शनिवार, 7 जून 2014

बिजली संकट और सकारात्मक सोच

                   






             ‘बिजली-संकट और सकारात्मक सोच’




मैं आजकल सकारात्मक सोच में विश्वास करने लगा हूँ | बिलकुल अपने प्रधानमंत्री जी की तरह, जो पानी से आधे भरे गिलास के बारे में कहते हैं कि यह आधा पानी से भरा है और आधा हवा से | उसी तर्ज पर कल मैंने फेसबुक पर एक स्टेटस लगाया था कि कल, लगभग एक महीने बाद हमारे क्षेत्र में दिन में बिजली आयी थी | आज मैं सोच रहा हूँ कि इस देश की जनता को इस बात से परिचित कराऊँ कि हमने भी चौबीस घंटे बिजली देखी है |


सुबह-सुबह सबसे पहले मैंने यह प्रश्न अपने बेटे से पूछा, कि तुम्हे वह दिन, वह महीना याद है जब हमारे यहाँ चौबीस घंटे बिजली रही थी | उसने कहा “पापा, प्लीज ! ये बाते हम लोग एक घंटे बाद भी तो कर सकते हैं, जब बिजली चली जायेगी | अभी मुझे थोड़ा टी.वी. देख लेने दीजिये | जब स्कूल शुरू हो जाएगा, तब पता नहीं इस बिजली का शेड्यूल क्या होगा | और हां .... जरा ट्यूशन सर को बोल दीजिएगा कि वे थोड़ा पहले आया करें | वे ठीक उसी समय पर आते हैं, जब शाम को एक घंटे के लिए बिजली आती है |”


मैं थोड़ी देर तक अपने दिमाग पर जोर डालता रहा | फिर लगा कि चालीस पार आदमी को अपने दिमाग पर इतना जोर नहीं डालना चाहिए | मैंने उस डाले गए ‘जोर’ को दिमाग पर से हटा लिया | इतने में बिजली कट गयी | बेटा बाहर निकला | “हां ...तो आप क्या पूछ रहे थे | यही न कि मैंने चौबीस घंटे बिजली कब देखी है | तो सुनिए, जब हम लोग अंडमान से वापस आते समय कोलकाता में रुके हुए थे, तब मैंने वहां चौबीस घंटे बिजली देखी थी | बाकी आपके इस महान गाँव में बिजली की क्या जरुरत .....| हुंह ....|”


यह सोचकर कि आजकल के लड़के किसी भी गंभीर प्रश्न को हवा में उड़ा देते हैं, मैंने पत्नी की ओर रुख किया | वह मुझे अच्छे से समझती है | शायद मेरी जिज्ञासा को भी समझेगी | उसने कहा ... “रात भर बिजली नहीं थी | नींद से बुरा हाल है | फिर सुबह पांच बजे से ही इस कीचन में घुसी हूँ, और आपको यह सवाल सूझ रहा है |” मैंने कहा कि “प्लीज .... मैं थोड़ा सकारात्मक सोचना चाहता हूँ | और तुम्ही हो, जो इस काम में मेरी मदद कर सकती हो |” वो मुस्कुरायी | “आप मेरे से बड़े हैं, लेखक है, दुनिया जहान की चिंता करते हैं, इस सवाल का जबाब ढूँढने के लिए मैं आपके कन्धों पर अपना सिर रखती हूँ | आप जरुर कामयाब होंगे ...| और हां ....जब जबाब मिल जाएगा, तब मुझे भी बता दीजिएगा |”


मैंने पिता की तरफ रूख किया | अमूमन उन्हें सवाल समझाने में तीन कोशिश करनी पड़ती है | लेकिन इस बार उन्होंने ‘सम-संख्या’ का ख्याल रखा | तीसरी बार जब मैं समझाने चला, तो उन्होंने टोक दिया कि मैं आपके सवाल को समझ चुका हूँ | बोले, “ देखिये हमारे घर बिजली १९८४ में आयी थी | उसी साल, जिस साल इंदिरा गांधी की हत्या हुयी थी | इंदिरा एक बहादुर नेता थी | उसने पाकिस्तान को नाकों चने चबवा दिया था | १९७१ में इसी इंदिरा गांधी के प्रयास से बांग्लादेश बना था | आज ये लोग क्या बात करेंगे | इंदिरा ने जो देश के लिए किया, वह दूसरा कोई नेता नहीं कर सकता |” मैं समझ गया ...| बचपन की स्मृतियाँ तुरत कौंधी | हमारे गाँव में जिस किसी के घर भी विवाह होता था, उसके दरवाजे पर ‘मथुरी तेली’ का वही लाउडस्पीकर आता था, जिसमें तवे जैसी चीज पर कैसेट रखा जाता था | उसी कैसेट के ऊपर सुई रख दी जाती थी, और वह बजता रहता | जब कैसेट घिस जाता, तो सुई फंस जाती, और वह लाउडस्पीकर एक ही पंक्ति को दुहराने लगता | एक बार ‘नाम’ फिल्म का ‘चिट्ठी आयी है’ वाला गाना बज रहा था कि, ‘मैं तो बाप हूँ, मेरा क्या है / तेरी माँ का ......’ | और तभी कैसेट फंस गया | जब उसने दस बार “तेरी माँ का ...तेरी माँ का” किया, तो बगल में ‘पूड़ी’ छान रहे ‘लालू हलुवाई’ से रहा नहीं गया, और उन्होंने उसे बंद करने के लिए कुछ भी समझ में नहीं आने के बाद बैटरी की चिमटी ही निकाल दी | बाद में उन्होंने बताया कि मैं जहाँ भी जाता हूँ, इसके लिए तैयार रहता हूँ कि अब ‘तेरी माँ का ...’ वाली पंक्ति आयेगी | तो आजकल पिताजी का कैसेट भी इसी तरह ‘इंदिरा गांधी’ पर फंस जाता है |


अंतिम उम्मीद के रूप में अब ‘माँ’ ही बची थी | मैंने सोचा, आजकल ‘माताओं’ की चर्चा भी बहुत है | कोई साड़ी भेज रहा है, कोई साल भेज रहा है | कोई एक सप्ताह में एक बार माँ से मिलने जा रहा है,तो कोई माँ के बुलावे पर ‘बनारस’ चुनाव लड़ने ही चला आ रहा है | फिर मैं तो ‘माँ’ के साथ ही रहता हूँ, इसलिए मुझे इसका उत्तर यहाँ से जरुर मिल जाएगा | माँ को प्रश्न समझाने में कुछ ख़ास मशक्कत नहीं करनी पड़ी | मैं जानता था, कि उनकी ‘समझाईश’ का सिरा कहाँ से पकड़ा जाता है | मैंने उनके ‘कक्षा -४ में मिले तमगों’ के बारे में बात आरम्भ की | उन्होंने निराश नहीं किया | कहने लगी, “ बिजली के बारे में भी बताउंगी | लेकिन पहले यह जान लीजिये कि वह ‘तगमा’ मुझे कैसे मिला था और कैसे खो गया | कक्षा चार में मैं सबसे अधिक नंबर पायी थी | तब उसी को प्राइमरी कहा जाता था | मुझे डिप्टी साहब ने ‘तगमा’ दिया था | मैं उसे हमेशा अपने पास रखती थी | एक दिन जब मैं अपने गाँव के तालाब में नहाने गयी थी, उसी दिन वह तालाब में गिर गया | उसके खोने का दुःख आज तक सालता रहता है |” आदत के मुताबिक़ मैने माँ को इस जीवन में सौंवीं बार समझाया कि ‘तगमा’ की जगह ‘तमगा’ सही शब्द है | लेकिन जैसे कि हर बार होता है, माँ ने मेरी समझाईश को ‘इस कान से सुनकर उस कान’ से निकाल दिया |


हां ...! तो बात बिजली आने की हो रही थी | वे बोली, “ मैं ये तो बता सकती हूँ कि १९८४ के कार्तिक महीने में हम लोगों के घर बिजली आयी थी | लेकिन वह कब रहती है और कब नहीं, मुझे इससे क्या मतलब ...? ‘समलबाई’ के कारण पंखे की हवा मुझे परेशान करती है, और टी.वी. मैं देखती नहीं | यदा-कदा देखने भी आती हूँ, तो यह समझ में नहीं आता कि जोधा-अकबर सीरियल में पगड़ी बाँधने वाली इतनी नाराज क्यों रहती है ...? माँ ने कुछ और बाते कहीं | जैसे कि ‘ जिस साल देश आजाद हुआ था, उसी साल मेरी शादी भी हुयी थी | शादी के एक साल बाद बड़ी भयंकर बाढ़ आयी, और हम लोगों का सारा घर-दुआर गंगा में समा गया | ‘मेरी माँ जी बताती थीं कि इससे पहले सन सोलह की बाढ़ में भी हम लोगों का घर-दुवार गंगा में चला गया था | मतलब इस जगह पर हम लोग १९४८ से रह रहे हैं |”


इन उत्तरों से आप कुछ समझें ....? नहीं .....? कोई बात नहीं .... मैं भी हार मानने वाले लोगों में से नहीं हूँ | मौक़ा लगाकर एक दिन बिजली विभाग के दफ्तर में जाऊंगा | उनके रिकार्ड्स चेक करूँगा कि किस दिन, किस महीने और किस वर्ष में हमारे क्षेत्र में चौबीस घंटे बिजली रही थी | जरुरत पड़ी, तो आर.टी.आई. दाखिल करूँगा | आखिर इस लोकतंत्र में जनता के हाथ में एक बड़ा हथियार जो है | मैं गजेटियर देखने की मांग करूँगा, लेकिन देश के सामने यह लाकर ही रहूँगा कि हमारे क्षेत्र में भी चौबीस घंटे बिजली रही है, और इस आधार पर भविष्य में उसके होने के प्रति आशान्वित रहा जा सकता है | वैसे बिजली विभाग में रिकार्ड्स खोजना कितना कठिन काम है, मैं जानता हूँ | लेकिन यह सोचकर थोड़ा इत्मीनान है कि मुझे 1940 के बाद के रिकार्ड्स ही देखने होंगे, क्योंकि उसी समय बलिया में बिजली आयी थी | सकारात्मक सोचने के इतने फायदे हैं, कि कुछ कहाँ नहीं जा सकता है | अब मान लीजिये कि बिजली का आविष्कार ‘ईसा काल’ के आसपास हुआ होता, तब तो हमें 2000 वर्षों का रिकार्ड्स खंगालना पड़ता | तो इस तरह से हम भाग्यशाली है कि सिर्फ साठ-सत्तर वर्षों के इतिहास में ही हमें इसका उत्तर मिल जाएगा |


मैं अपनी खोज में सफल हो जाऊं | साथ ही साथ मेरी सकारात्मक सोच भी बरक़रार रहे, यह दुआ कीजिए ......|  आमीन .................|



प्रस्तुतकर्ता

रामजी तिवारी
बलिया, उ.प्र


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