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रविवार, 5 मई 2013

हिमांगी त्रिपाठी की कवितायें


                         
                                  हिमांगी त्रिपाठी 




हिमांगी ने अभी लिखना शुरू किया है | और इस लिखने को , डायरी के पन्नों से निकालते हुए उन्हें वही डर सता रहा है , जो हर लिखने वाले को आरंभिक दिनों में सताया करता है | क्या ये कवितायेँ किसी और को पढाई जा सकती हैं ? पढने के बाद लोग कैसी प्रतिक्रया देंगे ? मुझे कविता लिखना आता भी है या नहीं ? आदि-आदि | इसी डर के बीच झूलते हुए हिमांगी ने ये कवितायें मुझे देखने और उस पर अपनी राय देने के लिए भेजी थी | मेरी राय में इन कविताओं में एक संभावना तो बनती ही है | उतनी , जितने पर आगे चलकर एक जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है | क्यों ..?

          
              तो प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर हिमाँगी त्रिपाठी की कवितायें
                                          


1 .... मेरे सपनों की तितलियाँ

इस डाल पर कभी था बसेरा
पक्षियों, रंग-बिरंगी तितलियों का
जिनका मधुर गान सुनायी पड़ता , 
अब बेजान पड गयी इस डाल में
क्यों आएँगी भला तितलियाँ ?
क्यों बनाएंगी बसेरा ?
        
जब थी ये डालें हरी-भरी
तब झुण्ड की झुण्ड तितलियाँ आतीं थी  
दिन गुजरे , ढल गयी धूप  
और आज जब कभी
मेरे सपनो की तितलियाँ
आतीं हैं मेरे पास
तो क्षण भर ठहर कर
चली जातीं हैं इतनी दूर
कि मुझसे पकड़ में नहीं आती                            

समय का खेल है यह
जो आज मेरी डालों को छोड़कर
खेलती हैं उन नाजुक हरी डालों से
जो अभी पूरी तरह खिल भी नहीं पायीं

लेकिन आज मेरी ये सूखी डाल
जो थी कभी हरी-भरी
अब हो गयी है चाहें वीरान ,
फिर भी उनका खेल देखकर
अपनी जिंदगी से
नहीं होती बिलकुल परेशान


2 ....   इस दुनिया को हरा रखने के लिए  


इतने दिनों से ओझल
आज दिखा वह मुझे
      
कभी एक दौर में
हम रहते थे आस-पास
जैसे एक दूसरे की जिन्दगी हो   
एक दूसरे से कभी न बिछुड़ने का वादा करते हुए

वह गाँवों की गलियों को गुलजार करता
सबके सुख-दुःख में बिन बुलाये शरीक होता
कि अचानक एक दिन ओझल हो गया  
पता नहीं क्या बात थी?

हम इन्तजार करते रहे उसका
वादे के मुताबिक़
जो आख़िरी सांस तक करना था हमें
हम भरोसा करते रहे उसका
जो आख़िरी सांस तक करना था हमें

धूल और धुएं में अचानक खो गया वह
लगा जैसे सब कुछ खो गया हमारा 


कि उसने अपना वादा निभाया
और एक दिन ही गया
फिर हमारी जिन्दगी में
सूखी डालें हरी हो गयी फिर हमारे मन की

सच है साथियों
ओझल हो गयी तमाम चीजों को बचाना जरूरी है
इस दुनिया को हरा रखने के लिए
  

परिचय और संपर्क   

हिमांगी त्रिपाठी
जन्म ४ अप्रैल १९८८

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी से हिन्दी में एम्. ए

फिलहाल शोध कार्य में संलग्न

द्वारा - श्री रजनीकांत त्रिपाठी
ग्राम पोस्ट - मऊ
जिला - चित्रकूट उत्तर प्रदेश