नवनीत
युवा कवि नवनीत की कवितायें को आप पहले भी सिताब दियारा
ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं | एक बार फिर इनसे रू-ब-रू होते हुए मुझे भी ख़ुशी हो रही है
|
पढ़िए
सिताब दियारा ब्लॉग पर युवा कवि नवनीत की कवितायें
मुमकिन हो एक दिन
एक ......
मुमकिन हो एक दिन
हमे अपनी बेशर्मियो से प्रेम हो जाये
न जानते हुये किसी के बारे मे
जानने का स्वांग रचने लगें ,
बिना प्रेम किये ही
लिखने लगें प्रेम पर ,
अपनी अजनबी भावनाओं को
शब्दो मे समेटकर कि एक स्त्री
कब कहाँ कैसे किसी के सामने
एक कविता मे तब्दील हो गयी,
यह भी मुमकिन है कि,
खुद का पेट भरा होने के बावजूद,
नापने लगें भूख से कुलबुलाते
बच्चों से उनके सपनो की दूरी,
जीवन की जटिलताओ के बीच
देख सके उसकी सरलताओ को ,
कुंद पड़े हथियारो मे लगा सके धार
और लङ सके युद्ध
यहाँ भी लङाई के नियम पुराने है,
और वार निहत्थो पर होने है,
जहाँ जीतने के लिये जरूरी है,
जमे रहना युद्ध के अन्त तक,
अपने झूठ के साथ।
दो .....
एक दिन घृणा
प्रेम किये जाने की तरह
आसान हो जाय,
और बुराईयो को याद करना
किसी को याद करने
जैसा सुखद,
एक दिन
युद्ध से भागने की मजबूरी
कायरता नही,
साहसी होने की शुरूआत कही जाय
और तटस्थता सबसे बङा अपराध
एक दिन
धर्मनिरपेक्षता अपने चेहरे से
मुखौटे को हटाये
और दुनियाँ के सारे कट्टरपंथी शब्द
एक नये शब्द के स्वागत मे
खङे होकर तालियाँ बजाये
मुमकिन हो एक दिन
तीन .....
एक दिन भाषाएँ हमसे संवाद करे
पूछे एकांत की परिधि मे
अपने होने का वजूद ,
शब्दो के तेज से कम कर सके
दुखों की तासीर
प्रेम की अभिव्यक्ति मे
न मिले तारीखो की सीढियां
समय की गवाही मे
स्थापित हो
मौन के संवाद
समानान्तर रेखाओ के जीवन मे
मिट सके दूरियो के श्राप
कभी-कभी बदल जाये नियम
बन सके अपवाद
एक दिन अतीत
वर्तमान की गलतियो को सुधार
छोङ सके
भविष्य के तवायफखाने मे
मुमकिन हो एक दिन
१ ..... पिता का
दुख
पिता अपने दुख मे अकेले नही थे
गुजर चुकी माँ की यादे भी थी
पिता के कन्धे
किसी वजन से नही
यादो के दुख से झुके थे
पिता के दुख मे
लुप्त होती आल्हा ऊदल की गाथाये थी
जिसे सुन कुछ पलो के लिये
तन जाती थी उनकी भृकुटियाँ
और नसो मे आ जाता था खिचाव
अचानक पिता का दुख
किसी वीर रस की कविता मे बदल जाता था
पिता के दुख मे घर से भगायी गयी
लङकियो के पिताओ का दुख भी था
जिससे बङी नही थी
किसी पृथ्वीराज की वीरता
एक दिन दुनियाँ के सारे दुखी पिता
अपने दुख की नदियों से
सीचेंगे बन्जर होती धरती का सीना
और अपने दुःख से बीजों से
उगायेगे सुख की फसल |
परिचय
और संपर्क
नवनीत
20 जनवरी 1988
उत्तर प्रदेश के चंदौली में
जन्म
अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर
अब कविता के समाजशास्त्र से
जूझना
युवा पीढ़ी के लेखकों को
पढ़ने में अधिक उत्सुक