शुक्रवार, 25 मई 2012

अलविदा भगवत रावत


                                                                        भगवत रावत 


आज भगवत रावत नहीं रहे | असाध्य और गंभीर बीमारी से किया गया जीवन का उनका संघर्ष आज ख़त्म हो गया | और इसी के साथ ख़त्म हो गयी वह आवाज , जो हर किसी  के लिए सुलभ थी और जो किसी को भी अजनबी नहीं समझती थी | आज जब कवि-मित्र केशव तिवारी ने भरे गले से मुझे यह दुखद सूचना दी कि 'भगवत दादा नहीं रहे " , तो यह जानते हुए भी कि वे एक लम्बे समय से बीमार चल रहे थे , मन सन्न रह गया | इस सूचना के कुछ ही समय बाद मैंने वरिष्ठ कवि श्री केदार नाथ सिंह जी को फोन मिलाया , जो इस समय बलिया में ही है , तो उनका कहना था कि 'इतनी गंभीर बीमारी को इतने लम्बे समय तक झेलते हुए रचनारत रहना सिर्फ भगवत जी के ही बस की बात थी | उन्हें एक सशक्त कवि के साथ साथ एक बेहतरीन इंसान होने के लिए भी याद किया जाएगा |" 

                           तो प्रस्तुत है 'भगवत दादा' की स्मृति में सिताब दियारा पर उनकी तीन कवितायेँ 







1...             इतनी बड़ी मृत्यु



आजकल हर कोई, कहीं न कहीं जाने लगा है
हर एक को पकड़ना है चुपके से कोई ट्रेन
किसी को न हो कानों कान ख़बर
इस तरह पहुँचना है वहीं उड़कर

अकेले ही अकेले होता है अख़बार की ख़बर में
कि सूची में पहुँचना है, नीचे से सबसे ऊपर
किसी मैदान में घुड़दौड़ का होना है
पहला और आख़िरी सवार

इतनी अजीब घड़ी हैं
हर एक को कहीं न कहीं जाने की हड़बड़ी है
कोई कहीं से आ नहीं रहा
रोते हुए बच्चे तक के लिए रुक कर
कहीं कोई कुछ गा नहीं रहा

यह केवल एक दृश्य भर नहीं है
बुझकर, फेंका गया ऐसा जाल है
जिसमें हर एक दूसरे पर सवार
एक दूसरे का शिकार है
काट दिए गए हैं सबके पाँव
स्मृति भर में बचे हैं जैसे अपने घर
अपने गाँव,
ऐसी भागमभाग
कि इतनी तेज़ी से भागती दिखाई दी नहीं कभी उम्र
उम्र के आगे-आगे सब कुछ पीछे छूटते जाने का
भय भाग रहा है

जिनके साथ-साथ जीना-मरना था
हँस बोलकर जिनके साथ सार्थक होना था
उनसे मिलना मुहाल
संसार का ऐसा हाल तो पहले कभी नहीं हुआ
कि कोई किसी को
हाल चाल तक बतलाता नहीं

जिसे देखो वही मन ही मन कुछ बड़बड़ा रहा है
जिसे देखो वही
बेशर्मी से अपना झंडा फहराए जा रहा है
चेहरों पर जीवन की हँसी कही दिख नहीं रहीं
इतनी बड़ी मृत्यु
कोई रोता दिख नहीं रहा
कोई किसी को बतला नहीं पा रहा
आखिर
वह कहाँ जा रहा है।





2...                      वे इस पृथ्वी पर 

कहीं न कहीं कुछ न कुछ लोग हैं ज़रूर
जो इस पृथ्वी को अपनी पीठ पर
कच्छपों की तरह धारण किए हुए हैं
बचाए हुए हैं उसे
अपने ही नरक में डूबने से
वे लोग हैं और बेहद नामालूम घरों में रहते हैं
इतने नामालूम कि कोई उनका पता
ठीक-ठीक बता नहीं सकता

उनके अपने नाम हैं लेकिन वे
इतने साधारण और इतने आमफहम हैं
कि किसी को उनके नाम
सही-सही याद नहीं रहते

उनके अपने चेहरे हैं लेकिन वे
एक दूसरे में इतने घुले-मिले रहते हैं
कि कोई उन्हें देखते ही पहचान नहीं पाता

वे हैं, और इसी पृथ्वी पर हैं
और यह पृथ्वी उन्हीं की पीठ पर टिकी हुई है
और सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि उन्हें
रत्ती भर यह अंदेशा नहीं
कि उन्हीं की पीठ पर
टिकी हुई यह पुथ्वी।

3...                         करुणा

सूरज के ताप में कहीं कोई कमी नहीं
न चन्द्रमा की ठंडक में
लेकिन हवा और पानी में ज़रूर कुछ ऐसा हुआ है
कि दुनिया में
करुणा की कमी पड़ गई है।

इतनी कम पड़ गई है करुणा कि बर्फ़ पिघल नहीं रही
नदियाँ बह नहीं रहीं, झरने झर नहीं रहे
चिड़ियाँ गा नहीं रहीं, गायें रँभा नहीं रहीं।

कहीं पानी का कोई ऐसा पारदर्शी टुकड़ा नहीं
कि आदमी उसमें अपना चेहरा देख सके
और उसमें तैरते बादल के टुकड़े से उसे धो-पोंछ सके।

दरअसल पानी से होकर देखो
तभी दुनिया पानीदार रहती है
उसमें पानी के गुण समा जाते हैं
वरना कोरी आँखों से कौन कितना देख पाता है।

पता नहीं
आने वाले लोगों को दुनिया कैसी चाहिए
कैसी हवा कैसा पानी चाहिए
पर इतना तो तय है
कि इस समय दुनिया को
ढेर सारी करुणा चाहिए।


                                    कविता के साथ जीवन में भी संघर्षों को जीने वाले  इस महान योद्धा को       
                                           "सिताब दियारा ब्लाग "की विनम्र श्रद्धांजलि                              
                                                                                       

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपने भगवत दा की बहुत ही शानदार कविताएं चुनीं, आभार। उनकी अजस्र-अमिट स्‍मृति को नमन।

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  2. क्या कहा जाय...बहुत बड़ा नुक्सान है यह...हम सबका साझा...उनके जीवट और उनकी स्मृतियों को सलाम

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  3. प्रभु भगवत जी की दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे। दीवार में एक आला रखने की जगह जैसे
    याद रहेंगे भगवत जी।
    प्रणाम


    ड़ॉ़ राजीव कुमार रावत
    हिन्दी अधिकारी
    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर

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