रविवार, 21 जुलाई 2013

अस्मुरारी नंदन मिश्र की कवितायें

                               अस्मुरारी नंदन मिश्र 

कविता के इस नितांत अतुकांत होते दौर में अस्मुरारी नंदन ने उसमें लयात्मकता लाने की कोशिश की है | अच्छी बात यह है कि उन्होंने यह ख्याल भी रखा है कि इन कविताओं की मूल आत्मा भी बनी रहे , और वे हमारे दौर-समाज को प्रतिविम्बित करती रहें | यद्यपि कि इस साहस और प्रयास में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है , फिर भविष्य में उनसे उम्मीद रखते हुए इन कविताओं का स्वागत तो किया ही जाना चाहिए |

       तो प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर अस्मुरारी नंदन मिश्र की कवितायें
                                              

एक ....

बिगड़े हैं हालात
जरा काबू करने दो
बहुत डरावनी रात,
जरा काबू करने दो

बहुत संभल कर बोल रहा था
शब्द शब्द को तोल रहा था
फिर भी बिगड़ी बात
जरा काबू करने दो
दिल उमड़ा है आँख भरी है
छलक रही छुल छुल गगरी है
बहके हैं जज्बात
जरा काबू करने दो

कौन है अपना कौन पराया
उम्र गयी पर समझ न आया
खाई मात पे मात
जरा काबू करने दो

कैसे कोई रिश्ता पालूँ
टूट रहे विश्वास संभालूं
होते भीतर-घात
ज़रा काबू करने दो

आज न कोई इच्छा आशा
और कहीं ना नेह जरा सा
जीवन भी खैरात
जरा काबू करने दो....


दो


बाबाओं का दौर है बाबा
बाबाओं की दौड़ है बाबा

मंदिर- मस्जिद सब इनके घर
इनके सब हैं  ईश - पैगम्बर
ये श्लोक में ,ये आयत में
ये किस्मत में ,ये साइत में
स्वर्ग- नरक इनके चरणों में
काशी हो फिर या हो काबा

यही सहस्र-मुख कोटि- भुज ये
अखिल,अनश्वर,अमर , अज ये
यही अनादि हैं  ,यही अनंत हैं
यही काल और यही दिगंत हैं
क्षण प्रति क्षण ये जस के तस हैं
जस इनका कण-कण पर छाबा

ये मूंछों मेंये दाढ़ी में
लुंगी,धोती ये साड़ी में
ये जादू हैं , ये टोना हैं
घर का वर्जित ये कोना हैं
इनकी चकाचौंध से निकलो
फिर देखो ये असल में क्या हैं
इन्हें न सुनना प्रवचनों में
इन्हें न देखो सत्संगों में
इन सुबहों और इन शामों में
इनको देखो हम्मामों में

संसद ,सड़कबाजार हैं इनके
गृहरक्षाव्यापार हैं इनके
विधिन्याय और कार्य के पालक
मिडिया के सब तार हैं इनके

ये आँखों में ,ये काजल में
ये सावन में ये बादल में
ये पगड़ी में ,ये जूते में
रहते हैं अपने बूते में

ये पेप्सी परये कोला पर
ये पॉकेट में ,ये झोला पर
मैन्फोर्स के विज्ञापन में
ये योगों में ,ये आसन में
कोयल की बोली भी इनकी
बन्दूक की गोली भी इनकी
 हम तो हैं बस मुर्ग-मुस्सलम
इनका होटलइनका ढाबा

यही धुंध हैंयही गर्द हैं
यही चुभन हैंयही दर्द हैं
ये क्या कोई दर्द हरेंगे?
ये क्या कोई दुआ करेंगे?
 बिना बीज ये उग आते हैं
इसका पीतेउसका खाते हैं
ये परभक्षीये नरभक्षी
जोंक,चमोकन,मच्छड ,मक्खी 
थूक ही ये हैं,पीब ही ये हैं
सांप की लम्बी जीभ ही ये हैं
जल्दी फेंकों ,जल्दी काटो
कोई लिजलिजा जीव ही ये हैं

अब तो इनके झाल को छोडो
ढोलक और करताल को छोडो
हे भक्तों! सब मिलकर आओ
आओ इनके बैंड बजाओ
इनके मुँह पर जोर से फेंको
इनका वचन और इनका दावा..



तीन


समझ ले सारा खेल मुसफिरा!!
ढोल भी ओकर बोल भी ओकर
मिट्टी-अखाड़ा-- गोल भी ओकर
बिन उतरे ऊ खेल रहल हव
हर नियम के ठेल रहल हव
ओकर हिस्से जीत ही जीत ह
तू चाहे दंड पेल मुसफिरा...


चार



कभी इस लहर तो कभी उस लहर
मोड़ पर रुकाचाल बदली मगर
है सवारी वहीहूँ उसी राह पर

आम की डाल पर चहचहाती हुई
आज भी वे सुबहें जगाती रहीं
दिन खेला किया संग उसी जोश से
साँझ की लालिमा मुस्कराती रही
उन रातों की बातें रहीं साथ में
वही लोरी अभी भी सुलाती रही
जुड़ी राह से मेरी माँ की नजर
साथ चलती रही चाहे जाऊँ जिधर
है सवारी....

छोटा सा लेकिन वह आँगन खुला
मेरे मन की परिधि बढ़ाता रहा
खेतों से चल कर जो मन में मेरे
लहलहाता था अब भी लहराता रहा
मेरी आँखों को बाँधे रहा जो सदा
लाल फूलों में सपने सजाता रहा
छाँव देता हुआ सा मेरे शीश पर
साथ चलता रहा है वही गुलमुहर
है सवारी...

आती राहों ने बाहों को खोला मेरी
लरजती हवा ने मुझे चाल दी
मेरी भाषा असीसें बरसाती रही
जिसमें बसती रही है कई इक सदी
दिवाली ने आखों को दी रौशनी
तो होली की मन में बसी गुदगुदी
नभ में रखता रहा जो सदा ही नजर
उसी पर्वत नें मुझको दिया है यह सर
है सवारी...

मैं दिखता रहा हूँ अकेला मगर
हर घड़ी कोई मेरे रहा साथ में
धूप मेंचाँदनी में रहा है वही
बादलों में मिला है जो बरसात में
दर्द में वह दवायें बना है सदा
गीत बन कर बहा है जो जज्बात में
उसी की डगर है उसी का सफर
अपना लगा है मुझे हर शहर
है सवारी...

यह टिकटिक घड़ी की न तोले मुझे
मैं महज कुछ वर्षॉं की गिनती नहीं

मेरी धड़कन से धड़के जमाने कई
मेरी साँसें सदियों से लम्बी रहीं
बूँद ठहरी हुई सूखती है मगर
क्या बहती लहर टूटती है कहीं
मौत की साजिशें हैं हुई बेअसर
मुझमें जुड़ती रही है किसी की उमर
है सवारी वही हूँ उसी राह पर....




परिचय और संपर्क

अस्मुरारी नंदन मिश्र

जन्मतिथि – २६ अगस्त १९८३
जन्मस्थान- नवादा , बिहार
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा-दीक्षा
सम्प्रति - केंद्रीय विद्यालय पारादीप , उड़ीसा में शिक्षक  




7 टिप्‍पणियां:

  1. सभी कवितायेँ भावुक मन से लिखी गयी हैं.नेताओं और बाबाओं पर तीखा कटाक्ष किया गया है और अंतिम कविता प्रकृति के प्रति प्रेम झलकता है.

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  2. अपने कथ्य और शिल्प में नयापन लिए हुयी प्रभावशाली कवितायेँ हैं . दूसरी कविता सबसे अधिक आकर्षित करती है . अस्मुरारी कविता में अपना एक नया पथ बनाते हुए चल रहे हैं उनसे मुझे बहुत आशाएं हैं . ढेर सारी शुभकामनायें.

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  3. Doosaree kavita ke liye vishesh badhai!! Dost salaam! Bhai Ramji aapka abhaar.

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  4. आम तौर पर यह शिकायत रहती है कि आज की कविता लय और छन्द की भाषा भूल चुकी है। और उसमें गद्य का प्रभाव इतना अधिक होता है कि अगर पंक्तियों को तोड़ कर न लिखा जाय तो वह एक लेख सरीखा ही लगे। पाठकों की यह चिन्ता बहुत हद तक जायज भी है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। कुछ युवा कवि छन्द और लय की दिशा में बेहतर कार्य कर रहे हैं। अस्मुरारीनंदन मिश्र ऐसे ही युवा कवि हैं जिन्होंने इस तरह के कुछ प्रयास किये हैं। badhaee Asmurari k0 evam aabhaar sitaabdiyaara kaa.

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  5. ढेर सारी शुभकामनायें....kya kavita he???

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  6. प्रभावित करने वाली रचनाएँ , सटीक टिप्पणी | कवि मित्र को बधाई और शुभकामनाएँ | 'सिताब दियारा ' का आभार |
    -नित्यानन्द गायेन

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