संदीप रावत
संदीप रावत की कवितायें एक तरह से पीड़ा और उससे मुक्ति की छटपटाहट की
कवितायें हैं | इनमे देश-काल और आस-पड़ोस
तो आता ही है , अमानवीयता का विरोध और बेहतर समाज बनाने का सपना भी दिखाई देता है
| अभी कुछ ही समय पहले इनकी कवितायें मैं ‘अनुनाद’ ब्लॉग पर पढ़ चुका हूँ | मुझे
ख़ुशी है , कि वे अब ‘सिताब दियारा’ ब्लॉग पर भी छप रही हैं |
तो प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर युवा कवि ‘संदीप रावत’ की कवितायें
1 .... बीडी बनाने
वाले घर !!
बीड़ी बनाने वालों के छप्पर पे
बना रहता है
कड़क धुँआ
उठती रहती है हूक ... !
तेंदू के पातो पर
घूमती हैं नन्ही अंगुलियाँ ...
लिखती हैं -
कुछ भैंस बराबर
काले अक्षर !!
साल भर में एक बार आकर
कोई फेंक जाता है
राजधानी की ठुकराई हुई
चवन्नियां -अठन्नियां ...!!
मगर
हाथों पे निवाला देख लें
तो झपट पड़ती हैं चीलें ....!!
अपनी हथेलियों की मर चुकी खाल पर
सीना पीटती हैं
दिन-ब -दिन गरीब
होती हुई आखें ...
तेंदू के पत्तों पर
गिरते हैं कसैले आंसू ...सूख जाते हैं ...
बीड़ियाँ यूँ ही कड़क नही होतीं !!
2- औरत और सपना
औरतें जी लेती हैं ख़्वाबों में
और
उनकी ताबीरों में भी !!
वो खामोश जागती रहती हैं
कि
उनकी आखों पर बनी रहती है
किसी दुस्वप्न की आहट ...!!
भीगी पलकों पर
उलझाये आँचल...
औरतें जी जाती हैं सपनों को !!
3 .... आशा
बारिश के बाद
जब हरियाली ओढ़ लेंगे रस्ते ...
परिंदे बैठे होंगे
पानी के चहबच्चों को घेरे हुए ...
चरागाह में पसरा होगा
सुस्त दुधिया कोहरा ...
दूर खेतों से आती होगी
चैती के गीतों की सौंधी सी सरगम
भीगे बांज के पत्तों पर
फिसलेंगे -संभलेंगे गाय बकरियों के खुर
टप्प ..टप्प ...टक्करर ....टप ..टप ...
मेरे बच्चे
मेरे नन्हे चरवाहे
तुझे मैं ले चलूंगी अपने संग चरागाहों पर
सीखाउंगी तुझे चिरई की कूजें
तोडूंगी तेरे लिए बुरांश
तेरी पोरों पर रखूंगी ओस की बूंदें
और दिखाउंगी तुझे
घाटियों में डूब कर उड़ते पंछी ...!!
बस कुछ दिन और कर ले इंतज़ार
कि अभी पहाड़ो पर तपते घाम का पहरा है !
ये रूखे -सूखे दिन हमसे दूर चले जाने हैं बच्चे
बस ज़रा सा सब्र...
मैं तुझे ले जाउंगी अपने संग चरागाहों पर !!
4 .... देखो वे चीख न पाए
..
खेद प्रकट करते हुए
आखरी सजदे
में
एक दिन
कोई मजदूर
उड़ा देगा
चीखकर ...
पीपल की डाल से
आस्था और विश्वास के सारे पंछी
सदा के लिए
...!!
6-
धान बोने वाली औरतें -1
धान बोने वाली औरतें
चौमासी बरसातों में
जंगली धाराओं सी बह निकलती हैं
पहाड़ो में !
छलछलाती हुई गुज़र जाती हैं
खेतों -मेड़ो -जंगलो -बाखलियों से होकर ..
धान के खेतों में घुटनों
तक डूबी वो तैरती जाती है
हरियाने सूने खेतों को " हुड़किया " की
थापों के साथ !
अपनी सलवारों -धोतियों के पायंचों
को निचोड़ती हुई
वो दौड़ती हैं यहाँ वहां बारिश में !
भीगे आँचल से छूटती हैं
ठंडी बौछारें...
चहक उठते हैं पंछी ...!
धान बोने वाली औरतों के लिये ही उगती है
पहाड़ो पे हरियाली ... घने कोहरे में बैठी रहती
है ओस ...
उनके आँचल और केशों को सुखाने बड़ी दूर से आती
हैं हवाएं ...
धान बोने वाली औरतों के भीतर फिर नयी उम्मीद
उगाते हैं पहाड़ !!
7...... धान बोने वाली औरतें -2
धान बोने वाली औरतें
सांझ तलक
खेतों में रहकर
लौटती हैं
बच्चे झूलते
हैं कंधो पे ..ठीक कानों पर बोलते हैं
उनके गिलास
से छलक उठती है चाय !!
वो गाय के
लिए बनाती हैं चारा -काटती हैं सब्जी - गूंथती हैं आटा
रात घिरे चूल्हे
पर
जम्हाईयों के
बीच करती हैं बातें
बेसुध
झपकियाँ लेती हुई
सेकती हैं
" छापड़ " भर रोटियाँ ...
जली पोरों पे
फिर लगाती हैं नमक !
नींद की लाल
खरोंचे आँखों में लिए
वो मांझती
हैं बर्तन , उठाती हैं झूठा ,
लीपती हैं चौका ...!
आधी रात जब
रोते हैं बच्चे ...वो देर तक नहीं करातीं चुप उन्हें
या कोसती हुई
मारती हैं झिड़कती देती हैं धक्के !
बडबडाता हुआ
करवट बदलता
है आदमी और गाली बकता हुआ उठता है -
सबकी सुनते
-करते बेहिस बेजान हो जाती हैं
धान बोने
वाली औरतें ...!!
परिचय और संपर्क
नाम - संदीप रावत
उम्र - २४ वर्ष
शिक्षा - बी.एस.सी ( गणित ) (
नैनीताल डी.एस.बी कैंपस )
पता - ग्राम सुरना , पोस्ट आफिस बिन्ता
जिला अल्मोड़ा , रानीखेत (उत्तराखंड
अच्छी कवितायेँ |बीडी बनाने वाले घर और धान बोने वाली औरतें विशेष अच्छी लगीं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ..
जवाब देंहटाएंkhoobsurat kavitaen...
जवाब देंहटाएंBahut acchi kavitain. Badhai aur abhaar.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी होती हैं इनकी कविताएं..;यथार्थ से जुड़ी
जवाब देंहटाएंaisee hi kavitayen hai ...boring ...fresh nahi hai ///
जवाब देंहटाएंबीड़ियाँ यूँ ही कड़क नही होतीं !! क्या खूब लिखा है...सभी कवितायें बहुत सुन्दर हैं ...बहुत बधाई.......!
जवाब देंहटाएंbeediyan....bahut badhiya ! vastavikta ka sajeev chitran karti kavitayen.....badhai!
जवाब देंहटाएंsuperb
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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