शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

वंदना शर्मा की कवितायें


                                                                          वंदना शर्मा 


समकालीन हिंदी साहित्य अपनी जनतांत्रिकता की वजह से आज विशेष चर्चा में है | सवाल वहाँ से उठाये जा रहे हैं , जिन्हें अब तक केवल सुनाया जा रहा था | इन्हीं हाशिए के लोगों द्वारा समाज की मुख्यधारा से पूछा जाने वाला सवाल आज कविता की विधा में भी अपनी संपूर्ण  मुखरता के साथ उभरा है | वह चाहें दलित चेतना हो , या हमारे समाज की आधी दुनिया की तरफ से किया जाने वाला संघर्ष हो , प्रश्न सीधा और सटीक है | “यदि मैं चाहूँ इन कथाओं को उलट दूँ” | ‘तब’ ....? “एक मौत मरने से पहले यदि वह जीना चाहती हो” .... ‘तब’ .....?  ....यही ‘तब’ हमारे सामने दर्पण बनकर खड़ा हो जाता है | इन सवालों को जब नाक – भौं सिकोड़ने शुचितावादियों के सामने दर्पण बनाकर रखा जाता है कि ‘ऋषियों के भेष में लकड़बग्घों का बारात ही मिलती है” , तो वे भी बगलें झाँकने लगते हैं | जाहिर है कि ये  सवाल  ध्वंस और नकार के  सवाल  नहीं , वरन समाज को समतापूर्ण , न्यायपूर्ण और गरिमामय बनाने की आवाज है |
                             
‘सिताब दियारा’ के इस मंच पर इन्ही आवाजों में से एक और हमारे समय की चर्चित युवा कवयित्री ‘वंदना शर्मा’ की इन चार कविताओं को हम प्रस्तुत कर रहे हैं  | देश की सभी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं और ब्लॉगों की दुनिया में अपने भिन्न प्रतिरोधी तेवरों से अलग स्थान बनाने वाली इस आवाज को आपके सामने रखते हुए यह ब्लाग गर्व का अनुभव कर रहा है  | ........रामजी तिवारी 




तुमसे नहीं कहा गया है यह सब


भीगे एकांत से ठीक बाद की यात्राएं थकान के सिवाय कुछ नही देती
सर मुड़ाते ही ओले पड़ना ऐसी ही अकेली यात्रा के
अंत का मुहावरा होगा ..
कुछ नीरव प्रदेशों के सम्मोहन बहुत गहरे होते हैं
मदिर निद्रा ताउम्र जी जाना अधूरापन है तो है
संबंधो के ज्ञात अज्ञात रेखांकन भी निर्जीव चित्र के सिवाय कुछ नही होते
क्यों कि सारे विस्तार और गहराइयों के मापक यंत्र नहीं बने हैं
सच है कि इन नक्षत्रों में दिपदिपाहट ही आश्वस्ति है
दुर्दिनो के बाद भी कितना पूरा होता है आकाश ..
बहु संख्यक अंधेरों में जुगनू तक नही आते आजकल
किन्तु मूर्खताओं से खुद को बरी करना मेरे लिए कठिनतम कार्य होगा
तुमसे नही कहा गया है यह सब ..
आजकल किसी बात पर झगड़ते तक नही हैं हम दोनों 



2..         मैं कल्पनाओं से ख़ारिज स्त्री

 

मै कल्पनाओं से खारिज स्त्री
कठिन मार्गों से नदारद तुम पुरुष
निस्पृह भाव पराई औरत सा पराये मर्द सा नागवार स्पर्श
तप रहा है सूर्य, स्थिर हवा ..
बंद आँखों तृप्ति में यदि मै नही हूँ तुम नही हो स्वप्न में
तब यह क्यों होना चाहिए कि मै तुम्हारी प्रतीक्षा मिलूँ

थामे सप्त्पदियों की शिलाएं
कैक्टस सी अड़ी हैं रिक्तियां
कुकरमुत्ता सा मेरा अस्तित्व
घूरे पर ..
उन्नत खडा है
शहजादा चलता था,जहाँ तहाँ खिल जाते चम्पई फूल
रोती है लड़की बीर बहूटी सी झौपडियो में बंद महल में
यदि मै चाहूँ इन कथाओं को उलट दूं
तब यह क्यों होना चाहिए कि मै तुम्हारी प्रतीक्षा में मिलूँ

बहुत कठिन होता होगा यह राज वधू होना
बहुत दुखद है सुन्न हो जातीं हैं संवेदनाएं कोढ़ सी
कितनी पकाऊ हैं पुनर्जन्मो की कथाएं भी
आओ यंत्रणाओ के चरमोत्कर्ष से बचे हम
हरम जागीरों रखैलों की व्यवस्था खत्म हो
यदि मै जीना चाहती हूँ ग्रीष्म में शरद,शरद में ग्रीष्म सा कुछ
तब यह क्यों होना चाहिए कि मै तुम्हारी प्रतीक्षा में मिलूँ .....



3..                     मुझे भी जीना है

एक दूसरे से पीठ किये
दो स्वप्निल सरोवर
उड़ रहें हैं ...
इस तरफ कमल जितने खूबसूरत हैं
उतनी ही आत्मिक है इनकी गंध
रास्तों पर बहुत घनी है कीचड़
इधर खतरा अधिक है
सुख बहुत कम ...

बहुत संभव है... 
एक दिन तुम खाली हाथ लौटो 
तब ये नरमाई नही रहेगी
फिर से कुतरे जायेंगे पर..
डस लेंगी जिद्दी अमरबेल 
कल्प वृक्ष की हरीतिमा
जो मेरे नाम पर शुरू और ख़त्म है

चख चुके है उड़ानों के उत्ताप 
इसलिए अब यह तय है ...
मै अपने पैरों को और नही बंधने दूँगी
यदि मेरे हिस्से भी आया है अनंत सुख
और महावट- वृक्ष ..
तब एक मौत मरने से पहले
वह मुझे जीना है ......



4..      घायल बाघिनो से पार पाना लगभग असम्भव है

·                     किसी स्त्री को तेज़ाब बना डालने के लिए इतना काफी है ..
कि छुरा भौंक दिया जाए बेपरवाह तनी पीठ पर
और वह जीवित बच जाए ..
उसे विषकन्या बनाया जा सकता है
करना बस इतना है
कि आप उसे बहलाओ फुसलाओ आसमानों तक ले जाओ 
भरपूर धक्का दो ...
और वह सही सलामत जमीन पर उतर आये
नग्न कर डालने के लिए इतना बहुत 
कि श्रद्धा से बंद हों उसके नेत्र 
और आप घूर रहे हों ढका वक्ष...
बहुत आसान है उसे चौराहा बनाना,पल भर लगेगा, खोल कर रेत से 
बाजार में तब्दील कर दो, सुस्ता रहे सारे भरोसे बंद मुट्ठी के...

निरर्थक हैं ये बयान भी किसी स्त्री के
कि सच मानिए, कोई गलती नही की,प्रेम तक नही किया, सीधे शादी की
पर मै कभी टूटती नही कभी निराश नही होती
एक स्त्री ठीक इस तरह जिए, फिर भी वह सिर्फ स्त्री नही रहती
यह इतना ही असम्भव है जितना असम्भव है
एक लाठी के सहारे भरा बियावान पार करना..

इस लाठी पर भरोसा भी आप ही की गलती है
आप ये सोच के गुजरिये ...
कि ऋषियों के भेस में लकड़बग्घों की बारात ही मिलती है
और बहुत समय नही गुजारा जा सकता ऊँचे विशाल वृक्षों पर
मजबूत शाखाओं के छोर ...
अंतत: मिलेंगे लचीले कमजोर, तनों में ही छुपे होंगे गिद्ध मांसखोर

और ये गिलहरी प्रयास भी कुछ नही हैं,तुम्हारी अनुदार उदारताओं के ही सुबूत हैं
मसले जाने की भरपूर सुविधाओं के कारण ही,सराहनीय हैं चींटी के प्रयत्न..
बाकी सब जाने दीजिये,सेल्फ अटेसटिड नही चलते चरित्र प्रमाणपत्र
अस्वीकृति की अग्नि में वे तमगे ढाले ही नही गए
जो सजाये जा सके स्त्री के कंधो पर ..

बिखरी हुई किरचों के मध्य आखिर कहाँ तक जाओगी
भूले हुए मटकों में ही छुपी रह जायेंगी अस्तित्व की मुहरें
तुम्हारे जंगलों के मध्य से ज़िंदा गुजरना,वाकई बहुत बहुत कठिन हैं 
किन्तु इन हाँफते हुए जंगलों के बीच से हीफूटते हैं गंधकों के श्रोत
काले घने आकाश में भी जानते हैं इंद्र धनुष, अपना समय 

जानती हूँ आप इसे यूँ कहेंगे
कि हथौड़ों के प्रहार से और भी खूबसूरत हो जातीं हैं चट्टानें
मै इसे यूँ सुनूँगी
कि घायल बाघिनो से पार पाना लगभग असम्भव है




रविवार, 8 अप्रैल 2012

साहित्यिक ब्लॉगों की दुनिया


              आपका स्वागत है यहाँ 


संचार क्रांति का असर, वैसे तो आज हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों में दिखाई दे रहा है लेकिन मीडिया में पड़ने वाला इसका असर कुछ अधिक ही प्रभावकारी और व्यापक है | अपनी बात को कहने और उसे शीघ्रता के साथ पुरी दुनिया में फैला देने की इसकी ताकत आज किसी से छिपी नहीं है | फिर इसने केन्द्रों से बाहर रह रहे व्यक्तियों के लिए , जिस तरह का अवसर और मंच प्रदान किया है  , वह कई अर्थों में युगपरिवर्तनकारी है | जाहिर है , ऐसे में हमारा साहित्यिक जगत भी इस परिवर्तन से कैसे अछूता रह सकता है | उसने भी इस क्रांति का उपयोग , अपनी दुनिया को विस्तार और व्यापकता प्रदान करने के लिए किया है | एक तरफ तो पत्रिकाओं में छपने वाली सामग्री सुगमता से एक जगह से दूसरी जगह पर मंगाई और भेजी जा सकती है , वही दूसरी तरफ उन पत्रिकाओं को इंटरनेट के माध्यम से दुनिया के किसी भी हिस्से में देखा और पढ़ा जा सकता है | इनसे भी बढ़कर आजकल ऐसी पत्रिकाए भी छपने लगी हैं , जो केवल और केवल इन्टरनेट पर ही देखी और पढ़ी जा सकती हैं | इन्ही पत्रिकाओं की एक श्रेणी के रूप में ब्लॉगों को भी देखा जा सकता है | बस पत्रिकाओं और ब्लॉगों में फर्क यह है कि पत्रिकाए अपनी पुरी सामग्री को एक साथ छापती है , जबकि ब्लॉगों पर यह सामग्री एक - एक कर , और नियमित अंतराल के बाद छपती रहती है |

किसी भी पत्रिका की तरह , प्रत्येक ब्लाग का अपना संपादक होता है , जिसे इस दुनिया में माडरेटर कहा जाता है | जाहिर है कि संपादक की तरह ही यहाँ भी मोडरेटर ही यह तय करता है कि उसके ब्लाग पर कौन सी सामग्री , कब और कैसे छपेगी | एक रचना , जिसे यहाँ पोस्ट भी कहा जाता है , के छपने के बाद दूसरी या उससे पहले छपीं रचनाये ब्लाग पर नीचे चली जाती है , और तत्काल प्रकाशित रचना ही मुख्य रूप से दिखाई देती है | लेकिन यदि आप पुरे ब्लाग की यात्रा करते हैं , तो वहाँ छपी सारी रचनाये , आपको दिखाई दे सकती है , जिन्हें आप अपनी सुविधानुसार देख और पढ़ सकते है | यह सुविधा , कि यहाँ सामग्री बराबर और हमेशा बनी रहती है , ब्लागों को एक विशिष्ट दर्जा प्रदान करती है |

लगभग पांच-छः साल पहले आरम्भ हुई ब्लॉगों की इस दुनिया में साहित्यिक जगत के लगभग वे सभी नाम दिखाई देते हैं ,जो अपने लेखन में कंप्यूटर और इंटरनेट की इस आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं | भीड़ यहाँ भी बहुत है , बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि साहित्य की प्रिंट दुनिया के मुकाबले कई गुना अधिक है | लेकिन जिस तरह से प्रिंट की उस साहित्यिक दुनिया में भी कुछ ही मात्रा में सार्थक और महत्वपूर्ण होता है , उसी तरह यहाँ भी आप उसका चयन और मूल्यांकन कर सकते है | हालाकि पांच सालों का यह समय इतना बड़ा समय नहीं है , जिसके आधार पर इस दुनिया को दिशा तय करने वाली और भविष्य की दुनिया करार दिया जाए , लेकिन फिर भी उसमे जिस तरह की संभावना और प्रगति दिखाई देती है , उस आधार पर आने वाले भविष्य में उसके स्थान को नजरंदाज नहीं किया जा सकता |

जैसा मैंने पहले कहा कि इस दुनिया में भीड़ बहुत अधिक है , और यदि चयनात्मकता के साथ आप यहाँ नहीं उतरते हैं , तो उसमे बिला जाने का खतरा सदैव ही बना रहता है , इसलिए हम आपको कुछ महत्वपूर्ण ब्लॉगों और उनपर छपने वाली सामग्री के बारे अवगत करना चाहेंगे , जो लगातार अच्छा काम कर रहे हैं और जिनसे जुडकर आप किसी भी अच्छी साहित्यिक पत्रिका को पढ़ने जैसा आनंद पा सकते हैं | इस बार हम ऐसे ही नौ ब्लॉगों का यहाँ पर जिक्र कर रहे हैं | यहाँ यह बता उपयुक्त होगा कि इतनी बड़ी दुनिया को समझने के लिए नौ ब्लॉगों की यह सूची हर दृष्टि से नाकाफी है ,लेकिन प्रत्येक लेखक और पाठक जैसी हमारी भी एक सीमा होती है , और उसे पाठकों से मिलने वाली समझ और सहायता की आवश्यकता भी होती है , इसलिए आगे आने वाले समयों में आपके माध्यम से हम इस सूची को और समृद्ध , और महत्वपूर्ण बना सकने की आशा रखते हैं | हां एक बात और,  कि हम यहाँ न तो ब्लॉगों की श्रेष्ठता सूची बना रहे हैं , और उन्हें इस रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं , वरन हमारा यह प्रयास है , कि पाठकों के लिए लगातार महत्वपूर्ण काम करने वाले ब्लॉगों का , उनसे एक संक्षिप्त परिचय कराया जाए | और अंततः यह पाठक ही तय करे कि उसे किन ब्लॉगों की साहित्यिक – वैचारिक दखल अधिक प्रभावकारी लगती है |

१-     समालोचन
२-     जानकी-पुल
३-     जनपक्ष     
४-     पढ़ते-पढ़ते  
५-     कबाडखाना
६-     अनुनाद
७-     लिखो यहाँ वहाँ
८-     आपका साथ-साथ फूलों का
९-     कर्मनाशा

‘समालोचन’   http://samalochan.blogspot.in/   अरुण देव का ब्लाग है , जो स्वयं हमारे दौर के एक समर्थ युवा कवि है | लगभग डेढ़ साल पुराना यह ब्लाग अपनी विविधता , गंभीरता और लाजबाब प्रस्तुतीकरण के लिए हम सबके बीच जाना जाता है | इसकी विविधता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है , कि यहाँ कविता, कहानी , आलोचना , संस्मरण , यात्रा, डायरी , परख और अनुवाद पर विपुल सामग्री तो उपलब्द्ध है ही , यहाँ साहित्य से जुडी अन्य विधाओं पर बहसों की एक स्वस्थ परम्परा भी दिखाई देती है | हाल के महीनो की पोस्ट को देखने पर इस ब्लाग की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है | कविताओं मे निर्मला पुतुल , मनोज झा , सिद्देश्वर सिंह , अशोक पाण्डेय , प्रेमचंद गाँधी और प्रदीप जिलवाने मौजूद हैं तो कहानियों में विमलेश त्रिपाठी , मिनाक्षी स्वामी , प्रभात रंजन , अपर्णा मनोज और प्रेमचंद सहजवाला की उपस्थिति इसे महत्वपूर्ण बनाती है | आलोचना आधारित महत्वपूर्ण बहस , अनुवाद का बेहतरीन काम , मीमांसा , यात्रा और परख में भी इस ब्लाग पर पिछले दिनों काफी महत्वपूर्ण कार्य हुआ है | इस ब्लाग की घड़ी हमें यह बताती है कि इसे अब तक लगभग 90000 से अधिक लोगों ने देखा पढ़ा है | प्रस्तुतीकरण के हिसाब से भी ‘समालोचन’ ब्लाग से बहुत कुछ सीखा जा सकता है ,जिसमे छपने वाली चीजों से पूर्व लगाई जाने वाली टिप्पडी और उसे सजाने-सवारने का बेहतरीन अंदाज सब कुछ शामिल है | यहाँ औसतन पांच से सात दिनों में एक नयी पोस्ट आती रहती है |

‘जानकी पुल’  http://www.jankipul.com/  प्रभात रंजन का ब्लाग है | वे हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा कथाकार है |पिछले पांच सालों में उनके ब्लाग को लगभग 135000 लोगों ने देखा पढ़ा है |यहाँ भी विविधता और स्तरीयता का एक साथ ख्याल रखा जाता है | पिछले दिनों जिन महत्वपूर्ण कवियों की रचनाये ‘जानकी पुल’ पर प्रकाशित हुए हैं , वे है वंदना शुक्ला , प्रेमचंद गाँधी , विपिन चौधरी , दिविक रमेश , महेश वर्मा , तेजेन्द्र लूथरा , अंजू शर्मा , प्रियदर्शन ,अरुण देव और बोधिसत्व | कहानियों में सूर्यनाथ सिंह , सोनाली सिंह , और प्रभात रंजन की अपनी कहानी को भी यहाँ पढ़ा जा सकता है |यहाँ पर अन्य महत्वपूर्ण पोस्टें , जो पिछले दिनों लगी हैं , उनमे कमला प्रसाद का स्मरण , अज्ञेय पर शमशेर का लेख , नीलाभ की महाभारत कथा , सुधीश पचौरी का मूल्यांकन , अम्बरीश कुमार का यात्रा संस्मरण , आशुतोष भरद्वाज की छतीसगढ़ डायरी , यतीन्द्र मिश्र और गीता श्री की किताब की समीक्षा , चित्रा मुद्गल से साक्षात्कार और बटरोही के संस्मरण उल्लेखनीय है | ‘जानकी पुल’ लगभग दो तीन दिनों के अंतराल पर अपडेट होने वाला ब्लाग है |

‘जनपक्ष’   http://jantakapaksh.blogspot.in/  अशोक कुमार पाण्डेय का ब्लाग है | इस ब्लाग के नाम के अनुरूप ही युवा अशोक अपनी कविताओ , कहानियों , और लेखों के लिए पुरे साहित्यिक जगत में जाने जाते है | उनकी सक्रियता का दायरा साहित्य के प्रिंट जगत के साथ साथ ब्लॉगों और सोशल नेटवर्किंग साईटों पर भी देखा पढ़ा जा सकता है | अशोक ने अपने ब्लाग को ‘जनपक्षधर चेतना का सामूहिक मंच’ का नाम दिया है , और वहाँ छपने वाली सामग्री उनके ब्लाग के उद्द्येश्य की पुष्टि भी करती है | ‘जनपक्ष’ ब्लाग पर हमारे समय और समाज से जुड़ी हुई समस्याओं और चिंताओं को संबोधित करते हुए लेखों और रचनाओं की सुदृढ़ श्रृंखला मौजूद है | यहाँ अरुंधती राय और नाम चोमस्की को पढ़ा जा सकता है , तो धर्म , परम्परा , साम्प्रदायिकता, साम्राज्यवाद , और स्त्री तथा दलित पक्ष से जुड़े मुद्दों पर भी जानकारी ग्रहण की जा सकती है | चे ग्वेवारा, मार्क्स, भगत सिंह और पाश जैसे जनपक्षधर इतिहासपुरुषों पर भी यह ब्लाग काफी कुछ जानकारी देता है | विभीन्न पत्र पत्रिकाओं में छपने वाले जनपक्षधर लेखों पर इसके मोडरेटर की नजर लगातार बनी रहती है और वे उसे अपने ब्लाग पर लेने से नही हिचकते | यह ब्लाग भी लगभग एक सप्ताह में एक बार अपडेट होता है |

‘पढ़ते-पढ़ते’  http://padhte-padhte.blogspot.in/  मनोज पटेल का ब्लाग है | मनोज हमारे दौर के बेहतरीन युवा अनुवादक हैं | उनके ब्लाग की सदस्यों की संख्या 800 से अधिक है , और यह किसी भी ब्लागर के लिए एक सपना सरीखा है | पिछले डेढ़ सालों में , जब से वे इस ब्लाग का संचालन कर रहे हैं , लगभग 150000 अधिक लोगों ने इसे देखा और पढ़ा है | औसतन दो या तीन दिन में मनोज अपने ब्लाग पर नयी पोस्ट लगाते हैं | इनके द्वारा किया गए अनुवाद सिर्फ ‘पढ़ते – पढ़ते’ पर ही नहीं , वरन अन्य महत्वपूर्ण ब्लॉगों पर भी देखे पढ़े जा सकते हैं | मनोज पटेल ने जिस तरह फेसबुक और ब्लॉगों की हमारी दुनिया का परिचय समकालीन विश्व कविता से कराया है , वह हमारी पीढ़ी के लिए किसी नेमत से कम नहीं | दुन्या मिखाईल, ट्रांसतोमर , महमूद दरवेश ,सादी युसूफ , मरम अल-मसरी  नाजिम हिकमत , पाब्लो नेरुदा , चेस्लाव मिलोश , अब्बास कियारोस्तामी और  येहुदा आमेखाई जैसे विश्व के कई बड़े कवियों की कविताएं ‘पढ़ते पढ़ते’ पर देखी  और पढ़ी जा सकती हैं | कविताओं के अलावा भी पढ़ते पढ़ते पर बहुत कुछ ऐसा है , जिस पर गर्व किया जा सकता है | यह हमारे समय का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और जरुरी ब्लाग है |

‘कबाडखाना’  http://kabaadkhaana.blogspot.in/  अशोक पाण्डेय का ब्लाग है | किसी भी नए ब्लागर के लिए कबाडखाना एक आदर्श ब्लाग माना जाता है | अशोक स्वयं बेहतरीन साहित्यकार है | पिछले पांच सालो में , जब से यह ब्लाग चल रहा है , इसके पन्नों पर लगभग 2000 से अधिक पोस्टें लग चुकी हैं | एक साल में 500 के करीब लगी रचनाये इस ब्लाग पर उपलब्द्ध विपुल सामग्री की तरफ इशारा करती हैं | और जाहिर है , कि बिना विविधता और मेहनत के यह काम नहीं किया जा सकता है |इस ब्लाग के मित्रों की सूची भी 700 के पार है , जो इस बात की गवाही देती है , कि इस ब्लाग से कितने लोग प्यार करते हैं | ‘कबाडखाना’ ब्लाग पर कविताएं , कहानियां , रेखाचित्र , अनुवाद , फिल्मो पर जानकारी , और विभिन्न अनुशासनों पर लिखे लेख पढ़े जा सकते हैं |अभी पिछले दिनों फिल्मो को लेकर जिस तरह की श्रृंखला “कबाडखाना’ पर चली है , वह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण और अनोखी है | हमारे समय के सभी महत्वपूर्ण नामो को यहाँ पढ़ा जा सकता है | शायद यह हमारे समय का सबसे महत्वपूर्ण ब्लाग है |

‘कर्मनाशा’  http://karmnasha.blogspot.in/  सिद्धेश्वर का ब्लाग है | एक कवि और अनुवादक के रूप में इनकी विशिष्ट पहचान है | जाहिर है यह चेहरा ‘कर्मनाशा’ का भी है | यहाँ भी दुनिया भर की कविताओं का अनुवाद और समकालीन हिंदी साहित्य से जुड़ी रचनाये पढ़ी जा सकती हैं | इस ब्लाग का संचालन ‘सिद्धेश्वर’ बहुत धैर्य के साथ करते हैं , और इनके यहाँ साल में 60  से 70  रचनाये प्रकाशित होती हैं | लेकिन जो भी सामग्री यहाँ देखी और पढ़ी जा सकती है , वह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण होती है | कविता , अनुवाद , कहानी , डायरी , संस्मरण और साहित्य की अन्य विधाओं को यहाँ पढ़ा जा सकता है , लेकिन ब्लाग का मुख्य झुकाव कविता और अनुवाद की ही तरफ है | इस वर्ष जो रचनाये यहाँ प्रकाशित हुई हैं , उनमे निजार कब्बानी , रेनर कुंजे , कल्पना पन्त , आरो हेलाकोस्की की कविताएं और होली की मस्ती के साथ अन्य सामग्री भी पढ़ी जा सकती है |

‘लिखो यहाँ वहाँ’  http://likhoyahanvahan.blogspot.in/  विजय गौड़ का ब्लाग है | विजय की पहचान हमारे समय के संजीदा युवा कथाकार की रही है | उनका ब्लाग भी उसी संजीदगी के साथ अपना काम करता है | 2008 से संचालित इस ब्लाग का कहानी प्रेम साफ़ दिखाई देता है , लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस ब्लाग पर अन्य विधाए नहीं है | बस अन्य ब्लॉगों से इतर इस ब्लाग पर अंतर यह है कि कविताओं और अन्य विधाओं के होते हुए यहाँ कथा साहित्य पर काफी विपुल सामग्री दी गयी है | हा ..पहाड के जीवन के विविध पक्षों को जिस तरह से इस ब्लाग पर प्रस्तुत किया गया है , वह अपने आपमें काफी महत्वपूर्ण है | विजय एक सप्ताह से लेकर दस दिन में एक पोस्ट लगाते है , और अब तक उनके ब्लाग को लगभग 44000 लोगों ने देखा पढ़ा है | शोभाराम शर्मा की कहानी , अल्पना मिश्र की किताब पर समीक्षा , देहरादून की साहित्यिक हलचल , रेखा चमोली की कविताये और स्थानिकता और विविधता पर प्रकाश डालता लेख इधर ह्हल के दिनों में इस ब्लाग पर पढ़ा जा सकता है |

‘अनुनाद’  http://anunaad.blogspot.in/  शिरीष कुमार मौर्य का ब्लाग है | शिरीष हमारे समय के महतपूर्ण युवा कवि हैं | यह ब्लाग आरम्भ में ही अपने मोडरेटर के जरिये यह घोषणा कर देता है , कि यह कविता को समर्पित रहेगा | हालाकि यह एक तरह की एकरसता को जन्म देने वाला वक्तव्य है , लेकिन ‘अनुनाद’ कविता के जिन विविध पक्षों से हमारा परिचय करता है , उससे हमारी शिकायत लगभग दूर हो जाती है | इस पर एक तरफ हमारे समय की कविताये हैं , तो दूसरी तरफ ‘कालजयी कविताओं’ के लिए भी एक बड़ी जगह बनाकर रखी गयी है | फिर विश्व कविता , नयी कविता , डायरी , कविता की आलोचना और युवा कविता का विपुल भंडार इस ब्लाग को काफी महत्वपूर्ण बनाता है | इस ब्लाग पर भी औसतन एक सप्ताह में एक नयी पोस्ट लगती है , लेकिन हाल के समय में यह ब्लाग थोडा सुस्त पड़ता दिखाई देता है | वर्ष 2011 के बाद आये इस सुस्ती की बावजूद भी यहाँ इतना कुछ मिलता रहता है , कि एक पाठक अपनी मानसिक खुराक ग्रहण करता रहे | अभी हाल में चंद्रकांत देवताले पर ओम निश्चल का लिखा आलेख , गिर्दा का गाता हुआ वीडियो और शिरीष की अपनी कविता पढ़ी जा सकती है |

‘आपका साथ –साथ फूलों का’  http://shrijita.blogspot.in/   ब्लाग अपर्णा मनोज का है | यह ब्लाग भी कविता को समर्पित ब्लाग है | 2011 में आरम्भ इस ब्लाग की खासियत यह है , कि इस पर हमारे दौर की सारी महत्वपूर्ण युवा कवयित्रियों को पढ़ा जा सकता है | लगभग एक साल पुराने इस ब्लाग को देखने पढ़ने वाले लोगों की संख्या 18000 से ऊपर है और यह एक ब्लाग के लिए गर्व का विषय हो सकता है | वंदना शर्मा , देवयानी , लीना मल्होत्रा , अंजू शर्मा , संध्या नवोदिता , माधवी शर्मा , विपिन चौधरी , निवेदिता , प्रतिभा कटियार , प्रत्यक्षा , जया पाठक और  सुशीला पुरी आदि की उपस्थिति इस ब्लाग को बेहद महत्वपूर्ण बनाती हैं | हालाकि इस ब्लाग पर हमारे दौर के अन्य महत्वपूर्ण कवि भी उपस्थित हैं , लेकिन इस ब्लाग का स्त्री पक्ष बेहद स्पष्ट और साफ़ साफ़ दिखाई देने वाला है |

जाहिर है , ब्लागों की हमारी दुनिया बहुत बड़ी है और उस पर छपने वाली विपुल   सामग्री को देखते हुए यह कहा भी जा सकता है कि किसी एक आदमी के लिए इन सभी ब्लॉगों का अनुसरण कर पाना लगभग असंभव है | लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है , कि इस दुनिया में आप अपनी रूचि के अनुसार चयन कर सकते हैं और अपने आपको साहित्यिक रूप से समृद्ध कर सकते हैं | इतनी बड़ी दुनिया से कुछ ब्लॉगों को छाँट पाना बहुत मुश्किल है , लेकिन थोड़ी चयनात्मकता और अपनी पसंद के आधार पर आप इस दुनिया को बेहतर समझ सकते हैं और इसका लाभ भी उठा सकते हैं | ब्लॉगों की इस दुनिया ने आज नए लेखकों के लिए एक बड़ा मंच तो प्रदान किया ही है , पत्रिका निकालने और उसे बेहतर तरह से सम्पादित करने वाले उन लोगों के लिए भी एक अवसर प्रदान किया है , जो संसाधनों की कमी के कारण पत्रिकाओं को निकालने का साहस नहीं कर पाते | ब्लागों की इस दुनिया के लिए एक तरफ यह गर्व करने का समय है , तो दूसरी तरफ अपने आपको और बेहतर ढंग से स्थापित करने की चुनौती भी | ऐसे में जिन मानदंडों का अनुसरण करते हुए ये ब्लाग आज इतना महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं , वह निश्चित तौर पर सराहनीय और अन्य ब्लागों के लिए अनुकरणीय है | उम्मीद है कि भविष्य की यह दुनिया , साहित्य के साथ साथ अपने भविष्य का भी समुचित ख्याल रखेगी |    


                                                          रामजी तिवारी