'शायक आलोक' हमारे दौर के उभरते हुए युवा कवियों में से एक हैं | इनकी कवितायें विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं और ब्लॉगों में छप रहीं हैं , और पाठकों के बीच चर्चित भी हो रही हैं | विशिष्ट शिल्पगत प्रयोग और विषय चयन की विविधता के आधार पर इस युवा कवि को , इस भीड़ में भी अलगाया जा सकता है | उम्मीद की जानी चाहिए , कि उनका यह तेवर युवा कविता को और अधिक समृद्ध करेगा |
प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लाग पर ''शायक आलोक' की कवितायें
1 ... [प्रतिरोध के रोध में]
तुम्हारे हस्तक्षेप से
एक दिन बदल जाएगी इस जंगल की सूरत
तुम्हारी दहाड़ से
मांदों में दुबके लोग बाहर निकल आयेंगे
तुम्हारे पीछे चलते लोग
सत्ता के प्रतीकों पर धावा बोलेंगे
मुर्दाबाद के नारे लगायेंगे
काले झंडे लहरायेंगे.
और एक दिन फिर,
तुम गायब हो जाना लकड़बग्घे
और हम ढूंढ लायेंगे हमारे लिए
कोई नया सियार.
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2... [ सवाल ]
सवाल
एक कील पर अटका कोई ग्लोब था
जिसे मैंने गति दे दी
बदल रही है दिशा सवाल की हर पल
हर घूर्णन में
हर सायकल के पूरा होने के साथ
अब-सब
अपने अपने जवाब की तलाश में.
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3... [ प्रयोजन ]
हर अच्छे दौर की
होती हैं कुछ बुरी बातें
बुरे दौर में
कुछ बुरे ख्वाब
दौर का प्रयोजन
महज गुजरने भर से है !
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4... [बलात्कार]
बे-लगाम पहरुए
दुपट्टे वाली रंग-हिना
मौका-ए-वारदात पर जीवकण के एकाध अवशेष शेष न रहे.
चलो तय हुआ
हिना तू भी दोषी
एकदम बराबर - ठीक उतना / जितना
तेरा रूप-अस्तित्व.
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5 ... [ इंतज़ार ]
मैं दुतल्ले से थूकता हूँ जहाँ
वहां सोया रहता है एक कुत्ता
पहले तीन रोज चौंक के उठा था वह
चौथे रोज उठकर चला ही गया
अब जब आठ रोज बीत गए हैं
और वह जान गया है एक थूकने वाले शख्स की करतूत
वह अपनी आँखें खोलता है एक पल
टस से मस भी नहीं होता तिल भर अपनी जगह से
वह मेरे थूकने के इंतज़ार में रहता है
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6 ... [ भाषा विज्ञान पढ़ते हुए ]
तुम्हारे पास 'ण' था
[वह पश्चिम में रहती है]
मेरे पास 'न'
[मैं पूरब में रहता हूँ]
तुम मर जा'णा' चाहती थी
लो जा'न' मैंने दे दी ... !!
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7 ... [समीक्षा के लिए]
मेरी अकविता में तिरोहित
कविता का प्रलाप
रुदन-स्वर नहीं शब्द की तलाश में
और मैं खांस देता हूँ
खांसना मेरा प्रतिरोध है
मेरे खांसने को कविता पढ़ा जाए !
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8 ... [ संवाद ]
कवि की प्रेमिका : गुजरते हादसों का श्वेतपत्र
नाम तुम्हारे चिट्ठियाँ
सोची समझी एक कहानी
कुछ चीजें ये ही शेष हैं
कवि : तुम कागजों को संभाले रहना
मैं, मन लिखने के शब्द कुछ !
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9 ... [ प्रेम ]
इन दिनों
मेरी प्रार्थना में शामिल है
तुम्हारा नाम
ओ ईश्वर तुम नजरों से बचाए रखना खुद को
ओ प्रेयस मेरी प्रेयसी को मेरा प्रेम देना !
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10 ... [ उब ]
बिना बात उब कोई ढाई मात्रा व्याकरण नहीं है
देह में दर्द और किसी पागल की बकवास भी उब पैदा करती है
उब से उबने में नहीं है कोई दर्शन
उब का गणित
जेहन के विज्ञान की आंकड़े में प्रस्तुति है.
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11 ... [ रोटी ]
माँ पकाएगी रोटी
फिर से
रोटी पर लिखा होगा-गेहूं जिसने
कीमत की परवाह न की
सरकार
तुम्हारी मजबूरियों से
रोज बदलती है
इस रोटी की शक्ल .
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12 ... [ संभाव्यता ]
संभव है
कौरवाकी
नहीं खाती होगी हिरन ..संघमित्रा प्रेम में होगी
महेंद्र हुआ चला था आवारा
प्रियदर्शी राजा का
'धम्म' आया.. 'धम्म' आया...
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संक्षिप्त परिचय
शायक आलोक
8 जनवरी 1983, बेगूसराय (बिहार)
शिक्षा- परा-स्नातक (हिंदी साहित्य)
कवितायेँ - कहानियां , पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित