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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

फेसबुक पर ईश्वर - राहुल देव









आज सिताब दियारा ब्लॉग पर युवा लेखक
राहुल देव की यह व्यंग्य रचना
                                               



                      फेसबुक पर ईश्वर



आज सुबह से ही स्वर्गलोक में हड़कंप मचा हुआ था | बहुत दिनों बाद देवराज इंद्र ने देवताओं की आपातकालीन बैठक बुलाई थी | किसी को भी बैठक के एजेंडा के बारे में कुछ नहीं पता था बस कहा गया, यह आपातस्थिति है | सब मीटिंग में ही बताया जायेगा | तुरत फुरत आडर निकलवाकर दसों दिशाओं में दूतों को दौड़ा दिया गया | विशिष्ट रूप से आमंत्रित अतिथियों को लाने का कार्यभार देवर्षि नारद को सौंपा गया | खैर नियत समय पर खचाखच भरे सभाकक्ष जहाँ अप्सराएँ नृत्य किया करतीं थीं, में मीटिंग शुरू हो रही थी | त्रिदेवों को बैठने के लिए विशिष्ट आसन दिए गये | मीटिंग बस शुरू होने ही वाली थी कि दौड़ते-भागते यमराज जी भी चित्रगुप्त के साथ हाँफते हुए आये | उनकी सवारी भैसे ने उन्हें आज एन वक़्त पर धोखा दे दिया था | अन्यान्य देवी-देवता भी अपनी-अपनी सीट पर बैठ चुके थे |


विषय प्रवर्तन करते हुए देवताओं के राजा इंद्र ने अपने आप को व्यवस्थित किया तत्पश्चात अपनी जंग खाई आवाज़ को बुलंद करते हुए कहना शुरू किया- “आदरणीय त्रिदेवों एवं सम्मानित देवी-देवताओं ! आप सब सोच रहे होंगे कि आखिर क्या बात आन पड़ी कि यह इमरजेंसी मीटिंग बुलानी पड़ी | दरअसल बात यह है कि आजकल इन नामाकूल इंसानों को पता नहीं क्या होता जा रहा है, वे हमारी प्रार्थना व पूजा-अर्चना की जगह ये किसी फेसबुक नामक अस्थायी दुनिया में ज्यादा समय व्यतीत करने लगे हैं | धरती के हालात बड़े नाजुक हैं | अतः अब इस बात को हल्के में लिया जाना बेवकूफी होगी | इंद्र ब्रह्मा जी की और मुखातिब होते हुए बोले- ब्रम्हा जी आप ही देखिये आपने मानसपुत्रों की करतूतें, आपने इतनी मेहनत से यह सृष्टि बनाई और आज इन मानवों की इतनी हिम्मत कि इन लोगों ने फेसबुक नामक अपनी एक अलग आभासी दुनिया ही बना डाली | और तो और यह मूर्ख मनुष्यजाति अब हमारा पूजा-पाठ भी अपनी इसी आभासी दुनिया में करना शुरू कर दिया है | न कोई फूल-माला, न मिष्ठान, न धूप, वहां हमारे चित्रों पर हमें मिलते हैं सिर्फ लाइक्स और कमेंट्स | श्रद्धा के नाम पर ये नालायक हमारा मज़ाक बना रहे हैं | शीघ्र ही कोई ठोस निर्णय न लिया गया तो हम देवों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा | इतना कहकर देवराज थोड़ी देर के लिए रुके |


सचमुच यह एक विकट और गंभीर प्रश्न था | पूरी सभा में सन्नाटा व्याप्त था | लग रहा था सभी इंद्र की बातों को बड़ा ध्यान लगाकर सुन रहे हैं | यमराज ने कोहनी मारकर सोते हुए चित्रगुप्त को जगाया | शायद नरक में कुछ काम बढ़ जाने के कारण वे ओवरटाइम कर रहे थे जिस कारण वे धरती लोक के नेताओं की तरह अपनी नींदें इस तरह की सभाओं में पूरी कर रहे थे | उधर देवराज इंद्र ने अपने भाषण का अगला अंश प्रस्तुत किया | यह फेसबुक किसी जुकरबर्ग नाम के शैतान खोपड़ी की उपज है | लोग उसकी आभासी दुनिया को अपनी असल दुनिया से बढ़कर समझने लगे हैं | उसकी देखादेखी कई अन्य मायावियों जैसे ट्विटर, जीप्लस, लिंक्डइन, व्हात्ट्सएप ने भी अपना जाल फैलाना शुरू कर दिया है | अगर इनका कारोबार ऐसे ही चलता रहा तो हम लोगों का क्या होगा | देवराज के माथे पर चिंता की लकीरें अब साफ़-साफ़ देखी जा सकतीं थीं | उन्हें शायद अपना सिंहासन डोलता हुआ नज़र आ रहा था | काफी समय से उनकी दबी हुई भावनाएं आज जमकर बाहर आ रहीं थीं | अन्य देवतागण भी इस पर कुछ कहें यों कहकर वह बैठ गये |


देवराज का इशारा पाकर सर्वप्रथम अग्निदेव उठे | सबकी नज़रें उनकी तरफ उठ गयीं | अग्निदेव बोले- देवराज की चिंताएं अपनी जगह ठीक हों सकती हैं लेकिन मेरा मत है कि इन्सान हमेशा से कुछ नया करना चाहता है मगर हम देवता उसी एक लीक को पीटते रहते हैं | मुझे तो लगता है कि हमें इंसानों से कुछ सीखना चाहिए | अब माना के कलयुग है मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपनी जिंदगी को यूँ ही एकरस तरीके से बिता दें | देखिये अब ज्यादा घुमाफिराकर नहीं सीधा मुद्दे की बात कहता हूँ | इन्सान अपनी सुविधानुसार चीज़ों को बदलता रहता है मगर हम नहीं | मैंने चवालीस बार देवराज से कहा कि यहाँ देवलोक में ए.सी. लगवा दीजिये | मगर उनको अप्सराओं के नृत्य देखने से ही फुरसत नहीं मिलती | मारे गर्मीं के मेरा क्या हाल होता है मैं ही जानता हूँ |


अग्निदेव के आक्षेप से देवराज कुछ घबराये | उन्होंने उनसे बैठने का इशारा किया | अग्निदेव अपनी व्यथापुराण आगे बाँच पाते कि उनके बगल में बैठे वरुण देव बोल उठे- देवराज की बात मुझे ठीक मालूम होती है | यह मनुष्य अपने आप को समझते क्या हैं | वह आज स्क्रीन टच करते हैं, अपने से बड़ों के चरणस्पर्श नहीं, उन्हें पासवर्ड्स याद हैं अपने पड़ोसियों के चेहरे नहीं | उनके कमरों की दीवारों और कैलेंडरों में चलचित्र की अर्धनग्न नायिकाएं विराजती हैं हम जैसे देवतागण नहीं | उनके गमले में मनीप्लांट दिख जायेगा परन्तु तुलसी का पौधा नहीं | इन मानवों को अब बस लैपटॉप और टेबलेट प्यारा है, माँ की गोद नहीं | उन्हें पार्क में लगे हुए बनावटी फौहारों से प्यार है परन्तु गांव के तालाबों, नदी, पोखरों से नहीं | धरती पर आज लोग कुत्तों से प्यार करते हैं अपने बूढ़े पिता से नहीं | प्रियतमा की हर एक बात स्वीकार है इन गधों को लेकिन माँ की नसीहतें नहीं, रेस्टोरेंट में बीस रुपये की टिप दे देंगे लेकिन किसी भिखारी किसी ग़रीब के लिए इनके पास पैसे नहीं होंगे, नंगे-धड़ंग बच्चों की तस्वीरें हजारों-लाखों में बिकेंगी लेकिन उन्हें कपड़े पहना सके ऐसा कोई मनुष्य नहीं दीखता मुझे | काहे का और कौन से विकास की बात कह रहे है ? सारी सभ्यता और संस्कृति को तो आधुनिकता की चाशनी में घोलकर पी गयी है यह मानवजाति | अतः देवता होने के नाते हमारा कर्तव्य ही नहीं धर्म है कि हम उन्हें सही रास्ता दिखाएँ | मेरे खयाल से धरती पर कुछ विनाशलीला कर हम उन्हें सबक सिखा सकते हैं | 


इंद्र देव ने अपना माथा पीट लिया | वरुण देव की गाड़ी सधे तरीके से एकदम सही ट्रैक पर जा ही रही थी कि अंत में गलत स्टेशन के आउटर पर आकर पटरी से उतर गयी | उनके विनाश के आईडिये ने सब गुड़-गोबर कर दिया था |


सूर्य देव की व्यथा कुछ यूँ थी | वे बोले- गुस्ताखी माफ़ हो लेकिन परमपिता ने सत, रज और तम इन तीन गुणों के आधार पर मुख्य रूप से तीन जातियां बनाई थीं | देवता, मनुष्य और राक्षस | लेकिन आज धरती पर जिस गति से हत्या, अपहरण, लूटमार, बलात्कार आदि अपराध बढ़ रहे हैं | सारा ज्ञान सिर्फ किताबों में हैं | सही बातों और सच्चे धर्म को आचरण में उतारना तो दूर ये मानव उसे पढ़ना तक नहीं चाहते | धर्म का ठेका भी समाज के कुछ गिने-चुने ठेकेदारों के पास सुरक्षित है | मेरा तो खून खौलता है यह सब देखकर | समय तो यह आ गया है कि मनुष्य, मनुष्य का दुश्मन हुआ जाता है | इन्हें देखकर तो राक्षसों को भी शरम आ जाये | अब इससे ज्यादा मैं क्या कहूँ...


सूर्यदेव की इतनी गंभीर बातों को सुनकर एकबारगी सभाकक्ष में सन्नाटा छा गया | कितनी जटिल समस्याएं और कितने विकट प्रश्न ??


देवियों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रही माता लक्ष्मी जी आज अपनी चंचलता को छोड़कर गंभीर मुखमुद्रा में लग रहीं थीं | उन्होंने कहा कि मेरी सौ की सीधी एक बात यह है कि हम देवियाँ भी किसी बात में आप देवताओं से कम नहीं हैं अब चूँकि धरती पर स्त्रीविमर्श अपने चरम पर है तो भला हम इसमें पीछे कैसे रह सकती हैं | कान खोलकर सुन लें सभी देवतागण अब हम देवियाँ किसी का आदेश मानने पर विवश नहीं हैं | हम न ही किसी के पैर दबाएंगी न ही आपको स्वामी और स्वयं को दासी समझेंगी | हमें भी यहाँ सदियों से दबाया गया है लेकिन इन मनुष्यों की वजह से हमारी सुप्त हो चुकी चेतना जागृत हो चुकी है | उनकी तेजस्वी वाणी और एकदम स्पष्ट शब्दों में यह बात सुनकर सभी देवियाँ एक स्वर में बोल उठीं- तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी, नहीं चलेगी | देवी एकता जिंदाबाद, जिंदाबाद, जिंदाबाद | यह देखकर सभी देवता सकते में आ गये | स्थिति को आउट ऑफ़ कण्ट्रोल होते देखकर देवगुरु ब्रहस्पति ने बीच में आकर देवियों के ग्रुप को कुछ शांत रहने का संकेत किया तब जाकर मामला कुछ शांत पड़ा और सभा की कार्यवाही कुछ आगे बढ़ी |


कामदेव का नंबर आया तो वह अपनी तिरछी नज़र साइड में पंखा झलती हुई सुंदरियों पर डालते हुए ऐसे शुरू हुए मानो बहुत समय से भरे बैठे हों | वे बोले कि अब साहब धरती पर धर्म-कर्म बचा ही नहीं | इस ग्लोब्लाइजेशन और कंप्यूटर की बयार में हर कोई बहा चला जा रहा है | आज हर दूसरा आदमी ऑनलाइन और हर तीसरा आदमी व्यभिचारी है | मुझे कोई पूछता ही नहीं | इनके कंप्यूटर पर एक बार मेरी नज़र इनकी कामक्रीडाओं पर पड़ गयी तो मैं मारे शर्म के पानी-पानी हो गया | उफ्फ ! कुछ भी नहीं छोड़ा इन बेशर्मों ने | सचमुच बड़ी खतरनाक कौम है, राम बचाए इन मनुष्यों से |


यमराज जी से कहा गया कि वे अपनी बात रखें तो उन्होंने कहना शुरू किया | उनके पास अपनी खुद की इतनी समस्याएँ थीं कि उन्हें लिख कर लाना पड़ा था | चित्रगुप्त से शिकायतों का खर्रा अपने हाथों में लेकर उन्होंने पढ़ना शुरू किया | उनके इतने बड़े खर्रे को देखकर उस मीटिंग में उपस्थित सभी देवी-देवताओं के माथे पर बल पड़ गये | दरअसल ज्यादातर लोग बड़ा लम्बा-लम्बा बोल रहे थे और मीटिंग इतनी देर से चल रही थी कि लगभग सभी देवी-देवता ऊब गये थे | देवराज इंद्र ने यमदेव से अपना भाषण शोर्ट में रखने का संकेत किया | यमराज जी ने कहना शुरू किया- हे देवताओं मेरी बात ध्यान से सुन लीजिये | सबसे ज्यादा कष्ट तो हमीं को झेलना पड़ रहा है | द्वापर तक तो गनीमत थी परन्तु इस कलियुग के आ जाने के बाद से हमारे डिपार्टमेंट पर वर्कलोड बहुत ज्यादा बढ़ गया है | आप लोगों का क्या आप लोग तो यहाँ मौजमस्ती में जुटे रहते हो | मेरे मातहत किस तरह दिनरात काम करते हैं, वहां नरक में क्या हालात होते हैं हमीं जानते हैं | उधर धरती पर छठा वेतन आयोग लागू है और सातवें की घोषणा हो चुकी है और यहाँ मेरी सुख सुविधाओं में युगों से कोई इजाफा नहीं हुआ है | एन वक्त पर आज सवारी ने धोखा दे दिया तभी तो मैं इस मीटिंग में समय पर नहीं आ सका | यह भी कोई बात हुई बताइए ? अरे इतने दिनों में तो घूरे के दिन भी बहुरते हैं मगर यमराज होकर भी मुझे एक भी सुख नसीब नहीं | और तो और पृथ्वी पर चल रहे दलित विमर्श की देखादेखी यमदूत व अन्य सेवकगण भी आँखें दिखाने लगे हैं | तो इसलिए बहुत संक्षेप में मेरी दो छोटी सी मांगें हैं- पहली नरक की एच.आर. वकेंसी भरी जाये दूसरी मुझे मनुष्यों की तरह हाईस्पीड व औटोमैटिक सर्व सुखसुविधा संपन्न गाड़ी वाहन के तौर पर दी जाये | और हाँ जहाँ तक इस फेसबुक की बात है इसपे आप लोग मिलकर चाहें जो निर्णय लें हमारी उक्त दोनों शर्तों के पूर्ण होने की बिना पर हमें सब स्वीकार है |


अब बारी थी पवन देव की | उनके चेहरे का रंग कुछ उड़ा हुआ लग रहा था | गला खंखारते हुए उन्होंने कहना शुरू किया | आदरणीय देवियों और देवताओं मैं भी इस मनुष्य जाति से बड़ा परेशान हूँ | आज पृथ्वीलोक के हालात वास्तव में बड़े क्रिटिकल हैं | मेरा तो दम घुटता है वहां पर तो बीच बीच में ताज़ा होने ऊपर आ जाता हूँ | इंद्र देव की तरफ देखते हुए पवन देव ने आगे कहा- कभी अपने सिंहासन से उतरकर नीचे जाके तो देखिये, चारों तरफ इतना कूड़ा-कचरा इतना प्रदूषण है कि मियां एक क्षण न ठहर सकेंगे वहां | स्वर्गलोक की सारी आरामतलबी वहां जाकर भूल जाएगी | इन मनुष्यों पर तो जैसे अपना कोई वश ही नहीं रहा | प्राकृतिक संपदा का अधाधुंध दोहन हो रहा है, जंगल मैदान हो गये हैं, सारी नदियाँ कराह रहीं हैं | यह विषाक्त वातावरण अगर ऐसे ही बना रहा तो और कोई कुछ करे न करे लेकिन मैं कुछ ही दिनों में अवश्य ही अपनी सेवा से वीआरएस ले लूँगा, तब मत कहना | इन शोर्ट मुझे बस यही कहना था |


देवराज ने देवताओं की तरफ आँखें टेढ़ी करके देखा मानो कहना चाहते हों कि सभा ख़त्म होने दो फिर तुम सबसे निपटूंगा | वह सोच रहे थे कि यहाँ तो अपने साथी ही अपने साथ नहीं हैं | यह तो पासा उल्टा पड़ रहा है | खैर देखते हैं अब परमपिता क्या निर्णय लेते हैं |


सबकी नज़रें त्रिदेवों की तरफ उठ गयीं ! त्रिदेव विषय की गंभीरता को बखूबी समझ रहे थे | कुछ देर तक वे सोच में डूबे रहे फिर कुछ देर आपस में मंत्रणा की | देवतागण अधीर हो रहे थे कि क्या निर्णय होने वाला है ? कि तभी सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने कहना शुरू किया |


वह बोले- हमने सबकी बातों/समस्याओं/तर्कों-वितर्कों को ध्यान से सुना है और बहुत सोच विचारकर सर्वसम्मति से यह निर्णय किया है कि सभी देवी देवता भी फेसबुक की आभासी दुनिया में घूमकर आयें और थोड़ा रिफ्रेश हो जाएँ | वे फ़ौरन फेसबुक पर अपनी आईडी बनाएं पर और अपनी घिसीपिटी लाइफ को चेंज कर किंचित आधुनिक हो जाएँ | इसमें कोई बुराई नहीं है | अतः हम देवराज इंद्र को यह आदेश देते हैं कि चौबीस घंटे के अन्दर सभी के लिए समस्त आधुनिक व्यवस्थाएं उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें | हर मौसम के लिए अलग अलग कपड़े, एसी, फ्रीज़, कंप्यूटर, मोबाइल आदि आवश्यक सभी सुविधाएँ | आप लोग बिलकुल भी चिंता न करें | यह सिर्फ एक प्रयोग मात्र है | इन्हें अपनाकर ही हम इनकी अच्छाई या बुराई जान सकते हैं | उसके बाद इन मनुष्यों का क्या करना है इसका फाइनल निर्णय अगली मीटिंग में होगा | यों कहकर त्रिदेव मुस्कुराये | समस्त देवी-देवताओं ने जो आज्ञा कहकर करतल ध्वनि से इस निर्णय का स्वागत किया और देवराज इंद्र के धन्यवाद ज्ञापन के साथ यह सभा विसर्जित हुई |


कुछ लोग खाने-पीने के चक्कर में मीटिंग ख़त्म होने के बाद भी अपने अपने आसन पर बैठे हुए थे | कुछ लोग खुश थे कुछ दुखी दिखाई दे रहे थे | कुछ लोग जा रहे थे तो कुछ लोग क्या हुआ...क्या हुआ यह पूछते हुए अब आ रहे थे |


खैर अब आप तो समझ ही गये होंगे कि अगली मीटिंग कब होगी, होगी भी या नहीं होगी बीकॉज़ फेसबुक इज द सेकंड लार्जेस्ट यूज्ड वर्ड स्टार्टिंग विथ एफ (समझदार और शरीफ़ लोग पहला वाला जान ही रहे होंगे) एंड लॉगआउट इज द हार्डस्ट बटन टू क्लिक !! इति !!!





परिचय और संपर्क

राहुल देव

संपर्क- 9/48 साहित्य सदन,
कोतवाली मार्ग, महमूदाबाद (अवध),
सीतापुर (उ.प्र.)-261203
मो. 09454112975



रविवार, 26 जनवरी 2014

युवा कवि राहुल देव की कवितायें


                                      राहुल देव 


युवा कवि राहुल देव कविता की साधना के आरंभिक प्रयासों में हैं | ख़ुशी की बात है कि विचारों के स्तर पर उनकी पहुँच बन भी रही है | जैसे प्रत्येक साधना को लम्बी यात्रा के साथ-साथ उसी अनुपात में किये गए सार्थक लगन और निष्ठा की भी जरुरत होती है, उसी तरह इस यात्रा को  भी है | उम्मीद की जानी चाहिए कि ‘राहुल’ इस साधना से पीछे नहीं हटेंगे और आने वाले समय में अपनी एक विशिष्ट जगह बनाने में कामयाब होंगे |
                                                


       प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर राहुल देव की कवितायें


एक

भ्रष्टाचारं उवाच !

जी हाँ मैं भ्रष्टाचार हूँ
मैं आज हर जगह छाया हूँ
मैं बहुत खुश हूँ
और होऊँ भी क्योँ न..
ये दिन मैने ऐसे ही नहीँ देखा
मुझे वो दिन आज भी याद है जब
मैने अपने सफेद होते बालों पर लालच की डाई
और कपड़ोँ पर ईर्ष्या का परफ्यूम लगाया
बातों में झूठ और व्यवहार में
चापलूसी के कंकर मिलाए
फार्मूला हिट रहा..
लोग मेरे दीवाने हो गए
मैने सच्चाई के हाथ से
समय की प्लेट छीनकर
बरबादी की पार्टी मेँ
अपनी जीत का जश्न मनाया,
मेरी इस जीत मेँ तुम्हारी
नैतिक कमजोरी का बड़ा योगदान रहा
तुम एक दूसरे पर
बेईमानी का कीचड़ उछालते रहे
और मैँ कब घर कर गया
तुम्हारे अन्दर
तुम्हे पता भी न चला
मैने ही तुम्हे चालाकी और मक्कारी का पाठ पढ़ाया
सुस्त सरकार के हर विभाग में
फर्जीवाड़े संग घूसखोरी का रंगरोगन करवाया
घोटालोँ पर घोटालोँ का टानिक पीने के बाद
मैँ यानी भ्रष्टाचार
अपने पैरोँ पर खड़ा हो पाया.
इस अंधी दौड़ मेँ कुछ अंधे हैं
दो-चार काने हैं
जो खुली आँख वालोँ को
लंगड़ी मार रहे हैं
खुद जीत का मेडल पाने की लालसा मेँ
अंधोँ को गलत रास्ता दिखा रहें हैं
सब सिस्टम की दुहाई है
ऊपर से नीचे तक समाई है
मेरी माँग का ग्राफ इधर हाई है
और हो भी क्योँ न
ये गलाकाट प्रतियोगिता
आखिर मैने ही आयोजित करवाई है
मैँ बदनीयती की रोटी संग मिलने वाला
फ्री का अचार हूँ
पावर और पैसा मेरे हथियार हैँ
मैँ अमीरोँ की लाठी
और गरीबोँ पर पड़ने वाली मार हूँ.
तुम सबको खोखला कर दिया है मैँने
जी रहे हो तुम सब
जीने के मुगालते मेँ
सत्य के प्रकाश पर छा जाने वाली
तुम्हारे अंदर की काली परछाई हूँ
आज के युग मेँ मै सदाबहार हूँ
जी हाँ,
मैं भ्रष्टाचार हूँ...!



दो

अक्स में ‘मैं’ और 'मेरा शहर'!

ठहर जाता है समय
कभी-कभी
ठहरे हुए पानी की तरह
तो कभी फिसल जाता है वह
मुट्ठी मेँ बंधी रेत की तरह
जब आँखे बन्द रहती हैँ
और दिमाग जागा करता है
तब सोचता हूँ...
करता हूँ कोशिश सोने की
करवट बदलता हूँ
सुविधा,सुविधा-'दुविधा'
हाय रे 'सुविधा'!
मैँ अपने खोखलेपन पर हँसता हूँ
खालीपन को भरने की
करता हूँ एक नाकाम कोशिश
दोहरेपन के साये मेँ
दोराहे सी जिँदगी का
अन्जान राही बन
आगे-पीछे चलता
फीकी हँसी-फीकी नमी
उन खट्टे-मीठे पलोँ की यादेँ
गूँजती आवाजेँ;
अपने पैदा होने के कुछ ही वर्षो बाद
मैँने जान लिया था
क्या है जीवन-
जीवन संघर्षो का नाम है
जिस पर चलते रहना
आदमी का काम है !
कल यूँ ही
बाजार टहलने निकला
तो देखा-
ठेले पर धर्म,शांति और मानवता थोक के भाव में बिक रही थी
फिर भी कोई नहीँ था उसे लेने वाला
दूसरी ओर भ्रष्टाचार का च्यवनप्राश सबको मुफ्त बँट रहा है
जिसे लेने के लिए
धक्कामुक्की मची है
जिन्हे मिल गया वे
दोबारा हाथ फैलाए हैँ
कुछ आदमी पीछे लटककर
बाँटने वालोँ से
साँठ-गाँठ कर रहें हैं
आँख उठाता हूँ तो
दूर-दूर तक दिखते हैँ
कच्चे-पक्के चौखटे
और ऊपर भभकता सूरज
जिसकी तपिश से झोपड़े आग उगल रहे हैँ
इसी शहर मेँ कहीँ दूर नैतिकता
.सी. मेँ आराम कर रही है
दूसरी तरफ कुछ ईमानदार सच्चाई के बोझ से थककर
बेईमानी की चादर तानकर सो गए हैँ
आगे नुक्कड़ पर भूले बिसरे सज्जन
दुर्जनोँ को
अपने पैसोँ की चाय पिला रहेँ हैँ
यह इस शहर में आम है क्रिकेट में चौका,
दीवानेखास में मौका
प्लस बेईमानी का छौँका
यह इस तीन सूत्रीय कार्यक्रम का
अपना एक अलग इतिहास है
पंचसितारा होटलोँ की सेफ मेँ बन्द है
'परिश्रम' की डुप्लीकेट चाभी
सिक्सर्स हँस-हँस कर ताली पीट रहें हैं
समाधान,समाधान
समाधान !
हे. हे.. हे...
सौ प्रतिशत मतदान
बन्द हो गई राष्ट्रीयता की दूकान
आमतौर पर यहाँ हर दूसरा आदमी
'बाई पोलर डिसआँर्डर' से ग्रसित होता है
हर दुनियावी प्राणी का अक्स
उसकी परछांई से छोटा होता है !



तीन

हारा हुआ आदमी
       

बस एक ही काम
सुबह से शाम
और शाम से सुबह तक
एक यथास्थितिवादी की तरह
अपनी क्षमताओँ का आकलन
देना योगदान समाज को
अपने होने का एहसास
खुद की पहचान का सीलबन्द प्रस्तुतिकरण..
आज आदमी होने के मायने
कितने बदल गए हैँ
भीड़ बढ़ती जाती है
दुनिया सिमट रही है
चहुँओर मनी और पॉवर की धूम है
जहाँ देखता हूँ हर तरफ
आदमी दुबका जाता है
दूसरी तरफ समय चलता जाता है;
शायद आदमी के लिए आदमी होना
कोई बड़ी बात नहीँ
लेकिन मेरे लिए
आदमी को आदमी समझना
खुद के लिए शर्मनाक है
जिसकी आदमियत की डेट कबकी एक्सपायर हो चुकी है
लेकिन वो जीता जा रहा है, लाचारी से
जिँदगी जीने के मुगालते मेँ
किसी बन्द आवरण मेँ लिपटी प्रतिमा की तरह
मूक है जिसकी मौलिकता
उसकी सम्वेदनाओँ के शीशोँ पर
भौतिकता की मोटी परत चढ़ गयी है
आज वह जी रहा है अपने लिए
सोच रहा है तो सिर्फ अपने लिए
देख रहा है सिर्फ अपनी सुविधा,
जिनको पढ़ने वाला अब कोई नहीँ बचा
ऐसी फिलॉसफी, इतिहास और साहित्य की किताबों को
दीमक पुस्तकालयोँ मेँ बन्द अलमारियोँ मेँ
मजे से खा रहेँ हैँ
मानो सारा जीवन बगैर पटरी की रेल है
सारा सिस्टम ही फेल है.
कल क्या था और कल क्या होगा
इससे किसी को कोई मतलब नही
चर्चाओँ का माहौल गरम है
गाँव के गलियारोँ से
शहर के चौराहोँ तक
हर एक जगह लगा हुआ है
इन हारे हुए आदमियोँ का
अट्ठहास लगाता हुआ मज़मा
विरोध के नेपथ्य मेँ
एक आदमी बड़ा परेशान है
जी हाँ,
वह कवि है
कविता हैरान है!!



चार

एक टुकड़ा आकाश

टुकड़ों में बटा हुआ सब-कुछ
टुकड़े-टुकड़े जिंदगी
टुकड़े-टुकड़े मौत
टुकड़े-टुकड़े खुशियाँ
टुकड़े-टुकड़े दुःख,
सभी को चाहिए होता है-
एक टुकड़ा आकाश
और एक टुकड़ा भूमि
इस दुनिया में जो भी दिखता है
उसमें भी एक टुकड़ा सच है
और एक टुकड़ा झूठ
एक टुकड़ा आग तो एक टुकड़ा राख
टुकड़ो-टुकड़ों में चलती है सरकार
टुकड़ो-टुकड़ों में बढ़ता है व्यापार
टुकड़ो-टुकड़ों में उठते हैं
टुकड़ो-टुकड़ों में गिरते हैं
टुकड़े-टुकड़े पूर्वाग्रहों
और टुकड़े-टुकड़े विचारों से
हम ज़िन्दगी को टुकड़ो-टुकड़ों में जीते हैं;
किसी फटे हुए नोट रुपी इन टुकड़ों को
समय के ग्लू से जोड़-जाड़ कर
हम चलाने का प्रयास करते हैं
लेकिन एक न एक दिन
हमें उस बट्टे की दूकान पर जाना ही पड़ता है
जहाँ हमें उस नोट का
आधा मूल्य ही प्राप्त होता है
और हम हंसी-खुशी
घर वापस लौट आते हैं !






परिचय और संपर्क

नाम- राहुल देव                              

जन्म- 20 मार्च 1988
शिक्षा- एम.ए. (अर्थशास्त्र), बी.एड.
प्रकाशित – एक कविता संग्रह तथा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं इन्टरनेट पर कवितायेँ, कहानियाँ, लेखों एवं समीक्षाओं का प्रकाशन |
प्रकाशनाधीन- एक कहानी संग्रह |
रूचि- साहित्य अध्ययन, लेखन, भ्रमण
सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन   
संपर्क- 9/48 साहित्य सदन कोतवाली मार्ग महमूदाबाद (अवध) सीतापुर, उ.प्र. 261203
मोबाइल नम्बर- 09454112975      
ई मेल पता- rahuldev.bly@gmail.com
ब्लॉग पता- rahuldevbly.blogspot.com