आज फिर अपनी दो कवितायें ..... पढ़िए और संभव हो
तो राय भी देते जाइए
रोशनी
धुँधला दिखाई देने
लगा है इन दिनों
रोज साफ करता हूँ
चश्में को
धोता हूँ आखों को
साफ पानी से
इतनी गर्द कहाँ से
जम जाती है
पता नहीं
हर समय लगता है
आँखों में कुछ पड़
गया है |
कल डाक्टर के पास
गया था
व्यक्त की थी मैंने
साफ-साफ देखने की
ईच्छा
रौनक थी उसके चेहरे
पर
“कुछ ही बचे हैं
साफ-साफ देखने की
ईच्छा रखने वाले
लोग तो इतने अभ्यस्त
हो चुके हैं
धुँधला देखने के
कि वे जानते ही नहीं
कि चीजें साफ-साफ
भी दिखाई दे सकती है
और इसी तरह एक दिन
धुँधला देखते-देखते
वे अपनी रोशनी खो
देते हैं ” |
‘कोई तो दवा होगी ?’
पूछा था मैंने
वो मुस्कराया
“रेत में तड़पती हुयी
मछलियाँ
सिर्फ दवाओं के बल
पर
जिन्दा नहीं रह सकतीं
अपनी आँखों में
थोड़ा पानी बचाकर रखो
पुतलियों को जिन्दा
रखने के साथ-साथ
धूल-गर्द साफ करने
में भी
आसानी होती है।
दो ....
रास्ते
‘एक’
तब सीधे होते थे रास्ते
गंतव्य तक
पहुँचने के वास्ते ,
आप मंजिल बताते
तुरत ही मंजिल का
पता पाते |
कभी कभी तो ऐसे
भी मंजर आते
यह आदमी कहाँ
जाएगा
आपके रास्ते को
देखकर ही लोग जान जाते |
‘दो’
अब रास्ते क्या हैं
चौराहों का जाल
किसी भी मोंड़ पर भ्रम
हुआ
तो मन्दिर की जगह
शमशान की कपाल |
‘तीन’
हम रास्ते बनाते हैं
या वे हमें
हम इन पर चलते हैं
या वे हमारे भीतर
मिली है इतनी जगह
या छोड़ी है हमने यही।
‘चार’
अपने बनाए रास्ते
अपने होते हैं
आँधी आये या तूफान
वे नहीं भूलते
पानी नाक तक भी आ
जाए
पहुँच ही जाते हैं
हम
किनारों पर |
‘पाँच’
रास्ते भी रखते हैं
आस्तीनों में भूल
भूलैया
जिसमें भटकते हुए
इतना थक जाए
कि मंजिल तक पहुँचने
की लालसा
ही जाती रहे
या यही भूल जाए
कि हमें जाना कहाँ
है।
‘छः’
रास्ता तो वह है
जो कहीं जाता भी हो।
परिचय और संपर्क
रामजी तिवारी
बलिया , उ.प्र.
मो.न.
09450546312
कम ही लोग रह गहे है साफ -साफ देखने वाले और साफ -साफ कहने वाले |कवि की चिंता जायज है|
जवाब देंहटाएंहाँ,
जवाब देंहटाएंइन कविताओं में
कविता का जाता हुआ रास्ता है,
जो सीधे अपने पाठकों के पास जा रहा है।
बधाई।
aankho ki pani bachaye rakhana sach bahut jaruri hai......sarthak rachna..
जवाब देंहटाएंoh,rasta apna banaya hi kam deta hai.rukta nahi,uljhta nahi...har shabd bejod..
जवाब देंहटाएंbahut khub Ramji bhai, bas aapne images ko aankhon mein uttar diyaa. itanaa majaa aa gayaa ki aaj Niralaa ji ko aur Tagore ko nahi padhungaa, ye taste , ye shiddat se likhi gai ibarat ko barakaraar rakhnaa hai.
जवाब देंहटाएंआँख से साफ़ साफ़ दिखाई दे ......पर कितना.आप देख भी पायेंगे ?? कविता सीधे साफ़ दिल को छूती सी निकल गई..............और रास्ते एक... दो.... तीन ..जितने भी दिखाए आपने ...सभी पहचाने हुए से लगे...अच्छी कविता के लिए बधाई राम जी भाई
जवाब देंहटाएंरामजी भाई, बहुत सुन्दर कविताएँ हैं. ..अपनी आँखों में थोडा पानी बचाकर रखो.., यह आदमी कहाँ जायेगा आपके रास्ते को देखकर ही लोग बता देते ...बहुत सरल शब्दों में बहुत सार्थक बात कहने का आपका अंदाज पसंद आया.
जवाब देंहटाएंAcchi kavitayen.
जवाब देंहटाएंदोनों कविताएँ अच्छी लगीं. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ. सिताब दियारा का मतलब क्या होता है.
जवाब देंहटाएंगोविन्द जी ..... सिताब दियारा स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण के गाँव का नाम है ...यह उत्तर-प्रदेश के बलिया जिले में स्थित है | इसी गाँव के नाम पर इस ब्लॉग का नाम रखा गया है |
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