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शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

अमेय कान्त की कवितायें

                     अमेय कान्त 




युवा कवि अमेय कान्त पहली बार सिताब दियारा ब्लॉग पर आ रहे हैं | इस उम्मीद के साथ हम उनका स्वागत करते हैं , कि उनकी कविताओं में यह ताजगी बरकरार रहेगी , और जिसकी आहट आने वाले समय में दूर-दूर तक सुनाई देगी |
                                    
प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर अमेय कान्त की कवितायें


एक ....

पृथ्वी की अन्तहीन वेदना    

मैं पेड़ पर चिड़िया ढूँढता हूँ 
और मिलती है मुझे
एक कुल्हाड़ी  

मैं ढूँढता हूँ आकाश में 
बादलइंन्द्रधनुष 
और वहाँ मिलता है मुझे 
अंधेरे में लथपथ सूरज  

मैं खुले में आकर लेना चाहता हूँ
एक भरपूर साँस 
लेकिन भर जाता हूँ जहरीले धुँए से  
और पृथ्वी के किसी 
बहुत अपने-से एकांत में 
ठहरने की कोशिश करता हूँ 

तब महसूस करता हूँ
ठीक अपने पैरों के नीचे 
पृथ्वी की अन्तहीन वेदना  

दो ...
         
         चिड़िया बना रही है घोंसला


चिड़िया बना रही है घोंसला  
दीवार में लगी घड़ी के सहारे  

समय से अनभिज्ञ चिड़िया वह  
कर रही है समय का उपयोग 
घर बनाने में  

समय के साथ वह देगी अण्डे 
अपने इस घर में  
समय के साथ फूटेंगे अण्डे 
निकलेंगे नये जीव  
जो बड़े होंगे घड़ी की आवाज़ के साथ  
समय के बिल्कुल पास  

और एक दिन उड़ जाएँगे अपनी यात्रा पर  
समय को अकेला छोड़कर  

तीन ....
पुराने दोस्त से 
           
अगर रख सको 
तो बचा कर रखना 
अपने भीतर 
पुरानी और खुरदुरी-सी 
प्लास्टिक की एक गेंद
कुछ-एक कंचे, लट्टू और पतंग 

ज़रूरी नहीं है  
पर कोशिश करके ज़रूर देखना  
कि रख सको बचाकर 
थोड़ा-सा आसमान 
जिसमें उड़ाया करते थे हम
काग़ज़ के हवार्इ-जहाज़ 

थोड़ी - सी मिट्टी 
जिसमें पैर रख कर
घर बनाया करते थे हम 
बारिश के बाद 

जानता हूँ मैं 
कि इन दिनों बहुत मुश्किल हो चला है 
बचाकर रखना इस तरह की चीज़ें 

फिर भी चाहता हूँ
कि अगली बार जब मिलूँ तुमसे 
तो दौड़ूँ तुम्हारे साथ 
तालाब के किनारे तक 
और ढूँढ निकालूँ 
वो रंग - बिरंगे काँच के टुकड़े 
जो हमने छुपाए थे उस दिन
उस पेड़ के नीचे 
मिट्टी में कहीं 

चार ....
मुस्कुराहट


धूप ने आकर नन्ही बच्ची के गालों पर
अपने हाथ पोंछ दिए 
और बच्ची धीरे - धीरे फूल में बदलने लगी
उसकी मुस्कुराहट अब 
फूल की मुस्कुराहट थी 
जो ख़ुशबू बन कर 
उड़ रही थी चारों ओर 

उड़ते - उड़ते वह ख़ुशबू 
जो असल में मुस्कुराहट थी 
उस नन्ही बच्ची की 
एक चिड़िया में बदल गर्इ 
जो फुदकने लगी यहाँ - वहाँ 
अब इस मुस्कुराहट के पँख थे 
और आवाज़ भी 
अब इसे सुन सकता था हर कोर्इ  

चिड़िया बन कर मुस्कुराहट 
उड़ने लगी खुले आकाश में 
और बदलने लगी हवा में 

हवा बही हर दिशा में 
मुस्कुराहट बही हर दिशा में 
बहते - बहते हवा बदल गर्इ नदी में 
मुस्कुराहट अब बह रही थी नदी बनकर
कहीं शान्त , कहीं उफान पर 

आखिरकार नदी मिल गर्इ समुद्र में 
और मुस्कुराहट फैल गर्इ पूरी पृथ्वी पर 

बच्ची की मुस्कुराहट 
अब पृथ्वी की मुस्कुराहट थी 

पांच ....
नदी 

नदी बदल रही है 
नदी लगभग हर क्षण बदल रही है

लेकिन बदल तो दरअसल पानी रहा है 
तो क्या नदी का बदलना
असल में पानी का बदलना है 

या लगातार बदलते रहने की प्रक्रिया में 
यह नदी का हर क्षण पानी हो जाना है 

शायद पानी 
नदी में बदल रहा है

छः ....
          गए हुए लोग  

गए हुए लोग 
बिना बताए चले आते हैं 
हमारे सपनों में लौटकर 

सपने में हम हतप्रभ से 
पूछते हैं उन्हीं से कई बार 
कि कैसे लौट आए वे इस तरह 
खासकर तब 
जब उनकी अनंत यात्रा की 
सारी ज़रूरी तैयारियाँ करके
रवाना किया था हमने उन्हें 

गए हुए लोग 
हमारे घोर आश्चर्य पर ध्यान दिए बिना 
लगे रहते हैं अपने कामों में 

वे भूतों की तरह नहीं आते सपने में 
बल्कि आते हैं ज़िन्दा  
अपने पूरे अस्तित्व को साथ लेकर 

गए हुए लोग 
याद दिलाते हैं हमें बार-बार 
कि जाना
पूरी तरह जाना नहीं होता 
जाने का मतलब 
हर किसी में थोड़ा-थोड़ा 
बचा रह जाना भी होता है 

          सात ...
              
        मौन
  
मंदिर की घंटियाँ 
किसे जगाने की कोशिश में हैं 

अपने अपने भयों के तहखानों में 
ढूंढते हैं सब 
ईश्वर जैसा कोई रोशनदान 
जबकि अपने हिस्से का हरापन 
काला लबादा ओढ़कर 
गुम हो चुका है 
किसी अँधेरी गली में 

चारों तरफ का शोर 
मिलकर रचता है 
एक विराट चुप्पी 
जिसे तोड़ सके शायद कोई मौन 

निश्चित ही यह मौन 
चिड़ियों का होगा 




      परिचय और संपर्क

      अमेय कान्त

       जन्म तिथि- १० मार्च १९८३
       इंजीनियरिंग कालेज में अध्यापन
       कविता लिखते हैं
       देवास , मध्यप्रदेश में रहते हैं |