सिताब दियारा ब्लाग अपनी इस 200वीं
पोस्ट पर इससे जुड़े सभी लेखकों, लेखिकाओं, समर्थकों और पाठकों का आभार व्यक्त करता
है | इस उम्मीद के साथ, कि भविष्य में भी आपका यह स्नेह बना रहेगा | 
                    तादेऊष रुजेविच की कवितायेँ 
यूरोप के महान कवि तादेऊष रुजेविच का जन्म 1921 में पोलैंड में
हुआ. उन्होंने कविता और नाटक दोनो विधाओं में लिखकर पोलिश
साहित्य को पूर्णतः बदल दिया . तादेऊष रुजेविच ने रचनाकार की आतंरिक लोकतांत्रिक स्वतन्त्रता और उसकी
नैतिक-मानवीय चेतना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. उन्होंने सत्ताकेंद्रित राजनीति
मे मौजूद किसी भी तरह की हिंसा को कभी भी स्वीकृति नहीं
दी. दूसरे विश्वयुद्ध के परिणामों को वे कभी सह नहीं पाए. नाजीवाद ने जब आश्वित्ज़
मे बर्बर जन-संहार किया तब सारी दुनिया में यह प्रश्न पूछा जाने लगा था कि क्या अब
भी कविता लिखी जा सकती हैं? तादेऊष रुजेविच ने पोलिश कविता के नए रूप के आविष्कार के साथ कविता को
संभव बनाया. उनके भाई की हत्या भी गेस्टापो ने कर दी थी. उनके पास अद्भुत
काव्यात्मक ईमानदारी है. उनकी मृत्यु 24 अप्रैल 2014 को हुई. 
वापसी
अचानक
खिड़की खुल जाएगी       
और माँ बुलायेगी 
आने का समय हो गया है 
दीवार हट जाएगी  
मैं गंदे जूते समेत 
स्वर्ग में प्रवेश करूंगा  
मैं मेज पर आऊंगा 
और बेरूखी से सवालों के जवाब दूंगा
मैं ठीक हूं मुझे छोड़ दो 
अकेला. सिर को हाथों में पकड़े
मैं  
बस बैठा रहता हूं. मैं उन्हें कैसे
बता सकता हूं  
उस लंबे और उलझे 
रास्ते के बारे में 
यहां
स्वर्ग में मातायें  
बुनती हैं हरे स्कार्फ 
मक्खियां भिनभिनाती हैं. 
पिता ऊंघते हैं स्टोव के पास 
छह दिनों की मेहनत के बाद. 
नहीं - मैं उन्हें हरगिज नहीं बता
सकता 
कि लोग 
एक दूसरे के खून के प्यासे हैं. 
लट
जब वाहनों में लायी गयी 
सभी महिलाओं के 
सिर मुंडवाये गये 
चार मजदूरों ने संटियों की झाड़ुओं
से 
बुहारा  
और बालों को बटोरा  
साफ शीशे के नीचे 
रखे हैं सख्त बाल उनके 
जिनका दम घुटा गैस चम्बरों में 
पिनें और कंघियां उलझी हुई हैं 
इन बालों में 
बाल रौशनी से चमकते नहीं हैं  
हवा उन्हें लहराती नहीं है 
किसी हाथ 
ने छुआ नहीं है उन्हें 
न ही बारिश या होंठ ने 
भारी भरकम पेटियों में  
पड़े हैं रूखे बाल 
दम घुटने वालों के 
और कुम्हलाई चोटी की  
रिबन वाली एक लट है
जिसे स्कूल में खींचा था 
शरारती लड़कों ने.
उत्तरजीवी 
चौबीस
साल का हूं मैं
कत्ल के
लिए ले जाया गया 
मैं बच
गया.  
खोखले
पर्यायवाची हैं ये शब्द: 
आदमी और
जानवर 
प्यार और
नफरत 
दोस्त और
दुश्मन 
अँधेरा
और उजाला. 
एक ही तरीका है आदमियों और जानवरों का वध करने का
मैंने
देखे हैं: 
कटे हुए
आदमियों से भरे ट्रक
जिन्हें
सहेज कर नहीं रखा जाएगा. 
विचार
शब्द मात्र हैं: 
सदगुण और
अपराध 
सच और
झूठ 
सौंदर्य
और बदसूरती  
साहस और
कायरता. 
सदाचार
और अपराध समान तुलते हैं 
मैंने
इसे देखा है: 
एक आदमी
में जो एक साथ था 
अपराधी
और सदाचारी. 
किसी
शिक्षक और गुरु की तलाश है मुझे 
लौटा दे
जो मेरी देखने, सुनने और बोलने की क्षमता 
फिर से
रख दे नाम वस्तुओं और विचारों के
अलग कर
दे प्रकाश को अंधकार से. 
चौबीस
साल का हूं मैं
कत्ल के
लिए ले जाया गया 
मैं बच
गया.
.
.
पारस पत्थर 
इस कविता
को 
सुला
देने की जरूरत है 
इससे
पहले कि
यह शुरू
कर दे 
चिंतन
करना 
इससे
पहले कि
यह
उम्मीद करे 
तारीफों
की  
जिंदा हो
जाये  
भूलने के
पल में 
शब्दों
के प्रति संवेदनशील 
उचटती
निगाह डालता है 
तलाश
करता है 
पारस
पत्थर की 
अपनी मदद
के लिए 
अरे
राहगीर तेजी से कदम बढ़ा
मत उठा
लेना इस पारस पत्थर को 
वहां एक
अतुकांत 
अनावृत्त
कविता 
तब्दील
हो जाती है 
राख में.
स्वर 
वे एक दूसरे की चीरफाड़ करते हैं और पीड़ा
देते हैं 
शब्दों और चुप्पियों से 
मानो उनके पास हो 
एक और जीवन जीने के लिए 
वे ऐसा करते हैं
मानो वे भूल गए हों 
कि उनके शरीर 
मरणशील हैं  
कि आदमी को भीतर से 
आसानी से तोड़ा जा सकता है.
एक दूसरे के साथ क्रूर हैं  
और कमजोर हैं वे
पौधों और जानवरों से भी 
उन्हें मारा जा सकता है एक शब्द 
मुस्कान या निगाह से.
 रूपांतरण 
मेरा छोटा बेटा दाखिल होता है
कमरे में और कहता है 
'आप गिद्ध हैं
मैं चूहा हूं’
मैं अपनी किताब परे रख देता हूं
मुझमें उग जाते हैं 
पंख और पंजे
उनकी मनहूस छायाएं
दीवारों पर दौड़ती हैं 
मैं गिद्ध हूं
वह चूहा है
'आप भेड़िया हैं
मैं बकरी हूं’
मैंने मेज के चक्कर लगाये 
और मैं भेड़िया बन जाता हूं
खिड़कियां चमकती हैं 
नुकीले दांतों की तरह
अंधेरे में
वह दौड़ता है अपनी मां के पास 
सुरक्षा के लिए 
सिर को छिपा लेता है मां की गोद में. 
मुलाकात 
मैं उसे पहचान नहीं सका
मैं जब यहां आया 
यह बिलकुल संभव है
कि इतना लंबा वक्त लग जाये इन फूलों को
सजाने में 
इस अनगढ़ 
फूलदान में
'मुझे ऐसे मत देखो'
उसने कहा
मैं छोटे कटे बालों को सहलाता हूं
अपने सख्त हाथों से 
'उन्होंने मेरे बाल काट दिए'
वह कहती है 
'देखो मेरे साथ क्या किया
है उन लोगों ने'
अब फिर से उस आसमानी वसंत ने 
धड़कना शुरू कर दिया है उसकी गर्दन की
पारदर्शी त्वचा के नीचे हमेशा की तरह 
जब वह आँसू पी लेती है 
वह इस तरह क्यों घूरती है
मुझे लगता है मुझे चले जाना चाहिए
मैं जरा जोर से कहता हूं
और मैं उसे छोड़ कर चल देता हूं
मेरा गला रुंध जाता है.
अंग्रेजी
से अनुवाद: 
सरिता
शर्मा 
प्रकाशित कृतियाँ .....
एक ....कविता संकलन – सूनेपन से संघर्ष 
दो ... आत्मकथात्मक उपन्यास- जीने के लिए
सम्प्रति – राज्य सभा सचिवालय में कार्यरत      

 
 
एक नए व्यक्तित्व और सृजन कर्मी से आपके ब्लॉग के माध्यम से परिचय हुआ ... इसके लिए आपका शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत !ही सुन्दर सरल सहल कवितायें , ठहर कर पढने वाली , बहुत ही सहज अनुवाद ,
जवाब देंहटाएंरूपांतरण और वापसी बेहद पसंद आये , जैसे जीवंत हो कोई दृश्य ,
इन शब्दों में आवाज है स्पष्ट और गहरी !
तादेउष रुजेविच ने मौत पर बहुत सहजता से लिखा है. युद्ध की विभीषिका हमारी आँखों के सामने जीवंत हो उठती है. लाशों के बीच जीवन की यादें दिल दहला देती हैं.
जवाब देंहटाएंin kavitaoen ke liye dhnyavad
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