शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

अरुणाभ सौरभ की कवितायें


                                  अरुणाभ सौरभ 



युवा कवि अरुणाभ सौरभ की आज एक विशिष्ट पहचान है | अपने देशज संस्कारों को साथ रखते हुए , वे जिस प्रकार उन्हें आधुनिक प्रतिमानों से जोड़ते हैं , यह पहचान उस विशिष्टता के कारण बनती है | अभी हाल ही में उन्हें मैथिली भाषा के लिए युवा साहित्य-अकादमी पुरस्कार से नवाजा भी गया है | सिताब दियारा ब्लाग उनका स्वागत करता है , और उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं प्रेषित करता है |

                       प्रस्तुत हैं अरुणाभ सौरभ की कवितायें
                

    

    1....  मैना के बहाने आत्मस्वीकारोक्ति
                                              
   पीली चोंच में हजारों साल का दंश
   ह्रदय के कोने से चेंहाकर

   मिरमिरायी आवाज़
   आर्तनाद में कई आतंक/कई संशय
   वक्ष में छिपाकर
   सामने चहकती मैना एक
     
    अपने दल से अलग
    पहाड़ी वनस्पतियों की हवा खाकर
    उतरी है दरवाजे के पास
    कुछ कहना चाहती हो जैसे
    अपनी गोल आँखों से
    चोंच खोलकर चें..चें..
    जैसे किसी को बुला बुलाकर थक गयी हो
    कोई कातर पुकार
  
    मैना के करीब जाकर
    उसके दुःख को टोहने की कोशिश करना चाहता हूँ
    क्या पहाड़ के उजड़ने का उसे दुःख है?
    या नदियों के पानी के सूखने चिंता ?
    क्या हरियाली नष्ट होने का उसे दुःख है ?
    या विस्तृत आकाश पर छाई परायी सौतन सत्ता से परेशान है वो

    ऐसे अनगिनत प्रश्नों से घिरता जाता हूँ
    अगर मैं सालिम अली होता तो
    सब समझ जाता
    कालीदास होता तो
    उसके दुःख निवारण हेतु
    आषाढ़ मास के बादल का पहला टुकड़ा
    उसके नाम कर देता
    और उसके नायक के विषय में पूछता ज़रूर
    बुलेशाह होता तो भी
    उस हीर की आँखों को पढकर
    उसके प्यार को समझता
    और भी बहुत कुछ होता तो
    बहुत कुछ करता

    पर अभी जो कुछ हूँ
    उससे इतना ही कह सकता हूँ कि
    इस वक्त ये मैना
    बहुत दुःख में है
    और हम हैं कि,
    कुछ भी नहीं कर पाते इसके लिए
    सिवाय इस कविता को लिखने के


                          
2...    लाल क़िला के इर्द-गिर्द

अक्सर लाल क़िला जाता हूँ 
हफ्ते मे एक रोज 
एक वह भी है जो आती है वहाँ 
जिसे देखते ही बढ़ जाती है 
कुछ उत्सुकताएँ
जिज्ञासाएँ 
और ना जाने कितने शब्द 
कि झटके मे पूछ सकूँ 
उसका नाम और आता-पता 
उसकी शक़्लोसूरत गवाही देती है 
कि वो कश्मीर की है
उसी कश्मीर की 
जिसे लाल क़िला का बादशाह 
कभी कहता था –‘जन्नत’.......
लाल क़िला के इर्द-गिर्द बहुत कुछ है 
पर मुझे दीखता है सिर्फ वह क़िला 
और वह लड़की 
जिसके अंदर 
इतिहास ही इतिहास है 

वह भी अक्सर आती है -लाल क़िला 
इस क़िले की इमारत से पत्थरों की दीवार से 
इतिहास चुराना चाहती है वह कश्मीरी लड़की 
जिसके एक गाल पर 
फौजी बूटों के निशान 
और दूसरे गाल पर 
आतंकी घूसों की चोट 
शायद उसकी छाती का एक-एक भाग 
हिदुस्तान-पाकिस्तान ने हथिया लिया है 
और मेरे अनुमान से 
अगर सुरक्षित है 
उसकी जांघों के बीच का कुछ भाग तो 
जरूर उसे अकेले मे ही सही 
लड़की होने की अहमियत का पता है 

वैसे लालकिला भी 
दैहिक शोषण का शिकार है 
साल मे एकाध बार 
दुल्हन की तरह सजाकर 
देश के राजा द्वारा 
फिर घोषणाओं के भ्रूण को 
क़िले के गर्भ मे मारा जाता है 
क्या सुरक्षित है यहाँ ?
लाल क़िला !
कश्मीर !
इतिहास !
लड़कियां !

या सिर्फ घोषणाएँ ...........!!!!



3....   यह भरतनाट्यम का एक पोज नही है 
 
यह कविता प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति राय के लिए ,जो कहती हैं ,कि-
 ‘’मेरी दुनिया मर गयी है , और मैं उसका मर्सिया लिख रही हूँ ।‘’   

जीशा भट्टाचार्य एक स्कूली छात्रा है ,जो मेरे स्कूल मे दसवीं मे पढ़ती है और भरतनाट्यम करती है |उसकी माँ मुझे उसकी एक फोटो देती है जिसमे जीशा अपनी उस बहन के साथ है जो चलने फिरने मे असमर्थ है।यह कविता जीशा के भरतनाट्यम और उसके जज्बे पर आधारित है......

तुम समय के खिलंदड़ेपन से अनजान
समय मे ताल भरने के निमित्त
भर देती हो कुछ ध्वनि 
जबकि तुम अपनी बेहद सुंदर आँखों से
गोल-गोल देखती हो दुनिया 
कभी कह नही सकती हो,कि
‘’
मेरी दुनिया मर गयी है.....
मैं उसका मर्सिया लिख रही हूँ ।‘’

इस समय मे 
जबकि टेलीविज़न से चलने वाली गोली ने
छलनी कर दी संगीत की छाती 
और तुम गा रही हो.....
‘’
मधुकर निकर करम्बित कोकिल ....’’

जब नृत्य करनेवाले पावों को काटकर 
बाज़ार मे बेचा जा रहा है 
लेगपीस 
तुम भरतनाट्यम के एक पोज मे 
थिरका देती हो पाँव 

तुम्हें नृत्य करनी है ताउम्र 
गाना है ताउम्र
अबकी अरुंधति जी से कहीं भेट हुई तो कह दूँगा ,कि
किसी कि दुनिया आसानी से नही मरती
जिसकी शिनाख्त पर मर्सिये कि कवायद हो 
और एक लड़की ने 
चौदह साल कि उम्र मे ठान लिया है कि 
वो अपनी दुनिया मे जम कर जियेगी
एक ऐसी दुनिया गढ़ेगी जिसमे 
गा सके खुलेआम 
निःस्वार्थ कर सके भरतनाट्यम 
शायद उसके बुलंद हौसले को मिल ही जाय मंज़िल 

वैसे शुक्रिया मेरी बच्ची 
मैं गर्व से कहता हूँ कि 
ईश्वर की कोई औकात है तो 
मुझे ही नही ,
हर किसी को 
एक बिटिया ऐसी ही दे जो बिलकुल इसी कि तरह हो 
बिलकुल इस लड़की की तरह......

गीत जिसका शौक 
नृत्य जिसकी मंज़िल......................


4....    ऐ सुनो श्वेता 

सुनो श्वेता 
कुछ ही दिन पहले 
आटाचक्की पर
गेहूं पिसवाने गए थे हमलोग
सगुनी (दूध वाली बुढ़िया) के पास 
कुछ पैसे बचे हैं
जिन्हें लाना है वापिस 
अभी-अभी धान की दुनाई-कटाई होनी है 
और नर्गल्ला पे चोर -नुकइया ,ढेंगा-पानी ,
डेश-कोश, कनिया-पुतरा ,अथरो-पथरो......
खेलना बाकी रह गया है - हमारा 

नानी से कहानी सुननी है 
बिहूला- बिसहरा की, नैका- बनिजारा की 
शेखचिल्ली और गोनू झा की 
या वो वाली कहानी जिसमे पाताल-लोक के अंदर
लग्गी लगाकर बैगन तोड़ते हो बौने
कहानी के उस पाताललोक मे भी जाना बाकी है

आधी रात मे 
अपने सपनों को दबाकर
चेंहाकर उठ उठ जाना 
और पेड़ों की झुरमुटों के बीच 
छिपे चाँद को निहारना चुपचाप 
और चाँदनी रात मे अट्ठागोटी खेलकर 
मखाना का खीर पकाना भी बाकी है 

और भी बाकी है / बहुत कुछ बाकी है 
श्वेता ! 
ऐ सुनो श्वेता !!
तुम कितनी बड़ी हो गई अचानक
इतनी जल्दी इतनी बड़ी कि................
.................
अब..................................
...................
ब्याहने जा रही हो ........................



नाम  ...    अरुणाभ सौरभ
जन्म;09 फरबरी 1985
जन्म स्थान - बिहार के सहरसा जिला का चैनपुर गाँव
शिक्षा - प्रारभिक शिक्षा भागलपुर और पटना में.
उच्च शिक्षा – बनारस , दिल्ली और मुंबई से
देश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
मातृभाषा मैथिली में भी समान गति से लेखन.
असमिया की कुछ रचनाओं का मैथिली एवं अंग्रेजी में अनुवाद.
मैथिली कविता संग्रह.. ‘’एतवे टा नहि’’ – चर्चित और पुरस्कृत  
सम्प्रति  -   अध्यापन एवं स्वतन्त्र लेखन.
फ़ोन   - 09957833171   
                   

7 टिप्‍पणियां:

  1. arunabh bhai ki kavitayon ka tewar ne bahut prabahwit kiya .isme ek yuva nazar se dekhi gayi duniya ka halchal drz hai .bagair kavita ke latke jhatkon ke .yeh hindi kavita ke liye ek shubh snket hai
    achyutanand

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  2. बहुत सुंदर कविता ....कवितायेँ पढ़कर मजा आ गया .

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  3. मेरे लिये अच्छा होता है कि अरुणाभ सौरभ की कवितायों के बनने का गवाह बन जाता हूँ !! भरत नाट्यम,मैना .. ऐसी ही कवितायें हैं..

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  4. My father knows you very well, and he is great fan of yours, your poems forces the boundaries ........kanupriya


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  5. My father knows you very well, and he is great fan of yours, your poems forces the boundaries ........kanupriya


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  6. kvtaon ne bahut prbhavit kiya.. kavitaon me jeevan hai jo dhadak raha hai.. bahut badhai.

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