सिताब दियारा ब्लॉग पर आज प्रस्तुत है
राकेश जोशी की ग़ज़लें
1.....
नगर की जनता अब भी भूखी-प्यासी है
ख़बर तुम्हारी बहुत पुरानी, बासी है
राजा, महल से बाहर थोड़ा झाँको तुम
चारों और अँधेरा और उदासी है
जिस बेटे को शहर में अफसर कहते हैं
उस बेटे की माँ को गाँव में खाँसी है
हम पेड़ों से ख़ुद ही मिलने जाते हैं
नदी कहाँ अब हमसे मिलने आती है
सपने गर बेहतर दुनिया के टूटे तो
पूरी-की-पूरी पीढ़ी अपराधी है
जहाँ रात में बच्चे भूख से चिल्लाते हैं
चैन से तुमको नींद वहाँ कैसे आती है
तुमको है क्या याद तुम्हारे राजमहल तक
सड़क हमारे गाँव से ही होकर जाती है
नगर की जनता अब भी भूखी-प्यासी है
ख़बर तुम्हारी बहुत पुरानी, बासी है
राजा, महल से बाहर थोड़ा झाँको तुम
चारों और अँधेरा और उदासी है
जिस बेटे को शहर में अफसर कहते हैं
उस बेटे की माँ को गाँव में खाँसी है
हम पेड़ों से ख़ुद ही मिलने जाते हैं
नदी कहाँ अब हमसे मिलने आती है
सपने गर बेहतर दुनिया के टूटे तो
पूरी-की-पूरी पीढ़ी अपराधी है
जहाँ रात में बच्चे भूख से चिल्लाते हैं
चैन से तुमको नींद वहाँ कैसे आती है
तुमको है क्या याद तुम्हारे राजमहल तक
सड़क हमारे गाँव से ही होकर जाती है
2
सपने केवल उन लोगों के सच होते
हैं
जो सपने भी सपनों जैसे संजोते हैं
सब बच्चों को चप्पल देना अगर कठिन है
हम धरती पर इतने कांटे क्यों बोते हैं
महल में रहने की ख्वाहिश सबकी होती है
कुछ लोग हमेशा महल के पत्थर क्यों ढोते हैं
जिनको सपनों में अक्सर रोटी दिखती है
बैल उन्हीं लोगों ने खेतों में जोते हैं
तेरे शहर की बातें तो अब तू जाने
मेरे शहर के लोग तो सड़कों पर सोते हैं
तू जो भी करता है सब अच्छा करता है
फिर भी सारे लोग परेशां क्यों होते हैं
जो सपने भी सपनों जैसे संजोते हैं
सब बच्चों को चप्पल देना अगर कठिन है
हम धरती पर इतने कांटे क्यों बोते हैं
महल में रहने की ख्वाहिश सबकी होती है
कुछ लोग हमेशा महल के पत्थर क्यों ढोते हैं
जिनको सपनों में अक्सर रोटी दिखती है
बैल उन्हीं लोगों ने खेतों में जोते हैं
तेरे शहर की बातें तो अब तू जाने
मेरे शहर के लोग तो सड़कों पर सोते हैं
तू जो भी करता है सब अच्छा करता है
फिर भी सारे लोग परेशां क्यों होते हैं
3 ......
गाँव से ख़त आ गया है, खिड़कियों को खोल दो
ये गगन अब है तुम्हारा, पंछियों को बोल दो
फिर बनेगी झोपड़ी और फिर उगेंगे घोंसले
आ गया हूँ लौटकर मैं, सब दियों को बोल दो
आदमी की ज़िंदगी में एक मौसम की तरह
धूप लेकर आ रहा हूँ, सर्दियों को बोल दो
भेड़ हों या बकरियां, अब हर किसी की आँख में
एक सपना पल रहा है, गड़रियों को बोल दो
पास ही बसने लगा है इक नया आकर शहर
आग से बचकर रहें, सब बस्तियों को बोल दो
पर्वतों के पार से फिर लौटकर आओ यहाँ
लाल, पीली और नीली तितलियों को बोल दो
4 ....
अजनबी जब से ज़माना हो गया है
आदमी थोड़ा सयाना हो गया है
बात जबसे हक़ की है करने लगा
आप कहते हैं दीवाना हो गया है
ज़िक्र फिर से आँसुओं का हम करें
छोड़िए, गाना-बजाना हो गया है
आप दर्पण पर न यूं चिल्लाइए
आपका चेहरा पुराना हो गया है
फिर अधूरी ये कहानी रह गई है
फिर से मिलने का बहाना हो गया है
दूरियाँ तुमसे तो बढ़ती जा रही हैं
यूँ तो पैसों का कमाना हो गया है
महफ़िलों में आपके चर्चे हुए
यूं न आना भी तो आना हो गया है
अजनबी जब से ज़माना हो गया है
आदमी थोड़ा सयाना हो गया है
बात जबसे हक़ की है करने लगा
आप कहते हैं दीवाना हो गया है
ज़िक्र फिर से आँसुओं का हम करें
छोड़िए, गाना-बजाना हो गया है
आप दर्पण पर न यूं चिल्लाइए
आपका चेहरा पुराना हो गया है
फिर अधूरी ये कहानी रह गई है
फिर से मिलने का बहाना हो गया है
दूरियाँ तुमसे तो बढ़ती जा रही हैं
यूँ तो पैसों का कमाना हो गया है
महफ़िलों में आपके चर्चे हुए
यूं न आना भी तो आना हो गया है
5.....
वो उधर जिस तरफ चला होगा
हर तरफ रास्ता मिला होगा
वो बहुत देर तक रहा गुमसुम
आज उससे वो फिर मिला होगा
रात बच्चे जो सो गए होंगे
तुमने अश्कों से ख़त लिखा होगा
लौटकर छुट्टियों में घर आना
माँ ने ऐसा ही कुछ कहा होगा
ये जो जूठन हैं चाटते बच्चे
कोई जलसा यहाँ रहा होगा
जब अँधेरों से बात की होगी
तब उजाला वहीँ रहा होगा
कुछ तो तुम भी उदास थे शायद
कुछ दुखी मन मेरा रहा होगा
परिचय और संपर्क
डॉ. राकेश जोशी
असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी)
राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला
देहरादून, उत्तराखंड
असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी)
राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला
देहरादून, उत्तराखंड
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प्रकाशित कृतियाँ:
प्रकाशित कृतियाँ:
काव्य-पुस्तिका .... "कुछ
बातें कविताओं में",
ग़ज़ल संग्रह ... “पत्थरों के शहर में”
अनूदित कृति: हिंदी से अंग्रेजी “द क्राउड बेअर्स विटनेस” (The Crowd
Bears Witness)
फ़ोन: 08938010850
ईमेल: joshirpg@gmail.com
अनूदित कृति: हिंदी से अंग्रेजी “द क्राउड बेअर्स विटनेस” (The Crowd
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फ़ोन: 08938010850
ईमेल: joshirpg@gmail.com