गुरुवार, 6 नवंबर 2014

कुमारकृष्ण शर्मा की कवितायें






         
       आज सिताब दियारा ब्लॉग पर कुमारकृष्ण शर्मा की कवितायें


एक .....

भूख पर निबंध


सरकार परेशान है
मुद्रा स्फीति की दर से
जो बढ़ कर सात प्रतिशत हो गयी है.
बैठक चल रही है
महगाई रोकने पर

बैठक में चम्मच भी हैं
और नेपकिन भी।
वहीँ टबेलपर पड़ा
सन 1991 में खींचा
हल्की दाढ़ी लिए
आधुनिक चाणक्य का फोटो
अपने बाल नोच रहा है
दीवार पर लगा
प्याज़ के चित्रों का कैलेंडर
उड़ उड़ कर
सुन २००१ की याद दिला रहा है।
बैठक में
सबसे महंगे स्कूलों में पढने वाले
हाई प्रोफाइल बच्चे
भूख पर निबंध लिख रहे हैं.


दो ....

राजा जी का रंगीन चश्मा



दूर बहुत दूर
अपने महल में
शतरंज की विसात पर
घोड़ों उंटों को करीने से सजाने वाला राजा
करता है दावा
वह जानता है
रंगों का धर्म, जा​ति, संप्रदाय

राजा के घोड़े ने अभी
ढाई कदम की चाल चली ही थी
सेनाप​ति दौड़ता आया

राजा जी राजा जी
जनता के बीच आपके बंटवाए वह चश्मे
जिनमें सब रंगीन दिखता है
कुछ लोगों ने उतार फैंके हैं
अब क्या होगा
लोग देख लेंगे
सुलगते मकान
बिलखती ​तितलियां
सूखे पेड़
तड़पते किसान
मरियल मजदूर 
खादी खाकी पर लगे लाल धब्बे
अंकल सैम की हैट
लालीपप बांटते नकाबपोश चेहरे
राजा जी राजा जी
जो भी करना है
जल्दी करें

सेनापति को हांफता देख
राजा हंसा
मुख्य सलाहकार भी हंसा
महल में उपस्थित
मंत्री, संतरी, दरबान सब हंसे
जोर से हंसे


राजा जी उठे
हुकुम हुआ
रंगों का पहाड़ बनाया जाए

विशाल कारखाने
चलने लगे दिन रात
बने लगा रंगों का पहाड़
वही रंग
जिनका धर्म, जा​ति, संप्रदाय
राजा और उसका सलाहकार जानता था

महल से
राजा ने जारी करवाया फरमान
मेरे देशवासियों को
हमारी नजर से पहचनने होंगे रंग
पहचानना होगी उनकी जा​ति, धर्म

लोकतंत्र के एक खास मौके पर
रंगों से बनवाए भव्य परिधान को पहन
रंगों के बनाए पहाड़ पर चढ़ राजा
इससे पहले कुछ बोलता
नीचे खड़ी भीड़ चिल्ला पड़ी
अरे राजा तो नंगा है

इतिहास गवाह है
हर सभ्यता में
राजा यही भूल करते हैं
उनको याद नहीं रहता
जा​तियों, धर्म और संप्रदाय के 
रंगों से बने पहाड़ की उंचाईयों
भव्य परिधानों 
में से
सब कुछ दिखता है
साफ साफ दिखता है


खैर
बहुत जल्द
अब जब चलेगी जोर से आंधी
उड़ेंगे धर्म, जा​ति और संप्रदाय के रंग
ऐसे में 
फैसला आपको ही करना होगा
आपको क्या चाहिए
राजा जी का रंगीन चश्मा 
या
राजा को नंगी आंखों से नंगा करना




तीन .....

शिल्पकार


मैं 
अगर पत्थर थी
सख्त
दूर तक फैली हुई
तो तुम
क्यों नहीं
पानी बन कर बिखर गए
ठहर गए 
मुझपर कुछ देर

तेरी मेरी दरारों में रिसते
क्या पता
उग आती कोई वनस्प​ति
जिसकी महीन जड़ें पकड़ लेतीं
मेरी सतह
कोई मछली
लुकाछिपी खेलती
भीतर ही भीतर

मैं पत्थर थी
तो तुम शीशा क्यों नहीं बने
टूट जाते मुझसे टकरा कर
कई हिस्सों में
तुम एक बार शीशा बन टकराते
तो जानते
मैं पहले से ही मोम थी
तुम धंस जाते मुझमें
मेरे वजूद को चीरते हुए
मेरा वजूद
सजा लेता तुझ शीशे को
अपने जिस्म पर
कपड़ों की जगह

मैं पत्थर थी
तो तुम
पत्थर क्यों नहीं बने
साथ-साथ बैठे रहते
मौन, निश्चिंत, शांत
शायद कोई आंधी
हम दोनों को टकरा
मिट्टी बना देती
हमारी मिट्टी से फूट पड़ता कोई दाना
छू लेता आकाश
पका देता
सपनों की फसल को

तुम
हाथों में हथोड़ा ले
करते रहे मुझपर प्रहार
लगातार
तुमने पानी, शीशा, पत्थर बनना
नहीं स्वीकारा
आखिर तुम
शिल्पकार ही क्यों बनना चाहते थे



चार ....

मेरा शहर: बाढ़ के बाद


मल्लाह 
अभी तक नींद से नहीं जागे

मेरे शहर के
बीच-ओं-बीच
बहने वाली
एकमात्र नदी
कब की
सूख चुकी है



परिचय और संपर्क

कुमार कृष्ण शर्मा


जन्म ​तिथि : 13 अगस्त 1974
शिक्षा : बीएससी आनर्स कृषि 
व्यवसाय : पत्रकार

अन्य

लोक मंच जम्मू और कश्मीर के संयोजक
साहित्यकला और संस्कृति के सरोकारों के साथ साथ उनसे जुड़े मुद्दों के विकास और प्रचार के लिए जम्मू कश्मीर के पहले हिंदी ब्लॉग 'खुलते किवाड़' (छोटे भाई और मित्र कमल जीत चौधरी के साथ) शुरू करने का श्रेय.

संपर्क

गांव पुरखू
पोस्ट आफिस दोमाना
तहसील व जिला जम्मू
जम्मू व कश्मीर
181206
मोबाइल : 0-94-191-84412 | 0-90-186-56277
ई-मेल kumarbadyal@gmail.com


4 टिप्‍पणियां:

  1. सिताब दियारा जैसे अच्छे ब्लॉग पर आने के लिए बधाई मित्र !! आपकी कविताएँ सुनना और पढ़ना होता रहता है . मुझे आपकी संवाद शैली बहुत अच्छी लगती है . बिना किसी विशेष भाषा और प्रयास के आप विचार और भाव को साध लेते हैं ... यहाँ पहली व तीसरी कविता लाजवाब है ! रामजी भाई आभार !!
    - कमल जीत चौधरी { जे० & के० }

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर कविताएं...शिल्प के साथ साथ भाव भी कमाल का रहा...बधाई के साथ साथ शुभकामनाएं
    अमित वर्मा, जम्मू

    जवाब देंहटाएं
  3. कविताओं को पसंद करने के लिए कमल जीत और अमित जी आपका धन्यवाद,
    ब्लाॅग पर स्थान देने के लिए रामजी भाई का आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. कुमार जी आपकी कविताएं पढ़ती सुनती रहती हूं... आपकी कविताएं सीधा सीधा संवाद करती है और कड़े सवाल उठाती हैं... इस पोस्ट में पहली दो कविताएं उसी मिजाज की हैं... आपकी तीसरी कविता पहली दो कविताओं के बिलकुल उल्ट नारी संवेदना से भरी हुई है... ऐसी कविताओं के लिए आपको बधाई और रामजी ​ितवारी जी का आभार

    जवाब देंहटाएं