वंदना शुक्ला
कथाकार – कवयित्री वंदना शुक्ला का यह सिंगापुर यात्रा-वृत्तान्त
कई मायनों में महत्वपूर्ण है | इसमें उस देश की भौगोलिक-सामाजिक स्थिति की जानकारी
तो मिलती ही है , उस बदलाव और रहन-सहन की जानकारी भी मिलती है , जिससे वह मुल्क
गुजर रहा है |
प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर वंदना
शुक्ला का यात्रा-वृत्तान्त – ‘सिंगापुर’
विदेश में भाषा,
चेहरे , समय-चक्र ,आर्कीटेक्चर.,लाइफ स्टाइल ,पर्यटन स्थल,इतिहास संस्कृति ही नहीं
बल्कि यहाँ की आबो हवा ,गंध ,हंसी ,मिज़ाज ,सुबह शाम,वनस्पति ,मौसम ,एक नागरिक के
वुजूद की अहमियत ,यहाँ तक कि जीवन के प्रति सोच सब अपने देश से फर्क होते हैं| सच
कहूँ तो इसी अनुभूति ने मुझे सिंगापुर यात्रा वृत्तान्त लिखने के लिए प्रेरित किया
|मैं यहाँ लगभग एक माह के प्रवास पर थी अपने एक निकट के रिश्तेदार के यहाँ जिनका
पंगोला क्षेत्र में अपना फ्लेट है जो अभी कुछ महीने पहले ही खरीदा है उन्होंने |
यायावरी और इतिहास
की मैं बेहद शौक़ीन रही हूँ तो स्वाभाविक था कि इस देश में भी घूमने फिरने के मामले में कोई कोताही ना बरतूं |
चान्घी हवाई अड्डे
पर उतरने और बाहर आने में कोई खास परेशानी नहीं हुई
सिवाय इसके कि यहाँ माहौल अपने देश से कुछ अलग था हवाई अड्डा तो वैसा ही कमोबेश जैसे सब देशों के होते हैं ,टेक्सी स्टेंड भी आम टेक्सी स्टेंड जैसा ही लग रहा था बस फर्क इतना ही था कि वहां एक कतार में खड़ा होना पड़ा लेकिन टेक्सी का आना जाना इतना त्वरित था कि लगभग पांच मिनिट के भीतर ही हम एक चमचमाती फर्राटेदार टेक्सी में उड़े चले जा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे कार ज़मीन पर नहीं हवा में उड़ रही है
सिवाय इसके कि यहाँ माहौल अपने देश से कुछ अलग था हवाई अड्डा तो वैसा ही कमोबेश जैसे सब देशों के होते हैं ,टेक्सी स्टेंड भी आम टेक्सी स्टेंड जैसा ही लग रहा था बस फर्क इतना ही था कि वहां एक कतार में खड़ा होना पड़ा लेकिन टेक्सी का आना जाना इतना त्वरित था कि लगभग पांच मिनिट के भीतर ही हम एक चमचमाती फर्राटेदार टेक्सी में उड़े चले जा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे कार ज़मीन पर नहीं हवा में उड़ रही है
साफ़ सुथरी चमचमाती
लम्बी सड़कें ,रोशनी में नहाई हुई ....आसपास एक सी पुती गगन
चुंबी इमारतें ,सड़कों के इर्द गिर्द सुन्दर हरे भरे पेड़ , ,हर रोज़ होने वाली बारिश से खिले गाढे हरे पत्तों
भरी हरियाली, कुछ २ दूरी पर लगी अनुशासन बद्ध जलती बुझती लाल
हरी बत्तियां,उनके इशारे पर दौड़ते वाहन और हरी बत्ती जलते ही
ज़ेब्रा क्रोसिंग'' पर तेज़ चलते कदम ... दौनों के बीच के तालमेल को
देखते लम्बे दरख़्त,ऊंची इमारतें और लम्बी बेजाम सड़कें
यहाँ ज़िन्दगी और
मेट्रो में कोई ख़ास फर्क नहीं ....नियमबद्ध, समयबद्ध,भागती दौड़ती ,सुन्दर सजी धजी ,अपने अपने ट्रेक पर ...
सिंगापूर के
समयानुसार यहाँ शाम के साढ़े पांच बजे थे लेकिन ‘दिन ‘ की रोशनी मद्धम थी वजह
बारिश और आसमान में छाये काले बादल |सामान्य चहल पहल,सुकून,कोई हडबडाहट नहीं न
चेहरों पर न सडकों पर |सब अपने अपने कामों गतिविधियों में मसरूफ |मुझे यहाँ की ये अदा भाती है लोग दूसरों से
ज्यादा अपनी ज़िंदगी से मतलब रखते हैं औरसुख या खुशियों को प्रायः सामूहिक रूप से
मनाते हैं जबकि निजी पीड़ा दुःख (यदि आते हैं तो)बिना किसी समाज देश परिवार या
व्यवस्था को कोसे अपने स्तर पर भोगते हैं इसकी एक वजह शायद ये भी है कि राजनैतिक
सामाजिक जैसी स्थितियां उनकी दिनचर्या और ज़िंदगी में ज्यादा जगह नहीं घेरतीं |पूरा देश रात में भी रोशनी से सराबोर रहता है |
दक्षिण एशिया के
मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच में स्थित सिंगापुर दुनियां के प्रमुख बंदरगाहों में
से एक है |’’सिंगापुर’’ अंगरेजी और हिन्दी में कहा जाता है जबकि चीनी भाषा में
इसका नाम शीन्जियापो,तमिल में चिक्कापूर और मलय में सिंगापुरा कहते हैं |सिंगापुर
का मतलब है सिंहों का पुर |यहाँ ये किंवदंती प्रसिद्द है कि एक राजकुमार जब इस
वन्य प्रदेश में भटक गया जो अपने साथियों के साथ शिकार खेलने आया था तब एक बड़े शेर
ने उसका रास्ता रोक लिया सभी साथी भाग या
छिप गए सिवाय राजकुमार के |शेर कुछ देर उसे घूरता रहा और फिर पलटकर चला गया |तभी
उस राजकुमार को एक अंतर्ध्वनि सुनाई दी कि इस स्थान पर एक देश बनाया जाए और उस
राजकुमार ने इस देश की नींव रखी | (एशियन सिविलाइजेशन म्युसियम में इस किंवदंती
(कहानी )का एक एनीमीटेड स्लाइड शो भी पर्यटकों को दिखाया जाता है|) उल्लेखनीय है
कि इससे पहले ये मलेशिया का एक भाग हुआ करता था |आधुनिक सिंगापुर की स्थापना 1819 में सर स्टेन फोर्ड रेफल्स ने की थी और सन 1965 में यह मलेशिया से अलग राष्ट्र बना और इसका नाम
‘’सिंगापुर ‘’रखा गया |अभी यहाँ सबसे अधिक चायनीज़ लोग हैं उसके बाद मलय और तीसरी
सबसे बड़ी आबादी भारतीयों की ८ प्रतिशत हैं |यहाँ चीनी ,मलय व् हिन्दी,तमिल आदि
भाषाएँ बोली जाती हैं | क़ानून व्यवस्था बेहद चुस्त दुरुस्त |और अर्थशास्त्र?
सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने सिंगापूर को ‘’आधुनिक चमत्कार ‘’ कहा है |उसकी वजह
यह है कि यहाँ सारे प्राकृतिक संसाधन बाहरी देशों से आयात किये जाते हैं जैसे पानी
मलेशिया से ,दूध फल व् सब्जियां न्यूजीलेंड से,ऑस्ट्रेलिया से गेहूं चावल दालें और
अन्य चीज़ें थाईलेंड,इंडोनेशिया आदि से आयात की जाती हैं |
यहाँ आवागमन का सबसे
लोकप्रिय और प्रचलित माध्यम मेट्रो ट्रेन्स हैं इसके अलावा डबल डेकर बसें ,टेक्सी
और बहुत छोटी (बस के आकार की )रेलें हैं जिनकी पटरियां देश के कई हिस्सों में
फ्लाई ओवर के ऊपर से होकर गुजरती हैं और ये बस नुमा रेलें रात दिन उन पर दौड़ती
भागती बल्कि उड़ती हुई वहां के यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाती रहती हैं
|यात्रियों की सुविधा के लिए सडक से पुल तक पहुँचने के लिए लिफ्ट की व्यवस्था है
|यहाँ कारें और बाईक्स बहुत कम हैं इसकी मुख्य वजह बेहद महंगी होना है |यहाँ हर दस
वर्ष के बाद कारें /बाईक्स बदल देना पड़ता है जिसके लिए एक वर्कशौप है जहाँ उन्हें
जमा कराना होता है |इनका उपियोग दुबारा करने के लिए नहीं बल्कि इनके टायरों आदि को
जला दिया जाता है और अन्य पार्ट भी अनुपयोगी सामन में फेंक दिए जाते हैं |इसके
अतिरिक्त भीड़ भरे स्थानों,या समय (दिन रात के अनुसार)इनके अलग अलग चार्ज भी करना
पड़ता है कुल मिलाकर यहाँ आम आदमी घर तो खरीद सकता है पर कारें नहीं |इसके पीछे
तर्क ये हैं कि यदि ये नियम न बनाये
जायेंगे तो सडकों पर भीड़ बढ़ जायेगी दुर्घटनाओं के खतरे के साथ प्रदूषण भी हो जाएगा
| पूरे देश का डिजायन इस तरह से तैयार किया गया है कि नागरिकों को अपने आवास से
वॉकिंग डिस्टेंस पर मेट्रो स्टेशन की सुविधा मिल सके |टेक्सी कॉल करने के पांच
मिनिट बाद आपके आवास पर उपलब्ध होगी |
भारतीय दर्शन उर्फ़
लिटिल इण्डिया
हम लोग धोबी
घाट,पंगोल,सेंकाक आदि स्टेशन पार कर अपने गंतव्य तक पहुँच गए |यहाँ एक पुल था जिस
पर सीढ़ियों से चढ़कर जाना होता है यानी एस्किलेटर नहीं हैं यहाँ आने के बाद ये पहला
मौका था सीढ़ियों से चढने का |उसके बाद पैदल पथ पार कर एक बाज़ार में आ गए |निखालिस
बाज़ार ... जिसे हम भारतीय बाज़ार कहते हैं वो यहीं लिटिल इण्डिया में ही देखने को
मिलता है नहीं तो अन्य पौष इलाकों में छोटी दुकाने नहीं के बराबर ही हैं |हर जगह
बस शानदार मॉल्स और रेस्तरां |लिटिल इंडिया में प्रवेश करते ही ये बताने की ज़रुरत
नहीं पड़ती कि यहाँ इन्डियन दुकानें हैं |यहाँ आकर लगता है जैसे भारत में ही हों
|हिन्दी या दक्षिण भारतीय भाषाएँ बोलते लोग वही पहनावा ,मिठाइयाँ,सब्जी, देवी देवताओं के चित्र व् मूर्तियाँ |शुरुवात
सब्जी की दुकानों से होती है वैसी ही जैसे भारत में होती हैं सब्जी की दुकानें
छोटी संकरी और बाहर तक सब्जियों की ढेरियाँ |एक लम्बी कतार है सब्जी परचून और छोटे
मोटे होटलों की बीच में एक कम चौड़ी सडक और सामने भी दुकानें |मिठाई,छोटे
होटल,परचुने,गोश्त आदि की |चूँकि तब बारिश होकर चुकी थी इसलिए जगह जगह कीचड और
गीलापन था |कहीं कहीं दूकानदार आपस में लड़ झगड़ भी रहे थे या शायद बहस कर रहे होंगे
|हलाकि यहाँ आकर काफी अपनापन सा लगता है लेकिन ये देखकर कुछ आश्चर्य ज़रूर हुआ कि
पूरा देश अपने साफ़ सुथरे और व्यवस्थित यातायात ,रिहाइश ,मॉल्स आदि में दुनियां भर
में एक मिसाल है तब ये हिस्सा क्यूँ इतना तिरस्कृत व् अव्यवस्थित सा और पुराने
स्टाईल का है ?
यहाँ दो बाज़ार हैं
जहाँ भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है लिटिल इंडिया और मुस्तफा कमर्शियल सेंटर |
मुस्तफा एक विशाल आधुनिक मौल जैसा है जहाँ लिफ्ट ए सी आधुनिक पोशाकें पहने
विक्रेता ,क्रेडिट कार्ड से पेमेंट की सुविधा आदि उपलब्ध हैं |यहाँ सब्जी और
मसालों कॉस्मेटिक्स से लेकर देश विदेश के तमाम उत्पाद उपलब्ध रहते हैं | इन और
इनके अलावा अन्य बाजारों (मॉल्स ) में देर रात तक रौनक रहती है |जगह जगह फ़ूड
कोर्ट्स भी हैं जहाँ दुनियां के अलग अलग देशों के लज़ीज़ व्यंजन उपलब्ध हैं |यहाँ
वर्षभर वर्षा का मौसम रहता है |झड़ी दार बारिश और कुछ ही देर में धूप लेकिन इतनी
बरसात के बाद भी कहीं भी पानी का जमाव या कीचड़ दिखाई नहीं देता |
पर्यटन स्थल
उसके बाद हम
सिंगापूर के मशहूर संग्रहालय देखने गए जो अद्भुत थे |एक यहाँ म्यूजियम में एशियाई
देशों का इतिहास संस्कृति और सभ्यता को दिखाया गया है
नेशनल म्यूजियम ऑफ़
सिंगापुर–
इस संग्रहालय में
सिंगापूर का इतिहास और संस्कृति को चित्रों व् आलेखों द्वारा दिखाया गया |इमेजेज
ऑफ़ सिंगापूर में सिंगापूर की एतिहासिक और संस्कृतिक धरोहर को चित्रों सहित
प्रदर्शित किया गया है |द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में संक्षिप्त में ‘’अ
फ्लेश्बूक और वर्ल्ड वार २ में दिखाया गया है |
सिंगापुर कोईंस एंड
नोट्स म्यूजियम में सिक्कों की प्रदर्शिनी है |इसमें सिंगापूर के एतिहासिक सिक्कों
के बारे में विस्तृत जानकारी है जिसमे पर्यटक सिक्कों को छूकर भी देख सकते हैं
|इसके अतिरिक्र चाइनीज़ हेरिटेज सेंटर जिसमे चीनी समाज का इतिहास परम्पराएं और
संस्कृति को सचित्र दर्शया गया है |यह केंद्र एतिहासिक और विश्व प्रसिद्द नान्यान
यूनिवर्सिटी की इमारत में स्थित है |
Asian
civilization museum –
यह एक पौराणिक
संग्रहालय है जो १८६५ में बना |इसमें दक्षिण एशिया का इतिहास कलाएं व् कुछ विश्व
प्रसिद्द कृतियाँ सुरक्षित हैं |इसके अतिरिक विक्टोरिया थियेटर जहाँ सिंगापुर के
प्रतिष्ठित कार्यक्रम होते हैं
इनमे सबसे ख़ूबसूरत
और रोचक नेशनल म्यूजियम ऑफ़ सिंगापुर ही है|ये अपने आर्किटेक्चरल सौन्दर्य और
अद्भुत सामग्री के लिए प्रसिद्द है |इसे The story of the Lion भी कहा जाता है
बुद्ध के द्रश्यों
और इतिहास में ''लाइफ आफ्टर डेथ ''एक
दीर्घ चित्रों और साहित्य से भरी प्रदर्शनी के रूप में दिखाई गई है,जो अद्भत है
|
इस पूरे संग्रहालय में बहुत व्यवस्थित और रोचक
द्रशों में बहुत ही सधे और कलात्मक लाईटिंग का भी बहुत हाथ है ,जैसे ''लाईफ आफ्टर डेथ ''के द्रश्यों को तेज़-कम नीली रोशनी से दिखाया गया
है,जबकि मलेशिया आदि देशों के युद्ध के द्रशों को
गाढे लाल सिंदूरी रौशनी से दिखाया गया है
इस संग्रहालय में
अनेक एशियाई देशों की जानकारी हासिल होने के अलावा जो महत्व पूर्ण चीज़ दिखी वो ये
कि विद्ध्यार्थियों को देश विदेश के इतिहास की जानकारी गंभीरता से दी जाती है
जिसकी बाकायदा कक्षाएं यहाँ संग्रहालय में लगाई जाती हैं |हमने दो तीन विद्ध्यालयों के छात्र छात्राओं को
उनके अध्यापकों के द्वारा पढ़ाते हुए देखा |
यहाँ मुझे जो स्थान
सबसे अच्छे लगे वो थे तीन संग्रहालय (Asian civilization Museum and the Singapore Art Museum/Museum
of toys ,)
जुरोंग बर्ड
पार्क,मरीना बेराज़,’’सोंग ऑफ़ द सी,फ्लायर,सेंतोसा बीच
जुडोंग बर्ड पार्क
में 600 प्रजातियों व् 8000 से अधिक
पक्षियों के संग्रह के साथ यह पार्क एशिया का सबसे बड़ा बर्ड पार्क है |यहाँ साउथ
पोल का कृत्रिम वातावरण बनाकर पेंग्विन पक्षी भी रखे गए हैं | इस पार्क में उस
विशाल ज्क्रत्रिम जंगल में ख़ूबसूरत रंगीन हजारों किस्मों की चिड़ियाएँ जो दुनियां
भर से यहाँ लाकर रखी गई हैं अपने आसपास चहकती उडती दिखाई देती हैं | टूरिस्ट अपने
हाथ में इनका भोजन लेकर इन्हें खिला सकते हैं |वो अद्भुत द्रश्य होता है जब ये बीस
पच्चीस ख़ूबसूरत चिड़ियाँ भोजन के लिए पर्यटकों के कंधे कभी हाथ और कभी सर पर बैठती
हैं | यहीं एक और जंगल में ३० मीटर उंचाई से गिरता हुआ ख़ूबसूरत झरना दिखाई देता है
|
सेंटोसा बीच पर सोंग
ऑफ़ द सी को देखना एक अद्भुत अनुभव था जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता |समुद्र के बीच
में लेजर शो जहाँ सिंगर रंग बिरंगे विशाल बुलबुले के पारदर्शी रंगीन आवरण के भीतर
बीच समुद्र में उतने ही भव्य रूप में गाते हुए दीखते हैं \ये शो रात में दिखाया
जाता है चारों और सुन्दर द्रश्य और भव्य मॉल्स की चकाचौंध |
सेटोसा पार्क का एक
और आकर्षण है कांच की पारदर्शक चौड़ी सुरंग में से होकर गुजरना |सुरंग के चारों और
रोशनी में नहाये समुद्र में छोटी मछलियों से लेकर व्हेल और दरियाई घोड़े जैसे
समुद्री जीवों को अपने आसपास और बेहद करीब से तैरते हुए देखना ..बहुत रोमांचित कर
देने वाले द्रश्य |
इसके अलवा स्काई
ड्राइविंग ,और 165 मीटर की
उंचाई वाले फ्लायर के पारदर्शक बॉक्स में से पूरे सिंगापूर को देखना भी शानदार
अनुभव था
यहाँ टेरेस
पार्क,रूफ कार पार्किंग,टेरेस स्वीमिंग पूल,रेन वॉटर हार्वेस्टिंग ,रूफ टॉप
ग्रीनरी ,इत्यादि बेहद सुनियोजित तरीकों से बनाई गई हैं |
एक और बात मैंने
यहाँ देखी यहाँ ट्रेफिक बहुत सुव्यवस्थित और सुनियोजित है कहीं भी ट्रेफिक पुलिस
और बेरियर्स नहीं है सिर्फ रेड और ग्रीन बत्तियों व् सडकों पर खींची रेखाओं से
पूरा ट्रेफिक नियंत्रित होता है लेकिन कैमरे हर जगह लगे हुए हैं | हॉर्न का उपियोग
बहुत ज़रूरत होने पर ही किया जाता है |यहाँ नागरिकों की सुविधाओं का विशेष ध्यान
रखा जाता है और एक छोटे अपराध के लिए बहुत बड़ी सज़ा का क़ानून भी है |इस देश में
पैदा होने वाले लड़कों को अठारह वर्ष का होने पर सरकार को सौंपना होता है दो वर्षों
के लिए ,यानी आर्मी में भर्ती होना अनिवार्य है,जहाँ उन्हें फायरिंग से लेकर मेट्रो,या ट्रेफिक नियमों तक की ट्रेनिंग दी जाती है और कड़े अनुशासन का पालन किया जाता है यहाँ
विभिन्न संस्कृतियों भिन्न २ वेशभूषा और सम्प्रदायों के लोग रहते हैं ,चाइना टाउन है तो अरब मार्केट भी है,लिटिल इंडिया है तो मुस्तफा भी है ,सेंतोसा बीच है ,सिंगापोरे
रिवर है ,मलय गिरजाघर हिन्दू मंदिर और चीनी मंदिर यहाँ खूब
दिखाई देते हैं अलग अलग वेशभूषा और संस्कृति होते हुए भी सब कुछ बहुत सहज है शायद
इसलिए कि यहाँ ''अनेकता में एकता ''या हम
सब एक हैं जैसे नारे नहीं ,ना ही ''हम होंगे कामयाब एक
दिन ''जैसे भविष्यत् गीत |जहाँ कार्यालयों बेंकों में सब
लोग एक साथ काम करते हैं जिनकी अंग्रेजी एक कॉमन भाषा है वहीँ गगन चुंबी और महंगे
अपार्टमेट्स में लोग ज्यादातर अपने परिवार के साथ रहना या घूमना फिरना पसंद करते
हैं आपसी रिश्ते अपने अपने जुबान और धर्मों के लोगों
के साथ ही रहते हैं
उल्लेखनीय है कि
सिंगापूर एक छोटा ,व्यवस्थित सुनियोजित एवं व्यवस्थित देश है ,यहाँ के समस्त क्रिया कलापों की डोर यहाँ की एक
पक्षीय सरकार के हाथों में है यहाँ की अर्थ व्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा पर्यटन
से प्राप्त होता है ,जिसे अद्भुत क्रियान्वित किया गया है
सिटी टूर
पर्यटकों को अन्य
सुविधाओं के अतिरिक्त एक ''सिटी टूर''कि व्यवस्था भी है
जो डबल डेकर खुली छत वाली ए सी बस पूरे सिंगापोर की यात्रा कराती है ,उसमे बाकायदा एक कोमेंट्री भी चलती है जो दिखाए
गए स्थान के इतिहास और विशेषताओं को बताती चलती है
इस यात्रा के दौरान आसपास की सुव्यवस्थित शांत और
बेहद खुबसूरत चकित कर देने वाले द्रशों को देखकर किसी स्वप्न लोक में विचरने सा
अहसास होता है ,कई द्रश्य देखकर ऑंखें खुद पर यकीन नहीं कर पातीं
कि ऐसा भी होता होगा
कुछ स्थानों के अनुभव एक अविस्मरनीय घटनाओं व्
द्रश्यों के रूप में दिल में बस गए उनमे से कुछ यहाँ आपके साथ बांटना चाहते हैं
नाईट सफारी –(जू)
हम लोग जब नाईट
सफारी पहुंचे तब शाम के करीब सात बजे थे अन्धेरा घिर गया था बादल और हल्की बारिश
भी थी |नाईट सफारी एक जू है जिसका समय रात के छः बजे से ग्यारह बजे तक है |मुझे
बताया गया था कि जंगल में खुली ट्राम में से सभी जंगली जानवरों को आसपास घूमते हुए
देखा जा सकता है थोडा डर तो लग रहा था लेकिन डर से ज्यादा रोमंचित थी |टिकिट लेकर
हम ट्राम की प्रतीक्षा करने लगे रात और गहरा गई थी |कि तभी ट्राम आकर नियत स्थान
पर खडी हो गई |ट्राम चारों और से वाकई खुली हुई थी एक छत ज़रूर थी उस पर जो बारिश
से बचने के लिए होगी |उसमे हम लोग बैठ गए ट्राम छोटी थी सो जल्दी ही सवारियां भर
गईं हलाकि ज्यादा लोग नहीं थे क्यूँ की दो ट्राम अनवरत चलती रहती हैं रात ग्यारह
बजे तक | जो थोड़ी बहुत ‘’आड़’’ थी वो भी कांच की पारदर्शी दीवारों की लिहाजा हमें
अपने केबिन से सभी यात्री दिखाई दे रहे थे और उन्हें हम | ट्राम ऐसे चल रही थी
जैसे उड़ रही हो या हम उड़ रहे हों क्यूँ कि उसमे ज़रा भी आवाज़ नहीं थी |वजह पता पडी
कि आवाज़ होने से जानवर इसकी और आकर्षित हो सकते हैं |जैसे जैसे ट्राम पटरियों पर लहराते
हुए ‘’उड़ रही थी जंगल व् अन्धेरा और घना हो रहा था ..सुई पटक सन्नाटा ...|मारे डर
के मेरी सिट्टी पिट्टी गुम ..मैंने देखा कि अन्य यात्री जिनमे ज्यादातर विदेशी थे
भी डरे से उस घनघोर अँधेरे जंगल की और देख रहे थे |मेरी रही सही हिम्मत ट्राम के
ड्राइवर को देख कर खोने लगी ट्राम की ड्राइवर एक बेहद दुबली पतली कम उम्र की चीनी
लडकी थी | अनायास कई अधूरे काम याद आने लगे और ये भी अहसास कि अधूरे रहना ही उन
बेचारों की नियति होगी |लेकिन मुझे ये सुनकर कुछ राहत मिली के ये बहुत ट्रेंड होती
हैं और ट्राम में फोन ,इमरजेंसी आदि की सभी सुविधाएँ मौजूद हैं | ट्राम के बाहर
घने अंधेरों के बीच २ में स्पॉट लाईट की रोशनी में जानवर चहलकदमी करते या बैठे
दिखाई दे रहे थे |कुछ विशाल शरीर के जानवर भी थे जिन्हें कभी नहीं देखा था ये
ज्यादातर अफ्रीका के जंगलों में रहने वाले जानवर थे | भारतीय जानवरों में बब्बर
शेर हाथी वगेरह थे |अचानक ट्राम घने जंगल के अँधेरे में रुक गई |सामने गेंडा हाथी
सपरिवार विचरण कर रहा था हमारे और उनके बीच की दूरी बस कुछ फर्लांग ही थी |माइक पर
एक उद्घोषणा हो रही थी कि जो पेसेंजर जानवरों को और नजदीक से देखना चाहते हैं वे
ट्राम से उतर जाए कुछ देर बाद आकर हम आपको ले लेंगे लेकिन इस एहतियात के साथ की जो
पैदल मार्ग आपके लिए बनाये गए हैं उनसे बाहर न जाएँ |बहुत जिद्द करके मैं भी
आखिरकार अन्य यात्रियों के साथ ट्राम से उतरने में सफल हो गई |मार्गों पर लोहे की
जालियां लगी थीं स्पॉट लाईट की रोशनी में करीब से जानवरों को देखना उनकी
गतिविधियाँ आदि अद्भुत था |\कुछ देर बाद ट्राम आ गई और हम लोग उसमे बैठ गए | (वहां
फोटो लेने की मनाही थी )
यहाँ रात नहीं होती
..जी हाँ यहाँ रात को रोशनी से ढँक दिया जाता है |इमारतें
सडकें सब रोशन गगनचुम्बी रिहाइशी इमारतों के आसपास पार्क,जोगिंग ट्रेक,स्वीमिंग
पूल,जिम,मॉल्स,बच्चों के स्कूल,रेस्तरां आदि की सुविधाएँ मौजूद हैं अलावा इसके
सुपर मार्केट हैं जहाँ साग सब्जी से लेकर डिब्बा बंद सी फ़ूड तक मिलता है |यहाँ एक अजीब चलन है चौपहिया वाहनों से लेकर
दुपहिये वाहनों तक हॉर्न नहीं बजाय जाता |बेवजह हॉर्न बजाना
असभ्यता माना जाता है |कारों,बसों,स्कूटरों आदि में ये सिर्फ ‘’इमरजेंसी’’ के वक़्त इस्तेमाल
किया जाता है ||रिवर वियु को ले जाने वाली सडकों के बीच में ही
कुछ खुले रेस्तरां भी हैं जो अमूमन भरे रहते हैं और जहाँ से सी फ़ूड की तीखी गंध
तैरती रहती है |मैंने देखा कि हर ओपन रेस्तरां के पास एक बड़ा और
कुछ गहरा हौज़ था जिसमे बहुत छोटी से बहुत बड़ी मछलियाँ थीं |वहां कुछ लोग ‘’काँटा’’ नदी में डाले बैठे थे इनमे स्त्री पुरुष बल्कि
बच्चे भी थे |मुझे बताया गया कि यहाँ मछलियों केंकड़ों का
शिकार करने की अनुमति है केंकड़े के लिए अलग हौज था |ज़िंदगी में पहली बार इतने बड़े केंकड़े और
मछलियाँ देखी थीं |आगे जाने पर एक बिना पानी का सूखा हौज था जिसमे
कुछ लकडियाँ और कुछ लोहे के बर्तन जैसे रखे थे जिसमे वो लोग मछलियों व् केंकड़ों
को पका भी सकते हैं |मेरे लिए ये एक अद्भुत द्रश्य था |लौटते वक्त चाइनीज़ टेम्पल देखा जो रंग बिरंगी
रोशनियों और पर्दों से झिलमिला रहा था |इनकी बनावट भारतीय
मंदिरों की तरह नहीं थी ये ऊपर से चपटे और किनारों से मुड़े हुए थे |उनमे भी हमारे देवी देवताओं की तरह ‘देव स्थान’’ थे
अगली शाम हम यहाँ का
नवनिर्मित''Gardens by
the bay ''देखने गए |फूलों की हजारों किस्मे ...खुशबुओं से सराबोर
पूरा क्षेत्र |देशी विदेशी पर्यटकों की भरमार |कई मंजिलें ...हर मंजिल पर विभिन्नता ...कहीं
पोस्टर्स और मूर्तियाँ कहीं ,स्लाइड शो ..कहीं
पर्यावरण प्रदर्शनी उन्ही के बीच चमचमाती ख़ूबसूरत रंग बिरंगी दुकानें |चौथी मंजिल पर एक हॉल जहां एक बड़ा पर्दा लगा था
यहीं एक स्लाइड शो चल रहा था एक डोक्युमेंट्री फिल्म दिखाई जा रही थी . विषय
था दुनियां 2110 तक कैसी होगी यदि प्रदूषण और वन कटाई को रोका
नहीं गया |डरावनी थी वो ...नई बीमारियाँ ,सूखा,जनसँख्या ,तापक्रम, युद्ध के नए अन्वेषण
, अराजकता ,सामाजिक जीवन ,भुखमरी |फिल्म को इतना जीवंत
बनाया गया था लगता था जैसे सब कुछ सामने ही घटित हो रहा हो |लाईट और साउंड का जबरदस्त संयोजन |खैर आख़िरी यानी सबसे ऊंची मंजिल पर बादलों से रु
ब रु कराया गया था |मद्धम रोशनी में घने बादलों के ठन्डे गुच्छे
जिनके बीच में हाथ में हाथ डाले घूमते युवा|बच्चों की
किलकारियां और धमाचौकड़ी .. हलाकि ठण्ड की फुरफुरी भी बहुत थी |
‘’रिवर् थीम्द
वाइल्ड लाइफ पार्क’’
उसके बाद हम देखने
गए ‘’रिवर् थीम्द वाइल्ड लाइफ पार्क’’| बाहर ही एक बड़े और ख़ूबसूरत बोर्ड पर लिखा
था ‘’रिवर्स ऑफ़ द वर्ल्ड ‘’| ये पार्क दुनियां भर की प्रसिद्द नदियों के नाम
(थीम)पर बनाया गया है |भारत के ‘’पार्ट’’ में गंगा नदी को दर्शाया गया है |इसके
अलवा मिसीसिपी रिवर जिसमे धरती पर सबसे पुरान मछली पेडल फिश तरती हुई दिखाई देती
है |इसकी बाद मेकोंग रिवर के ‘’हिस्से’’ में दुनियां की सबसे बड़ी जल में रहने वाली
मछली केट फिश को दिखाया गया है |ऐसे ही यान्त्ज़ रिवर ,पांडा फारेस्ट जिसमे सफ़ेद और
काले ,व काले और भूरे रंग के पांडा दिखाए गए |
यहाँ जीवन के दो ही
अर्थ हैं ...एक भरपूर जोश,उत्साह,ऊर्जा सपनों से भरा
और दूसरा,जी चुकी सभ्रान्तता और पौष ज़िन्दगी से ऊबा हुआ
एक थका हुआ सच ,जिसमे कुछ हिस्सा उम्र और घटती ऊर्जा में भागती
ज़िन्दगी के साथ ताल से ताल न मिला पाने के क्षोभ से भरा हुआ
सूखी और झुर्रीदार त्वचा से झांकता पलायन और किसी ''अबूझ'' का इंतज़ार जैसे ...
सूखी और झुर्रीदार त्वचा से झांकता पलायन और किसी ''अबूझ'' का इंतज़ार जैसे ...
कच्ची उम्र का जादू , हाथों में हाथ डाले परियों
के देश में विचरते रंग बिरंगे सपनों से लदे फदे एक दूसरे की कमर में हाथ डाले घूमते फिरतेवो नए
नवेले फैशन के ‘’ट्रेंड सेटर’’नौजवान युवक युवतियां वहीं थके क़दमों से धीरे धीरे
चलते वृद्ध दंपत्ति एक दुसरे को थामे , उदास फीकी आँखों में
झांकते ,शायद इसीलिए मेट्रो में भी हर सात में से दो
सीटें वृद्धों और अपंगों के लिए सुरक्षित हैं पर ये ज़रूर है कि इस नियम का भरी
भीड़ में भी पालन किया जाता है रात और दिन ,कि तरह हर चीज़ के
दो पक्ष होते हैं ...कुछ अछा कुछ बुरा
यहाँ अच्छाई (आधुनिकता और विकास )भी ''प्रायोजित सी लगती है क्यूँ कि जितनी भी ''अच्छी कहने या मानने योग्य घटनाएँ नियम या
मनोवृत्तियाँ हैं ,वो सब सत्ता के अधीन हैं हाँ ये होसकता है कि,धीरे धीरे पीढियां इस थोपी गई अच्छाई की अभ्यस्त
हो गई हों लेकिन जो भी है एक मनुष्य होने के नाते ये सुनियोजित व्यवस्था एक
आश्वस्ति तो प्रदान करती ही है ,यहाँ के अँधेरे भी
दिन की रौशनी की तरह आश्वस्त और चौकस हैं यही वजह है कि देर रात तक मॉलों सड़कों और
मेट्रो की आवाजाही बेझिझक चलती रहती है |यहाँ
मॉल संस्कृति ही है, जहाँ अस्सी प्रतिशत महिलाएं ही कार्यरत हैं | यहाँ बसें ,ट्राम और मेट्रो तक
महिलाएं भी चलाती हैं ये देखकर बहुत सुखद आश्चर्य हुआ|
परिचय और संपर्क
वंदना शुक्ला
भोपाल में रहती हैं
कथाकार और कवयित्री
देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
संगीत और रंगमंच में गहन रूचि
कहानी संग्रह और उपन्यास प्रकाशित
जवाब देंहटाएंसुन्दर यात्रा वृतांत.इसे पढ़कर सिंगापुर जाने की इच्छा जाग गयी है.
यात्रा वृतांत जीवन्त है.लेकिन इसमें सिंगापुर की मुख्या अर्थव्यवस्था-पर्यटन के साथ साथ सेक्स टूरिस्म का उल्लेख भी होना चाहिये था..वंदना सुक्ला को ढेर सी बधाईयां.....
जवाब देंहटाएंजैसी अपेक्षा थी, वंदना जी ने वैसा ही संस्मरण लिखा है। मैंने जाने से पहले ही इसके लिए आग्रह किया था। बहुत ही जीवंत है यह और सिंगापुर की एक विहंगम यात्रा पर ले जाता है। यह देखा हुआ सिंगापुर है, भोगा हुआ या मन से रचा हुआ नहीं... मेरे ख़याल से अगली बार जब भी वंदना जी जाएंगी तो एक नया सिंगापुर देखने को मिलेगा हमें...
जवाब देंहटाएं:)शुक्रिया सर..तस्वीरें नहीं जा सकीं इसका थोड़ा मलाल ज़रूर है लेकिन आप सब को अच्छा लगा ये वृत्तान्त मेरा डायरी लिखना सफल हुआ... आभार आप सभी का और राम जी को बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबड़ा ही रोचक यात्रा वृत्तान्त, नया देश और ढेरों जानकारियाँ।
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