गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

वर्षा की पांच कवितायें




‘वर्षा’ की कविताएँ इस दुनिया को मुकम्मल बनाने के प्रयास की कवितायें हैं, जो अपनी अज्ञानताओं, मूर्खताओं और अहंकारों के कारण जानती ही नहीं है, कि वह एक पाँव पर लड़खड़ाते हुए घिसट रही है | इस उम्मीद के साथ कि यह आवाज इस दुनिया को दोनों पैरों पर चलना सिखाने में मददगार हो, हम प्रस्तुत करते हैं .....



      
     सिताब दियारा ब्लॉग पर आज युवा कवयित्री ‘वर्षा’ की कवितायें




1

हम  सब हड़ताल पर हैं

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हम  सब स्त्रियां हड़ताल पर हैं
हमारी बात हो गई है
नदियां नहीं बहेंगी
हवा भी नहीं चलेगी
नदियां भी हड़ताल पर हैं, हवा भी
ज़ाहिर है हमारी हड़ताल तक कोई खुश्बू नहीं मिलेगी
फूलों-तितलियों से समझौता हो गया है
वे भी हमारे साथ हड़ताल में शामिल हैं
और अग्नि ने तो धधक कर कहा है
वो चूल्हे में नहीं आएंगी
सिर्फ मोमबत्तियों की लौ बन जलेंगी
वो भी हड़ताल पर हैं, हमारे साथ
एक मुर्दा गंधहीन-बहावविहीन
जियो तुम बलात्कारियों
तुम्हारी सृष्टि ऐसी ही होनी चाहिए
तुम्हे ख़ुश्बू से हमेशा-हमेशा के लिए महरूम कर देना चाहिए
ताजी हवा-ताजा पानी
तुम्हारे हिस्से न आने पाए
तुम निवाला बनाओ अग्नि वो भोजन न पकाए
तुम्हारे लिए ऐसी सज़ा की मांग करती हैं
*




2
एक सुंदर कविता से गुजरते हुए
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एक सुंदर कविता से गुजरते हुए
ठिठककर रुक गए मेरे पांव
देखा पीछे छोड़ आई
खून के पंजों के निशान
हथेलियां चू रही थीं टप-टप
मेरे ही लहू में सराबोर थी मेरी देह
मुझे हांफते देख रहे थे कितने चेहरे
कई मेरे अपने, कई अजनबी
फुसफुसाहटों से भर गई थी हवा
भय से भरी कितनी जोड़ी आंखें चिपक गईं थी दीवार पर
एक सुंदर दुनिया से इतनी जघन्य विदाई
क्या थी इसकी हक़दार मैं
जाते हुए सोचा मैंने
बुदबुदा रही थी अभी वो कविता
जिसे लिखा नहीं मैंने
जो अब नहीं लिखी जाएगी
अब तो बचेगी सिर्फ एक पुलिसिया रपट
मेरी मौत का विवरण देती हुई
वो भी तोड़-मरोड़ के
पड़ोसी-रिश्तेदार सहम कर देखेंगे अपनी मासूम बेटियों को
मेरे हिस्से की ख़ुशियां, मेरे हिस्से की कविताएं
छोड़ जाती हूं
तुम-तुम-तुम...तुम सब के लिए
*


3
छोटे शहरों की निरुपमाएं
.

उदास न होना
छोटे शहरों की निरुपमाएं
तुम्हारी रिपोर्ट नहीं न्यूज़ चैनलों पर
अख़बार में भी तुम्हारी ख़बर नहीं
लड़ी जा रही है एक निरुपमा की जंग
मारी गई बेरहमी से जो
कर दी गई लहुलुहान
मीडिया ढूंढ़ रहा है उसके क़ातिलों को
कौन होंगे वो
हाई प्रोफाइल मर्डर मिस्ट्री
सबको है बहुत पसंद
सब जानना चाहते हैं राज़
उसी रोज आई थीं ख़बरें और भी
मारी गईं थीं निरुपमाएं उसी रोज और भी
हुईं थीं लहुलुहान
वो छोटे शहरों-गांवों की निरुपमाएं
फेंक दी जाती हैं कहीं भी
थानों पर भी उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं
भगा दिए जाते हैं उनके मां-बाप
उनकी कहानियों में नहीं किसी की दिलचस्पी
बस माएं करती हैं विलाप
मीडिया ख़ूबसूरती को कवरेज देता है
मरने के बाद भी ?
*

4
एक दिन पता चलता है
.

एक दिन पता चलता है
पिछली सारी लड़ाईयां बेमानी थीं
हमने बनायी थी जो नफ़रत की दीवारें
वक़्त की आंधी में कब की ढह चुकी होती है
एक दिन पता चलता है
हम फिर से मिलाना चाहते थे हाथ
गले मिलकर पीठ थपथपाना चाहते थे
पाट देना चाहते थे सारी दरारें
और बिना बात किए गिले-शिकवों पर
साथ आगे बढ़ जाना चाहते थे
हम साथ बैठकर पीना चाहते थे
दरअसल एक प्याली चाय
हम उड़ाना चाहते थे
शर्मा सर की हंसी साथ-साथ
पड़ोसी की निंदा का मज़ा उठाना चाहते थे
एक दिन पता चलता है
हमने खो दिये कितने दिन-महीने-साल
नफरत की दीवार मज़बूत बनाने में
बस एक पल अचानक आया चुपके से
तोड़ दी सारी ख़ामोशी
छंट गया कुहासा
हम पूछने लगे एकदूसरे का हालचाल
हाथ मिलाया, बातें की
एक दिन ऐसा आएगा
खत्म हो जाएंगे सारे युद्ध
जम्मू-कश्मीर,भारत-पाकिस्तान
इज़राइल-फीलिस्तीन, अमेरिका-इराक के बीच
गोल मेज़ के किनारे बैठकर
सब चिंता करेंगे
धरती पर ज्यादा से ज्यादा
पेड़ उगाने की
हरियाली लाने की
एक दिन जरूरी जाना जाएगा ये
*



*
5  
जो जन्म लेने से पहले मार दी गईं
.
कुछ और नहीं तो चलिए
शर्मिंदा हो लेते हैं
उन बेटियों के लिए
जिन्हें हमने जन्म नहीं लेने दिया
या फेंक दिया, छोड़ दिया, कत्ल कर दिया
शुक्रगुजार हो लेते हैं उनके लिए
उन्होंने हमें इंसान होने का मौका तो दिया था
वो सभी लड़कियां
जिन्हें मौका नहीं मिल पाया
हवा में हिरनी सी कुलांचे भरने का
चॉकलेट-टॉफियां खाने का
गुड़ियों संग खेलने
किताबों संग बतियाने का
उन मृत बच्चियों की पुकार
बेटियों को जनम देनेवाली
उन मृत माओं की चीखें
हवा की सरसराहट में घुलमिल गई हैं
सुनो ग़ौर से सुनायी देंगी
जो चुप कर दी गईं बोलने से पहले ही
उनकी बचपन की कविताएं
ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार
बलपूर्वक रोक दिया गया
जिनके जन्म लेने को
ओ पिंकी, स्वीटी, गुड़िया, प्रिया
तुम होती तो कितना अच्छा होता
तुम्हारे हिस्से का प्यार
चलो फेंक देते हैं बागीचों में फूल बनाकर
फूलों के उपर तितलियां उड़ाकर






परिचय और संपर्क

वर्षा

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
सम्प्रति – पत्रकारिता से जुड़ाव



5 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया कविताएं...पर हमें सबसे ज्यादा पसंद आए तेवर पहली कविता के.

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  2. अच्छी कवितायें हैं । बहुत बहुत बधाई !

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  3. मुझे छोटे शहरो की निरुपमाए ' कविता अच्छी लगी. स्टॅलिन के कथन याद आ गया कि ''बड़े '' आदमी की मृत्यु ट्रेजेडी है मगर ''छोटे '' इंसानों की मौत सांख्यिकी .स्त्री के प्रति अपराधो को सनसनी में बदल देना एक तरह से उसी अपराध को दुहराना है .बड़े और विचित्र से यह ओब्सेसन बहुत खतरनाक है .कविता इस खतरे को बहुत सादगी मगर सधे ढंग से सामने रखती है

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