सुन्दर ‘सृजक’ अपनी कविताओं में बड़ी सहजता बरतते हैं | इतनी कि एक आम-पाठक के
लिए भी इनके अर्थ आसानी से खुल जाएँ | जाहिर है , यह बात उनके खाते में एक ताकत की
तरह ही जायेगी | उम्मीद है , कि आगे भी वे अपनी इन क्षमताओं का सार्थक प्रयोग करते
रहेंगे |
प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लाग पर सुन्दर ‘सृजक’ की कवितायें
1 .... अनिष्ट
संकेत
कहते है-
मेरी कुंडली के आठवें भाव में
जों मारक ग्रह है
वही मेरा अधपति है
मुझे जीने के लिए
अपने अधिपति को करना होगा ख़ुश
देनी होगी उसकी मनचाही वस्तु भेंट
पर
विद्वान बता रहे है
कि वही रच रहा है साज़िश
और चाहता है मेरी बलि ......
मैं किसे ख़ुश रखूँ
किस पर यकीन करूँ
यातनाओं के मझधार में किस ओर चलूँ ?
ओ मेरे अधिपति !
ओ मेरे तारनहार !
मृत्यु ही नहीं मेरा आख़री विकल्प
मैं चाहता हूँ लड़ना उन दोनों से
चाहता हूँ होना मुक्त
इस मायावी यमलोक से
पर
मैं कुंडली फाड़ने से बड़ा
कोई और क्रांति नहीं कर सकता
ये कैसा है अनिष्ट संकेत !
कहते है-
मेरी कुंडली के आठवें भाव में
जों मारक ग्रह है
वही मेरा अधपति है
मुझे जीने के लिए
अपने अधिपति को करना होगा ख़ुश
देनी होगी उसकी मनचाही वस्तु भेंट
पर
विद्वान बता रहे है
कि वही रच रहा है साज़िश
और चाहता है मेरी बलि ......
मैं किसे ख़ुश रखूँ
किस पर यकीन करूँ
यातनाओं के मझधार में किस ओर चलूँ ?
ओ मेरे अधिपति !
ओ मेरे तारनहार !
मृत्यु ही नहीं मेरा आख़री विकल्प
मैं चाहता हूँ लड़ना उन दोनों से
चाहता हूँ होना मुक्त
इस मायावी यमलोक से
पर
मैं कुंडली फाड़ने से बड़ा
कोई और क्रांति नहीं कर सकता
ये कैसा है अनिष्ट संकेत !
2 ...
हॉकर
साठ-पैसठ साला एक बूढ़ा
ट्रेन में भीख नहीं मांगता,
नहीं सुनाता अल्लाह या
राम के गुणगान.....
ना ही रिरियाता है वो दिखाकर
अपनी कटी टाँग !
उसके चेहरे पर है एक चमक
उसी का हवाला देकर
वह बेचता है-
कलम,लाजेंस,खिलौने .....
पर, बेचता नहीं वो
अपने धँसे गालों की
बनावटी मुस्कान,
सिकुड़ी भौंहे और
चढ़ी भृकुटी के मोल!
उसे आदत नहीं इसकी !
वह मुस्काता है,
सूरज की धूप और
माटी की खूशबू से
ललहाती खेतों को
जब भी दिख जाता उसे
ट्रेन के खिड़कियों से.......
3... हथियार
न बम, न गोली
न ही कोई
धारदार अस्त्र
बरामद हुआ
था
मेरे घर
से....
पर
हमपर
सामूहिक ह्त्या का
आरोप था
कई महीनों बाद
गाँव के
बीचो-बीच
मेरे घर से
धुआँ जो निकला था…..
अब मेरे
रक्त के उत्तराधिकारियों
के अधजले
लाशों को भी
अंतिम विदाई
से पहले गुजरना था
गवाहों के
बूढ़े चश्मों के तजुर्बे से धूल कर
कुछ न कर सका मैं ......
सिर झुका कर
एक बार फिर
ख़ामोशी की
दस्तख़त कर दिये
चंद लोगों
के फरमानों पर
और लौट आया
हूँ.............
फिर उसी शहर में
जिसके आग से
मेरा घर
मिल गया था
ख़ाक में !
4
.... वसंत
अपने पहले वसंत के दिनों में
हम जब भी मिला करते थे
पुरखों की न जाने कितनी लक्ष्मण रेखाएँ
सभ्यताओं-संस्कृतियों के विधि-निषेध
और असंख्य काल्पनिक तंतुओं की
अदृश्य नक्शो में बदलती
तुम्हारी काया की भूगोल
और उसके आभासी रंगो को
सहेजते- सँजोते अपने अंदर
उन जैविक हलचलों को
उदासीन कर रहे थे
रासायनिक प्रतिक्रियाओं की तरह
जो हमारे क्रमिक विकास के लिए
अनायास ही उठा करती थी;
मानो अंकुरण के पहले ही बरगद
के बीज दबा दिए गए
पाताल की ओर बढ्ने के लिए
त्याग या बलिदान के नाम पर
बस उन मिथकीय कथाओं के पात्रों की
आदर्शो को बचाए रखने की ख़ातिर...
जो सभी सभ्यताओं के अंत तक
बचे रहते है निर्दोष, निरपेक्ष ......
हाँ, पहले वसंत में ही हम
अपनी रासायनिक संबंधो की वैज्ञानिकता
सिद्ध न कर सके थे .....
उसकी उदासीनता लीलती रही
हमारे तमाम वसंत को उम्र भर
5 .... सपनें
आसमान से एक टुकड़ा बादल
अपने मुट्ठी में भर लाया
खुली जो मुट्ठी
हाथ की रेखाओं को गीला कर गया
तेरे हिस्से के आँसू
मेरे हिस्से के सपने
द्रवीभूत हुआ हमारे हिस्से का दुख !
6 ... ईमानदारी
कभी कभी तुम भी तो चाहती थी मिलना
मेरे अंदर के अनुशासित जानवर से
कि रख देती थी बोटियाँ उसके आगे
सचमुच उस दिन तुम सिर्फ़ अबला नहीं होती थी
प्रेम करना सभी चाहते है
ईमानदार होना सभी चाहते है
हमने भी ईमानदारी से
कुछ प्यार किया, कुछ हिंसा की ....
प्रेम में
परिभाषाओं और व्याख्याओं की ईमानदारी से कोई वास्ता नहीं !
हमसब सामाजिक प्राणी है;
पर थोड़े-थोड़े जंगली भी !
7.... एंटीजन्स
तुम्हारे प्रेम में पड़कर
मैं सुरक्षित महसूस कर रहा हूँ
तमाम वर्जनाओं, संघातों....
कुत्सित विचारों के वायवीय प्रदूषण से
कि मेरे अंदर निरंतर पनप रही है
प्रतिरोधक क्षमता !
मैं नहीं मरूँगा
मच्छरों-मक्खियों या तिलचट्टे की मौत
किसी भी ब्रांडेड कीटनाशक दवाइयों से ...
पर, सुना है, अब ये भी नहीं मरते
इनसे
इतनी जल्द
शायद विज्ञान इसे ही
जीवाणुओं को निष्क्रिय करने वाला
एंटीजन्स कहता है,
और हम इसे प्रतिरोधी क्षमता !
कुछ लोग अपनी रक्षा हेतु छिड़क रहे है
ब्लीचिंग पाउडर आसपास ,
आलमीरा में रख रहे है,
फ़िनालेफ्थीन की गोलियाँ
नहा रहे है डेटोल, सेवलोन आदि के जल से
और
हारपिक, ओडोनिल आदि की ख़ुशबू में
हारपिक, ओडोनिल आदि की ख़ुशबू में
लगा रहे है, दिमाग पर ज़ोर
बाथरूम में बैठकर,
सोच रहे है
प्रतिरोध की कविता;
मैं लिख रहा हूँ - प्रेम कविता !
8 .... देह
मेरे आँखों के अन्तरिक्ष में
तुम्हारी देह की भूगोल
कर रही थी परिक्रमा ......
पर मन लगा जाता है
ग्रहण हमारे बीच आकर
हर बार !
9...
हे बुद्ध !
हे बुद्ध !
पुत्र भरोसे छोड़ सके थे न
महल का सुख;
तुम जाते........?
इस तरह छोडकर
पुत्री के सहारे
सबकुछ ...........
हाँ, तुमने पा लिया था मोक्ष
पर दे गए दुनिया को यह कैसा पुत्रमोह!
हे बुद्ध !
कहीं तुमने भी तो न पढ़ी थी
शास्त्रों में
पुत्र और मोक्ष का संबंध ?
हे बुद्ध !
पुत्र भरोसे छोड़ सके थे न
महल का सुख;
तुम जाते........?
इस तरह छोडकर
पुत्री के सहारे
सबकुछ ...........
हाँ, तुमने पा लिया था मोक्ष
पर दे गए दुनिया को यह कैसा पुत्रमोह!
हे बुद्ध !
कहीं तुमने भी तो न पढ़ी थी
शास्त्रों में
पुत्र और मोक्ष का संबंध ?
परिचय और संपर्क
नाम: सुन्दर ‘सृजक’
शिक्षा: कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1997 स्नातक (जीव विज्ञान); 2002 स्नातकोत्तर( हिन्दी में), अंग्रेजी में भी स्नातक की विशेष डिग्री तथा इग्नू से अनुवाद में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा |
सम्प्रति - भारत सरकार के एक कार्यालय में वरिष्ठ हिन्दी अनुवादक
सम्पर्क :295,ऋषि बंकिम चन्द्र रोड,
उत्तर चौबीस परगना,नैहाटी
पिन-743166,प.बंगाल
मोबाईल नं- 09831025876