आज दो अपनी
कविताएं
एक
....
शिशु
खारिज
(जर्मन पादरी
पास्टर निमोलर को याद करते हुए)
सबसे पहले वे
मेरी कविता के
लिए आये ,
यह सोचकर कि कोई आत्ममुग्ध ना कह दे
मैंने आदर किया
उनके लिए आसन भी
बिछाए |
फिर वे
कविता की विधा के
लिए आये ,
मैं एक खारिज
आदमी
उन्हें रोकने में कितना दाखिल हो सकता था
कोई मुझे
बतलाये ?
और फिर
उनके हाथों का
खारिजी फन्दा
साहित्य की गर्दन
पर कसता रहा ,
मैं बेबस सिवान
बदर
डँड़ार पर खड़ा
पैमाईश देखता रहा |
अब काम पूरा हुआ
समझना
मेरी भूल थी ,
उनके खारिजी
अश्वमेघ का घोड़ा
सारी रचनात्मक विधाओं
को
एक-एक कर रौंदता
रहा
चहुंदिस गुबार था
, धूल थी |
सोचता हूँ
उस ‘शिशु खारिज’ के सामने
तन कर खड़ा हो गया होता ,
तो उसी पल उसी जगह
वही खारिज हो गया
होता |
दो ....
अर्जी
पूछते हैं टालस्टाय -
‘एक आदमी को आखिर कितनी
जमीन चाहिए’ ,
कहते हैं सिकंदर –
‘मुट्ठियाँ खाली हों
मछलियों की उल्टी हुयी
आँखों जैसी
अंतिम यात्रा तो इतनी हसीन
चाहिए’ |
बताता है इतिहास हमें –
जो चाल के नरक में घिसटते
हैं आज
उन मुगलों के पूर्वज
कभी सम्पूर्ण भारत के स्वामी
थे ,
और
दफ़न हैं इतिहास की कब्र में
वे सब के सब
जिनका सूरज सदा चमकता था
जो दुनिया से भराते पानी थे
|
अपने साथियों द्वारा दिए
इन उदाहरणों पर वे
तनिक सोचते हैं , मुस्कुराते
हैं,
और मन ही मन बुदबुदाते हैं |
‘आदमी को अटल रहना चाहिए
अपने निर्णयों पर
मैं इनके हाथ नहीं आऊंगा ,
क्योंकि यदि भविष्य में
सब कुछ ऊपर ले जा सकने वाली
अर्जी
मंजूर हो गयी
तब तो मैं भी इन मूर्खों
जैसा
हाथ मलता रह जाऊँगा |’
परिचय और संपर्क
रामजी तिवारी
बलिया ,
उ.प्र
मो.न.
09450546312
साहित्यिक माहौल और आज के जीवन की सच्चाई को दर्शाने वाली गंभीर कवितायेँ. महापुरुषों की उक्तियों के निहितार्थ की नयी व्याख्या कविता को मौलिक स्वर प्रदान करती है. दोनों कवितायेँ सहज और सामाजिक सरोकार वाली हैं.
जवाब देंहटाएंकविता को नए संदर्भों में देखने की दृष्टि पैदा करने वाली कविताएं !
जवाब देंहटाएंजब तक आप जैसे 'सिरों 'वाले मौजूद हैं साहित्य का अंत संभव ही नहीं है !
gajab ki kavitaen.
जवाब देंहटाएंव्यंग्य की धार बनी रहे... और विरोध भी...
जवाब देंहटाएंbahut jaruri kavita hai Shishu kharij....
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