आज सिताब दियारा ब्लॉग पर सोनी पाण्डेय की कहानी
=== परिवर्तन ===
आसमान काले मेघोँ से पट गया
था . बारिश किसी भी वक्त शुरु हो
सकती थी ।
मैँ तेजी से कदम बढाते हुए
किसी तरह मुख्य मार्ग तक पहुँचना चाहती थी .
अचानक किसी ने पीछे से आवाज
दी . . . .... मैडम जी....।
मैँने पीछे मुड
कर देखा तो लक्ष्मीना भागी आ रही थी. हल्की फुहारे पडने
लगी, मैँने छाता खोल
लिया । वह हाँफती हुयी मेरे निकट पहुँच चुकी थी ,
झट से छाते के नीचे आते हुए
मेरा हाथ जोर से पकड लिया . भरभराऐ हुए गले
से कहा - मैडम जी अब आपे बचा सकती
हैँ ।
क्या हुआ ? मैँने आश्चर्य
से पूछा । मैडम जी तहसीलदार को दरखास डालनी है,
हमारा सबसे अच्छा रोड पर
खेत परधान अपने चक मेँ ले गया , बुढिया कुछ करती
नहीँ ,घर के दुनोँ मरद
बेकार , उनका होना न
होना दोनोँ बराबर है । आँचल
के कोर से बार -बार आँसू पोँछती , मैँने ढांढस बधाया । मैडम जी मरद घर
मेँ चुडी पहने परधान के डर
से बैठा है. आपे बताऐँ हम क्या करेँ , खेत हाथ
से निकले जाता है , लेखपाल परधान की
परती हमेँ थोपता है । वो काफी बेचैन
थी , बडी दृढता से
कहा - मैडम जी हार नहीँ मानुँगी . जो बन पडेगा आखिरी
दम तक करुँगी । अब तक हम एक
किलोमीटर का पैदल रास्ता पार कर मुख्य मार्ग
तक पहुँचुके थे । हम आटो
मेँ बैठ अपने - अपने गनत्व्य को रवाना हुऐ और
बात आयी गयी, मैँ भूल गयी ।
दो माह बाद
विद्यालय के गेट पर देखा तो लक्ष्मीना की सास माथा धुन धुन रो
रही थी । पूछने पर एक
ग्रामीण वृद्धा ने मुँह बिचका कर कहा . भ ईल का
कलजुग मेँ पतोह सास के मारत
हयीँ बहिन जी । जन समूह की सहानुभूति सास के
साथ थी , सभी बहू को
धिक्कार रहे थे । मैँ भीड से कटकर आगे बढी ,ये इनके
आये दिन की कहानी थी अन्तर
आज केवल इतना था आज बहू की जगह सास पिटी थी ।
आगे बढते ही लक्ष्मीना
सामने पड गयी . तमक कर बोली - जिनगी भर हमके थुरली
तौ . तौ त केहू ना आईल , आज मजलिस लागल ह ।
क्रोध मेँ
हाँफते आज वह साक्षात रणचण्डी बनी थी . मैँने चुपचाप हटना उचित समझा ।
अगले दिन विद्यालय के नल पर
लक्ष्मीना नित्य की भाँति पानी लेने आयी ,
मेरी कक्षा गर्मी के कारण
वहीँ आम के पेड के नीचे लगी थी , वह बाल्टी
छोडकर मेरे कुर्सी के पास
आकर बैठ गयी, आँखोँ मेँ
अपराधबोध का भाव स्पष्ट
था ।कुछ देर चुप रहने के
बाद बोली -मैडम जी का करेँ, बुढिया मानती ही
नहीँ, घूम घूम कर कहती
है , लेखपलवा नचा रहा
है ,रण्डी हो गयी है
.
हाकिमोँ संग सो रही है ।
मैँने बात को
काटते हुए पूछा - तुम्हारे खेत का क्या हुआ ?
लक्ष्मीना ने
मुस्कुराते हुए कहा - मैडम जी तहसीलदार साहब के दखल से
परधान की दाल नहीँ गली
।लेखपाल पीछे हट गया । ज़मीन पुरखोँ से हमारी है .
कागज पत्तर देखकर साहेब
बहुत डांटे लेखपाल को ।बर्खासगी को कहते थे .
लेखपाल की हिक्की पिक्की
हेरायी थी । मैडम जी बहुत दौडी तहसील से लेके
जिला तक , इधर परधान दिन
रात बुढिया का कान भरता था - एक दिन छानी मेँ से
सुने थे - कहता था ढेला की माई . अईसे हाकिम लोग सुनते हैँ . अरे कुछ
देती होगी तब कुछ लेती होगी
ससुरी ।
मैनेँ फिर टोका
बाद मेँ बात
करुँगीँ , अभी कुछ पढा लूँ
। वह अनमनी सी उठ कर पानी लेकर
चली गयी । मुझे लगा वह अभी
भी कुछ कहने को बेचैन है ।
छुट्टी मेँ मेरे
गेट से निकलते ही भागती हुई आके मुझे छेँक लिया , उसकी
आँखोँ मेँ कुछ कहने की
आतुरता थी । मैँने मुस्कुराते हुए कहा , अब क्या
हुआ ।
मेरा हाथ पकड कर
अपनी चाय की दुकान जो स्कूल के बाहर मडयी मेँ चलती थी
लेगयी । चौकी पर बिठाते हुए
बडे प्यार से एक चुक्कड चाय केतली से ढारते
हुए बडे स्थिर मन से बोली - का करेँ मैडम जी , मरद को दिन भर पीने से
फुर्सत नहीँ ,ससुर दिन रात
चम्पावा के चकले पर . अब आप ही बताऐँ चार चार
बच्चोँ को भूखा मरते . हक मराते तो नहीँ देख सकती
ह मैडम जी । आँखोँ से
आँसू बह चले थे . मेरा मन भर आया । हाँ हमने
किया है बहत्तर करम अपने जाऐ
के लिए । जिसको जो कहना है
कह ले परवा नहीँ ।पल्लु सम्भालती हुई चाय का
भगोना आग पर चढाने लगी ।
मेरे हाथ मेँ खाली चुक्कड अभी भी था , उसकी
साफगोई पर मैँ मुग्ध उसे एक
टक निहारती रही । मेरे हाथ से चुक्कड लेकर
फेंकते वक्त वो मुस्कुरा
रही थी ।
जाडे की आहट से
गाँव का सिवान सिमट रहा था । किसान खेतोँ से लौट रहे थे ,
उसकी बातोँ मेँ समय का खयाल
ही नहीँ रहा । मैँ तेज कदमोँ से चली जा रही
थी . वो पीछे खडी मुझे निहार रही थी . अचानक मैँने पीछे मुडकर आज फिर
देखा , वो दूर से हाथ
हिला रही थी . मैँने मन ही मन एक माँ की जिवटता को सलाम किया ।अब
वो केवल एक माँ थी ।
परिचय और संपर्क
डा. सोनी पाण्डेय
जन्मस्थान –
मऊनाथ भंजन, उत्तर प्रदेश
पेशा – अध्यापन
साहित्यिक
पत्रिका ‘गाथांतर’ का संपादन
एक माँ के धनक को बयां करती कहानी बहुत पसंद आई। डॉक्टर सोनी पाण्डेय को बहुत बधाई। यूँही दिखाती रहिये समाज का आईना 😊
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