प्रस्तुत
है सिताब दियारा ब्लॉग पर अमरपाल सिंह आयुष्कर की कवितायें
एक
बतासे
कहाँ गए बतासे
चासनी उतार गए तरासे ...कहाँ गए
बतासे
गुस्साई गर्मी मे पानी डुबाके..
कितना स्वाद बिछाते .....कहाँ गए बतासे ....
अभी - अभी पता चला है, बतासे कम बनते हैं
अब
बनते भी हैं तो सस्ते हो गए हैं अब ....
रिश्तों की मिठास की तरह ..
सुना है अब सस्ती चीजें खाने से शरमाते हैं लोग .....
इसीलिए तो बतासे लेकर आने वाले मेहमानों से, कतराते हैं लोग ....
दो ....
सुखिया की डोली
सुखिया कंहार अब नहीं उठाता डोली
दिन भर सर टिकाये छड़ी- सा
टिका रहता है दीवार के सहारे
मोटर -कारें दौड़ने लगी हैं
उसके पेट पर ,पीठ पर
उतरने लगीं हैं बहुएं ,
ऊँची हील की चप्पलों के साथ ,देवथान पर
रखी है डोली आज भी
घर के सबसे अँधेरे कमरे मे ,
सीलन और दीमक के बीच
सुखिया निहार लेता कभी -कभी डोली को
गा लेता कोई लोकगीत
विवाह का ,
सूखती लकड़ी जैसी बाँहों को मोड़ता ,
डोली उठाने की शक्ल मे ...
बार –बार
मांगता खुले आसमान से दुआएं .....
कब डोली लेके आएगा कंहार
तीन ...
रिश्ते
इस तरह हम रिश्तों को जी लेतें हैं
एक दो मिस्स्ड काल ,या मेसेज
फेसबुक पर तस्वीरों को लाइक कर देतें हैं ....
पुराने एलबम से चिपकी नम तस्वीरें निकाल बाहर
पलों को जबरन लौटाने की कोशिश
और फिर खट्टी- मीठी यादों को देख ...
तस्वीरों से बतिया लेतें हैं ..
बहुत दिनों बाद मिले कहो कैसे हो ?
मोटे हो गए हो थोड़े से
कोई जरूरी काम तो नहीं
अगर समय हो तो
कोई उनीदी - सी शाम बैठे -बिठाये दो कप चाय मे
सदियों की मिठास भर
लेते
इस तरह हम
........................................................
जब भी चलता जिक्र कहीं रिश्तों का
नम आँखों से मुस्कुरा खूबसूरत रिश्तों को ,पुचकार
हम भी
कहकहों मे शामिल हो
लेते हैं ...........................
इस तरह हम .....रिश्तों को जी लेते हैं .....
परिचय
और संपर्क
अमरपाल
सिंह आयुष्कर
जन्म
:१ मार्च १९८०
ग्राम
खेमीपुर,नवाबगंज जिला गोंडा ,उत्तर - प्रदेश
कुछ पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं
प्रकाशित
alag andaaz kii shandar kavitayein
जवाब देंहटाएंअंदर तक छूती हैं आपकी कविताएँ......बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वंदना जी
हटाएंबेहतरीन कविता...
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