पंखुरी
सिन्हा को आप पहले भी सिताब दियारा ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं । इस बार उनकी कवितायें
हमें 'पेड़ और पक्षियों' की दुनिया
में ले जा रही हैं । एक ऐसी दुनिया, जो हमारी
सहोदर तो है । जो बहुत कुछ जानी-पहचानी भी है । लेकिन इन सबसे अधिक रहस्यमयी और
अनजानी भी है .... |
            तो आईये पढ़ते हैं सिताब दियारा
ब्लॉग पर 
                 पंखुरी सिन्हा की कवितायें
1...  पेड़ों से परिचय 
पेड़ों से मेरी इस किस्म की पहचान 
बहुत नयी है 
कि अमुक पेड़ का पपीता पका अच्छा 
अमुक का कच्चा 
अमुक के फल में ज़्यादा स्वाद 
जबकि दोनों अगल बगल हैं 
अजब रहस्य है प्रकृति 
बूझो तो जानें नहीं 
बूझना ही असंभव 
है ही नहीं कुछ बूझने को 
न खाद,
न पानी,
न मिटटी 
हवा भी नहीं 
ये पड़ोसी पेड़ों का अचम्भा 
अजूबा 
नया है मेरे लिए 
और वो भी 
पपीते के पेड़ों का 
शहरी दो कट्ठे में 
कस्बाई शहरों की तंग गलिओं के बगीचों में 
नारियल, ताड़, खजूर पपीते की उंचाई मापते 
फलों की पहचान 
उन्हीं से परिचय 
आम का विस्तार नहीं 
दुर्लभ है 
और जबकि शहर ही लीची का 
लीची की छाँव नहीं 
दुर्लभ है 
आम, लीची का तो ये 
कि आम,
लीची के बिके बग़ीचे 
शेष रह गए किस्से 
और जब नया जुड़ रहा हो नाता 
पपीते के चार पेड़ों से 
तो कल्पना की दस्तक 
कि किस किस्म के रहे होंगे 
उनके रिश्ते 
मुझसे एक ही पीढ़ी पहले वालों के 
आम के अलग प्रकारों से नहीं 
एक ही प्रकार के आम के दो पेड़ों से 
चार, या आठ पेड़ों से 
जिन नामों के अब पेड़ नहीं होते 
लुप्त हैं,
विलुप्त हैं 
गायब हैं 
सरे ज़मीन से 
बहुत ढ़ेर सारी किस्मों के आम के पेड़ 
जो हाल हाल तक लोगों के अपने 
और प्रिय पेड़ हुआ करते थे 
ऐसे कि 
इस नहीं 
उस पेड़ का फल पसंद था उन्हें ................
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2 ...
चिड़ियों के लिए निमंत्रण पत्र
चिड़ियों को नहीं भेजने होते 
कबूतरों के गुलाबी पैरों में बाँध कर निमंत्रण पत्र 
केवल पेड़ लगा देने से वो चली आती हैं 
वो सारी आत्मीयता लिए 
जो प्राकृतिक है 
और सहज 
कोई राजनीति नहीं 
उनकी बुलाहट की
तस्वीरों का सारा सौंदर्य लिए 
वो चले आते हैं 
विदेशी तस्वीरों जैसे हमिंग बर्ड 
चमकीले रंगों वाले 
अजब रंगों वाले 
जिनका पराग का पान करते 
हवा में उड़ना 
होता है जादू के खेल का देखना
पंजे उठाये 
या उठाये अपने पैर
डैने फड़फड़ाते 
नहीं पसारते 
बिन पसरा 
उड़ने का 
जादू का खेल 
अकेले 
बस में करती 
चिड़िया जादूगरनी
चुराती मेरा शहर 
मेरा बगीचा 
मेरा दिन
आँखें उसकी मोहताज 
लगाकर पेड़ 
इंतज़ार उसका 
फूलों का भी 
दुहरा इंतज़ार 
अकेला इंतज़ार
आएगी वह 
जो कभी जोड़े में नहीं आती 
गर्वीली, हठीली चिड़िया 
आते हैं सतभइये 
जो कभी अकेले नहीं आते 
कभी अकेले नहीं आता 
घुघ्घू पक्षी का झुण्ड 
आता है सात की संख्या में 
सब जानते हैं. 
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      3 ...
बातों का पहुँचना 
कुछ बातों के पहुँचने की भी बातें थीं 
डाक के पहुँचने की तरह 
बल्कि सेना के भी पहुँचने की तरह 
पहाड़ के ऊपर 
या पहाड़ के नीचे 
जब वह पैदल पहुँचती है 
घाटी की पहचान करती 
वाकिफ होती 
बातें करती 
आवो हवा से 
ताकि वह अजनबी न लगे 
वह सारी प्रक्रिया जिसे अकक्लीमेटाईज़ेशन 
कहते हैं 
रूपांतरित करती बातों को 
अनूदित से ज़्यादा आसान बनाती 
परिवेश में ढ़ालती 
आवो हवा में 
स्थानीय विश्वासों में 
बातों की स्थानीयता बताती 
उन्हें कुछ ग्राह्य बनाती 
ताकि एक दम फिरंगी न लगें 
डाक से आयीं विकास गाथाएं 
और उन्हें कार्यान्वित करने की  लिपि 
कुछ अपठनीय आदेश सी 
और भी विकास के किस्से 
औरतों की बगावत गाथाएं भी
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4 ...... एक समूचा वार्तालाप
मैं बाहर निकली तो खुदा खैर करे 
नींबू के पेड़ पर एक चिड़िया थी 
चिड़िया को उसका देखा जाना 
मालूम हुआ 
फ़ौरन मालूम 
वो चहकी, चिल्लाई 
अपनी भाषा में कुनमुनाई
हवा में गोल, गोल उड़ आई 
वृत्त बनाती छोटे, बड़े 
डैने फैलाये, कम ज़्यादा 
हवा में अद्भुत आकार बनाती 
अलग, अलग शाखों पर उड़ आई
बस कुछ दूर जाकर मेरे पास 
क्या, क्या नहीं बोली चिड़िया वह 
उसकी आवाज़ चढ़ती, उतरती रही 
जैसे नदी का वेग 
या झरने का गीत 
या पठारों की चढ़ाई और ढलान 
उसके स्वर मेरे पास आ आ कर 
मुझमें समाते रहे
सदियों के राज़ बता गयी वह मुझे 
और पूरा हुआ एक समूचा वार्तालाप 
उसकी खुली हुई चोंच में 
मुझे मिल गयी ज़िन्दगी की सारी आतुरता 
और मिठास
और दब गया पड़ोसियों का रोज़ चलने वाला 
राजनैतिक विमर्श...................
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5 ... कुशल क्षेम
कैसा रहा ये साल न पूछो
क्या क्या रहे बवाल न पूछो
किसके क्या थे सवाल न पूछो
अब कैसा है हाल न पूछो……………………
परिचय.... 
पंखुरी सिन्हा
चर्चित युवा कवयित्री 
आजकल दिल्ली  में रहती हैं
 
 
प्रकृति को जिंदा कर देने वाली संवेदना से युक्त कवितायेँ. बधाई हो पंखुरी जी. शुक्रिया राम जी सर इतनी बेहतरीन कविताओं को पढवाने का .
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद पढ़ा ,बल्कि दिनों नहीं,बरसों बाद....और जो पढ़ा अभी-अभी ,सीधे दिल में उतर भी गया,मिट्टी से जुड़ीं और प्रकृति से गुत्थमगुत्था ऐसी रचनाओं हेतु आभार पंखुरी आपको !!
जवाब देंहटाएंसम्भवतः कोई 6 साल बाद बाद ब्लॉग यात्रा
आपको याद तो हूँ न मैं ??
बहुत ही सुन्दर कवितायेँ है।
जवाब देंहटाएंवाह प्रकृति की कविता इन्हें कहा जा सकता है . अभिभूत हूं. बहुत सुंदर रचनाये.
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