वे जब भी क्रिकेट -क्रिकेट चिल्लाते हैं
हमें देश-देश क्यों सुनाई देता है ..?
एक कवि-मित्र की इन पंक्तियों से अपनी बात आरम्भ करना चाहता हूँ | कल भारत -आस्ट्रेलिया टेस्ट श्रृंखला अपने चिर -परिचित परिणाम के साथ समाप्त हो गई | देश के क्रिकेट प्रेमियों का दिल टूटा हुआ है | उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा |टी.वी.चैनलों पर थोक के भाव मौजूद क्रिकेट-विश्लेषकों के होठों पर फेफरी पड़ी हुयी है | चेहरे पर उडती हवाईयों के मध्य चट्टी-चौराहों ,गलियों-बाजारों और स्कूलों-कार्यालयों सहित क्रिकेट प्रेमियों के बीच हर कहीं उदासी पसरी हुयी है | इतनी महत्वपूर्ण श्रृंखला के चलते होने के बावजूद भी कोई किसी से क्रिकेट पर बात नहीं करना चाहता | अगल-बगल से वे टीम के घुटने टेक प्रदर्शन की जानकारियां तो लेते हैं , लेकिन जैसे ही कोई उस पर बात करने की कोशिश करता है , वे मुँह फेरते हुए उसे चुप करा देते हैं | उनका दुःख इतना भारी है कि वे उसकी तरफ देख कर ही दहल जाते हैं कि मैं इसे कैसे उठाऊंगा | ऐसी घड़ी में मैं उन सबका दिल नहीं दुखाना चाहता | हम सब जानते हैं कि खेल में अच्छा और बुरा दौर आता रहता है और दुनिया में कोई भी टीम ऐसी नहीं रही , जिसने उतार -चढाव नहीं देखा हो | वर्ष 2011 में इसी टीम ने जब विश्व कप क्रिकेट का ख़िताब जीता था, तब रात के ग्यारह बजे की आतिशबाजी और जश्न ने पुरे देश को सराबोर कर दिया था | हम उन अच्छे दिनों में भी टीम के साथ थे और आज भी उनके साथ खड़े होना चाहते हैं ,लेकिन मन में कुछ ऐसे सवाल तो उठ ही रहे है, जिसे इस देश के खेल-प्रेमियों की तरफ से मैं अपनी टीम से पूछना चाहता हूँ | कि क्या यह प्रेम और समर्थन एकतरफा ही चलता रहेगा ? क्या इस टीम की यह जिम्मेदारी नहीं कि वह अपने अच्छे दिनों में हम आम देशवासियों का साथ दे ?
हमें देश-देश क्यों सुनाई देता है ..?
एक कवि-मित्र की इन पंक्तियों से अपनी बात आरम्भ करना चाहता हूँ | कल भारत -आस्ट्रेलिया टेस्ट श्रृंखला अपने चिर -परिचित परिणाम के साथ समाप्त हो गई | देश के क्रिकेट प्रेमियों का दिल टूटा हुआ है | उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा |टी.वी.चैनलों पर थोक के भाव मौजूद क्रिकेट-विश्लेषकों के होठों पर फेफरी पड़ी हुयी है | चेहरे पर उडती हवाईयों के मध्य चट्टी-चौराहों ,गलियों-बाजारों और स्कूलों-कार्यालयों सहित क्रिकेट प्रेमियों के बीच हर कहीं उदासी पसरी हुयी है | इतनी महत्वपूर्ण श्रृंखला के चलते होने के बावजूद भी कोई किसी से क्रिकेट पर बात नहीं करना चाहता | अगल-बगल से वे टीम के घुटने टेक प्रदर्शन की जानकारियां तो लेते हैं , लेकिन जैसे ही कोई उस पर बात करने की कोशिश करता है , वे मुँह फेरते हुए उसे चुप करा देते हैं | उनका दुःख इतना भारी है कि वे उसकी तरफ देख कर ही दहल जाते हैं कि मैं इसे कैसे उठाऊंगा | ऐसी घड़ी में मैं उन सबका दिल नहीं दुखाना चाहता | हम सब जानते हैं कि खेल में अच्छा और बुरा दौर आता रहता है और दुनिया में कोई भी टीम ऐसी नहीं रही , जिसने उतार -चढाव नहीं देखा हो | वर्ष 2011 में इसी टीम ने जब विश्व कप क्रिकेट का ख़िताब जीता था, तब रात के ग्यारह बजे की आतिशबाजी और जश्न ने पुरे देश को सराबोर कर दिया था | हम उन अच्छे दिनों में भी टीम के साथ थे और आज भी उनके साथ खड़े होना चाहते हैं ,लेकिन मन में कुछ ऐसे सवाल तो उठ ही रहे है, जिसे इस देश के खेल-प्रेमियों की तरफ से मैं अपनी टीम से पूछना चाहता हूँ | कि क्या यह प्रेम और समर्थन एकतरफा ही चलता रहेगा ? क्या इस टीम की यह जिम्मेदारी नहीं कि वह अपने अच्छे दिनों में हम आम देशवासियों का साथ दे ?
आज हमसे कहा जाता है कि टीम के इस बुरे दौर में उन्हें हमारे समर्थन की सख्त आवश्यकता है , तो हमें यह सवाल उनसे नहीं पूछना चाहिए कि अपने अच्छे दौर में वे क्यों माल्या , अम्बानी , जिंटा , और खान जैसे बाजीगरों के पताकों को थामे घूमने लगते हैं ? महान लेखक तोलस्ताय के इस सवाल के तर्ज पर कि "एक आदमी को आखिर कितनी जमीन चाहिए ?" , उनसे यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि एक आदमी को आखिर कितना पैसा चाहिए ? | बी.सी.सी.आई. द्वारा प्रति वर्ष लाखों-करोड़ों देने के बाद भी उन्हें इस देश की बृहत्तर जनता के हित में अनैतिक प्रचारो से अपने आप को नहीं हटा लेना चाहिए ? क्या वे यह नहीं जानते कि कोक और पेप्सी सरीखे उत्पाद इस देश को बर्बाद करते जा रहे हैं | जब हम उन्हें प्यार से पलकों पर बिठाते है, तब वे हमारे जेब की बची-खुची चवन्नी को भी हमसे छीनकर कारपोरेट घरानों की तिजोरियों में क्यों जमा कर आते हैं ? वे प्रत्येक जीत के बाद आतताईयों के कंधे पर सवार होकर हमें ही रौंदने पर क्यों उतारू हो जाते हैं ? क्या उस जीत के समय वे हमारे साथ खड़े नहीं हो सकते , जिस तरह आज हमसे अपनी हार पर साथ खड़े होने की अपील कर रहे हैं....?..
क्रिकेट दरअसल आज सिर्फ एक खेल नहीं रह गया है | वह एक बाजार है , जिसे हमारे दौर की बहुराष्ट्रीय कम्पनियां नियंत्रित और संचालित करती हैं | वह एक ऐसा सुरसा बन गया है ,जो न सिर्फ अन्य सारे खेलों को लीलता चला जा रहा है, वरन उसके निशाने पर इस देश का मेहनतकश अवाम भी है , जो अपनी गाढ़ी कमाई से आज किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहा है | इसलिए आज जब वे मुंह के बल गिरे हैं , तो हम क्यों नहीं माने कि हमारे जेब की चवन्नी सलामत बच गई...? हमारे इसी देश में फुटबाल, हाकी, तैराकी , बालीबाल, बास्केटबाल, तीरंदाजी ,कबड्डी और एथेलेटिक्स अन्य खेलों की कभी धूम हुआ करती थी | इन्हें शारीरिक और मानसिक विकास के साथ–साथ स्वस्थ प्रतियोगितात्मक वातावरण के लिए आवश्यक माना जाता था | ये बहुरंगी खेल हमारी सतरंगी सामाजिक विरासत के प्रतीक भी हुआ करते थे | आज क्रिकेट के इस बाजार ने खेल के स्तर पर इस देश को भी एकरंगी और पैसा कमाने के बाजार के रूप में तब्दील कर दिया है | क्रिकेट संघों पर वे लोग काबिज हैं , जो क्रिकेट छोड़ दूसरा ही खेल खेलने के माहिर हैं | वे इस खेल को मैदान के भीतर नहीं , वरन बाहर खेल रहे हैं , जिसे समझने के लिए सिर्फ क्रिकेट विशेषज्ञ होना पर्याप्त नहीं है | उन सबके लिए यह कामधेनु गाय बन गया है , जिसका वे दूध ही नहीं , वरन खून भी चूस लेना चाहते हैं | वे देश के लिए जब खेलते ही नहीं तो देश से समर्थन किसलिए माँग रहे हैं | देश हार तो बर्दाश्त कर सकता है , बशर्ते उसके लिए कोई खेले तो ...|
सो , मित्रों ...! इस हार को दिल से मत लगाईये .....यह हमारे और आपके दुखी होने का समय नहीं है ..|यह समय है उन लोगो के मुँह के बल गिरने का , जिनके लिए ये सितारे अश्वमेधी घोड़े बने हुए हैं | आज खेल नहीं , उसका बाज़ार हारा है | इसलिए देश को नहीं , उसके बाजार को ही दुखी भी होना चाहिए ...|.....फिर भी आप उन्हें चाहें तो समर्थन दे सकते हैं | बस उन सितारों से इतना पूछ लीजियेगा , कि अपने अच्छे दिनों में वे आपका साथ देंगे या बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कारपोरेट घरानों का ..?....
रामजी तिवारी
रामजी भाई, कबीर का एक दोहा याद आ रहा है-
जवाब देंहटाएंदुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय.
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहें होय.
हमारे क्रिकेट टीम की भी यही विडम्बना है. अब उन्हें सबके समर्थन सहयोग की दरकार है.जीत के क्षणों में वे इतने नशे में होते हैं की उन्हें न तो किसी की दरकार होती है न ही कोई उन्हें याद ही आता है. उनकी बड़ी बड़ी हवेलिया, महँगी महँगी कारें, उनकी धन लोलुपता आखिर किस प्रतिबद्धता को दर्शाती है?लेकिन मुक्तिबोध के शब्दों में जनता को अपने प्रिय खिलाड़ियों से यह पूछने का हक़ तो है ही -'तुम्हारी पालिटिक्स क्या है पार्टनर?' हमारे खिलाड़ियों के खेल में आज कहीं प्रतिबद्धता का किंचित अंश भी दिखाई पड़ता है क्या?
बेहतर आलेख के लिए बधाई. santosh chaturvedi
Yedi aap Bhartia cricket team ka hissa hote to desh ke liye kya karte??????
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