सुलोचना वर्मा की कविताओं में आधी
दुनिया की आवाज तो शामिल है ही, अपने समय और समाज की नब्ज पर संवेदनशील पकड़ भी है
| सिताब दियारा ब्लॉग इस युवा कवयित्री का हार्दिक स्वागत करता है | तो आईये पढ़ते
हैं .....
आज सिताब दियारा ब्लॉग पर सुलोचना वर्मा की कवितायें ....
एक ...
कुआं
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मुझे परेशान करते हैं रंग
जब वे करते हैं भेदभाव जीवन में
जैसे कि मेरी नानी की सफ़ेद साड़ी
और उनके घर का लाल कुआं
जबकि नहीं फर्क पड़ना था
कुएं के बाहरी रंग का पानी पर
और तनिक संवर सकती थी
मेरी नानी की जिंदगी साड़ी के लाल होने से
मैं अक्सर झाँक आती थी कुएं में
जिसमे उग आये थे घने शैवाल भीतर की दीवार पर
और ढूँढने लगती थी थोड़ा सा हरापन नानी के जीवन
में
जिसे रंग दिया गया था काला अच्छी तरह से
पत्थर के थाली -कटोरे से लेकर, पानी के गिलास तक में
नाम की ही तरह जो देह था कनक सा
दमक उठता था सूरज की रौशनी में
ज्यूँ चमक जाता था पानी कुएं का
धूप की सुनहरी किरणों में नहाकर
रस्सी से लटका रखा है एक हुक आज भी मैंने
जिन्हें उठाना है मेरी बाल्टी भर सवालों के जवाब
अतीत के कुएं से
कि नहीं बुझी है नानी के स्नेह की मेरी प्यास अब
तक
उधर ढूँढ लिया गया है कुएं का विकल्प नल में
कि पानी का कोई विकल्प नहीं होता
और नानी अब रहती है यादों के अंधकूप में !
दो ....
पीहर
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बाटिक प्रिंट की साड़ी में लिपटी लड़की
आज सोती रही देर तक
और घर में कोई चिल्ल पो नहीं
खूब लगाए ठहाके उसने भाई के चुटकुलों पर
और नहीं तनी भौहें उसकी हँसी के आयाम पर
नहीं लगाया "जी" किसी संबोधन के बाद
उसने
और किसी ने बुरा भी तो नहीं माना
भूल गयी रखना माथे पर साड़ी का पल्लू
और लोग हुए चिंतित उसके रूखे होते बालों पर
और एक लम्बे अंतराल के बाद, पीहर आते ही
घरवालों के साथ साथ उसकी मुलाक़ात हुई
अपने आप से, जिसे वो छोड़ गयी थी
इस घर की दहलीज पर, गाँव के चैती मेले में
आँगन के तुलसी चौड़े पर, और संकीर्ण पगडंडियों में
तीन ...
मेरे जैसा कुछ
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नहीं हो पायी विदा
मैं उस घर से
और रह गया शेष वहाँ
मेरे जैसा कुछ
पेल्मेट के ऊपर रखे मनीप्लांट में
मौजूद रही मैं
साल दर साल
छिपी रही मैं
लकड़ी की अलगनी में
पीछे की कतार में
पड़ी रही मैं
शीशे के शो-केस में सजे
गुड्डे - गुड़ियों के बीच
महकती रही मैं
आँगन में लगे
माधवीलता की बेलों में
दबी रही मैं
माँ के संदूक में संभाल कर रखी गयी
बचपन की छोटी बड़ी चीजों में
ढूँढ ली गयी हर रोज़
पिता द्वारा
ताखे पर सजाकर रखी उपलब्धियों में
रह गयी मैं
पूजा घर में
सिंहासन के सामने बनी अल्पना में
हाँ, बदल गया है
अब मेरे रहने का सलीका
जो मैं थी, वो नहीं रही मैं |
चार ...
चुप्पी
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बेहद ज़रूरी था मेरा चुप रहना इक रोज
कि छुपे रहते मेरे सपने और मेरी भावनायें
मुझे ढूँढ लेना था कोई बहाना चुप्पी की खातिर
जैसे कि मैं देख सकती थी आसमान में चाँद
और घंटों निहार सकती थी उसे मौन रहकर
मुझे नहीं खनकने देना था मन के मंजीरे को
उसे दुहराने देना था कहरवा की पंचम मात्रा
कि नहीं समझ पाते हैं लोग मन की बातें
जैसे नहीं लग पाता है बबूल पर आम का फल
दिलों की जमीन की उर्वरकता समान नहीं होती
रच लेना था मुझे विचारों का एक समुद्र मन में
जहाँ मैं कर सकती थी गोताखोरी मौन रहकर
और तैरता हुआ आ पहुँचता वहाँ सारा संसार
जैसे पी जाता है आसमान नदी को चुपके से
और वाष्प से घन बनने की प्रक्रिया मूक होती है
डाल सकती थी मैं मुँह में पान की एक गिलोरी
और करती रह सकती थी जुगाली चुप रहकर
पर नहीं सूझी कोई भी ऐसी तरकीब चुप्पी की
खाली मन भर भी ले खुद को उदासियों से तो
खाली मुँह खाने के विकल्प में शब्द माँगता है
पांच ...
मसाई मारा
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होने वाली है सभ्यता शिकार स्वयं अपनी
खूबसूरत मसाई मारा के बीहड़ जंगलों में
इसी साल दो हज़ार चौदह के अंत तक
और हुआ है जारी फरमान मसाइयों को
उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि छोड़ने का
कि चाहिए शिकारगाह शाही परिवार को
जो करता है वास विश्व के आधुनिक शहर में
जिसे हम जानते है दुबई के नाम से
और सभ्यता के नए पायदान पर
खरीद लिया है दुबई के शाही परिवार ने
ज़मीन का एक टुकड़ा तंज़ानिया में
जहाँ वो करेंगे परिभाषित सभ्यता को
नए शिरे से अपनी सहूलियत के मुताबिक
दिखाकर सभ्यता को अपनी पीठ
पीड़ा से होगा पीला मसाई में उगता सूरज अब
जिसे देखने जाते थे दुनिया के हर कोने से लोग
रहेगा भयभीत चिड़ियों के कलरव से भरा जंगल
और गूंजेगी आवाज़ दहशत की चारों ओर
जहाँ झेलना होगा दर्द विस्थापन का
मसाई लोगों को अपनी ही माटी से
दुखी हो रहा है सभ्यता का इतिहास
परिचय और संपर्क ...
सुलोचना वर्मा
1978 में जलपाईगुड़ी में जन्म
कंप्यूटर विज्ञान में स्नातकोत्तर
सम्प्रति कार्यक्रम प्रबंधक के पद पर कार्यरत
संपर्क ... डी -१ / २०१ , स्टेलर सिग्मा,
सिग्मा-४,
ग्रेटर नॉएडा, 201310
मो. न. ... 09818202876
सभी कवितायें बेजोड़!! सुलोचना वर्मा को फेसबुक पर पढ़ा है| उनकी "आम सी कविता" शीर्षक वाली कविता तो कमाल की है| शुभकामनाएँ!!!
जवाब देंहटाएंआभार!
हटाएंस्त्री विमर्श की कवितायेँ मुझे ज्यादा पसंद आई| "कुआँ" मैंने कथादेश में पढ़ा था, तब से फैन हूँ|
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंशिका,
माधवी बनर्जी
धन्यवाद माधवी जी
हटाएंपांचो कवितायेँ गज़ब हैं .. आपकी "किसान" शीर्षक वाली कविता से बहुत प्रभावित हुआ हूँ !!
जवाब देंहटाएंआपका फेसबुक मित्र
अजय कुमार सिंह
शुक्रिया अजय जी
हटाएंबहुत सुन्दर कविताएँ।बधाई।पहली कविता बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविताएँ।बधाई।पहली कविता बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कवितायेँ, सुलोचना जी के कविताओं का मैं नियमति पाठक रहा हूँ !! बधाई / शुभकामनायें मित्र !!
जवाब देंहटाएंसुलोचना जी की सुन्दर रचनाएँ पढ़वाने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंकुंआ झकझोरु पानी से लबालब भरा है ।👏
जवाब देंहटाएंकुंआ झकझोरु पानी से लबालब भरा है ।👏
जवाब देंहटाएंvery nice poems Sulochana ji..love to read them all.thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंMarriage
कविता जैसे कविता पढ्नेकाे मिला साधुवाद सुलाेजी के लिए ।
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