हमारे समाज में पितृसत्ता के द्वीप सर्वत्र बिखरे पड़े हैं । दुःख की बात यह है , कि उन्हें समाज ने इतनी सहजता के साथ स्वीकार कर लिया है , कि कई बार तो वे हमें दिखाई ही नहीं देते , या उनका ऐसा होना हमें स्वाभाविक ही लगने लगता है । विमल चन्द्र पाण्डेय अपनी इस कहानी में न सिर्फ इसे बेनकाब करते हैं , वरन ध्वस्त भी करते हैं
पढ़िए सिताब दियारा ब्लाग पर विमल चन्द्र पाण्डेय की यह कहानी
शनिवार रविवार पलटवार
‘‘कइसी थी पिच्चर ?’’
‘‘बहुत अच्छी लगी हमको तो। आपको कइसी लगी ?’’
‘‘हमको कुछ खास नहीं लगी। ऐसी पिच्चर जब हम इनवसटी में पढ़ते थे तो ठीक लगती थीं। अब इ सब तुमको ठीक लगेगा, तुम कम पिक्चर देखी हो न ?’’
‘‘कम क्या....हम सादी के तीन साल में जितना पिक्चर आप के साथ देख लिये उतना अपने पूरे जीवन में नहीं देखे थे जी।’’
‘‘खुस हो कि नहीं हमारे साथ ?’’
‘‘बहुत ज्यादा। आप तो कमाल हैं।’’
‘‘हमारे साथ रहोगी तो अइसे ही ऐस करोगी।’’
‘‘करी रहे हैं जी।’’
‘‘मोटरसाइकिल काहे रोक दिये जी ?’’
‘‘आओ कुल्फी खाते हैं।’’
‘‘अरे घर चलिये न। देर हो गयी है। बाबू रो रहा होगा। अम्मा गुस्सइबो करेंगी।’’
‘‘रुको न यार, बहुत मस्त कुल्फी बनाता है ये। चच्चा दू ठो हरा वाला।’’
‘‘सुनिये जी।’’
‘‘क्या है ?’’
‘‘ये हरा वाला कइसा होता है ?’’
‘‘हरा.....हरा मतलब....प्राकृतिक। मतलब इसमें पौधे वौधे का इस्तेमाल होता है। पर्यावरण के लिये अच्छा होता है।’’
‘‘अच्छा। पत्ती से बनता है क्या ?’’
‘‘और क्या। दो तरह का होता है, एक सिंपल वाला और एक प्राकृतिक। प्राकतिक वाले से प्रकृति का भी कुछ भला होगा।’’
‘‘आप कितना अच्छा सोचते हैं। शादी को तीन साल हो गया लेकिन हम हर दिन आपका एक नया रूप देखते हैं।’’
‘‘मजा आता है न ? बोलो-बोलो सरमा काहे रही हो ?’’
‘‘बहुत।’’
‘‘हमारे साथ रहोगी तो अइसे ही ऐस करोगी।’’
‘‘हूं....अच्छा है जी कुल्फी।’’
‘‘तब.....? हम कहे ही थे। चच्चा मस्त है न ?’’
‘‘हां बचवा बहुत मस्त हौ। मजा आयी।’’
‘‘रोटी और लेंगे जी ?’’
‘‘हां, दो और दे दो। हे हे हे।’’
‘‘दो और ?’’
‘‘हां यार। नहीं देना हो तो मना कर दो। अइसे घूर काहे रही हो ?’’
‘‘अरे जी आपका घर है, दस लीजिये लेकिन रोज तो चारे या पांच खाते हैं। आज ये सातवीं रोटी है।’’
‘‘तुम तो यार हमारा खाना निहार रही हो। हे हे हे। रहने दो नहीं खाएंगे।’’
‘‘अच्छा लीजिये लीजिये गुस्साइये मत। ये दो खा लीजिये, इसके बाद चार और देते हैं। हे हे हे।’’
‘‘इतना हंस क्यों रही हो जी ?’’
‘‘हम कहां हंस रहे हैं ? आप ही तब से हंस रहे हैं। आपका हंसी देख कर हंस रहे हैं। हे हे हे।
‘‘और हम तुम्हारा हंसी देख कर हंस रहे हैं। हे हे हे।’’
‘‘हम कहां.....।’’
‘‘कब्बे से तो तुम्हीं हंस रही हो। हम क्या करें, तुम्हारा मुंह देख रहे हैं तो हंसी आ रही है। हे हे हे।’’
‘‘आप जब से आये हैं, चिल्ला चिल्ला हंस रहे हैं, हम तो बस आपका मुंह देख के हंस रहे हैं। हे हे हे।’’
‘‘तो....? हमारा हंसी बर्दास नहीं हो रहा क्या तुमको ?’’
‘‘नहीं, अइसा नहीं है। खूब हंसिये, पेट भर हंसिये। हंस के पेट भर लीजिये। खाना काहे खा रहे हैं ? हे हे हे।’’
‘‘क्यों खाना इलाहाबाद से ले कर आयी हो क्या ?’’
‘‘नहीं इलाहाबाद से तो खाली हम अकेले आये थे। बाकी सब तो बनारस का ही है।’’
‘‘ये सबसे मस्त चीज है बनारस का। क्यों बेटू, मम्मी के बेटे हो कि पापा के ? हे हे हे।’’
‘‘दादी।’’
‘‘अरे सुनो बेटा.....सुनो आओ चाकलेट रक्खे हैं। बड़ा चंट है, एकदम अपने माई में पड़ा है। हे हे हे।’’
‘‘सुनिये जी।’’
‘‘हां बोलो।’’
‘‘बत्तिया जला दीजिये न।’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘बहुत डर लग रहा है। पता नहीं कइसा कइसा हो रहा है। लग रहा है जैसे हमारा पेट हइये नहीं।’’
‘‘कहां चला गया पेट ? हा हा हा।’’
‘‘बहुत डर लग रहा है। लग रहा है कि हम उड़ रहे हैं।’’
‘‘सो जाओ, सो जाओ, कुछ नहीं हुआ।’’
‘‘सीढ़ी का दरवाजा बंद किये हैं कि नहीं ?’’
‘‘हां जी, सो जाओ।’’
‘‘गैस बंद किये हैं ?’’
‘‘हां भाई।’’
‘‘ऊपर से कपड़ा लाये हैं कि नहीं ?’’
‘‘तुम उड़ रही ही हो, उड़ती हुयी जाना तो देख लेना। हाहाहाहाहाहा।’’
‘‘सुनिये जी, सो गये क्या ?’’
‘‘क्या हुआ ? इतना जोर से काहे पकड़ी हो ?’’
‘‘पता नहीं क्या हो रहा है पूरे सरीर में। गला सूख रहा है। लग रहा हम बचेंगे नहीं। हमारे बड़े पापा को हार्ट अटैक आया था तो अइसा ही हुआ था उनको। आप मम्मी को फोन लगाइये, हमको बात करना है। हम बचेंगे नहीं।’’
‘‘अरे पागल, बत्ती बुझा। कुछ नहीं हुआ है। सुबह तक ठीक हो जायेगा।’’
‘‘नहीं जी आप समझ नहीं रहे हैं। हमको अंदाजा हो गया है हम बचेंगे नहीं। मरने वाले को मरने के तुरंत पहले पता चल जाता है। चलिये अम्मा जी और पापा को उठा दें।’’
‘‘अरे यार, कुछ नहीं होगा। तुम भांग खायी हो इसलिये ऐसा लग रहा है।’’
‘‘नहीं जी, क्या बात कर रहे हैं ? हम कभी अइसा सपने में भी नहीं सोच सकते।’’
‘‘अरे जो कुल्फी खायी हो उसमें था। हे हे हे।’’
‘‘अरे बाप रे ! अइसा क्यों किये आप हमारे साथ ? हमसे किस जन्म का बदला निकाले हैं ? हे काली माई, रच्छा करो।’’
‘‘अरे कुच्छ नहीं होगा, सब लोग खाते हैं।’’
‘‘हे दुरगा माई, बनारस में खाते होंगे सब लोग। हमारे यहां कोई जिंदगी में नहीं खाया।’’
‘‘अच्छा चलो सो जाओ। बकवास मत करो।’’
‘‘अरे अम्मा रे। हमको भांग खिला दिये। अब क्या होगा ?’’
‘‘अरे यार धीरे बोलो बाबू जग जायेगा। होगा क्या, सुबह तक ठीक हो जायेगा। सो जाओ चुपचाप।’’
‘‘कइसे सो जाएं जी ? हमको भांग कांहे खिला दिये ? अब तो हम बचेंगे नहीं।’’
‘‘चुप रह पागल औरत। भांग खाने से कोई मरता नहीं है। चुप रहो एकदम चुप।’’
‘‘भांग खाने से तो दिमाग उलट जाता है हम सुने हैं। हमारा दिमाग उलट जायेगा अब। क्या होगा हमारे बेटा का।’’
‘‘यार हमारा भी तो बेटा है वह।’’
‘‘हां आपका भी है लेकिन हम अब सोयेंगे नहीं। हम सोये और हमारे बाबू को कुछ हो गया तो ?’’
‘‘अरे यार, हम बाप हैं उसके। कुछ नहीं होगा, सो जाओ। हम देखते रहेंगे बाबू को, अगर रोया तो तुमको जगा देंगे।’’
‘‘नहीं जी, आप जगाए और हम जागे ही नहीं तब ? और आप भी तो खाये हैं, आपको क्या होश रहेगा ?’’
‘‘हम हर सनिवार रविवार को खाते हैं पागल, कभी तुमको दिक्कत हुआ ? हे हे हे।’’
‘‘अच्छा, इसीलिये आप सनीच्चर अत्तवार को ज्यादा पगलाये रहते हैं क्या ?’’
‘‘अउर क्या। हे हे हे।’’
‘‘अरे लेकिन हमको क्यों खिलाये, हमारा तो दिमाग उलट जायेगा अब।’’
‘‘कुछ नहीं होता पागल। हम इतने दिन से खा रहे हैं, हमको कुछ हुआ ?’’
‘‘हमको क्या मालूम ? हमको सादी किये तो तीने साल हुआ है, उसके पहले क्या पता आपका दिमाग ज्यादा सही चलता हो।’’
‘‘तुम्हारा दिमाग भी तेज चलने लगा है। सो जाओ।’’
‘‘कैसे सो जाएं जी मेरा बेटा भी तो है। मेरा दिमाग उलट गया तो आप लोग हमको पागलखाने भेज देंगे। वहां तो बिजली का झटका दिया जाता है।’’
‘‘अरे यार अइसा कुछ नहीं होता है। वो सब उन लोगों के साथ होता है जो बहुत अधिक भांग खाते हैं और धतूरे वतूरे का भी इस्तेमाल करते हैं।’’
‘‘धतूरा क्या होता है जी ?’’
‘‘हमको कभी-कभी लगता है कि तुम दूसरे ग्रह से आयी हो।’’
‘‘आपको हमारे साथ ऐसा नहीं करना चाहिये था। हमारे पूरे सरीर में वलय उठ रहा है, जैसे लग रहा है पानी का हो गया है पूरा शरीर और ऊपर-नीचे ऊपर-नीचे वलय बनके लहर की तरह उड़ रहा है। एक बार ऊपर और एक बार नीचे, फिर एक बार ऊपर और एक बार नीचे, फिर एक बार ऊपर और......हेहे हे हे हे।’’
‘‘मजा आ रहा है कि नहीं ये बताओ ?’’
‘‘पता नहीं जी, हमको तो कुछ पते नहीं चल रहा। बहुत डर लग रहा है।’’
‘‘एक तो तुम डरपोक बहुत हो। बात-बात में लगती हो डरने। अरे यार हम सोचे कि तुमको भांग चढ़ेगी तो मजा आयेगा तो तुम मेरा भी मजा किरकिरा कर रही हो।’’
‘‘सॉरी, हमारी वजह से आपको बहुत परेसानी होता है न ? आपको अपने टाइप की किसी लड़की से सादी करना चाहिये था बोल्ड टाइप। हम आपके लायक नहीं हैं।’’
‘‘अरे मेरी जान ! तुमसे अच्छा हमारे लिये कोई नहीं हो सकता। तुम तो मेरी जान हो, मेरी रानी हो।’’
‘‘हे हे हे, आप जब किस कर रहे हैं तो लग रहा है जैसे आत्मा में किस कर रहे हैं।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘आप गाल पर किस कर रहे हैं तो लग रहा है मेरे गाल के भीतर तक घुस जा रहा है। हे हे हे।’’
‘‘मजा आ रहा है कि नहीं ? हे हे हे।’’
‘‘हां जी। अच्छा लग रहा है।’’
‘‘रुकिये न। ओहो, छोड़िये हमको।’’
‘‘क्या हुआ ?’’
‘‘नहीं, बस ऐसे ही, छोड़ दीजिये हमको।’’
‘‘क्यों, क्या हुआ ?’’
‘‘हमको लग रहा है जैसे ये सब एक सपना है। शरीर पता ही नहीं चल रहा है और लग रहा है जैसे आप कई दिन से हमको किस कर रहे हैं।’’
‘‘तो अच्छा है न ?’’
‘‘अब देखिये, अभी आप पूछे हैं कि अच्छा है न और हमको अचानक लग रहा है कि कई दिन पहले पूछे हैं।’’
‘‘अरे यार सो रहा है बेटा, क्यों परेशान हो रही हो, आओ न।’’
‘‘नहीं जी, अभी छोड़ दीजिये। हम होस में नहीं हैं।’’
‘‘अरे तो हम तो होस में हैं। ये क्या....?’’
‘‘नहीं, प्लीज आज नहीं, आज हमको कुछ समझ में नहीं आ रहा है। कभी लग रहा है कि आप ही हैं और कभी लगने लग रहा है कि आप कोई और हुये तो ?’’
‘‘तुम तो यार गजब की बात कर रही हो। पूरे मूड का कबाड़ा कर रही हो।’’
‘‘नहीं छोडि़ये हमको। इसीलिये खिलाए हैं भांग ?’’
‘‘हां इसीलिये खिलाए हैं, अब आओ।’’
‘‘नहीं, हमको नहीं आना है, हमको अइसे ही मजा आ रहा है। हम जब आंख बंद कर रहे हैं तो लग रहा है जइसे उड़ रहे हैं। बहुत मजा आ रहा है। हे हे हे।’’
‘‘अभी और मजा आयेगा। हे हे हे।’’
‘‘नहीं जी आप दूर रहिये। हमको अकेले ज्यादा मजा आ रहा है। नहीं, छोड़िये, ये सब नहीं। आप जब इस तरह पकड़ रहे हैं तो डर लगने लग रहा है कि आप कहीं आप नहीं हुये तो। ये सब मत करिये। हमको उड़ने दीजिये।’’
‘‘यार हद है, अकेले कइसे उड़ोगी तुम, हम और बढि़या से उड़ा दे रहे हैं।’’
‘‘उं, नहीं, छोडि़ये।’’
‘‘बहुते बद्तमीज हई रे तैं, एक ठे हींच के मारब मुंहे पर होस में आ जइबी।’’
‘‘हम दही जमाए हैं का में अपने हाथ पे, दै देबै एक ठे तुम्हरे मुंह पर तुमहूं होस में आय जाबो।’’
‘‘कइसे बोल रही हो जी ? अपने पति से अइसे बात करते हैं ? इलाहाबादी गुंडे की तरह ?’’
‘‘सॉरी जी। माफ कर दीजिये, आप भी तो बनारसी ठग की तरह बात कर रहे हैं। हे हे हे।’’
‘‘सुनिये न जी, गुस्सा हो गये क्या ? मेरे मुंह से गलती से निकल गया। हे हे हे। आप ही तो खिला दिये हैं अइसा चीज जो हमसे नहीं संभल रहा। सॉरी, गुस्साइये मत। हे हे हे।’’
‘‘नहीं, सॉरी बोले हैं लेकिन कुछ करिये मत। हमको उड़ने दीजिये अकेले ही, बड़ा मजा आ रहा है। हे हे हे।’’
‘‘और हम क्या करें ?’’
‘‘हमको क्या मालूम ? हमको उड़ना होता है तो आप बीच में क्या करने चले आते हैं ? हे हे हे। हमको अकेले उड़ना आता है। अकेले ज्यादा मजा आ रहा है। हे हे हे।’’
‘‘ठीक है, मुंह पिटाओ। हम सो रहे हैं, हमसे बात मत करना।’’
‘‘सो जाइये, सुबह बात किया जायेगा। इस समय हमको बहुत हल्का लग रहा है और हम उड़ रहे हैं। हे हे हे।’’
‘‘हमारे बिना बहुत मजा आ रहा है ?’’
‘‘जरूरी है क्या कि जब हमको बहुत अच्छा लगे तो आप बीच में कूद जाएं। हमको आपके बिना भी अच्छा लग सकता है। आप अपना देख लीजिये। हे हे हे।’’
‘‘बद्तमीज कहीं की....जाहिल ! तुमको खिला कर गलती किये। अब कान पकड़ते हैं कभी नहीं करेंगे ऐसी गलती।’’
‘‘हे हे हे हे। आप तो गुस्साय गये साहब। अपने बारी में बहुत जल्दी पिनक जाते हैं आप। हे हे हे।’’
परिचय और संपर्क
विमल चन्द्र पाण्डेय
प्लाट नं. 130-131, मिसिरपुरा
लहरतारा, वाराणसी - 221002 (उ. प्र)
फोन - 9451887246, 9820813904
ईमेल- vimalpandey1981@gmail.com
Dil ko Khol ke rakh diye hai. Ekdam Bdhiya bate. Lagal rahiye.
जवाब देंहटाएंमहराज! बड़ा बढ़िया लिखे हैं जी। बिना करवट बदले पढ़ गए। चायो ठंडाई गया। लेकिन इ कहनिया के पढ़हि के छोड़े। गरमा के दुबारा लाए हैं, चाय। अइसन बतुआता हुआ कहानी कमहि पढ़ने को मिला है। बड़ी पानी जइसन भाषा। हमनी के घर-दुआर में बोलल-बतिआवल जइसन। हमके त लगा कि आप मर्दवन जात के दिए हैं-ऐ तबड़ाक...उ तबाड़क। दू-चार ठो जइसे हमहूँ खा गए हों। आप इतना बढ़िया सोचते-लिखते हैं...त अपना मेहरारू संग ई-सब करम-धरम मत कीजिएगा। आपलोगन दुनिया बनावे वाले लोग हैं। आप लोगन से हमलोग बोले-करे के सलीका सिखते हैं। चलिए ज्यादा अच्छाई गाएंगे त आप कहिएगा ई लइकवा फोकस-पालिश मार रहा है।
जवाब देंहटाएंएक अच्छी कहानी पढ़ने को मिली .विमल जी बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंविमल की कहानियों की यही खूबी होती है कि वे अपने प्रवाह में हमें सहज ही खींच ले जाती हैं. यह कहानी भी उसी कड़ी में है जिसमें पितृ सत्तात्मक समाज पर तीखा व्यंग्य देखने को मिलता है. विमल को बधाई.
जवाब देंहटाएंमजेदार,,,पति पत्नी की छोटी छोटी बातो को बहुत ही गहराई से लिखा है विंमल जी ने,शादी के बाद की परिपक्वता साफ दिखाई दे रही है,
जवाब देंहटाएंसंवाद मे व्यग्य के साथ कविता जैसा प्रवाह कई किस्म के पाठको को एक साथ बाध रहा है,।कहानी को आत्मकथा समझ के पढे तो और
आनन्द देगा,,,नियम व शर्ते लागू,भाँग खाना जरूरी है अऊर एक ठो गाना गाना,,,..,,,,,,,,,,,,,,कि बोले रे जमाना खराबी हो गयी
कहानी वास्तव में दिलो-दिमाग पर अमित प्रभाव छोडती है | आजकल जब भी किसी कहानी को पढ़ने का अवसर मिलता है तो असहज महसूस करने लगता हूँ क्योंकि कहीं पढ़ने के बाद अफ़सोस न होने लगे, लेकिन यहाँ एक ही स्थल पर सब कुछ मिल गया |
जवाब देंहटाएंगज़ब का पलटवार।
जवाब देंहटाएंमस्त बनारसी कहानी भाई विमल पाण्डे... मजा आ गया। मेरे दाम्पत्य की पहली होली भी कुछ ऐसी ही थी।
जवाब देंहटाएंशिव शरण सिंह
मस्त बनारसी कहानी भाई विमल पाण्डे... मजा आ गया। मेरे दाम्पत्य की पहली होली भी कुछ ऐसी ही थी।
जवाब देंहटाएंशिव शरण सिंह
bahuuuuuuuuuuutttttttttttt acchi kahani vimal bhai.. qasam se jee khush ho gaya... maza aata hai jab kahani baas kahani bhar nahi hoti... dher saari daad aur duaayen... :)
जवाब देंहटाएंबहुत ज़बर्दस्त साहब.. मज़ा आ गया !!! एकदम संतुलित..
जवाब देंहटाएंपढ़ते हुए हंसी ही नहीं रुक रही ...वाह !! बड़ी अच्छी लगी यह भांग कि कुल्फी
जवाब देंहटाएंविमल, बहुत अच्छी कहानी आपने लिखी है। बधाई॥
जवाब देंहटाएंविमल, यह मेरी पत्नी, नीलु हर्षे का कमेन्ट है, जो मेरे id से चला गया है। मुझे तो अच्छी लगी ही है...
हटाएंबनारसी ठग अउर इलहबादी गुंडा का बतकुच्चन जबर्दस्त हव!!
जवाब देंहटाएंग़ज़ब का शब्द संयोजन है ...पढ़ते पढ़ते ही नशा सा हो गया .
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत साधुवाद l
Kamaal....!
जवाब देंहटाएंसभी दोस्तों का दिल से आभार ! हे हे हे
जवाब देंहटाएंJabardast hai......
जवाब देंहटाएंभइया कहनी हमके भी मज़ा आयल . भंग क तरंग होय चाहे सुल्फा होय बाकी मर्दवाद मरता नहीं - एक ठे हींच के मारब मुंहे पर त होस में आ जयिबी ! बाकी सावन से भादो दुब्बर काहें होय - हम दही जमाये हैं का अपने हाथ में ... जय हो स्त्रीवाद . भैया बधाई लेव और लिखत रहू !
जवाब देंहटाएंShukriya ramji bhai
जवाब देंहटाएंक्या मारा है घुमा के, गज़ब गज़ब गज़ब
जवाब देंहटाएंmera comment kahan gaya ?
जवाब देंहटाएंबहुत ईज़ी कहानी. हम तीन यहाँ कमरे में बोल बोल कर आपकी कहानी पढ़ रहे हैं और हंस रहे हैं यह जानते हुए भी यह कहानी हंसने के लिए नहीं लिखी गयी
जवाब देंहटाएंबहुत सही, बाहर बाहर नहीं ये भीतर उतर कर समझने वाली कहानी है, बाहर से तो खाली हंसी ही आएगा गुरु
जवाब देंहटाएं