शनिवार, 29 जून 2013

नित्यानंद गायेन की कवितायें

                                 नित्यानंद गायेन

नित्यानंद गायेन की कविताओं में एक ईमानदारी दिखाई देती है | ऐसा लगता है , जैसे इनमें हम अपने समय के चेहरे को साफ़-साफ़ पढ़ रहे हों | ये कवितायें बेशक उतने करीने से नहीं सजायी गयी हैं , लेकिन ये ड्राइंगरूम में रखने के लिए लिखी भी नहीं गयी हैं | दरअसल जिनके लिए इन्हें लिखा गया है , वह समाज भी तो थोडा खुरदुरा ही है |

         तो प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर नित्यानंद गायेन की कवितायें


1.... ये किस पक्ष के लोग हैं...?

कठिन वक्त पर खामोश रहना 
मासूमियत नही 
कायरता है 
और 
वे सब खामोश रहें 
अपने -अपने बचाव में 
और वक्त को बनाया ढाल 
खामोशी के पक्ष में 


जब बोलना था 
तब कुछ न बोले 
जब भी बोले
अपने बचाव में बोले

ये किस पक्ष के लोग हैं ...?

2. तुम्हारे पक्ष में...


हाँ यही गुनाह है 
कि मैं खड़ा हूँ तुम्हारे पक्ष में 
यह गुनाह राजद्रोह से कम तो नही 
यह उचित नही 
कि कोई खड़ा हो
उन हाथों के साथ जिनकी पकड़ में
कुदाल ,संभल , हथौड़ी ,छेनी हो
खुली आँखों से गिन सकते जिनकी हड्डियां हम
जो तर है पसीने से
पर नही तैयार झुकने को
वे जो करते हैं
क्रांति और विद्रोह की बात
उनके पक्ष में खड़ा होना
सबसे बड़ा जुर्म है ....

और मैंने पूरी चेतना में
किया है यह जुर्म बार -बार ..


3....  क्रांति के लिए


अपने आवारा दिनों में 


मैं भी नंगे पैर घास पर चलता रहा 


महाकवि 'वॉल्ट व्हिटमॅन' की तरह 


मैं सोचता रहा 


अपने मन में पल रहे विद्रोह के बारे में


मैंने 'नजरुल' को पढ़ा


गौर से देखता रहा मेरे आसपास की हर घटना को


मैं सुनता रहा


तुम सबकी बातें


मेरे आस -पडोस में लोगों ने


जमकर मेरी आलोचना की



मैंने 'कबीर' को सोचा उस वक्त


तभी मुझे याद आई


'सुकरात' की कहानी


फिर अचानक


मेरे मस्तिक में उभरने लगा क्रांति में शहीद हुए


क्रांतिकारियों का रक्तिम चेहरे


शासन के हाथों घायल होते हुए भी


बंद मुट्ठी लिए


क्रांति के लिए


उठे हुए लाखों हाथ



मैंने अपने कांपते तन -मन को


संभालने की नाकाम कोशिश की


अचानक मैंने भी मुट्ठी बनाकर


इन्कलाब कहकर


आकाश की ओर उठा दिया अपना हाथ

 

4. गांवों का देश भारत   


नर्मदा से होकर 
कोसी के किनारे से लेकर 
हुगली नदी के तट तक 
रेतीले धूल से पंकिल किनारे तक 
भारत को देखा 
गेंहुआ रंग , पसीने में भीगा हुआ तन 
धूल से सना हुआ चेहरे
घुटनों तक गीली मिटटी का लेप
काले -पीले कुछ कत्थई दांत
पेड़ पर बैठे नीलकंठ
इनमें देखा मैंने साहित्य और किताबों से गायब होते
गांवों का देश भारत

दिल्ली से कहाँ दीखती है ये तस्वीर ...?
फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक
आंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर
योजना आयोग की तरह ....



*मध्य प्रदेश से होकर बिहार,बंगाल की यात्रा के बाद लिखी गई एक कविता 
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5. जो निर्गुट थे   

यह दौर 
गुटबाजी का है 
निर्गुट रहना 
कठिन हो गया है

दुनिया भर में 
बन रही हैं 
गटबंधन की सरकारें 
टिका कर अपना भविष्य 
औरों के कंधें पर 
खुद के कंधे अब कमजोर होने लगे हैं 
गणमान्य लोग जो गाते थे 
निष्पक्षता का गीत 
बंट गये वे भी अवसर -अवसर देखकर
इस आंधी ने अब रुख किया है 
अपने प्रांत की ओर

जो निर्गुट थे 
मारे गए 
या कहिये 
लुप्त हो रहे हैं दिन --दिन 
आज निर्गुट रहना भी 
सबसे बड़ा गुनाह है ..................??


6. डायमंड हार्बर 

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उस पार हल्दिया 
इस पार मैं 
बीच हमारे डायमंड हार्बर नदी 
तीव्र लहरें 
लहरों पर नाचती नौकाएं 
बेचैन मन की भावनाओं की तरह |

वाम शासन के पतन के बाद 
तानाशाह के उदय के साथ 
परिवर्तन के नाम पर 
बंग सागर में 
डूबते देखा आज सूरज को 
उदास मन के साथ 
भूख की आग में जलती 
देह व्यापर में लिप्त 
किशोरी की आवाज़ घुट कर रह जाती है 
डायमंड हार्बर के होटलों में |

माँ , माटी के साथ 
ममता भी दफ़न है किसी कब्र में 
या शायद ....
शामिल है आई .पी .एल जश्न में 
बस यही पोरीबर्तन’*है 
सोनार बांग्ला में ....? 

रबिन्द्र , नज़रुल के नाम पर 
स्टेशन का नाम करने से 
होता नही परिवर्तन 
राममोहन राय , विद्यासागर की याद से भी 
नही होता परिवर्तन 
कार्टून पर प्रतिबंध से भी नहीं होता 
परिवर्तन .....
दीदी बन जाने से नही होता कुछ 
लाल रंग से घृणा से 
नहीं होता कुछ 
समझ जाओ जिस दिन ज़मीनी हकीकत 
शायद हो जाये कुछ परिवर्तन .....



परिचय और संपर्क    

नित्यानंद गायेन  

कमरा न. – २०२
हॉउस न. - 4-38/2/B
आर.पी.दुबे कालोनी
लिंगाम्पल्ली , हैदराबाद
आँध्रप्रदेश  - 500019.

मो.न. - 09642249030