शनिवार, 12 मई 2012

अरविन्द की कवितायें






                 
                                                    अरविन्द 



युवा रचनाकारों पर हमारी पुरानी पीढ़ी के कई  आरोप  है | एक तो यही की "युवा रचनाकार अपनी पुरानी पीढ़ी को तो नजरंदाज करते ही हैं , अपने समकालीनो को भी ठीक से नहीं पढ़ते | वे सिर्फ लिखना जानते हैं , भले ही उनके जीवन अनुभव बेहद सीमित और एकांगी हैं | यह आरोप उस समय और तीखा हो जाता  है , जब यह कहा जाता है की वे जितना पढ़ते हैं , उससे अधिक लिखते हैं और उससे भी अधिक प्रसिद्द होना चाहते हैं | और वह भी रातों रात |" युवा कवि अरविन्द  इस आरोप को बिलकुल झुठलाते हैं | बल्कि यह कहना उचित होगा की इस आरोप का प्रति - संसार रचते हैं | जब भी उनसे बात होती है वे अपनी पढ़ाई में मशगूल रहते हैं | अपनी पुरानी पीढ़ी के साथ- साथ अपने समकालीनों के बारे में भी वे ठीक- ठीक बता सकते हैं , किसकी कौन सी कविता या  कहानी , किस पत्रिका में और कब प्रकाशित हुयी थी ..| लगे हाथ वे उस रचना की व्याख्या भी कर देते हैं | लिखना उनके यहाँ हमेशा स्थगित  ही रहता है | और देश की कई बड़ी पत्रिकाओं में छपने के बाद भी शायद ही अपनी रचनाओं को उन्होंने कभी प्रचारित किया हो  | अरविन्द  युवा कविता के उस चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं , जिसके पास न सिर्फ अपना मौलिक शिल्प विधान है , वरन चमकदार बिम्बों की एक ऐसी श्रृंखला है , जिसे देखकर कभी- कभी तो ऐसा लगता है की हम विश्व क्लैसिक से किया हुआ कोई अनुवाद पढ़ रहे हैं ..| यदि उनकी कविताओं से थोडा सा कच्चापन हटा दिया जाए , तो सहसा यह विश्वास नहीं होता की ये कवितायेँ एक २२ - २४ साला युवक द्वारा लिखी गयी हैं |  उनके कथ्यों के रेंज का विस्तार भी हमें एक बार पुनः चमत्कृत कर जाता है ..| इतने प्रतिभाशाली युवा कवि से आपका परिचय कराते हुए 'सिताब दियारा' ब्लाग स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा है , और साथ ही साथ 'इस टटके बिम्बों वाले युवा कवि' से यह आशा भी की उनके स्थगित लेखन की जकड़ने टूटती जाएँ ....|

                  प्रस्तुत है 'सिताब दियारा' ब्लाग पर युवा कवि अरविन्द की चार कवितायेँ .....









1...                       धोखा भी एक हत्या है




डिब्बे में पानी को बंद कर प्यास को बंद कर दिया गया था |

नदी डिब्बे में नहीं आ सकती थी
इसलिए डिब्बे के उपर नदी का नाम लिखकर
नदी को डिब्बे में बंद कर दिया गया था |

समय के कई नाम थे
दिन के कई नाम थे
दो वर्ष के समय की लम्बाई का पता लग सकता था
दो दिन की भूख की लम्बाई का पता नहीं लग सकता था
एक नवजात की भूख के बारे में सोचते हुए
दो चम्मच दूध का ख्याल आता था
दो चम्मच दूध भर की कीमत का पता लगाना मुश्किल था
दो चम्मच की भूख को एक डिब्बे में बंद कर उस पर कीमत लिख दी गयी |

दूर तक खेत थे
आकाश भर खेत रहा होगा
आकाश भर फसल रही होगी
खेत के बीज भर आकाश में पानी रहा होगा
आकाश भर पानी बहा होगा
आकाश भर उम्मीद रही होगी

आकाश भर उम्मीद को डिब्बे में बंद कर
एक किसान को धूल भर कर दिया गया होगा |

एक पत्थर मतलब
मील है
तो पहाड़ का अर्थ क्या होगा

एक पहाड़ की ऊँचाई डिब्बे में बंद कर कीमत लगा दी गयी |

प्रेम की कोई परिभाषा है कबीर ..?
प्रेम करने के तरीकों की कोई किताब है ग़ालिब ..?
प्रेम में बना कोई महल या कोई उड़नखटोला उपहार का
क्या प्रेम का मापक हो सकता है ?
प्रेम को भी डिब्बे में बंद कर कीमत तय हुई
क्या खरीदोगे मेरे कबीर 
मेरे ग़ालिब  ?

चमक का नाम हंसी होना चाहिए
रेत का नाम उदासी
आँख का एक नाम आवाज होना चाहिए
साथ रहने का नाम घर भी होना चाहिए

डिब्बे पर लिखे नामों का एक नाम तय करो
मेरे लोगों |




2...                 आश्चर्य



ताजमहल आश्चर्यजनक है
लोगों ने कहा
बात संसार के इतिहास में
सभी भाषाओं में एक साथ स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हुई
ताजमहल के कामगार आश्चर्यजनक हैं
बहुतों ने कहा
और माना गया |

न गिनी जाने वाली संख्याओं में थे वे
अपनी पूरी ताकत खोकर
लगातार मरते जा रहे थे कि
न ताजमहल , न चीन की दीवार
न ही कोई लटकता बागान
भूख एयर रोटी है
सबसे बड़ा आश्चर्य |


उस न गिनी जा सकने वाली मरणासन्न संख्याओं की भाषा
देश के समझदार समझ ही न सके
और उनकी बात कहीं नहीं दर्ज हुई |


मेरे समय के समझदारों को
गिनती तक नहीं आती थी
वे मरी हुई संख्याओं को नहीं गिन सके
वे बस एक से सात तक गिनती जानते थे
जबकि मरी हुई संख्याओं की संख्या बढती जा रही है |




3...                       रिश्तों का ब्रह्मांड



हर चीज की एक सीमा थी |

पृथ्वी की सीमा
कक्षा और गति निर्धारित थी |

घर के पड़ोस में घर जाने पहचाने थे
पड़ोस से सटे पड़ोस के पड़ोस से
सटे
कई पड़ोस का विस्तार कस्बा था |

पृथ्वी के पड़ोस जाने पहचाने थे
पृथ्वी के पड़ोस का विस्तार
ब्रह्मांड था |

असीमित को ब्रह्मांड कह कर
एक शब्द में बांध दिया गया था |

घर में पिता के दूर के नाना आये थे
रिश्तों के पड़ोस के ब्रह्मांड से उठकर जैसे कोई बुझा ग्रह आया था |

पिता के नाना से मेरा सटीक रिश्ता अपरिभाषित था |

मैंने पिता के नाना को
नाना कह कर
रिश्तों के ब्रह्मांड को सीमित कर दिया |

पिता के नाना की आँखे चमक उठी थीं |

जैसे एक बुझा ग्रह पृथ्वी के पड़ोस में आया हो
और सूरज के रिश्तों में चमक उठा हो |





4...                   दंगों में मारे गए थे जो बच्चे



दंगों में जो सबसे ज्यादा मारे गए
वे बच्चे थे
वे इतने कोमल और मासूम थे कि
अगर वे दंगों के दिन नहीं होते
तो किसी भी संप्रदाय के लोग
उनको चूमने
प्यार करने की असीम ईच्छा रखते |

जो बच्चे मारे गए
अधिकतर वे या तो माँ की गोद में थे
या माँ के पेट में |

दुनिया को वे नहीं जानते थे
वे ईश्वर धर्म मंदिर मस्जिद कुरान
गीता वेद को नहीं जानते थे |

वे अपने घर में भी किसी को नहीं जानते थे
वे अधिक से अधिक
केवल स्पर्श से अपनी माँ को जान सकते थे
वे केवल दूध पी सकते थे |

दुनिया में वे इतने नए थे कि
उनका नाम भी नहीं रखा गया था |

जो मारे गए थे दंगों में मासूम बच्चे
वे दुनिया के किसी भी ईश्वर से ज्यादा
खूबसूरत थे |

ईश्वर या खुदा
इतना कमजोर निकला कि
वह दंगों में कोई पारलौकिक चमत्कार नहीं
कर पाया
वह केवल दंगे करवा सकता था
रुकवा नहीं सकता था
वह इतना कमजोर था कि
खुद का उसका अस्तित्व हमेशा संकट में
दिखता था |

दंगों में मारे गए थे बच्चे
वे कई कई हजार ईश्वर या खुदा के
बराबर थे
वे हजारों-लाखों मंदिरों से कहीं अधिक
पवित्र थे |

कई बच्चे जिन्दा जला दिए गए
कई बच्चे बीचो-बीच चीर दिए गए तलवारों से
कई बच्चों का गला घोंट दिया गया
कई बच्चों को ऊँचाई से
सिर के बल पटका गया |

पेट फाड़कर निकाले गए कई
पक रहे कच्चे बच्चे
और आग में फेंक दिए गए |

दंगों में मारे गए बच्चे
‘हत्या’ , ‘हत्यारों’ शब्द से इतने अपरिचित थे
कि मरने के पूर्व उनकी आँखों में कोई डर
नहीं देखा गया था |

दंगों में मारे गए जो बच्चे
वे दोनों ओर के थे
ईश्वर के जितने लोग पागल थे
खुदा के उतने ही लोग पागल थे |

दो पागलों के बीच की इस क्रूरतम लड़ाई में
मारे गए थे मासूम बच्चे
वे मासूम बच्चे इतने समझदार थे
कि जब वे मारे जा रहे थे
तो खुदा या ईश्वर को पुकारने के बजाय
अपनी माँ को पुकारते थे |







नाम - अरविन्द
उम्र- 25 वर्ष 
शिक्षा - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर 
सम्प्रति - प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक 
मो.न.  09565011824  
निवास- नौगढ़ , जिला चंदौली , उ.प्र.  
फिल्मों में विशेष रूचि 



11 टिप्‍पणियां:

  1. bahut marmik kavitaen hain . yatharth ka keval bayan hi nahi hai varan usese ladne ki anugoonj bhi hai . badhai achchhi kavitaon ke liye.

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  2. धोखा वाली कविता सबसे अच्छी फिर रिश्तों का ब्रह्माण्ड भी बेहतरीन कविता है. दंगे वाली में ज़रा बयान ज़्यादा हैं. अरविन्द की कविताओं में संजीदगी और परिपक्वता दोनों है. आगे भी पढ़ने का इंतजार रहेगा. इस इच्छा को डिब्बे में रख कर मेरा नाम लिख लें

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  3. कवितायें अच्छी हैं विशेषकर नजरिया और बिम्ब. थोड़ी कसावट और निखार लाएगी|

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  4. अरविन्द की काव्य भाषा के टटकेपन ने मुझे मोह सा लिया. वाकई यह कवि अपने तरीके से कविताई करते हुए कहीं कहीं हमें अपने अग्रज कवि विनोद कुमार शुक्ला की याद दिलाता है. धोखा भी एक ह्त्या है निःसंदेह अरविन्द की एक बेहतर कविता है जिसमें बिम्बों का नयापन साफ-साफ दिखाई पडता है. ‘दो वर्ष के समय की लम्बाई का पता चल सकता था/ दो दिन की भूख की लम्बाई का पता नहीं चल सकता था.’ जैसी पंक्तियाँ कवि के मजबूत धरातल की ओर इशारा करती हैं. रिश्तों का ब्रह्माण्ड’ कविता हमें भी उस पशोपेश में अनायास ही खींच ले गयी जिसका साबका बचपन से लेकर अब तक पडता रहा है. लेकिन रिश्ते जुडने से, उनके नामकरण से उसमें और परिपक्वता ही आती है, उनका विस्तार ही होता है. नाम देने से रिश्तों का ब्रह्माण्ड कैसे सिमट आया यह पंक्ति थोड़ी अटपटी लगी. बहरहाल आकाश भर उम्मीद वाले कवि ने बहुत उम्मीदें जगा दी हैं. कवि और प्रस्तोता दोनों का आभार बेहतर कवितायें पढवाने के लिए.

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  5. बेनामी7:39 pm, मई 13, 2012

    arvind bhayi ki kavitayen pahali bar padate huye sukhad laga. nishchit roop se unaki kavitayen prabhavit karati hain antim kavita vishash roop se . ramji bhayi ka aabhar ki unhone arvind bhayi ki kavitayen se paichay karwaya. mahesh punetha

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  6. बेनामी7:41 pm, मई 13, 2012

    आशा जगाता कवि ..जरुरी और मार्मिक कथ्य ..अच्छी कवितायेँ हैं ..अरविन्द को हार्दिक शुभकामनाएँ ....vandna sharma

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  7. बेनामी7:43 pm, मई 13, 2012

    निश्चित तौर पर कवितायें प्रभावकारी हैं, इन्हें पढने के बाद कवि की अन्य कवितायेँ पढने की इच्छा होगी...दंगो में..कविता बेहद मार्मिक लगी,किन्तु कुछ अधिक बड़ी हो गयी है..any कवितायेँ भी पसंद आयीं..aasmurari nandan mishra

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  8. बेनामी7:44 pm, मई 13, 2012

    रोमांचक आख्‍यान... जीवंत पंक्तियां.. कवि को बधाई...shyam bihari shyamal

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  9. अरविन्द जी को बधाई ..इतनी संवेदनापूर्ण कविता लिखने के लिए ...काफी उम्मीद जगाती रचनाएँ हैं ..और जाहिर तौर पर कवि भी ..खासकर 'दंगों में मारे गए बच्चे ' मनुष्य की आत्महंता कट्टर 'धार्मिकता' के प्रति बेहद संजीदगी से चेताती प्रतीत होती है ...बधाई ..आगे और कुछ ऐसा और इससे भी बेहतर नया पढ़ने को मिलता रहेगा इस उम्मीद के साथ ...अरविन्द जी और रामजी तिवारीजी दोनों बंधुओं को धन्यवाद .

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  10. अरविंद जी कविताएं उनके भविष्‍य के प्रति बहुत आश्‍वस्‍त करती हैं... उनकी सोच-समझ का दायरा बहुत विस्‍तृत है...शुभकामनाएं।

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  11. बेनामी7:29 pm, मई 20, 2012

    Arwind ki kawitayen der se padhin. Arwind me bahut sambhawna ab ye kaise sahej pate han ye jimmedari unhi ki ha. Kawita sawalon k beech se nikalti nahi muth bhed karti ha yahi uski tapat ha.unhe dhanyawad aap ko bhi. keshav tiwari

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