प्रेमचन्द गांधी |
छोटे खयाल श्रृंखला की ये कवितायें जितनी अधिक प्रेमचंद गांधी की हैं , उससे कहीं अधिक पाठको की हैं ..| इन्हें पढना आरम्भ तो आप , बतौर एक पाठक ही करते हैं , लेकिन इन्हें पढने के बाद आपके भीतर का रचनाकार भी कुलांचे मारने लगता है ..| आपको ऐसा लगता है कि ऐसे बहुत सारे खयाल तो मेरे जेहन में भी उठते हैं ,और यूँ ही मुझसे प्रतिदिन छूट जाते हैं ....| जाहिर है कि एक लेखक की यही सबसे बड़ी सार्थकता होती है , कि वह गूढ़ और बड़ी बाते इतनी सहजता और सरलता के साथ व्यक्त कर जाए , कि प्रत्येक दूसरा आदमी इन बातों और ख्यालों को अपना ही मानने लगे , और ऐसा करते हुए इन ख़यालों की एक मुकम्मल श्रृंखला तैयार हो जाए |
तो प्रस्तुत हैं 'सिताब दियारा' ब्लाग पर "छोटे ख़याल : एक काव्य श्रृंखला" के अंतर्गत
प्रेमचंद गांधी की इक्कीस कवितायें
लेखकीय वक्तव्य
छोटे
ख़याल : एक काव्य शृंखला : प्रेमचंद गांधी
अक्सर
राह चलते या कुछ पढ़ते और काम करते हुए हमारे जेहन में बहुत मामूली-सी लगने वाली
बातें आ जाती हैं, जो ज़रा सोचने पर बहुत गहरी और काव्यात्मक लगती हैं। ऐसी ही
बहुत मामूली लगने वाली और अचानक आ जाने वाली पंक्तियों की कौंध ने जब काव्यात्मक
आकार ग्रहण करना शुरु किया तो यह शृंखला अपने आप आगे बढ़ती गई। जीवन के हर पल में
काव्यात्मकता कहीं न कहीं छुपी होती है, ज़रूरत उसे पकड़ने भर की होती है। मैंने
कुछ कोशिश की है। पाठक और कविता-प्रेमी ही बताएंगे कि इसमें मैं कितना ख़रा उतरा
हूं।
1
उसका होना भी क्या होना है
जिसे पाना है
न खोना है
बस इतना होना है कि
आंसुओं के झरने में
ग़म का पैरहन धोना है....
जिसे पाना है
न खोना है
बस इतना होना है कि
आंसुओं के झरने में
ग़म का पैरहन धोना है....
2
वो हंस कर बोल ले
तो लगता है
जिंदगी संवर गई जैसे
वरना तो
मुकर गई जैसे
3
दाना, पानी, आराम और
सुरक्षा की ही फिक्र हो तो
कोई पिंजरा बुरा नहीं
सब कुछ तो है पिंजरे में
बस आकाश नहीं है
जीवन का महारास नहीं है
4
उसका सपनों में आना भी
सपना हो गया
ज्यों पिंजरे के भीतर
परिंदे का
उड़ना हो गया...
सपना हो गया
ज्यों पिंजरे के भीतर
परिंदे का
उड़ना हो गया...
5
कुछ देर तो
आग की लपटों में
कालिख़ भी चमकती है
फिर
तुम तो इंसान हो और
उजाले की इतनी कमी भी नहीं
तो चमको ना...
आग की लपटों में
कालिख़ भी चमकती है
फिर
तुम तो इंसान हो और
उजाले की इतनी कमी भी नहीं
तो चमको ना...
6
जीवन हो चाहे
तितली जितना
कुदरत को
कुछ रंग दे जाएं हम
कुछ फूलों से पराग चुराकर
दे जाएं दूसरे फूलों को
फिर भले ही
बीज बनने से पहले
चले जाएं हम..
तितली जितना
कुदरत को
कुछ रंग दे जाएं हम
कुछ फूलों से पराग चुराकर
दे जाएं दूसरे फूलों को
फिर भले ही
बीज बनने से पहले
चले जाएं हम..
7
जागते हुए तो वो
हमसे भागता है प्रेम
आओ
उसकी नींदों में
चलते हैं हम...
हमसे भागता है प्रेम
आओ
उसकी नींदों में
चलते हैं हम...
8
लिख राज़ की बातें
हर्फों में नगीनों की तरह
इक शख्स़ बहुत
ज़रूरी हैं जिंदगी में
रोटी, पानी, हवा
तीनों की तरह
9
पुलिस थाने के लेखक कक्ष में
एक सिपाही लिखता है रोज़नामचा
जो घटनाएं और वारदात
नहीं होती हैं दर्ज
उन्हें लिखते हैं वे लेखक
जो हवालात में हैं
या कि बाहर
10
इतने बरस बाद मिली गायत्री यादव
पके हुए बालों में ना जाने कहां खो गई थी
वो दो चोटी वाली गबदू सी लड़की
गोद में एक बच्चा था
'पोता है, दवा दिला कर लाई हूं'
उफ, क्या इसी को चिढ़ाते थे हम
बचपन में रसखान को गा-गाकर
'अरी, अहीर की छोहरिया
छछिया भर छाछ पै नाच नचावत...'
पके हुए बालों में ना जाने कहां खो गई थी
वो दो चोटी वाली गबदू सी लड़की
गोद में एक बच्चा था
'पोता है, दवा दिला कर लाई हूं'
उफ, क्या इसी को चिढ़ाते थे हम
बचपन में रसखान को गा-गाकर
'अरी, अहीर की छोहरिया
छछिया भर छाछ पै नाच नचावत...'
11
एक उम्र में
पीहर में जाना
बीहड़ में जाना होता है
12
लंबी नाराजगियां
बहुत तकलीफ देती हैं
लंबी रेल यात्राओं की तरह
बिना आरक्षण के
साधारण डिब्बे में बैठे हों जैसे
और गंतव्य पर
किसी के मिलने का भी
कोई अंदाज न हो जैसे...
बहुत तकलीफ देती हैं
लंबी रेल यात्राओं की तरह
बिना आरक्षण के
साधारण डिब्बे में बैठे हों जैसे
और गंतव्य पर
किसी के मिलने का भी
कोई अंदाज न हो जैसे...
13
फरवरी तेरा बुरा हो
एक तो प्यार का दिन
तेरे आंचल में
उस पर कितने कम दिन
अरी फरवरी कमसिन
तेरे ही दिनों में एक दिन
सहनी पड़ी थी
उसकी नाराज़गी मुझे
जा फरवरी
तुझे मेरी बद्दुआ लगे
तू सदियों तक
कम दिनों को तरसे
14
सुघड़ गृहिणी
जो जानती है
षटरस व्यंजन बनाना
नहीं लिखती
व्यंजन विधियों की किताब
जैसे कुछ कवि लिखते हैं
कविता के बारे में कविता
15
जगह
किसी के बिना
बहुत दिनों तक
खाली नहीं रहती
कुछ दिन अकेलापन
फिर याद और ग़म
भरे रहते हैं
खाली जगह को
इसी ऊब में
उगती रहती है
इंतज़ार की दूब
और एक दिन
कोई चला आता है
खाली जगह भरने
एकांत हरने
16
पश्चिम में ख़ुदा है तो
तुम्हारा होगा
मैं पूरब का आदमी
पश्चिम नहीं जाउंगा
मैं वहां बिल्कुल नहीं जाउंगा
जहां सूरज अस्त होता है और
अंधेरे का साम्राज्य होता है
17
नदी और समंदर का
कोई किनारा नहीं होता
धरती का होता है
ज़मीन के दो टुकड़ों के बीच
पानी का साम्राज्य होता है
18
मौत ही
इकलौती सच्ची ख़बर है
जो रोज़ आती है
बिला नागा
बाकी सब उसके साथ
या तो चला जाता है
या कि चला आता है
19
नाक में दम कर देती है बदबू
बूचड़खाने से गुज़रते हुए लगता है
पृथ्वी पर
सबसे बड़ी बदबू का नाम है
मृत्यु
20
रदीफ़ है
ना काफि़या है
क्या ग़ज़ब
शाइरी का माफिया है...
ना काफि़या है
क्या ग़ज़ब
शाइरी का माफिया है...
जैसे कलाम नातिया है
दाद देना शर्तिया है
21
सुनो
हवाओं में घुलने वाली
संदली खुश्बू का पैरहन पहनी
याद की तितली
ज़रा
ग़ुले-इश्क का भी खयाल करो
वो आखिर कहां जायेगा....
हवाओं में घुलने वाली
संदली खुश्बू का पैरहन पहनी
याद की तितली
ज़रा
ग़ुले-इश्क का भी खयाल करो
वो आखिर कहां जायेगा....
(परवीन शाकिर की
ग़ज़ल आबिदा परवीन की आवाज़ में सुनते हुए)
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संपर्क एवं परिचय
प्रेमचंद गांधी ..
जन्म - २६ मार्च १९६७ ..
निवास स्थान - जयपुर , राजस्थान ..
कविता संग्रह - इस सिंफनी में ..
निबंध संग्रह - संस्कृति का समकाल ..
कविता के लिए लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई और राजेंद्र वोहरा सम्मान ..
पाकिस्तान की सांस्कृतिक यात्रा ...
प्रगतिशील लेखक संघ और ..
अन्य सामाजिक सांस्कृतिक संगठनो में सक्रिय भागीदारी ..
मो. न. .. 09829190626...
पहली बार आपकी इतली कविताएं पढ़ी....छोटी-छोटी सही..काफी प्रभावी है।
जवाब देंहटाएंसूक्तियों जैसी इन छोटी-छोटी कविताओं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये एक साथ मिलकर एक पुष्पगुच्छ जैसा बनाती हैं. दूसरी जो चीज प्रभावित करती है वह है इनकी लयात्मकता...जो जितनी सायास है उतनी ही अनायास. मुझे तो यह प्रयोग अच्छा लगा...सुन्दर
जवाब देंहटाएंबढ़िया ..अलग अलग भावभूमि से उपजी अपने कथ्य में सघन चुटीली मार्मिक और सामयिक समस्याओं पर उभरी जरुरी अभिव्यक्तियाँ ..बधाई प्रेमचन्द जी बहुत शुक्रिया राम जी तिवारी जी
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगी सभी कवितायेँ.....सभी अपने आप में पूर्ण, कुछ तो अरसा याद रह जाने वाली हैं......भूमिका में सच लिखा रामजी भाई ने, पढ़कर मेरे भीतर का अनगढ़ मनमौजी रचनाकार भी प्रेरित हुआ.....बधाई प्रेम जी....आभार रामजी भाई.....
जवाब देंहटाएंअच्छी लगीं कविताएँ. तीसरी, चौथी, बारहवीं और बीसवीं कविताएँ ख़ास पसंद आईं.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रामजी भाई!!
पहली बार आपकी इतली कविताएं पढ़ी....छोटी-छोटी सही..काफी प्रभावी है।
जवाब देंहटाएंपहली बार आपकी इतली कविताएं पढ़ी....छोटी-छोटी सही..काफी प्रभावी है।
जवाब देंहटाएंजीवन अनुभवों से सहज स्फूर्त संवेदनाओं को सुगढ़ता से सहेजा है आपने इस कविताओं में ! बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएं'याद की तितली गुले-इश्क का ख्याल करो '
जवाब देंहटाएं1990 के बाद के नए तरह के यथार्थ 'अँधेरे के साम्राज्य' ने जो नई चौनोतियाँ पैदा की हैं
.....उनसे जूझ रही हैं ए छोटी-छोटी कवितायेँ ..जीवन बचाने के अनेकों संकेतों द्वारा .....
कवि यहाँ 'हंस कर बोल ' 'दाना पानी हवा आराम ''उजाले की इतनी कमी भी नहीं ' फूलो से पराग...' 'खाली जगहों को भरना...'
के माध्यम से democratic values को बचाने का प्रयास कर रहे हैं ..क्योकि ऐसे कठिन समय में हम उन्हें ही बचा पायें तो भी बहुत है
उर्दू की खनक काबिलेतारीफ है.......प्रेमचंद भाई को बधाई
एक ही क्यारी में इतने सारे फ़ूल...जीवन को महकाते हुए, भूले बिसरे संबंधों से गुजर कर आती खुशबु...एक बार फ़िर से आगे कदम बढाने को मज़बूर करती है, सभी कवितायें....रामजी को बधाई कि प्रेम चंद जी का गुलदस्ता भेंट किया...शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंछोटे ख्याल की ये कविताएँ थाट और बंदिश देती..
हटाएंअच्छी लगी .छोटे रूप में मुकम्मल सी
जवाब देंहटाएंउसका सपनों में आना भी
जवाब देंहटाएंसपना हो गया
ज्यों पिंजरे के भीतर
परिंदे का
उड़ना हो गया...achhi kavitayen hain jo jeevan ke anubhavon ka nichod hain ek tarah se, bahut shukriya
-vimal c pandey
umda
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