गुरुवार, 29 नवंबर 2012

मैं तो गीत गाना चाहता हूँ - मिथिलेश राय


                                  मिथिलेश राय 



युवा कवि मिथिलेश राय की कवितायें आप ‘असुविधा ब्लाग’ पर हाल ही में पढ़ चुके हैं | उनके पास कविता की भाषा और आवश्यक शिल्प तो है ही , उसके बनने लिए सबसे जरुरी कथ्य भी है , जिसके सहारे वे अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से रखने में कामयाब होते हैं | एक युवा कवि के लिए इससे बढ़िया और क्या हो सकता है , कि अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए भी , वह इन सारे मानदंडों पर खरा उतरने का सफल प्रयास करता दिखाई दे रहा है | बोलचाल सी दिखने वाली भाषा से ऐसे चटकदार बिम्बों को निकालने वाले इस प्रतिभाशाली युवा स्वर का ‘सिताब-दियारा’ ब्लाग हार्दिक स्वागत करता है |  

       
          तो प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लाग पर युवा कवि मिथिलेश राय की कवितायें



1...    जहां मैंने मुसकुराना सीखा था

जहां मैंने फूल उगाए थे
पंछियों के लिए दाने फेंके थे
एक नीम का पौधा रोपा था
उगते सूर्य के साथ जहां मैंने
तुलसी के जड को सींचा था

जहां मुझे मुसकुराना आया था
जहां मेरी रात चांद को निहारने में
और दिन सपने में गुजरते थे
जहां मैंने इंतजार सीखा था

जहां के रास्ते बोलते थे
चिडियां गाती थीं तो
वृक्ष झूमने लग जाते थे
और हवा बौराई सी लगती थी जहां की
वहीं लौट जाना चाहता हूं अब

यहां चलते चलते रास्ते खत्म हो जाते हैं
बरगद नजर नहीं आता


2... ओस की बूंदों में मेरा ही चेहरा चमके

नहीं का पता है सब जानता हूं
बस विश्वास नहीं होता
उसी का गीत गाता हूं
उसी के नाम को
मंत्र की तरह बुदबुदाते रहते हें मेरे ओंठ
सांस खींचता हूं तो लगता है
हवा में उसी का गंध बसा है
दूब की नोंक पर ओस की बूंदों में
उसी का बिंब प्रतिबिंबित होता है

लेकिन अब मैं सारे दृष्य
अपनी आंखों से देखना चाहता हूं
एक मंत्र की तरह पवित्र और
शक्तिमान बनना चाहता हूं
मैं चाहती हूं कि ओस की बूंदों में 
अब सिर्फ मेंरा ही चेहरा चमके
हवा मुझे सुगंध की तरह बिखेर दें चारों तरफ

मैं अब उन सभी का कुशलक्षेम पूछना चाहता हूं
जो मिट रहे हैं
नहीं है की प्रतीक्षा में
मैं उन सब का हाथ अपने हाथों में थामकर
अब दौडना चाहता हूं

 
3... डर हथियारों की सुरक्षा में मुस्करा रहा था

जब हम एक पत्थर को
नुकीला आकार दे रहे थे
आकार ले रहा था हमारा डर भी
डर के पैनेपन को छेदने के लिये
फिर हमने भाले बनाये
मगर डर वहां तक पसर चुका था
बंदूक से चली गोली की आवाज
फैल गयी थी जहां तक

डर को उडाने के लिये हमने तोप बनाये
और बारूद का गोला
मगर वह उतना ही भयंकर अट्ठाहास कर उठा
जितनी भयंकर थी तोप दगने की गर्जना

ब्रह्मांड के सबसे बुद्धिमान प्राणी
आश्चर्यचकित थे
और व्यथित भी
जबकि डर
हथियारों की सुरक्षा में मुसकुरा रहा था


4... समाचार में

हमसे तो ऐसा कहा गया था
कि सबकुछ कहा जायेगा
सबकुछ

बालश्रम से मुक्त कराये गये बच्चों ने
जो यह कहा था
कि हमारे काम नहीं करने से
हमारा घर कैसे चलेगा
यह भी

एक औरत
एक किसान
और एक बेरोजगार लडके ने
आत्महत्या करने से ठीक पहले
जो एक बात कही थी
वह भी

मगर सिर्फ वहीं कहा गया
जो देश के हूक्मरानों ने कहा था



5... मैं तो गीत गाना चाहता हूं

मैं एक बाइस साल का नौजवान हूं
औेर मैं ऐसा चाहता हूं कि डूब कर प्रेम करूं

मैं चाहता हूं कि मेरी नींद
किसी की खिलखिलाहट से टूटे
और खिले हुए फूल पर नजर पडते ही
सुगंध से भर जाये मेरा रोम रोम
मैं कोयल को कूकते हुए सुनूं तो
बरबस गीत के बोल फूट पडे मेरी कंठ से

मेरा चाहना किसी से जुदा नहीं है
मेरा एक दोस्त जो अपनी उम्र का सत्ताइसवां वसंत पार कर गया है
कह रहा था कि
उसे भी बांसुरी के स्वर अच्छे लगते हैं
और वह भी पूरे दिन काम करने के बाद
रात को गहरी नींद में सोना चाहता है
वह चाहता है कि उसे इतनी गहरी नींद आये
कि सपने में क्या हुआ था,
सुबह कुछ भी नहीं बता पाये

लेकिन उसने बताया कि
उसे नींद ही नहीं आती
और बताया कि
गांव से सावन नाराज हो गया है
और खेत में लोगों चेहरे पीले होकर लटक रहे हैं
टूटी नहरें बालू उडा रही हैं
उस ओर देखने पर मन और हताश हताश हो जाता है...



संक्षिप्त-परिचय

नाम-मिथिलेश कुमार राय

जन्म-24 अक्टूबर,1982
जन्म स्थान – सुपौल , बिहार
शिक्षा - स्नातक।
प्रकाशन- देश की सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित |
गद्य साहित्य में लेखन |
मैथिली में भी लेखन।
संप्रति- प्रत्रकारिता।
संपर्क - द्वारा, श्री गोपीकान्त मिश्र, जिलास्कूल, सहरसा-852201, (बिहार)
मोबाइल-094730 50546




4 टिप्‍पणियां:

  1. samacharon me ..maarak kavita...yahan chalte chalte kabhi nhi aata bargad ka ped..aah..khub srl shj bhasha mithilesh ji aapki maan ko chhuti..kavitayen apni si lagi...badhaii

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  2. अपार सम्भावनाओ के कवि की जादुई कविताये

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  3. मिथिलेश की कवितायें प्रभावित करती हैं |इन कविताओं में प्रेम की कोमल अनुभूतियाँ हैं |वे सादगी के साथ आते हैं , बिना अतिरिक्त शोरगुल के और एक धुन की तरह बजते हैं | बधाई उन्हें |.....अरविन्द , वाराणसी |

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  4. komal samvednaon bhari bahut hi sachhi sunder bhavnayen sahaj saral shabdon men abhivakt hui....badhai...

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