मंगलवार, 10 जनवरी 2012

अनहद ....समकालीन सृजन का समवेत नाद




साहित्य को गतिशील बनाये रखने और उसे समाज के बड़े तबके तक पहुँचाने में लघु पत्रिकाओं कि भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है | हिंदी सहित भारत की  अन्य भाषाओं में इनका स्वर्णिम इतिहास उपरोक्त तथ्य की गवाही देता है | इन पत्रिकाओं में एक तरफ जहाँ साहित्य कि मुख्य विधाएं फली-फूली और विकसित हुयी है , वही उसकी गौड़ विधाओं  को भी पर्याप्त आदर और सम्मान मिला है | इनकी बहसों ने तो सदा ही रचनात्मकता के नए मानदंड और प्रतिमान स्थापित किये हैं | हिंदी में इन लघु पत्रिकाओं का लगभग सौ सालो का इतिहास हमें गर्व करने के बहुत सारे  अवसर उपलब्ध करता है |

इन पत्रिकाओं का वर्तमान परिदृश्य दो विपरीत ध्रुवों पर खड़ा नजर आता है | एक तरफ तो इस पूरे आंदोलन पर प्रश्न-चिन्ह खड़ा किया जा रहा है , वहीँ दूसरी ओर इन पत्रिकाओं की भारी उपस्थिति और उनमे गुड़वत्ता की  दृष्टि से रचे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य को भी स्वीकार्यता मिल रही  है | पत्रिकाएं प्रतिष्ठानों तक ही सीमित नहीं रही, वरन  व्यक्तिगत एवम सामूहिक प्रयासों तक भी फैलती चली गयी हैं | आज हिंदी में सौ से अधिक लघु पत्रिकाएं  निकलती हैं | मासिक, द्वी-मासिक , त्रय-मासिक और अनियतकालीन आवृत्ति के साथ उन्होंने साहित्यिक परिदृश्य की  जीवंतता बरक़रार रखी हैं | अनहद ऐसी ही एक साहित्यिक लघु पत्रिका है |

युवा कवि संतोष चतुर्वेदी के संपादन में इलाहाबाद से निकलने वाली इस पत्रिका का दूसरा अंक हमारे सामने है | इस अंक को देखकर यह कहा जा सकता है कि अनहद ने प्रवेशांक की  सफलता को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए अपने ही प्रतिमानों को और ऊपर उठाया है | लगभग 350 पृष्ठों की इस पत्रिका का यह अंक वैसे तो एक साल के लंबे अंतराल पर प्रकाशित हुआ है , लेकिन उसकी भारी भरकम सामग्री ( गुड़वत्ता और मात्रा दोनों ही स्तरों पर ) और संपादक के व्यक्तिगत प्रयासों को देखते हुए यह तनिक भी अखरता नहीं है |यह पत्रिका हर प्रकार से बहु-आयामी कही जा सकती है |इसमें एक तरफ नए-पुराने साहित्यकारों का संगम है , वही दूसरी ओर साहित्य की  मुख्य और गौड़ विधाओं का विपुल साहित्य भंडार भी|

अनहद पत्रिका की  एक बानगी को यहाँ पर देखना समीचीन होगा | स्मरण स्तंभ में दो महान विभूतियों भीमसेन जोशी और कमला प्रसाद को गहराई के साथ नए-पुराने साथियों ने याद किया है | भीमसेन जोशी पर जहाँ विश्वनाथ त्रिपाठी और मंगलेश डबराल ने लिखा है , वहीँ कमला प्रसाद पर भगवत रावत, कुमार अम्बुज और उमाशंकर चौधरी ने अपनी लेखनी चलायी है| प.किशोरीलाल को याद करते हुए प्रदीप सक्सेना ने अदभुत स्मरण लेख लिखा है | हम चंद्रकांत देवताले की डायरी का आनंद उठाते है |फिर हमारे सामने राजेश जोशी अपनी पांच कविताओं के साथ उपस्थित होते हैं |आगे चलकर हमें भगवत रावत की  झकझोर देने वाली कविता का  दीदार होता है |इसी खंड में परमानन्द श्रीवास्तव ,केशव तिवारी और सुबोध शुक्ल ने भगवत रावत की कविताओं से हमारा बेहतरीन परिचय भी कराया है | हमारे समय के कवि शीर्षक में पांच युवा कवियों देवेन्द्र आर्य , अरुण देव , सुरेश सेन निशांत , अशोक कुमार पाण्डेय और शिरोमणि महतो को स्थान मिला है |

पत्रिका इन महत्वपूर्ण रचनाओं के सहारे तब अपनी ऊँचाई पर पहुंचती है , जब शताब्दी वर्ष शीर्षक के अन्तर्गत नागार्जुन के साहित्य और व्यक्तित्व को विभिन्न कोणों से जांचा-परखा जाता है | शेखर जोशी , शिव कुमार मिश्र , जवरीमल पारेख ,राजेंद्र कुमार , बलराज पाण्डेय, कमलेश दत्त त्रिपाठी , प्रफुल्ल कोलख्यान , कृष्ण मोहन झा , कर्मेंदु शिशिर , बलभद्र, वाचस्पति और उनके पुत्र शोभाकांत ने उस पर इतनी रोशनी डाली है ,कि बाबा का साहित्य और व्यक्तित्व हमारे सामने सम्पूर्णता में चमक उठा है | फिर विशेष लेख शीर्षक के तहत चित्रकार-लेखक अशोक भौमिक ने महान चित्रकार जैनुल आबेदीन को जिस संजीदगी से जांचा-परखा है , वह कमाल का है |पत्रिका में जैनुल के बनाये 35 चित्र भी उकेरे गए है , जो हर तरह से विलक्षण है |इसी ऊँचाई पर संजय जोशी और मनोज सिंह ने प्रतिरोध के सिनेमा की आहटें शीर्षक से एक लेख लिखा है | ज.स.म. की इकाई के रूप में 2005 गठित प्रतिरोध का सिनेमा आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है |

 
पत्रिका में दिनेश कर्नाटक, सुमन कुमार सिंह , विजय गौड़ और कविता की चार कहानियां भी पढ़ी जा सकती हैं | नवलेखन विमर्श में खगेन्द्र ठाकुर ने समकालीन कविता की पड़ताल की है, तो सरयू प्रसाद मिश्र ने नयी पीढ़ी के नए उपन्यासों को जांचा-परखा है | राकेश बिहारी कहानियों में डूबकर सार्थक टटोल रहे हैं, तो भरत प्रसाद आलोचना के प्रतिमानों के बीच खड़े है | यहाँ प्रख्यात आलोचक मधुरेश द्वारा शताब्दी के पहले दशक के उपन्यासों का किया गया मूल्यांकन विशेष महत्व का बन पड़ा है | कसौटी शीर्षक में किताबों की समीक्षा है , जिसमे हरिश्चंद्र पाण्डेय , मधुरेश, वैभव सिंह , अमीर चंद वैश्य , अभिषेक शर्मा, अनामिका , रघुवंश मणि , महेश चंद्र पुनेठा, आत्मरंजन , विमल चंद्र पाण्डेय, अरुण आदित्य , और रामजी तिवारी ने अपने अंदाज में हमारे दौर की 12 महत्वपूर्ण पुस्तकों से हमारा परिचय कराया है |

इस परिचय को पाकर आप स्वयं यह तय कर सकते है कि बिना किसी प्रतिष्ठान से जुड़े संतोष चतुर्वेदी के अनथक प्रयास ने अनहद के दूसरे अंक को किस  ऊँचाई पर स्थापित किया है |अब साहित्य प्रेमी मित्र/पाठक होने के नाते हम सबका यह कर्तव्य बनता है कि हम अनहद के इस गंभीर प्रयास को  मुक्तकंठ से सराहें/स्वागत करें | जाहिर तौर पर लघु-पत्रिकाओ का भविष्य इन व्यक्तिगत प्रयासों को सामूहिक प्रयासों में तब्दील करके ही संवारा जा सकता है

                                प्रस्तुतकर्ता - रामजी तिवारी 
 अनहद                            बलिया , उ.प्र.
वर्ष-2, अंक-2
मूल्य रु-80  
                                          

3 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई. इस अंक पर से जितना पर्दा उठा है, उतने ही ने पढ़ने की उत्सुकता जगा दी है. शुभकामनाएं.

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  2. पत्रिका का स्वागत और संतोष जी को बहुत-बहुत बधाई...

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  3. अनहद के बारे में अपने मित्र आरसी चौहान जी से सुना है , अभी पढ़ने -देखने का सौभाग्य नहीं मिला , उत्सुकता हद से ज्यादा है !

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