शैलजा पाठक
सिताब
दियारा ब्लॉग शैलजा पाठक को
जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं देता है , और उम्मीद करता है कि फेसबुक जैसे मंच
का जिस तरह से उन्होंने सकारात्मक उपयोग किया है , वह सभी नवोदित रचनाकारों के लिए
एक आदर्श रोड-मैप साबित होगा | बिना किसी अतिरिक्त शोर-ओ-गुल के शैलजा
लगातार बेहतर लिखती जा रही हैं | न सिर्फ कविता की विधा में , वरन गद्य की विधा
में भी | उनकी डायरी के पन्ने हों , या ‘लेखक का एकांत’ शीर्षक से फेसबुक पर साझी
की गयी टिप्पड़ियां हों , शैलजा की
लेखनी में संवेदनशीलता का ट्रेडमार्क हमेशा उपस्थित रहता है | कहना न होगा ,
उन्होंने अपनी लेखनी के सहारे हमारे भीतर भविष्य में अनगिन उम्मीदें जगायी हैं ,
और जिसे उन्हें ही पूरा भी करना है |
तो प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर शैलजा पाठक की कवितायें
एक .....
राख
दांत मांजे थे कभी
हाथ या बर्तन कभी
राख में जिन्दा पड़ी
एक आंच भी थी
राख की पुडिया
कभी माथे का टिका
फिर राख तुम
स्वर्णिम कलश की
लाल कपड़ों से बंधी थी
मंत्र पूजा अर्चना
अंतिम विदाई
तुमने अंतिम सांस ली क्या ?
धार कांपी या हमारी आँख में
पानी के परदे ....
दो
जब मैं तुमसे मिलती हूँ
जब नही सोचती हू तुम्हे
तब मैं कुछ नही सोचती
पैर के नखों से कुरेदती हू
जमीन का पथरिलापन
तब तक जब तक
अंगूठे दर्द से बिलबिला ना उठे
जब मैं नही मिलती तुमसे
तब मैं किसी से नही मिलती
जरा से बादलों को खीचकर
ढक देती हूँ आईना
तुम धुंधले हो जाते हो
और जब मिलते हो तुम
मैं आसमानी ख्वाबो में लिपटी
पूरी दुनिया को बदला हुआ
देखती हूं कि जैसे पेड कुछ बड़े और
हरे हो गए
पोखर का पानी साफ़ है
बिना मौसम ही खिले हैं खूब सारे
कमल दहकते रंग के
मेरी आँखों में खूब सारी
जिंदगी छलक रही है
मेरे हाथों में मेहदी का
रंग और महक
ऊपर आसमान में उड़ते
दो पतंग एक दूसरे से
गले मिलते हुए
जब मैं तुमसे मिलती हू
तब मैं मिलती हूं
अपने आप से .......
तीन
चमत्कार
चमत्कार
वह नही कि आकाश से फूल बरसा दो
पानी में आग लगा दो
हवा को मुठियों में बंद कर लो
नजर बदलनी होगी
चमत्कार देखना है तो
गरीब की थाली में रोटी की तरह
बेवा के सफ़ेद चेहरे पर मुस्कान सा
एक गुमशुदा बच्चे को मिल गई माँ
उस बुधियाँ के चावल में गायब हुए
कंकड़ सा
जिसे चुनते हुए उसकी गहरी आँखों
से रिसती है उसकी उमर
प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के घर
पर धरे सोफे सा
बिछड़े दोस्त के आवाज सा
अचानक दिख जाता है चमत्कार
चमत्कार चुटकियों का जादू भर नही
दिन भर काम करते बच्चे की
मैली हथेलियों पर रखे टाफी सा
ठिठुरते मजदुर के ऊपर चादर सा
डाल कर तो देखो
चमत्कार हम सब कर सकते हैं ..
चार
तुमने कभी कुछ नही बताया
जब शाम सांवली होती
भींगी हवा से गीले हो जाते पत्ते
गिरी ओस पर सरपट
सरकती चांदनी
दम घोंटू सा सन्नाटा बिखरा होता
तुम वहीँ बिखेरती अपनी मोहक हंसी
मैं उस पल को पंखुरी पंखुरी चुनता
मैं उस अँधेरे में नही देख पाता
तुम्हारी आखों का काजल
कानों की बाली
होंठों का सुर्ख होना
पर मेरी अंजली में भरी
तुम्हारी मुस्कराती पंखुरियों में
काटें से चुभते
एक दिन तुम देर तक हंसती रही
मैं देर तक बिलखता
तुम्हारे जखम नही देखें मैंने
पर तुम्हारी हंसी में कराहने को छुआ
है कई बार
तुमने कभी कुछ नही बताया
रात सपने में नंगे पेड़ों की पीठ
पर
खून छलछलाता देखा मैंने
रौदें फूलों की कब्र पर
मिटटी बिछी देखी
सन्नाटें की हंसी में एक जोड़ी
आँखें दिखी
ओस से भींगी ................
पांच
निशाना
अब गौरिया निशाने पर है
अचूक है तुम्हारा निशाना
तुम एक एक कर मारना उसे
आखिरी गौरया को मार कर
उसका पंख रखना निशानी
जब अकाल पड़ेगा
जब नदी सूख जाएगी
जब फसल काले पड़ जायेंगे
जब भर जाएगी तुम्हारे आँखों में
रेत
जिंदगी ख़तम होने के पहले
अपनी काली माटी में रोप देना वो
रखा हुआ पंख
उसी में भरी थी उड़ान
उसके घोसले का पता
उसके बच्चे की भूख
वो धरती को मना लेगी
तुम्हें एक और बार जनेगी
और तुम बार बार साधना निशाना
शिकारी हो तुम ...
छः
पुरानी कविता
पुरानी कविता की नब्ज टटोली
वो पगली गुमसुम सी बोली
रंग भरो कुछ
कब से मैं बेजान बनी हूँ
तुमने लिख दी तब से है खाली सा
आँगन
दरवाजे के दस्तक से मैं डर जाती
हूँ
लाल दुपट्टा पड़ा हुआ बक्से में
कबसे
पीले कागज के पन्नो पर गीत
लिखा था
मीत लिखा था
साथ लिख दिया बात लिखी
फिर भूल गई क्या ?
मुझको भी मौसम के जैसे
अदल बदल कर लिखा करो तुम
इन्द्रधनुष के रंग ही लिख दो
शाम लिखो ना ..वही लिपट कर
जब करती थी प्यार की बातें
फूल लिखो जो सूख गया सा आज भी
तुमने रखा होगा
याद लिखो उसकी जिसकी बातों में
खोई खोई सी थी
होली का वो रंग भी लिखना
जो गालों से उतर गया था
उतर सका ना मन से अब तक
पुरवाई ..अमराई लिख दो
अच्छा छोडो पतझड़ लिख दो
सूखे पत्तो पर कितना लिखा था
तुमने
सबकुछ जैसे चूर हो गया
सुनो सखी !आंसू मत लिखना
मेरा मन भी भारी सा है
आओ लगो गले से मेरे
तुम मुझमें मैं तुममें मिलकर खो
जाते है
वादा है हम साथ रहेंगे ...
परिचय और संपर्क
शैलजा
पाठक
बनारस से पढाई-लिखाई
आजकल मुंबई में रहती हैं
लिखने के साथ गाने का भी शौक है
कई पत्र-पत्रिकाओं और ब्लागों में कवितायें
प्रकाशित