श्याम गोपाल की कवितायें आप पहले भी सिताब दियारा ब्लाग पर
पढ़ चुके हैं | एक ताजगी और नयेपन का एहसास करातीं ये कवितायें हमारे समय के
महत्वपूर्ण सवालों से टकराती हैं और बताती हैं कि हम किस खतरनाक दौर में जी रहे
हैं | इनमें मुख्य धारा से बाहर कर दिए गए उपेक्षित विषयों को उठाने का साहस भी
है, और उन्हें कविता में निर्वाह लेने की सलाहियत भी | तो आईये पढ़ते हैं .....
आज सिताब दियारा ब्लॉग पर श्यामगोपाल की कवितायें
एक ...
अलाव
******
सर्दी के दिनों में
दिन ढलते ही
जल जाता है
अलाव
आग सेंकने के साथ
लोग साझा करते है
एक- दुसरे का दुःख -दर्द
करते हैं सलाह -मशविरा |
किस्सों -कहानियों से
बच्चों में डाला जाता है संस्कार ,
शिष्टाचार |
आग के मद्धिम पड़ने के बावजूद भी
देर रात तक करते हैं
चौकीदारी |
सुबह फैली राख
प्रमाणित कराती है
द्वार के सामाजिक विस्तार को |
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सर्दी के दिनों में
दिन ढलते ही
जल जाता है
अलाव
आग सेंकने के साथ
लोग साझा करते है
एक- दुसरे का दुःख -दर्द
करते हैं सलाह -मशविरा |
किस्सों -कहानियों से
बच्चों में डाला जाता है संस्कार ,
शिष्टाचार |
आग के मद्धिम पड़ने के बावजूद भी
देर रात तक करते हैं
चौकीदारी |
सुबह फैली राख
प्रमाणित कराती है
द्वार के सामाजिक विस्तार को |
दो ...
यह खतरनाक
समय है
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यह
खतरनाक समय है
जब मोटापा एक आम समस्या है
[जबकि प्रेमचंद ने लिखा है मोटा होना बेहयाई है]
और रोटी पचाने के लिए
पैदल चलना जरूरी है
झूठ बोलना हमारी आदत नहीं मजबूरी है
जहाँ लिखा हो -पेशाब करना मना है
वहीं पेशाब करना जरूरी है
यह खतरनाक समय है ...
जब हत्या कि घटनाओं को
आसानी से आत्म हत्या में तब्दील किया जाता है
और बाप बेटी को भी न छोड़ता हो
आप ही बताओ ऐसे समय में
कैसे जीया जाता है
.....जब ईमादार होना लाचारी है
जिसे अवसर मिला
वही व्यभिचारी है|
..जब सत्य बोलना आग से खेलना है
और सरकारी घास को सब मिल कर चरतें हैं
समर्थ आदमी कानून से खेलतें है
और लाचार को सब मिलकर ठेलते हैं|
..जब दोहरा चरित्र बड़े व्यक्तित्व की निशानी है
जो कुर्सी पर बैठा है
उसका खून खून है
बाकी का पानी है|
..जब पक्षधरता सत्ता हथियाने का आसान तरीका है
बाँदी गाय हमारी मजबूरी है
आप कहतें हो वोट देना जरूरी है|
पक्ष विपक्ष एक ही सिक्के के दो पहलू है
राजनीति एक नाटक है
जब मोटापा एक आम समस्या है
[जबकि प्रेमचंद ने लिखा है मोटा होना बेहयाई है]
और रोटी पचाने के लिए
पैदल चलना जरूरी है
झूठ बोलना हमारी आदत नहीं मजबूरी है
जहाँ लिखा हो -पेशाब करना मना है
वहीं पेशाब करना जरूरी है
यह खतरनाक समय है ...
जब हत्या कि घटनाओं को
आसानी से आत्म हत्या में तब्दील किया जाता है
और बाप बेटी को भी न छोड़ता हो
आप ही बताओ ऐसे समय में
कैसे जीया जाता है
.....जब ईमादार होना लाचारी है
जिसे अवसर मिला
वही व्यभिचारी है|
..जब सत्य बोलना आग से खेलना है
और सरकारी घास को सब मिल कर चरतें हैं
समर्थ आदमी कानून से खेलतें है
और लाचार को सब मिलकर ठेलते हैं|
..जब दोहरा चरित्र बड़े व्यक्तित्व की निशानी है
जो कुर्सी पर बैठा है
उसका खून खून है
बाकी का पानी है|
..जब पक्षधरता सत्ता हथियाने का आसान तरीका है
बाँदी गाय हमारी मजबूरी है
आप कहतें हो वोट देना जरूरी है|
पक्ष विपक्ष एक ही सिक्के के दो पहलू है
राजनीति एक नाटक है
जिसमें
अधिकतर दलबदलू है|
लोकतंन्त्र बिन पेंदी का लोटा है
कुर्सी पर वहीं काबिज़ है
जिसका चरित्र खोटा है|
यह खतरनाक समय है
जब विश्वास पीछे से वार करता है
आस्था मुंह छिपाने के काम आती है
और अदालतें
सच को झूठ
झूठ को सच बनाती हैं
जो सबसे बड़ा ढोगी है
वही योगी है
यह खतरनाक समय है
जब विकास का चक्र तेजी से चल रहा है
सही अर्थों में आदमी
रोबोट में बदल रहा है
लोकतंन्त्र बिन पेंदी का लोटा है
कुर्सी पर वहीं काबिज़ है
जिसका चरित्र खोटा है|
यह खतरनाक समय है
जब विश्वास पीछे से वार करता है
आस्था मुंह छिपाने के काम आती है
और अदालतें
सच को झूठ
झूठ को सच बनाती हैं
जो सबसे बड़ा ढोगी है
वही योगी है
यह खतरनाक समय है
जब विकास का चक्र तेजी से चल रहा है
सही अर्थों में आदमी
रोबोट में बदल रहा है
तीन ....
बूढी माँ
********
********
बूढ़े
घर में रहती
बूढी माँ
वह नहीं छोड़ना चाहती
अपने बूढ़े घर को खण्डहर को
छोड़ गए जिसमें उसे
उसके बच्चे
उन्हें इंतजार है उसकी मौत का
इससे पहले यह खंडहर
नहीं बन सकता महल |
उसका दर्द ,उसकी करांह
फँस कर रह जाती
दीवार की दरारों में |
कोने में सहेज कर रखी गयी
टूटी -फूटी मूर्तियों के सामने
ऱोज कुछ बुदबुदाती
शायद मांगती दुआ
बच्चों की सलामती का
या करती शिकायत हम सफ़र से
जो उसे पथरीली राहों में छोड़ गया
एक झोले में ही सिमट कर रह गया है
उसका साज-सिंगार
जिसमें टूटे दांतों वाली कंघी
एक शीशे का टुकड़ा
और न जाने क्या क्या ठूसा हुआ है
कभी -कभी कभी वह गुन-गुनाती है
अपनी झाड़ू के साथ
या खूंटी में टगा पोटरियों का थैला निकाल
कुझ खोजने के क्रम में
खो जाती स्मृतियों में और उमड़ पड़ते आखों में आंसू
बूढी माँ
समय बेसमय
खटखटाती बर्तन
और सोने से पहले संगों देती
अपने कपड़े-लत्ते
और सब कुछ क्योकि
रोज सोने के साथ
सो जाना चाहती सदा के लिए |
सुबह चारपाई से उठ गए विस्तर
उसके जीवित होने का प्रमाण है |
चार .....
बूढी माँ
वह नहीं छोड़ना चाहती
अपने बूढ़े घर को खण्डहर को
छोड़ गए जिसमें उसे
उसके बच्चे
उन्हें इंतजार है उसकी मौत का
इससे पहले यह खंडहर
नहीं बन सकता महल |
उसका दर्द ,उसकी करांह
फँस कर रह जाती
दीवार की दरारों में |
कोने में सहेज कर रखी गयी
टूटी -फूटी मूर्तियों के सामने
ऱोज कुछ बुदबुदाती
शायद मांगती दुआ
बच्चों की सलामती का
या करती शिकायत हम सफ़र से
जो उसे पथरीली राहों में छोड़ गया
एक झोले में ही सिमट कर रह गया है
उसका साज-सिंगार
जिसमें टूटे दांतों वाली कंघी
एक शीशे का टुकड़ा
और न जाने क्या क्या ठूसा हुआ है
कभी -कभी कभी वह गुन-गुनाती है
अपनी झाड़ू के साथ
या खूंटी में टगा पोटरियों का थैला निकाल
कुझ खोजने के क्रम में
खो जाती स्मृतियों में और उमड़ पड़ते आखों में आंसू
बूढी माँ
समय बेसमय
खटखटाती बर्तन
और सोने से पहले संगों देती
अपने कपड़े-लत्ते
और सब कुछ क्योकि
रोज सोने के साथ
सो जाना चाहती सदा के लिए |
सुबह चारपाई से उठ गए विस्तर
उसके जीवित होने का प्रमाण है |
चार .....
सृजन की
पीड़ा
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अभी
लिखा ही कहाँ है मैंने
जब लिखूंगा तो विखर जाऊगां
जैसे जमने से पहले
बिखर जाता है बीज
और यह बिखराव ही शायद
जब लिखूंगा तो विखर जाऊगां
जैसे जमने से पहले
बिखर जाता है बीज
और यह बिखराव ही शायद
मुझे
जोड़ेगा ख़ुद से
फिर हो सकेगा सृजन
और
सहनी ही होगी
सृजन की पीड़ा|
फिर हो सकेगा सृजन
और
सहनी ही होगी
सृजन की पीड़ा|
पांच ...
दुःख
*******
इतने तो कमजोर न थे तुम !
सहन कर लिए थे
लू ,पूस की रात और घनघोर बरसात
धरती का सीना चीर
जिसने बोये उम्मीदों के बीज
उगाए सपने
सो गये थे कितनी रातें पानी पी कर
जीवन की कठिन परिस्थियों को भी पार कर लिए थे
एक दूसरे का हाथ पकड़
निश्चय ही कोई अंदाजा नहीं लगा सकता
तुम्हारें दुःख की उस सीमा का
जब तुमने ही जीवन से हार मान ली
*******
इतने तो कमजोर न थे तुम !
सहन कर लिए थे
लू ,पूस की रात और घनघोर बरसात
धरती का सीना चीर
जिसने बोये उम्मीदों के बीज
उगाए सपने
सो गये थे कितनी रातें पानी पी कर
जीवन की कठिन परिस्थियों को भी पार कर लिए थे
एक दूसरे का हाथ पकड़
निश्चय ही कोई अंदाजा नहीं लगा सकता
तुम्हारें दुःख की उस सीमा का
जब तुमने ही जीवन से हार मान ली
परिचय
और सम्पर्क
श्याम
गोपाल
ग्राम
-सुबांव राजा
पोस्ट -कनोखर
जिला -मिर्ज़ापुर
मो.७८६०४७१०२१
सम्प्रति -मूलचंद इन्टर कालेज सैनपुर -परसोली मुज़फ्फरनगर में
सहायक अध्यापक के रूप में कार्यरत
पोस्ट -कनोखर
जिला -मिर्ज़ापुर
मो.७८६०४७१०२१
सम्प्रति -मूलचंद इन्टर कालेज सैनपुर -परसोली मुज़फ्फरनगर में
सहायक अध्यापक के रूप में कार्यरत
सुंदर और सामयिक कवितायेँ. बधाई..
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविताएँ.
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएं.
जवाब देंहटाएंbahut sundar apne poem likha hai
जवाब देंहटाएंhamare taraf se apko der sari badhai
सभी मित्रों का धन्यवाद
जवाब देंहटाएं