शैलजा पाठक |
शैलजा पाठक अपनी कविताओं को बहुत सहजता और धीरे से हमारे सामने रखती हैं | इतनी सहजता और धीरे से , कि कभी-कभी पाठक को उनका होना तलाशना पड़ता है | एक ऐसे दौर में , जब लोग मनोभावों को भी व्यक्त करने के लिए चिल्लानें का सहारा लेते हैं , यह विस्मयकारी लग सकता है | लेकिन एक बार जब आप इन कविताओं से जुड़ जाते हैं , तब आपको लगता है कि यह जुड़ाव मनोभावों जैसा ही पक्का और स्थाई है | अच्छी बात यह है , कि शैलजा ने अपने 'कहन' का विस्तार समाज के बड़े हिस्से तक भी किया है | ......
सिताब दियारा ब्लाग ऐसी हर संभावना का स्वागत करता है ...
प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लाग पर
"कुछ रंग जिंदगी के" शीर्षक से
शैलजा पाठक की सात कवितायें
कुछ
रंग जिंदगी के
1... बूँद और रिश्ते
कल बारिश में भींगते हुए
कितनी ही बूंदों को
मैंने झटक दिया
सब गिर कर टूट गई
आज गालों को हाथ लगाया
कितनी ही बूंदों को
मैंने झटक दिया
सब गिर कर टूट गई
आज गालों को हाथ लगाया
कुछ सहमीं सी गर्म बूंदें मिलीं
कैसे कैसे रूप बदल कर चली आती है
बूंद बारिश रिश्ते और ख्याल
टूटते हैं पर हमसे छूटते नहीं ....
कैसे कैसे रूप बदल कर चली आती है
बूंद बारिश रिश्ते और ख्याल
टूटते हैं पर हमसे छूटते नहीं ....
2... कल फिर
डोरियों से उतार लाई मैं
आज की थकान
अब मोड़तोड़ कर रखने होंगे कपड़े
कल फिर इन पर
आज की थकान
अब मोड़तोड़ कर रखने होंगे कपड़े
कल फिर इन पर
सूखने टंग जायेगी
एक और सुबह ......
3... भींगना
आज एक बच्चे ने भगवान को
आज एक बच्चे ने भगवान को
भींगने से बचाया
और उनके नाम पर कमाया पांच रुपया
अपनी जेब में छुपाया
अपनी फटी बनियान के अंदर
और उनके नाम पर कमाया पांच रुपया
अपनी जेब में छुपाया
अपनी फटी बनियान के अंदर
डाल ली भगवान की फोटो
और तेज बारिश में
भीगता रहा नन्हां फरिश्ता
भगवान उसकी छाती में
महफूज सिसकता रहा
आज दोनों ही भीगे
किसी ने किसी को नही बचाया .....
और तेज बारिश में
भीगता रहा नन्हां फरिश्ता
भगवान उसकी छाती में
महफूज सिसकता रहा
आज दोनों ही भीगे
किसी ने किसी को नही बचाया .....
4... मेरे दुलार पाने के आखिरी दिन
तुमने
सारे रिवाज निभा दिए
और कर दिया मुझे अपनी जिंदगी से
दूर और दूर ....
और कर दिया मुझे अपनी जिंदगी से
दूर और दूर ....
तुम्हें
याद है ना भाई ?
जब मंडप को घर के बड़ों ने छवाया
और मेरे जीवन में एक पुख्ता
छत की नींव डाली
तुम वहीँ मेरे पास बैठे देख रहे थे सब
जब मंडप को घर के बड़ों ने छवाया
और मेरे जीवन में एक पुख्ता
छत की नींव डाली
तुम वहीँ मेरे पास बैठे देख रहे थे सब
जब अम्मा ने अपने भाई से ली थी
इमली घोटाई की साड़ी
इमली घोटाई की साड़ी
और जीवन में साथ का भरोसा..
तुम सामने से देख रहे थे
या खोये थे कही और ?
कन्यादान की रस्म में
कन्यादान की रस्म में
जब औरतें गा रही थी वो गीत
(अरे अरे भैया हमार भैया हों धरिया जनी तोड़ी ह हो )
तुम जानते थे भाई
(अरे अरे भैया हमार भैया हों धरिया जनी तोड़ी ह हो )
तुम जानते थे भाई
कलश का पानी खतम होते ही
मैं किसी और की हों जाउंगी
तुम कितनी देर-देर तक
बचा-बचा कर गिरा रहे थे पानी
पर नही बचा पाए ना मुझे पराया होने से
तुम अपनी समर्थता में भी
कितने निरीह लगे थे मुझे
और आखिर में तुमने निभा दी वह रस्म भी
जब विदा के वक्त तुमने अपनी अंजलि से
पिलाया था मुझे पानी
तुम अपनी समर्थता में भी
कितने निरीह लगे थे मुझे
और आखिर में तुमने निभा दी वह रस्म भी
जब विदा के वक्त तुमने अपनी अंजलि से
पिलाया था मुझे पानी
जिसमे मिले थे मेरे तुम्हारे आंसू
मुझे रीतियों ने बताया
वो था मेरे दुलार पाने का आखिरी दिन
तुम तो समृद्ध थे ना
पर कितने लाचार लगे
पीछे मुड के देखा था मैंने
कैसे रो रहे थे तुम
मुझे रीतियों ने बताया
वो था मेरे दुलार पाने का आखिरी दिन
तुम तो समृद्ध थे ना
पर कितने लाचार लगे
पीछे मुड के देखा था मैंने
कैसे रो रहे थे तुम
ढेर पड़े पिताजी को पकड कर
मैं ओझल हूं
पर मुझे पता हैं
मेरे बाद अम्मा ने बटोरा होगा
अपने आँचल में घर भराई का चावल
और तुम मेरी मेज पर सजा रहे होगे मेरी ही किताब
फ्रेम में लगी मेरी फोटो मुस्करा रही होगी
और तुम भाई ????
मैं ओझल हूं
पर मुझे पता हैं
मेरे बाद अम्मा ने बटोरा होगा
अपने आँचल में घर भराई का चावल
और तुम मेरी मेज पर सजा रहे होगे मेरी ही किताब
फ्रेम में लगी मेरी फोटो मुस्करा रही होगी
और तुम भाई ????
5... तुम्हारी बेसुधी
आती है तुम्हारे होने की गंध
रात के तीसरे पहर में
मेरी देह पर
उगते हैं तुम्हारे नाख़ून
टीसते जख्म को सुलाती हूं
पलकों के किवाड जोर से लगाती हूं
रौदें सपनों को
सहला जाती है भोर की ओस
मैंने पहन लिया है नया सवेरा ......
तुम रोज जैसे बेसुध हो अबतक ....
रात के तीसरे पहर में
मेरी देह पर
उगते हैं तुम्हारे नाख़ून
टीसते जख्म को सुलाती हूं
पलकों के किवाड जोर से लगाती हूं
रौदें सपनों को
सहला जाती है भोर की ओस
मैंने पहन लिया है नया सवेरा ......
तुम रोज जैसे बेसुध हो अबतक ....
6... चलो ....
चलो , सोने से पहले जागते हैं
चाँद के चरखे पर
मुहब्बत का सूत कातते हैं ....
मुह उठाये पहाड़ों को
पहना आते हैं बरफ की सफ़ेद टोपी
चाँद के चरखे पर
मुहब्बत का सूत कातते हैं ....
मुह उठाये पहाड़ों को
पहना आते हैं बरफ की सफ़ेद टोपी
नदियों की शोखी को
किनारों से बाँध आते हैं
हवा में बिखेर देते हैं
तमाम सवाल मलाल
सडकों को तेज दौड़ाते हैं
रोजी रोटी कपडे की
फिक्र को उघने देते है
कुछ देर अपने मन को भी
जीने देते हैं .....
उधड़े सपनों को
सीने देते हैं .....
किनारों से बाँध आते हैं
हवा में बिखेर देते हैं
तमाम सवाल मलाल
सडकों को तेज दौड़ाते हैं
रोजी रोटी कपडे की
फिक्र को उघने देते है
कुछ देर अपने मन को भी
जीने देते हैं .....
उधड़े सपनों को
सीने देते हैं .....
7... मेरा होना
मैं साथ हूं उसके
मुझे होना ही चाहिए
मुझे होना ही चाहिए
ये तय किया सबने मिलकर
मैंने सहा
मैंने सहा
जो मुझे नही लगा भला कभी
पर उसका हक था
मैं हासिल थी
रातों की देह पर जमने लगी
पर उसका हक था
मैं हासिल थी
रातों की देह पर जमने लगी
सावली परतों को उधेडती
उजालों की नज्म को
उजालों की नज्म को
अपने अंदर बेसुरा होते सुनती
घर को संभालना था
अपने डगमगाते इरादों से
घर को संभालना था
अपने डगमगाते इरादों से
वो भी किया
उसके लिजलिजे इरादों की बली चढ़ी
व्रत उपवास करती हैं सुहागिने
उसके लिजलिजे इरादों की बली चढ़ी
व्रत उपवास करती हैं सुहागिने
मैंने भी किया
थोपने को रिवाज बना लिया
जो ना करवाना था
वो भी करवा लिया
पाप पुण्य के चक्र में
थोपने को रिवाज बना लिया
जो ना करवाना था
वो भी करवा लिया
पाप पुण्य के चक्र में
इस जनम उस जनम के खौफ ने
मैंने बेंच दिया अपना होना
तुमने खरीद लिया .......
मैंने बेंच दिया अपना होना
तुमने खरीद लिया .......
परिचय ...
शैलजा पाठक
बनारस से पढ़ाई लिखाई संपन्न हुई
आजकल मुंबई में रहती हैं
लिखने के साथ गाने का भी शौक है
कई पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित
4th aur 7th kavita bahut achhi hai, Shailja aur Sitab Diyara ko badhai
जवाब देंहटाएंmaine shailja ko jab jab sambhav ho sakata tha..padhha...har baar shailja kuchh aisa badi aasani se kah jati hai..ki jinhe padhhne ke bad aap ...aasaan nhi rah sakte...kavitaayen aap ke ander ghumadne lagti hain..shabd dar shabd...jeevan e bharpoor kavitaayen..
जवाब देंहटाएं....par kya sachmuch itni aasaani se likh leti hogi shailja inhe..
bas yahi kai baar sochta rahta hoon..shailja ki lekhni ko naman karte hue..
..........................ved prakash ved
कविता लिखी नहीं जाती , स्वतः प्रस्फुटित होती है.अखबारी कविताओं के हुजूम में शैलजा की कविताएँ आश्वस्त करती हैं कि अच्छी कविताओं का अभाव कभी नहीं होगा .
जवाब देंहटाएंशैलजा कि कविताओं पर शुरू से नजर है। उनकी खास बात यह है कि वे गहरी संवेदना की कवयित्री हैं। उनका भाषा के साथ बरताव बहुत ही मासूम है। शब्द जादू की तरह असर करते हैं। उनकी कविताओं को पहली बार हमने अनहद पर लिया था। यहां सिताब दियरा पर उनकी कविताएं देखकर खुशी हो रही है। रामजी भाई कवि होने के साथ कविता की गहरी समझ भी रखते हैं। शैलजा के साथ सिताब दियरा और भाई रामजी तिवारी को भी बधाई.... शैलजा की कुछ कविताएं अनहद पर भी इस लिंक के जरिए पढ़ सकते हैं....
जवाब देंहटाएंhttp://bimleshtripathi.blogspot.in/2012/07/blog-post_28.html
कविताएं झोलझाल से अलग है। पढ्ते हुए कविता का प्रभाव पैदा करती है। अपने जीवन और प्रक़ति को देखने की जीवन द़श्टि की कविताएं है। शैलजा जी को पहली बार पढ्ने का अवसर मिला है। पहली बार में उनकी कविताएं गहरे से प्रभावित करती है। कविता सम्पे्रशण का सशक्त माध्यम हैा इसको नकारा नहीं जा सकता।
जवाब देंहटाएंशैलजा जी की कवितायें बहुत उम्दा हैं |परिचय कराने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंशैलजा की कविताओं पर कोई बहुत गंभीर इस समय नहीं कहना चाहता हूं। फिर भी इतना कहना जरूरू लग रहा है कि समझ, संवेदना और भाषा का कविता में निवेश उम्मीद जगाता है। अभी इतना ही कहना है कि आगे भी इनकी कविताओं के विकास में मेरी दिलचस्पी बनी रहेगी। धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची कवितायेँ ..........
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कवितायेँ .खासकर मेरे दुलार पाने के आखिरी दिन ने बहुत प्रभावित किया .भाषा की सादगी इसे और प्रभावशाली बनाती है .
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