नेपाल में पिछले एक-डेढ़ दशक से जो हो रहा है, एक पडोसी देश होने के नाते हम सब उससे परिचित हैं | हम परिचित हैं कि राजतंत्र के चंगुल से एक कठिन संघर्ष के बाद मुक्त होने के बावजूद यह मुल्क अभी भी जनतंत्र से कोसों दूर है | नेपाली कवि प्रमोद धीतल की कवितायें इसकी झलक देतीं हैं, और भविष्य के लिए उम्मीद की किरण भी |
तो
आज सिताब दियारा ब्लॉग पर प्रमोद धीतल की तीन कविताएँ
एक .....
वक्त को सवाल
दिन है या ढहना बाकि राह है ?
निष्ठा है या निष्ठा के उपर घात है ?
राज्य है या कमीशन तन्त्र का जहर है ?
लोकतन्त्र है या शोकतन्त्र का मरुस्थल है ?
स्थिर है मेरी आँख
शंकाग्रस्त है विश्वास
हर दिन टेलिवीजन में
दिखते बासी चेहरा नेता हैं
या तिलस्मी अभिनेता ?
देशभक्ति और जनहित के
कर्णकटु मन्त्रों का भाषण हैं
या खुल्ला सड़क के जादूगर का कमाल ?
बार बार सरकार में
मन्त्री बदलते हैं या विदूषक ?
दो .....
उम्मीद और जीवन
जीवन यात्रा में
चलते–चलते रास्ते में
खाया असंख्य चोट
नही मिला अभी तक कोई गन्तव्य
थकान से भरा हुआ है दिल
चाँद का शीतल प्रकाश
और शरद का स्निग्ध आकाश
वासन्ती फूलों की महक
और भोर के सूर्य की चहक
देखा नहीं अभी तक मैने ।
ऐ मेरे भाई
इन सब के बीच में भी
है मेरी एक दोस्त
उम्मीद
जो चलते रहने के लिए
कहती है मुझको
स्वप्न सजोये रहने के लिए
कहती है मुझको ।
तीन ....
फैसला
बरामद करना है
लुटा हुआ भोर
अंधेरी गुफा से,
बचाना है सपनों को
मुर्दों के जुलुस से
आदत में ढालना है
मुक्ति के हठ को
बुद्धिविलास के कैद से,
बेनकाब करना है चेहरों को
आदमी के मुखौटों से
विजय को सुनिश्चित करने वाले
पराजयों से हाथ मिलाए चलना है
फिर से खुद के साथ
युद्ध घोषणा के लिए
खोया हुआ साहस जुटाना है ।
परिचय
और संपर्क
प्रमोद
धीतल
दांग,
नेपाल
मो.
न. 9847826417
ई.मेल
...
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