गुरुवार, 13 सितंबर 2012

'रोज बदलती है इस रोटी की शक्ल' - शायक आलोक



  शायक आलोक 

'शायक आलोक' हमारे दौर के उभरते हुए युवा कवियों में से एक हैं |  इनकी कवितायें विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं और ब्लॉगों में छप रहीं हैं , और पाठकों के बीच चर्चित भी हो रही हैं |  विशिष्ट शिल्पगत प्रयोग और विषय चयन की विविधता के आधार पर इस युवा कवि को , इस भीड़ में भी अलगाया  जा सकता है | उम्मीद की जानी चाहिए , कि उनका यह तेवर युवा कविता को और अधिक समृद्ध करेगा | 

                     प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लाग पर ''शायक आलोक' की कवितायें 

1 ... [
प्रतिरोध के रोध में] 

तुम्हारे हस्तक्षेप से
एक दिन बदल जाएगी इस जंगल की सूरत
तुम्हारी दहाड़ से
मांदों में दुबके लोग बाहर निकल आयेंगे
तुम्हारे पीछे चलते लोग
सत्ता के प्रतीकों पर धावा बोलेंगे
मुर्दाबाद के नारे लगायेंगे
काले झंडे लहरायेंगे.
और एक दिन फिर,
तुम गायब हो जाना लकड़बग्घे
और हम ढूंढ लायेंगे हमारे लिए
कोई नया सियार.
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2...    [ 
सवाल ] 

सवाल
एक कील पर अटका कोई ग्लोब था
जिसे मैंने गति दे दी 
बदल रही है दिशा सवाल की हर पल
हर घूर्णन में
हर सायकल के पूरा होने के साथ
अब-सब
अपने अपने जवाब की तलाश में.
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3...    [ 
प्रयोजन ] 

हर अच्छे दौर की
होती हैं कुछ बुरी बातें
बुरे दौर में
कुछ बुरे ख्वाब
दौर का प्रयोजन
महज गुजरने भर से है !
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4...   [बलात्कार]

बे-लगाम पहरुए 
दुपट्टे वाली रंग-हिना 
मौका--वारदात पर जीवकण के एकाध अवशेष शेष  रहे.
चलो तय हुआ
हिना तू भी दोषी 
एकदम बराबर - ठीक उतना / जितना 
तेरा रूप-अस्तित्व.
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5 ...    [ 
इंतज़ार ] 

मैं दुतल्ले से थूकता हूँ जहाँ
वहां सोया रहता है एक कुत्ता
पहले तीन रोज चौंक के उठा था वह
चौथे रोज उठकर चला ही गया
अब जब आठ रोज बीत गए हैं
और वह जान गया है एक थूकने वाले शख्स की करतूत
वह अपनी आँखें खोलता है एक पल
टस से मस भी नहीं होता तिल भर अपनी जगह से
वह मेरे थूकने के इंतज़ार में रहता है 
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6 ...    [ 
भाषा विज्ञान पढ़ते हुए ]  

तुम्हारे पास 'था
[
वह पश्चिम में रहती है]
मेरे पास ''
[
मैं पूरब में रहता हूँ]
तुम मर जा'णाचाहती थी
लो जा'मैंने दे दी ... !!
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7 ...   [
समीक्षा के लिए] 

मेरी अकविता में तिरोहित
कविता का प्रलाप
रुदन-स्वर नहीं शब्द की तलाश में
और मैं खांस देता हूँ
खांसना मेरा प्रतिरोध है
मेरे खांसने को कविता पढ़ा जाए !
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8 ...   [ 
संवाद ]  

कवि की प्रेमिका : गुजरते हादसों का श्वेतपत्र
नाम तुम्हारे चिट्ठियाँ
सोची समझी एक कहानी
कुछ चीजें ये ही शेष हैं
कवि : तुम कागजों को संभाले रहना
मैंमन लिखने के शब्द कुछ !
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9 ...   [ 
प्रेम ] 

इन दिनों
मेरी प्रार्थना में शामिल है
तुम्हारा नाम
 ईश्वर तुम नजरों से बचाए रखना खुद को
 प्रेयस मेरी प्रेयसी को मेरा प्रेम देना !
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10 ...  [ उब ] 

बिना बात उब कोई ढाई मात्रा व्याकरण नहीं है
देह में दर्द और किसी पागल की बकवास भी उब पैदा करती है
उब से उबने में नहीं है कोई दर्शन
उब का गणित
जेहन के विज्ञान की आंकड़े में प्रस्तुति है
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11 ...    [ 
रोटी ] 

माँ पकाएगी रोटी
फिर से
रोटी पर लिखा होगा-गेहूं जिसने
कीमत की परवाह  की
सरकार
तुम्हारी मजबूरियों से
रोज बदलती है
इस रोटी की शक्ल . 
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12 ...   [ 
संभाव्यता ]

 संभव है
कौरवाकी
नहीं खाती होगी हिरन ..संघमित्रा प्रेम में होगी
महेंद्र हुआ चला था आवारा
प्रियदर्शी राजा का
'
धम्मआया.. 'धम्मआया...
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संक्षिप्त परिचय 

शायक आलोक 
8 जनवरी 1983, बेगूसराय (बिहार)
शिक्षा- परा-स्नातक (हिंदी साहित्य)
कवितायेँ - कहानियां , पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित 


10 टिप्‍पणियां:

  1. शायक की विविधता नज़र आती है इनमे....हर विषय पर उनकी पकड़ बहुत गहरी है....बहुत बधाई शायक और धन्यवाद सिताब दियारा...

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  2. शायक के पास अपनी बात को कविता में कहने की एक ज़रूरी तमीज भी है और अपने कविता-समय तथा अपनी परम्परा की पहचान भी. इन छोटी कविताओं को पढ़ते हुए जो चीज सबसे पहले दिमाग में आती है वह यह कि उनके यहाँ कवि होने की भंगिमा के साथ-साथ कवि अनुकूल शब्द-चातुर्य भी है. कई अन्य समकालीन युवतर पीढ़ी के कवियों की तरह यहाँ शब्द-स्फीति या हडबडाहट नहीं दिखती. इस नए कवि का मैं स्वागत करता हूँ, और रामजी भाई को उनकी वस्तुपरक दृष्टि तथा समर्पण का अभिनन्दन.

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  3. अंतिम पंक्ति में 'रामजी भाई का' पढ़ें...

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  4. तुम्हारी मजबूरियों से
    रोज बदलती है
    इस रोटी की शक्ल .
    ....और इस बदलाव को कविताओं के जरिये सहज सरल भाव ....और शब्दों में उतारने का बेहद उम्दा प्रयास या कहूँ सक्षमता ..शायक में है जो इन छोटी (आकार में ..)कविताओं में देखने को मिली है ..लेखन की कई विधाओं पर पकड़ है उनकी ....और अपनी उम्र से ज्यादा अनुभवी और गहरी साहित्यक समझ उनकी रचनाओं में विविधता का कारण बनती है ....वो सवाल को गति देने ...या किसी दौर का प्रयोजन हो ...प्रेम और संवाद में भाषा विज्ञान के साथ उब के बीच रोटी की बात हो ....या फिर समीक्षा के लिए ...इंतज़ार में ...संभाव्यता ...के साथ प्रतिरोध का रोध ....या फिर बलात्कार .....तेज रफ़्तार से गुजरना मुमकिन नही ....क्यूंकि प्रत्येक कविता स्पीड ब्रेकर सी रुक कर धीमी गति से चलने पर मजबूर करती है ....// शायक के लेखन की मैं कायल हूं ....और हमेशा पढ़ना चाहूंगी इन्हें ....इसके लिए हमेशा शुभकामनाएं ....और शुक्रिया सिताब दियारा के राम जी भाई का ...उम्दा तलाश ....और साहित्य के प्रति समर्पण भाव के लिए .....

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  5. सहायक आलोक ने कविता की अपनी अलग भाषा इजाद की है. और वह स्तुत्य है. 'सरकार तुम्हारी मजबूरियों से रोज बदलती है रोटी की शक्ल' जैसी पंक्ति लिखने वाले आलोक ने अपनी पक्षधरता स्पष्ट कर दी है. यही तो एक कवि की अपनी ताकत होती है. कविता के प्रदेश में ओ नवागत कवि तुम्हारा स्वागत. रामजी भाई का आभार आलोक की कविता पढवाने के लिए.

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  6. 'सहायक आलोक' की जगह 'शायक आलोक' पढ़ा जाए ...सन्तोष जी ने कंप्यूटर की इस गडबडी के लिए खेद व्यक्त किया है

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  7. shayak ki ek vishisht shaily hai .. jaise mere khansne ko kvita samjha jaaye.. unke paas behad komal prem kee anubhutiyan hai aur utne hee teekhe vyngy bhi.. unki yah yatra jaari rahni chahiye.. shayak me aseem sambhavnaayen hain ki unhe bheed se alag ek chehra milega..

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  8. बहुत अच्छी कवितायेँ! शायक भाई का अपने "होम ग्राउंड" मतलब प्रेम और स्त्री मनोविज्ञान पर जितना बेहतरीन प्रदर्शन होता है यह कवितायें उससे कहीं भी कमतर नहीं है. "समीक्षा के लिए", "बलात्कार", "प्रयोजन" मुझे विशेष पसंद आयीं. आपकी रचनात्मकता का नया फलक देखकर बहुत खुशी हुई.शायक भाई और रामजी सर दोनों का धन्यवाद!

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  9. सुन्दर रचनाएँ हैं ,छोटी कविताएं झकझोरती हैं ,इंतज़ार मर्म स्पर्शी है बधाई

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  10. कली नही हर गली की कविता है ये सच तो ये हैं कि कही अनकही कविता हैं ये

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