शुक्रवार, 7 मार्च 2014

पोलिश कवि चेस्वाव मिवोश की कवितायें



                                  चेस्वाव मिवोस 



"किसी भी साहित्यिक रचना का महज शाब्दिक अनुवाद करना रचना की प्लास्टिक सर्जरी करना है ! इससे रचना की जीवंतता और सौंदर्य अशेष नहीं रह पाता ! अनुवादक का कर्तव्य है कि वह मूल रचना और रचनाकार के मंतव्यों का भावांतरण करे ! प्रस्तुत अनुवाद इसी दिशा में एक पहल है |

                                                    ......... महाभूत चन्दन राय

                     चेस्वाव मिवोश का परिचय :

चेस्वाव मिवोश (30 जून,1911 लुथानिया –14 अगस्त, 2004  कर्कोव पोलैंड)
पोलिश कवि , उपन्यासकार, निबंधकार और अनुवादक ! 1980 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित !
एक साहित्यिक समूह " ज़गारी " के एक सह संस्थापक, 1930 में अपनी साहित्यिक शुरुआत की  ! 1930 में पहली दफा कवितायेँ दो खंडों में प्रकाशित और पोलिश रेडियो के लिए काम किया ! युद्ध के समय अधिकांश समय वारसॉ में भूमिगत प्रेस के लिए काम किया ! उनकी कवितायेँ दृश्य के प्रतीकात्मक रूपक के रूप में समृद्ध है ! जो जीवन के  सुखद अहसास और लौकिक अनुभूतियों से भरी  पड़ी  है


                    चेस्वाव मिवोश की कवितायेँ :


एक ..... प्रेम... 

प्रेम का अर्थ खुद से प्रेम करना सीखना है
जिस तरह कोई दूरस्थ वस्तुओं को देखता है
जैसे सभी वस्तुओं में आप हैं
और जो भी इस दृष्टिकोण से दुनिया को देखते है
उनके बिना जाने ही उनके दिल के जख्म खुद--खुद भर जाते हैं !

उससे उसकी मुख़्तलिफ़ तकलीफों के बीच
एक वृक्ष और एक चिड़ियाँ  कहते हैं- तुम हमारे मित्र हो
और तब वह  खुद को और सभी वस्तु चिह्नों को
इस तरह इस्तेमाल करता  है कि
वे उसकी परिपक्वता की रौशनी में चमचमाती हैं
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की वो जानता है कि नहीं वो
वह किसी के काम आया की नहीं

क्योंकि जो किसी के बेहतर काम आता है
ये कभी नहीं समझ पाता !


दो ....        असंदिग्ध उम्र में...


हम अपने सारे पापों का इकबाल करना चाहते थे
लेकिन उन पापों का कोई खरीदार नहीं था....
उजले बादलों ने भी उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया
और हवा उस समय  एक के बाद एक समुद्र का सफर करने में अति-व्यस्त थी !
हम जानवरों के भीतर भी हमारे पापों को सुनने की दिलचस्पी
पैदा कर पाने  में सफल  नहीं हुए.
कुत्ते,
बेहद निराश, हमसे एक आदेश की उम्मीद कर रहे   थे
एक बिल्ली, जो हमेशा की तरह अनैतिक ही थी सो
  रही थी
एक आदमी जिसका हम बेहद आत्मीय होने  का  भ्रम पाले थे
उसने भी इस भूत-गल्प के सुनने तक की परवाह नहीं की
भाई लोगो….दोस्तों के साथ वोदका या कॉफी पीते समय की बातचीत
उब होने के प्रथम संकेतों तक लम्बी घिचपिचि नहीं होनी चाहिए
क्योंकि ये बेहद भद्दा दिखेगा
ऐसा लगेगा की आप सुनने का डिप्लोमा किये एक शख्स को
घंटों के हिसाब से दाम चुका रहे हैं
,.
ख़ैर
….. देवालयों  में. शायद देवालयों में जाकर
हमें  पापों को कबूलना  चाहिए
लेकिन वहाँ क्या कबूल करने के लिए...???
जिन्हे हमने केवल खुद को सुंदर और महान रूप में दिखाने के लिए इस्तेमाल किया है !
यदयपि बाद में हमारे घरों में हमारे भीतर  का
वो “एक बदसूरत मेंढक”
जो अपनी मोटी पलक आधी
  ही खोलता है
और खुद को स्पष्ट रूप से देख
कर कहता है:
" अरे यह तो मैं हूँ” !


तीन ....विस्मृति...


तुम उन पीड़ाओं को विस्मृत कर दो
जिनसे तुमने दूसरे लोगो को दुःख पहुँचाया था
तुम उन पीड़ाओं को भी विस्मृत कर दो
जिन्हे दूसरों ने तुम्हे दुःख पहुँचाने के लिए प्रयुक्त किया
पानी का काम केवल बहना और सिर्फ बहना है
बसंत चमचमाते हुए आता है और बीत जाता है
तुम भूल रहे हो की तुम इस नश्वर धरती में जी रहे हो
कभी-कभी तुम दूर से सुनायी देते एक गीत का अंतिम गीतांश सुनते हो
तुम खुद से पूछते हो
इसका क्या मतलब है ?? ये कौन गा रहा  है ??
बच्चों की तरह गर्मीला सूरज उगता है
आपके पोते और पर-पोते पैदा होते हैं.
आप एक बार फिर से एक हाथ की बगल में लेटे हैं
!
वो नदियाँ जो कितनी अनंत दिखती  है
उन नदियों के नाम आप के साथ जिन्दा रहते हैं.
तुम देखते हो की शहर कितना बदल चुका
  है
तुम्हारे खेत जुते हुए हैं
तुम इस मूक दहलीज पर खड़े होकर दुनिया देखो !


चार .... बही-खाता...

मेरी मूर्खताओं का इतिहास कई संस्करणों में लिखा  जाएगा
कुछ मूर्खताएं जिनसे मैंने अपनी ही आत्म-चेतना को नुकसान पहुँचाया
ठीक उस पतंगे की उड़ान की तरह जो
सबकुछ जानते हुए भी
मोमबत्ती की लौ की ओर उड़ता चला जाता  है

और अन्य उत्कंठाओं को चुप करने के तरीके के रूप में लिखी जाएंगी
वो छोटी-छोटी कानाफूसियाँ जो चेतावनी थी जिन्हे मैने अनदेखा कर दिया था
मैं उनके साथ संतोष और गर्व के साथ अलग से व्यवहार करूँगा
एक समय था जब मैने उनसे पक्षपात किया था,
जब मैने विजय की ऐंठ में किसी पर संदेह नहीं किया !

लेकिन उन सभी के पास एक ही विषय होगा और केवल मेरी ही इच्छा होगी
अफसोस, लेकिन ऐसा नहीं था, बिल्कुल नहीं था –
क्योंकि मैं दूसरों की तरह बनना चाहता था ....मैं भटक गया था
मैं अपने भीतर के जंगलीपने और अशिष्टता से डरा  हुआ था

मेरी मूर्खता का इतिहास नहीं लिखा जाएगा.
इस बात के लिए देर हो चुकी है और यह पीड़ादायी सच्चाई है
!

पांच .... सदी के अंत के लिए एक कविता...
         

जब प्रत्येक वस्तु उत्तमता से परिपूर्ण थी
और पाप का विचार भी इस दुनिया से विलुप्त हो चुका था
और जब धरती बिना किसी काल्पनिक आदर्शों और चालाकियों के
इस सार्वलौकिक-शांति के उपयोग और आनंद के लिए तैयार हो चुकी थी
मैं किन्ही नामालूम कारणों से पुस्तकों, भविष्यवक्ताओं,
धर्मशास्त्रियों, दार्शनिकों, कवियों से घिरा हुआ
एक उत्तर को तलाश रहा था

मैं कभी नाक--भौं सिकोड़ता तो कभी मुंह बनाता
कभी रातों को अचानक जागता था
तो कभी भोर में बड़बड़ा रहा था
क्या यह थोडा शर्मनाक था….
यह क्या था जिसने मुझे इतनी पीड़ित किया था
यह आपका चिल्लाकर बात करना
तो शिष्टाचार ही प्रदर्शित करेगा
और ही विवेक
यह मनुष्यता के एक उलंघन की तरह दिखेगा !

आह मेरी स्मृतियाँ
जो मेरा परित्याग करना नहीं चाहती !
प्रत्येक स्मृति के पास अपने दर्द हैं
प्रत्येक के पास अपनी एक मृत्यु
और प्रत्येक के पास अपनी घबराहटें !
 तो स्वर्गनुमा समुद्र तटों पर
ये मासूमियत क्यों हैं ,
स्वच्छता के चर्च पर
एक निर्दोष आसमान क्यों ?
क्यों ...क्योंकि ये लंबे समय पहले की बात है ?
 एक पवित्र आदमी के लिए
- जैसे एक अरबी अफसाना चलता है
भगवान ने कुछ हद तक दुर्भावनापूर्ण कहा:
क्या मैने लोगों को पता लगने दिया किया की
तुम कितने बड़े पापी हो
वे कभी तुम्हारी प्रशंसा नहीं कर सकते थे.. !!!

और मैनेपवित्र आदमी ने प्रतिउत्तर दिया
क्या मैने उनको खुलासा किया की
आप कितने दयालु हैं...!!!!
वो भी आपकी परवाह नहीं करते

मैं किस की तरफ आस करूँ
इस प्रसंग के लिए जो दर्द से इतना भस्मीला है
और संसार की प्रतिसरंचना में भी दोष है
या तो यहाँ नीचे
या ऊपर वहाँ बहुत
कोई भी शक्ति इसके कारण और प्रभाव को समाप्त नहीं कर सकती ?

वह नहीं सोचता
ही याद रखता है
कि उस पार मृत्यु है
वह केवल सभी को प्यार देता है
यदयपि वह रोज मरता है
जो बिना किसी आवश्यकता के
यातनाओं के नाखूनों सहित
सभी को सहमति और अनुमति देता है कि
जो भी मौजूद है
अपना अस्तित्व बनाये रखे !

यह पूरी तरह रहस्यपूर्ण है
असम्भवता की हद तक जटिल
यह बेहतर होगा की की ये भाषणबाजी छोड़ दी जाए
यह भाषा उन लोगों के लिए नहीं है...
समृद्धता का आनंदोत्सव हो
अंगूर टपकें और फसलें हो
तब भी
यदयपि प्रत्येक को शांति अनुदत्त नहीं की जा सकती !


 अनुवादक

परिचय और संपर्क

नाम  : महाभूत चन्दन राय 

जन्म तिथि  स्थान : 25.11.1981 ,जिला वैशाली बिहार
वर्तमान पता : फ्लैट नंबर 2311 हाउसिंग बोर्ड कालोनी सेक्टर-55 फरीदाबाद-121004, हरियाणा , मेल  rai_chandan_81@yahoo.co.in,   
दूरभाष - 09953637548
शिक्षा  :  केमिकल इंजीनियरिंग
कार्यक्षेत्र  स्वतन्त्र लेखन        

                       
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित 




3 टिप्‍पणियां:

  1. कमाल की कवितायें और अनुवाद भी अद्भुत .....कविताओं की मौलिकता बनी रही ....बिना शोरगुल किये अपना काम करने वालों में से एक है चन्दन .बधाई चन्दन को और रामजी तिवारी जी को भी

    जवाब देंहटाएं
  2. अनुवाद और कवितायें दोनो शानदार दिल को छूती हुई

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी कविताएँ .. और अनुवाद कुछ शिल्पगत कमियों के बावज़ूद काफी हद तक ठीक है ।

    जवाब देंहटाएं