पूनम शुक्ला
प्रस्तुत है सिताब
दियारा ब्लाग पर 'पूनम शुक्ला' की कवितायें ....
1 … पतझड़ आ गया है
क्या है कोई
जो दे सके
मुझे विश्वास ?
अपना सच्चा
विश्वास
अपना सच्चापन
अपनापन ।
जहाँ सिर
उठाती हूँ
सिर्फ दिखती
है बेईमानी
या फिर धुंध
में
सच्चाई की
थोड़ी सी झलक
उस झलक के
पास जाती हूँ
पवित्र मन से
सच्चे
विश्वास से
अपनेपन से
भरे हुए
घड़े की तरह
चुपचाप , गंभीर ।
लेकिन वह झलक
भी
मिथ्या ही
होती है
एक मृगतृष्णा
होती है ।
क्या प्यार
की,
अपनेपन की,
सच्चाई की,
एक झलक भी है
इस दुनिया
में !
या दुनिया
ठूँठ हो गई है,
प्यार के फूल
मुरझा चुके
हैं,
पतझड़ आ गया
है ।
लेकिन नहीं
इस पतझड़ से
हमें
घबड़ाना नहीं
है,
सच्चाई के
मार्ग पर
अडिग रहना है
।
रहने दो
लोगों को ठूँठ
उन्हें पतझड़
में ही
लगाने दो
कृत्रिम पुष्प
अपने में ले
आओ बसंत,
विश्वास ,प्यार का बसंत
क्या पता ?
इस बसंत में
खिले
पुष्पों की
महक से
कुछ बदलाव
आ सके ।
2…. आतुरता
उस पार खड़ी
हो
देख रही हूँ
अहसास है
जब तुम चलती
हो
पायल छनकाती
फिरती हो,
ध्वनि भेज
रही
मन्थर गति से
कभी झलक
दिखाई देती
है
दीवारों के
छिद्रों से
कैसे पकडू़ँ
कैसे मिल आऊँ
क्या कह दूँ
कुछ
इन पत्रों से
जरा हाथ
बढ़ाना
छू तो लूँ,
बस मीठी हँसी
छोड़ा करती
हो
आओ छम- छम
ऐ खुशी जरा
बस दिल क्यों
तोड़ा करती
हो ।
3… मुस्कान
जब घटा आँसू
गिराती हैं
मोतियों की
लड़ियाँ बरसाती हैं
तब हवा मीठी
सी
मुस्कुराहट
के साथ
घटा का
अभिनन्दन करती है
उस
मुस्कुराहट से
एक नई उमंग
भर देती है
उसे विश्वास
दिलाती है
कि ये आँसू
नहीं
खजाना है
नई आशाओं का,
ये विनम्रता
है
जो पिघलती है
देगी यही नई
गंध
इस धरा को ।
और यही
सांत्वना
यही विश्वास
घटा के
आँसुओं से लिपटकर
एक नई भावना
लेकर
सौंधी- सौंधी
महक
फैलाता है
चमन में
थिरकता हुआ
नृत्य करता
है
वातावरण में
।
लेकिन बेचारी
हवा
पेड़ों,चट्टानों,अट्टालिकाओं से
ठोकर खाती
हुई
उन्हें एक
संगीत का
आनंद देती
हुई
सिसकती है
बिलखती है
और उस सिसकी
को भी
एक मुस्कान
का
रूप दे देती
है ।
4.
सँजोया है एक सरोवर
सँजोया है एक
सरोवर
अंत:भूमि पर
अमृत जल से
भरा हुआ
मीन मासूमियत
की
करतीं
क्रीड़ा
अग- जग तरा
हुआ ।
कभी एक तान
छेड़ते
श्वेत हंस
शांति के
फिर करते
सामूहिक गान
सब मिल सुकून
के ।
कभी बहती
उत्तप्त बयार
कभी बरसे आग
- अंगार
फिर आती
लपटों की ललकार ।
चल फिर से आज
खड़े होना
ले अश्रु
कणों की बौछार
स्वेद कणों
की ठंढ़ी धार ।
5… . काला मोहरा
काली जुबाँ
काला ये दिल
काला चेहरा ।
जाने क्यों ?
आया हाथ मेरे
काला मोहरा ।
चल जला लेंगे
अलाव कभी
इस कालेपन का
तपिश ही देगा
फ़ना हो
जाएगा
काला कोहरा ।
नाम - पूनम शुक्ला
जन्म - 26 जून 1972
जन्म स्थान - बलिया , उत्तर प्रदेश ,
शिक्षा - बी ० एस ० सी० आनर्स ( जीव विज्ञान ), एम ० एस ० सी ० - कम्प्यूटर साइन्स ,एम० सी ० ए ० । चार वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों में
कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान की ,अब स्वतंत्र लेखन मे संलग्न ।
कविता संग्रह " सूरज के बीज " अनुभव प्रकाशन , गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित ,विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर कविताओं का प्रकाशन
।
पता - 50 डी ,अपना इन्कलेव ,रेलवे रोड,गुड़गाँव - 122001
मोबाइल - 9818423425
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