवों का जीवन पथ आलोकित करने के लिए
    मुझे गर्व है अपने तपःपूत पर .........माँ सुधा उपाध्याय

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  29. sambhavnaon ka vistrit bhandar...

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  30. कविता के क्षेत्र में अपनी पहचान बना रहा देवेश अभी बी.ए. का छात्र है. एक नए आगंतुक की तरह देवश (देवेश त्रिपाठी) का स्वर अभी रोमानी ही है. वैसे यह उसका मूल स्वर नहीं है. एक बनते हुए कवि के मूल स्वर की बात करना वैसे भी बेमानी ही होगा पर देवेश के पास संवेदना, भाषा और शिल्प का जो स्तर अभी है वह इस बात की आश्वस्ति है कि वह इस क्षेत्र में एक लंबा सफ़र तय कर सकेगा. हाँ, दिल के साथ आलिंद-निलय जैसे छायावादी शब्द चौंकाते अवश्य हैं. भाई रामजी तिवारी (Ramji Tiwari) ने उसकी प्रतिभा को बहुत ही उचित समय पर पहचाना है और 'सिताब दियारा' में इस उभरते हुए कवि को स्थान दिया है.

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  31. बहुत खूबसूरत कविताएँ हैं। पढ़ कर टिप्पणी किये बिना न रहा गया। बस दोस्त ये सरलता बनाए रखना। बात सीधे सीधे ही कहना, बिना लाग लपेट। फ़िराक कहा करते थे कि अच्छा भाषा वो है जिसे दस बरस का बच्चा भी समझ जाए। बहुत बहुत शुभकामनाएं।।।

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  32. बहुत खूबसूरत कविताएँ हैं। पढ़ कर टिप्पणी किये बिना न रहा गया। बस दोस्त ये सरलता बनाए रखना। बात सीधे सीधे ही कहना, बिना लाग लपेट। फ़िराक कहा करते थे कि अच्छा भाषा वो है जिसे दस बरस का बच्चा भी समझ जाए। बहुत बहुत शुभकामनाएं।।।

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  33. किसी प्रस्तुति-चयन की सभी कविताएँ अच्छी लगे ऐसा हमेशा नहीं होता है ... कविताओं के कथ्य एवं भावबोध में एक बेहद सहज रवानगी है ... जो एक के बाद दूसरी को पढ़ने के लिए ले ही जाती है ... अच्छी मुलाकात है ... आभार ...

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  34. अरे वाह भाई! यह तो आपने सच में एक संभावनाशील कवी से परिचय कराया और यह तो हमारे शहर के भी निकले...खूब-खूब बधाई और शुभकामनाएं

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  35. devesh bahut sunder prayas hai .khoob padho lekhen ki dhar tej hoti jaygi.

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  36. nayi si zameen me...naye se beev se se.... .purani kople fut rahi hai...naya sa rang h..kaccha haraa bak pan h....nayi si poudh se...nayi tasalli ug rahi h.... :))
    all i can say after reading you :))

    keep on writing dude.. you have countless horizons to lend on...

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