रामजी यादव
कविताओं में
जब जीवन प्रवेश करता है , तब उनकी तासीर कुछ ऐसी ही होती है | जहाँ छिपाने की बजाय
कहने की कोशिश की जाती है , वहां कवितायें इतनी ही साफ़-साफ़ और पारदर्शी तरीके से
लिखी जाती हैं | जहाँ अपना पक्ष स्पष्टता के साथ चुना जाता है , वहां कवितायें इतनी ही मुखरता से ध्वनित होती हैं | और
जब ऐसा होता है , तब उनमे अपने समय और समाज का अक्स भी साफ़-साफ़ ही दिखाई देता है |
जाहिर है , कि ऐसी कवितायें कला की नपनी लिए घूम रहे आलोचकों के साँचें में नहीं
समा पायेंगी , लेकिन वे उस जीवन में जरुर जगह पाएंगी , जिनकी चिंता इनमें व्याप्त
है | दो भिन्न आस्वाद की ये कवितायें , यह
बताते हुए भी जुडती दिखाई देती हैं , कि जो जीवन से प्यार करता है , वही उसे बेहतर
बनाने के लिए संघर्ष भी कर सकता है |
तो प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर चर्चित
कवि-कथाकार रामजी यादव की कवितायें
1....
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद
मार्क्स जी
!
दिल्ली के
पूर्वी क्षितिज पर देखता हूँ
आपकी
छवियाँ अनेक
दिल्ली के
भीतर हर लुटेरा डरा हुआ है आपसे
यह जानते
हुये कि आपने उंगली नहीं उठाई
किसी पर
व्यक्तिगत
हर लुटेरा
भाषाहीन ,
तर्कहीन और व्याकरणहीन हो
बढ़ा रहा है
चीजें और विस्तृत कर रहा है मिल्कियत
पूंजी कहो
तो वह सहलाने लगता है तिजोरी का लोहा
घाटे पर
अटक जाती हैं उसकी सांसें
इतना कमजोर
है हर लुटेरा कि
वह पत्थर
पर उड़ेल देता है आत्मा
और आदमी की
आज़ादी के खिलाफ तरजीह देता है तोप को
हर लुटेरा
आपके विरोध में हकलाने लगता है दुस्साहस से
बहुत दबी
ज़बान में प्रार्थना दुहराता है अमरता की
क्या वह
परिवर्तन के सिद्धान्त से परिचित है
वह देखिये
चले आ रहे हैं पूरब से
कुछ और लोग
उजड़कर दिल्ली
दुख,
आशंकाओं और उम्मीदों से भरे हुये
पूरा हो
रहा है द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का
एक और चरण !
2 .... नायगाँव
इन चमकते
हुये नमक के खेतों में आई है जिस तरह उम्मीद
बिना गमबूट
के भी इन कच्चे रास्तों को कांड़ते हुये
जिस तरह
लौटे हैं ये नमक के कारीगर
अपने
फरुहों को जो इतने लय से छूआते हैं जमीन से
कि कभी कोई
सितारवादक भी प्रेरणा लेगा इनसे
और
आविष्कृत करेगा ही एक दिन पक्का नमक-राग
यह आयोडीन
के षडयंत्रों से अलग एक संसार है
जहां घेंघा
नहीं आया भूलकर भी और
जहां
झुर्रियों में भी बचा है नमक इस तरह कि
ज़िंदगी से
नमक-हरामी कोई चाहता ही नहीं करना
बत्तीस लाख
वर्ग किलोमीटर में फैले इस देश में
करोड़ों
लोगों ने अभी बचा रखा है नमक
अपनी आँखों
में , भाषा और व्यवहार में
अपने
उजाड़ा जाता
हुआ जंगल हो चाहे बर्बाद की जाती हुई नदियां
हर कहीं
नमक ने सिखाया है लोगों को अन्याय के खिलाफ सोचना
हर कहीं
ऐसे बचा हुआ है नायगाँव कि जैसे बची हुई हो कोई स्मृति
जैसे बचा
हुआ हो कोई दर्द कि जैसे बचा हुआ हो कोई उल्लास
जहां लालच
और बिल्डर और बैंक और विज्ञापन आया है साथ-साथ
जहां
मीठागरों ने अमीर बनने से कर दिया है इंकार
जहां
झलफलाते अंधेरे में मोमबत्ती की ओर मुंह करके वे
सड़क के
किनारे ही खा लेते हैं तरकारी-भात
जहां उठी
हुई इमारतों की बत्तियाँ भी हो जाती हैं गूंगी
जहां एक
ज़िद है मीठागरों की सरेआम कि ऐसे ही बचा रहे नमक
वहीं मैं
सोचता हूँ ठहरकर दिन-रात फैलाये जा रहे
कारपोरेट
मिथकों के आर-पार
वहीं मैं
देखता हूँ अरब सागर के धूसरित होते हुये पानी को
जो दोपहर
में चमकता है उम्मीद से अधिक
वहीं मैं
सोचता हूँ अमेरिका और उसके फैलते हुये पिट्ठूओं के खिलाफ
वहीं मैं
सोचता हूँ एक स्वायत्त देश के भीतर बढ़ते अमेरिकी-कैंसर के बारे में
वहीं मैं
सोचता हूँ करोड़ों धड़ों पर रखे सिरों और शिराओं के बारे में
सूख रहा है
जिनके भीतर से नमक मनुष्यता की तरह
नायगाँव में
जहां निचाट नमकीन है धरती
वहाँ बहुत
खामोशी से संवाद करती मिल जाती है नमक की भाषा
बहुत
उम्मीद से सोचता हूँ यहीं वसंत और विचार के बारे में
इतनी
रूमानियत बच गई है कि सोच सकूँ मेरे देश में
वसंत इस
तरह आए जैसे तुम्हारे चेहरे पर लुनाई आई है !
3 ... लोकार्पणिए
यह
लोकतंत्र का दुर्भाग्य है
और किताब
की मौत की पहली दस्तक
यह रोशनी
का वृत्त दरअसल उनके भीतर छिपे
अँधेरों को
उजास में बदलने का भ्रम रच रहा है
और वे एक
दूसरे की मुस्कान भाँपते हुये सोच रहे हैं पैंतरे
क्योंकि
कोई भी पढ़कर नहीं आया है लोकार्पित होनेवाली पुस्तक
फिर भी वे
अनुभवी खटिक की तरह बना देंगे
किताब को
अच्छी सब्जी !
चलो अच्छा
हुआ
कि मौलिकता
से भरे हुये रचनाकार
विश्वास
नहीं रखते लोकार्पित होने में
लोकार्पण
एक घंटा है इस शहर के सांस्कृतिक जीवन में
जिसे बजाकर
आयोजक आवृत्तियों में बता देते हैं कि
सिर्फ चाय
है या कि समोसा है
साथ में
बासी गुलाबजामुन और गंधेले चिप्स से भरा
अग्रवाल या
नत्थू स्वीट्स का चमकता डिब्बा
या कि बाद
में कॉकटेल है
यह सब
समीक्षाओं और कवरेज के लिए एक जरूरी विधान है
जैसे पचास
पार वाली यह बदहवास कवयित्री-कथाकार स्त्रीवादी
रिरियाती
फिर रही है एक कॉलम तीन सेंटीमीटर की खबर हेतु
उसके
सेंटिमेंट्स उभर आए हैं पत्तों के बीच फूलगोभी की तरह
आधी
उत्तेजित आधी रुआंसी है सचमुच
यादकर उन
छोटे शहरों के दौरे
जहां फोटो
सहित छपे हैं उसके बयान
दिल्ली की
बेदर्दी पर दुखी है इस कदर कि बस
छोड़ नहीं
सकती दिल्ली कि यहीं है साहित्य का मठ
यहीं वह
सोचती है कि प्रकाशक उसे याद करें रॉयल्टी का विवरण दें
यहीं वह
चलाती है मुहिम कि एक मूर्ख और लद्धड़ संपादक ने
उसके संकलन
कि समीक्षा में बुरी तरह कलम मारी
कि यह गलत
है गलत है गलत है
यहीं वह सौ
प्रतिशत हो सकती है संवेदनहीन
और यहीं
उम्मीद करती है कि शहर को संवेदनशील होना चाहिए
लोकार्पण
समारोह सादतपुर से साकेत के मंगल मिलन का मौका है
इसी जगह
दिलशाद गार्डन से द्वारका मिलता है लपककर
मयूर विहार
गले से लगा लेता है मंगोलपुरी को
और पीठ
ठोंकता है देर तक
दूर-दराज
से आए उत्साही और फटीचर फ्रीलान्सर
यहीं से
निशाना साधते हैं दिल्ली पर
साहित्य की
माफियाई , पत्रिकाओं की बेहयाई और
बूढ़ों की
जगहँसाई पर साथ-साथ प्रतिक्रिया देते हैं वसंतकुंज
और विवेक
विहार
पालम से
पटपड़गंज और पीतमपुरा से पुष्प विहार
नंदनगरी से
नारायणा और रोहिणी से रैगरपुरा तक
अच्छा
प्रतिनिधित्व है
और भी है
बहुत कुछ
पकी हुई
बूढ़ी स्त्रियों की संध्यागाह
नए-नए
प्रकाशकों का चरागाह
और
श्रमजीवी लेखकों की क़त्लगाह है यहाँ
तो दस-पाँच
समोसा-भकोसुओं की पनाहगाह भी
दांत
निपोरते हुये उंगली से माइक ठोंक रहा संचालक
झुक-झुक कर
बता रहा है आज के हमारे मुख्य अतिथि
कवि-आलोचक
आदरणीय नवाचारी जी
कि
जिन्होंने व्यभिचार को प्रेम की तरह प्रतिष्ठित किया साहित्य में
लेकिन यह
पंक्ति कहे बिना कहा संचालक ने
आज के
अध्यक्ष महान आलोचक फादरणीय विचलन जी
बार-बार
जिनकी जीभ फिसलती रही है यहाँ-वहाँ
इसे भी
बिना कहे उसने कहा
आज के
मुख्य वक्ता श्रद्धेय प्रो॰ खरबूजादास जी
जिन्होने
नागार्जुन से सीखी थी बतकही
बार-बार
अविश्वसनीयता के महल से खींच लाते हैं आलोचना को
विश्वसनीयता
की झोंपड़ी में
मैं स्वागत
करता हूँ आप सभी का तहेदिल से
और
मुस्कराकर देखा उनसभी को
चढ़ बैठा था
उनकी गरदनों पर दंभ
अब हालात हैं ऐसे कि क्या कहूं तुमसे
अगर खाना है समोसा तो रुख करो उधर का
चाहिए अच्छी किताबें तो चलो शहर भर घूमते हैं पैदल
देखते हैं ज़िन्दगी और सीखते हैं लिखना !
लोकार्पण के लिए नहीं
संवाद और संघर्ष के लिए
समाज और ज़िन्दगी के अर्थ के लिए !!
4 .... फ्रीलांसर
फ्रीलांसर होना
विजेताओं के बीच
एक लगातार हारते हुए सैनिक की तरह से गुजरना है।
बचना उतना ही सम्भव है
जितना उस कबूतर का
उस जगह से बच पाना संभव है
जब वह बाजों के बीच से गुजरता है
भागना भी उतना ही संभव है
जितना घर से भाग सकता है कोई घर की तलाश में
घुटने छिले बस यूँ कि
जैसे खीरा छीलता है कोई
और नमक लगाता है अच्छी तरह
लेकिन कहाँ पहुँचा
कहीं इस दिल्ली की भीड़ में
खोपड़ी के नीचे टँकी दो आँखें
और बत्तीस दाँत हैं
सारी दुनिया
वहीं कहीं खो गया हूँ मैं
हर कोई लिए हुए है
सहानुभूति की बर्छी
नफ़रत की ढाल
और लालच की दूरबीन
और ढूँढ़ता है मुझे ही
मैं फ्रीलांसिंग का मतलब
दीवानगी लगाए बैठा हूँ
वे चाहते हैं
एक पॉजीटिव समीक्षा अपने नए संकलन पर
मैं सूली मानता हूँ अपनी मंजिल
वे रम की बोतल को सच समझ बैठे हैं
कितना विपर्यय पसरा है हमारे बीच
चारों तरफ फैला यह बेशर्म समय
क्या बीतना भूल गया है!
निर्लज्जता की हद तक
साफ है यह आकाश
भर जाएग कभी तारों से
पटी हुई हैं जैसे अकादमियाँ
बोरियत भरे संकलनों, जन विरोधी योजनाओं
और लूट-खसोट की गोपनीय फाइलों से
गंधा रहा है जैसे साहित्य
बूढ़े छिछोरों, झूठों, कायरों, मक्कारों और चापलूसों से
अकेला हूँ वैसे मैं कि
नियति है यह मेरी
जानता था कि फ्रीलांसर होना
पूरी जिंदगी गुजार देना है दोस्त के बगैर
विजेताओं के बीच
एक लगातार हारते हुए सैनिक की तरह से गुजरना है।
बचना उतना ही सम्भव है
जितना उस कबूतर का
उस जगह से बच पाना संभव है
जब वह बाजों के बीच से गुजरता है
भागना भी उतना ही संभव है
जितना घर से भाग सकता है कोई घर की तलाश में
घुटने छिले बस यूँ कि
जैसे खीरा छीलता है कोई
और नमक लगाता है अच्छी तरह
लेकिन कहाँ पहुँचा
कहीं इस दिल्ली की भीड़ में
खोपड़ी के नीचे टँकी दो आँखें
और बत्तीस दाँत हैं
सारी दुनिया
वहीं कहीं खो गया हूँ मैं
हर कोई लिए हुए है
सहानुभूति की बर्छी
नफ़रत की ढाल
और लालच की दूरबीन
और ढूँढ़ता है मुझे ही
मैं फ्रीलांसिंग का मतलब
दीवानगी लगाए बैठा हूँ
वे चाहते हैं
एक पॉजीटिव समीक्षा अपने नए संकलन पर
मैं सूली मानता हूँ अपनी मंजिल
वे रम की बोतल को सच समझ बैठे हैं
कितना विपर्यय पसरा है हमारे बीच
चारों तरफ फैला यह बेशर्म समय
क्या बीतना भूल गया है!
निर्लज्जता की हद तक
साफ है यह आकाश
भर जाएग कभी तारों से
पटी हुई हैं जैसे अकादमियाँ
बोरियत भरे संकलनों, जन विरोधी योजनाओं
और लूट-खसोट की गोपनीय फाइलों से
गंधा रहा है जैसे साहित्य
बूढ़े छिछोरों, झूठों, कायरों, मक्कारों और चापलूसों से
अकेला हूँ वैसे मैं कि
नियति है यह मेरी
जानता था कि फ्रीलांसर होना
पूरी जिंदगी गुजार देना है दोस्त के बगैर
5 ... एक स्त्री के समक्ष एकालाप : पाँच कवितायें
एक
मुझे नहीं पता कि तुम कैसे याद रखोगी
मुझे
मैं जानता भी नहीं कि कैसे पेश आया
जाता है प्रेम में
कैसे चूमा जाता है माथा और कैसे किया
जाता है व्यवहार ?
एक प्रेमिका को कितनी चाहिये विनम्रता ?
कितनी कोमलता और कितना कौशल ?
मैं कोई ऐसी स्त्री भी नहीं हूं जो वादे
को मान ले सच
करने लगे बेचैनी से तुम्हारी बेतहाशा
उम्मीद
और न मिलने पर हो उठे आगबबूला
प्रेम की ओढ़नी उतार फेंके तुरंत और
नफरत की चादर लपेटने लगे दीवानावर
कि
जिसने शक
करना और अधिकार जताना नहीं सीखा
अक्सर जाग उठता है आशंका
में कि तुम ठीक तो हो
बिल्कल बेपरवाह बच्चों को देखना कभी
तो शायद
मैं भी याद आऊं !!
दो
तुम्हारी एक जरा सी खरोंच से
हिल जाता है एक शरीर
विज्ञानी
क्योंकि वह हुनर बेचता है
मुझे कौन देखेगा
कि जिसके दिल से निकल रहा है लहू दिन-रात
!
अगर जवाब हो तो देना मित्र
न हो तो खोजने में मत करना कोताही
तुम्हारी तकलीफों का इलाज भी पड़ा होगा
वहीं !
तीन
जैसे झरने के उल्लास को कम नहीं कर पाता
सूखा
जैसे बच्चों के उत्साह को कम नहीं करती
पिटाई
वैसे ही तुमसे मेरे प्यार को कम नहीं कर
सकती कोई विपत्ति
क्योंकि तुमसे ही मैंने सीखा है आग में
तैरना !
चार
सिर्फ कैफियत देना ही सच है मेरा
यकीन न करना तुम्हारा अधिकार !
प्यार की यातना ही है मेरा हासिल
निगाह फेर लेना तुम्हारा अख्तियार
कयामत हो या दुनिया
कौन मिटा सकता है मेरे दिल से तुम्हारा
अक्स
कि जैसे बाढ़ के बाद धरती निखरती है लहक
कर
और फसलें फूटती हैं संगीत की तरह
वैसे
मेरे भीतर से खुशी
फूटती है तुम्हारे लिये
तुम जब दो कदम भी बढ़ती हो मेरी तरफ
तो तुम्हारे पांव के निशान
सुरक्षित रखता हूं अपने हृदय पट पर !
पाँच
जैसे कोई अकेला सिपाही
दूर से देखता है कोई आकृति
और कुमुक आने की खुशी
में
लड़ता है दुगुने
वेग से
वैसे ही मैं तुम्हारे आने की आहट पाकर
तुम्हारी झलक देखकर हो जाता हूं पागल
खुशियां
छोड़ देता हूं दुखियारों के लिये
निकल पड़ता हूं निचाट घूप में
नाप लेता हूं सारे बियाबान
लिखता हूं अनवरत गद्यमय जीवन
ओ मेरी प्रेम संगिनी !
आभारी है मेरी भाषा
तुम्हारी
कि तुमने इतना बना दिया है मुझे काव्यमय
पीड़ाएं किसी भी कविता से न रहेंगी अनदेखी
अब !
6 ....
ऐसे ही प्रेम में बीमार होता है कोई
और दवा का नाम भूल जाता है
इतने संवाद
हैं फिर भी बहुत कुछ है शेष
जैसे
लुटेरों की लूट के बाद भी शेष हैं जंगल
जैसे
विषाक्त कर दिये जाने के बावजूद
बहना नहीं
भूलतीं नदियां
और कल-कल
रहता है शेष
जैसे तबाह
किए जाने के बाद भी लड़ना शेष रखती है कोई स्त्री
और उम्मीद
नहीं खोती जीवन में
जैसे बमों
और डायनामाइट के शोर के बावजूद
शेष रहता
है जीवन का संगीत
जैसे बिसुक
जाने के बाद भी रहता है
गाय की
छीमियों में दुधास शेष
और एक अगले
सृजन की ममता
जैसे न्याय
की आस शेष रहती है
सताई हुई
क़ौमों में
जैसे शेष
रहती है विचारों में आग
जैसे
ज़िंदगी के लिए एक सांस को शेष मानते हुये मर जाता है कोई
विश्वास
रखते हुये शेष कि अभी नहीं मरेगा
दुनियावी
बातों के इस पुलिंदे में
नहीं है
कुछ भी अनूठा
सिर्फ तुम
हो वह उत्स
जहां से
नया होता है आकाश
जहां से
रंग और रोशनी लेता है सूरज
और चल पड़ता
है संसार में दिन का निर्माण करने
वैसे ही
मैं निकलता हूँ तुम्हारी चाह में चुपचाप
और तुम बड़े
उल्लासमय लिबास में मिलती हो मुझमें
बस यही है
सब
बस इसी को
बचाने की चाहत में निराश नहीं होता मैं
इसी में से
आती है एक आवाज
और मैं
सरेआम सुनता हूँ तुम्हें बेधड़क
बिना किसी
लाज-लिहाज के देखता हूँ सपने !!
परिचय और संपर्क
रामजी यादव
कवि और कथाकार
मुंबई में रहते
हैं
फिल्म और
जन-आन्दोलनों में गहरी रूचि
मो. न. 09699894413
मैं ' लोकार्पणिए ' शब्द की ईजाद के लिए कवि को बधाई देता हूँ . अद्भुत व्यंजना है इस शब्द में . इस कवि के पास ताज़ा और तीखे काव्य-प्रसंग हैं . वाक् -स्फीति से जितना बच पायेंगे , उतना ही बेहतर रच पायेंगे .
जवाब देंहटाएंरामजी भाई, अभी लोकार्पनिये पढ़ी. स्तब्ध करने वाली कविता है. एकदम ताज़ा. हाँ अंत और मारक हो सकता था!
जवाब देंहटाएंकमाल की कवितायेँ हैं........ सत्य की इतनी अवहेलना देखकर किसी सच्चे,संवेदनशील कवि का मन हाहाकार कर उठेगा ...ये कवितायेँ उसी हाहाकार की प्रतिनिधि कवितायेँ हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविताए। सचमुच और सचमुच नायगांव वाली कविता के नमक राग सी।
जवाब देंहटाएंRamjee bhai Ramjee yadav se milvaane ke liye dhanyavaad. Acchi kavitain.
जवाब देंहटाएंHaardik badhai. - Kamal Jeet Choudhary.
रामजी भाई की कवितायें अलग आस्वाद वाली कवितायें हैं। खासकर 'लोकार्पनिये' और 'नायगांव' वाली कविता में कवित्व के नमक ने मन मोह लिया. रामजी यादव को बधाई एवं सिताबदियारा का आभार।
जवाब देंहटाएं