रविवार, 14 अप्रैल 2013

महान युगदृष्टा - डा. भीम राव अम्बेडकर


                                   डा. अम्बेडकर 



पिछले लगभग दो साल से अपनी ट्रेड-यूनियन की पत्रिका के लिए मैं एक नियमित कालम लिख रहा हूँ | पत्रिका के हिसाब से एक पृष्ठ की सीमा को ध्यान में रखते हुए यह कालम विशुद्ध परिचयात्मक स्तर का होता है , और उन लोगों को समर्पित होता है , जिन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज को रास्ता दिखाने का काम किया है | इस महीने के कालम में मैंने साहित्य से थोड़ा अलग हटने की कोशिश की है , और लेख का रुख समाज की तरफ मोड़ा है | जाहिर है , कि भारत में सामाजिक-परिवर्तन की बात करते समय सबसे पहले जो नाम जेहन में आता है , वह महान युगदृष्टा डा. भीम राव आंबेडकर का ही होता है | आज १४ अप्रैल को उनकी जयन्ती के अवसर पर पूरे आदर और सम्मान के साथ मैं इस परिचयात्मक लेख को ‘सिताब दियारा ब्लॉग’ पर भी प्रकाशित कर रहा हूँ , और उम्मीद करता हूँ , कि समता , बंधुता और न्याय आधारित समाज के लिए देखे गए , बाबा साहब के सपने एक न एक दिन जरुर पूरे होंगे |
                                     

           महान युगदृष्टा - डा. भीमराव अम्बेडकर  


14 अप्रैल को बाबा साहब डा. भीम राव आंबेडकर की जयन्ती पड़ती है | उस संविधान निर्माता , युगदृष्टा , कानूनविद , समाज सुधारक और अर्थशास्त्री की , जिसे भारत सहित दुनिया में भी , पिछली सदी के सबसे महानतम व्यक्तियों में शुमार किया जाता है | उनका जन्म महार जाति में हुआ था , जो तत्कालीन समय में वर्ण-व्यवस्था के हिसाब से एक अछूत जाति मानी जाती थी | डा.आंबेडकर के पिता अंग्रेजी शासन द्वारा नियंत्रित भारतीय सेना में मुलाजिम थे , और ‘महू सैन्य छावनी’ में पद-स्थापित थे | जाहिर है , कि आजादी के छः दशकों बाद , आज भी जिस समाज में जातिगत भेदभाव और श्रेष्ठता बोध के लक्षण सामान्यतया दिखाई पड़ जाते हों , ऐसे में उस दौर में डा. अम्बेडकर को किन विपरीत परिस्थितियों से गुजरना पड़ा होगा , समझना कठिन नहीं है |

डा. आंबेडकर बचपन से ही पढने में बहुत तेज थे | उन्हें अपनी पढाई के लिए बम्बई आने का अवसर मिल गया | वहीँ से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की , और फिर कालेज में दाखिला लिया | ऐसा करने वाले वे , अपने वर्ग में पहले व्यक्ति थे , | बम्बई विश्व-विद्यालय से स्नातक करने के बाद उन्हें अमेरिका के कोलंबिया विश्व-विद्यालय में फेलोशिप मिल गयी , और वे आगे की पढाई के लिए अमेरिका चले गए | उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा | कोलंबिया , लन्दन स्कूल आफ इकोनामिक्स और उस्मानिया विश्व-विद्यालय से उन्होंने लगभग हर वह पढ़ाई पढ़ी , जो उस समय हासिल की जा सकती रही | बी.ए. , एम् ए. , पी.एच.डी. , एल.एल.डी. और डी.लिट् सहित कई उपाधियाँ उनकी झोली में थी | पढाई के बाद डा.आंबेडकर भारत लौट आये | हालाकि उन परिस्थितियों में उन्हें विदेश में कहीं भी अच्छी नौकरी मिल सकती  थी | लेकिन उनके दिमाग में भारतीय समाज को लेकर कई योजनायें थी , और जिसका समाधान यहीं रहकर किया जा सकता था |

डा. आंबेडकर ने वह चुनौती स्वीकार की | बीस और तीस के दशक में उन्होंने जाति-व्यवस्था और वर्ण-व्यवस्था के खिलाफ , तथा सामाजिक समानता के पक्ष में बड़ी लड़ाईयां आरम्भ की | अपने लेखों के माध्यम से उन्होंने धर्मग्रंथों में उल्लिखित अमानवीय भेदभावों को चुनौती दी और उन्हें खारिज करना आरम्भ कर दिया | उनका यह मानना था , कि जब तक हम इस सम्पूर्ण वर्ण-व्यवस्था को नहीं उखाड़ फेंकते , तब तक जातिविहीन और समरसता आधारित समाज का निर्माण संभव नहीं हो सकेगा | इन्ही आधारों पर उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों को भी चुनौती दी , कि वे भले ही हरिजनों के उत्थान की बात करते हैं , और भेदभाव तथा छुआ-छूत को हटाने की बात करते हैं , लेकिन वे वर्ण-व्यवस्था के खात्मे के सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं , इसलिए उनके विचारों पर चलते हुए हम इस गुलामी से मुक्त नहीं हो सकते हैं |

उन्होंने समाज के वंचित तबके के लिए पृथक-निर्वाचन की मांग रखी , जिसको लेकर हिन्दू समाज में काफी हंगामा हुआ | बाद में महात्मा गांधी ने डा.अम्बेडकर के साथ ‘पूना-पैक्ट’ के माध्यम से इसे सुलझा लिया | उनके लेखन और आन्दोलन दोनों ही साथ-साथ चलते रहे | देश आजाद हुआ , और उसे संचालित करने के लिए नियम और कानूनों के सूत्रीकरण , अर्थात संविधान के निर्माण की जरुरत पड़ी | उन्हें संविधान निर्माण की ‘प्रारूप समिति’ का अध्यक्ष बनाया | इसी समिति की देखरेख में सविधान को लिखे जाने की प्रकिया होनी थी | दुनिया के सारे संविधानो का अध्ययन करने के बाद , अपने देश-काल की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सन 1949 में हमारा संविधान तैयार हुआ , और आगे चलकर 1950 में लागू हुआ | इस बड़े और महत्वपूर्ण कार्य में उनके योगदान को देखते हुए , उन्हें संविधान निर्माता के रूप में भी याद किया जाता है |

आजाद भारत में वे देश के पहले कानून मंत्री बने | लेकिन अपने प्रगतिशील विचारों के कारण उन्हें जल्दी ही इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी , जब ‘हिन्दू कोड बिल’ पर उनका सरकार और संसद से मतभेद हो गया , और उन्होंने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया | उनके कानूनविद होने की बात तो बहुत सारे लोग जानते हैं , लेकिन उनकी प्रतिभा का विस्तार ‘अर्थशास्त्र’ के क्षेत्र में भी बड़ा जबरदस्त था | अपने आरंभिक शोध-कार्यों में उन्होंने देश और समाज की आर्थिक प्रगति और अवनति को कई दृष्टियों से जांचा और परखा था | ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की अवधारणा भी डा.आंबेडकर की ही थी , जो यह बताने के लिए काफी है , कि उनके आर्थिक विचारों में किस तरह की दूरदर्शिता पाई जाती थी | प्रसिद्द अर्थशात्री और नोबेल पुरस्कार विजेता ‘अमर्त्य सेन’ ने एक बार कहा था , कि अर्थशास्त्र के विषय में डा. आंबेडकर मेरे पिता हैं |

अपने जीवन के अंतिम वर्ष ( 1956 )  में उन्होंने ‘बौद्ध धर्म’ अपना लिया था | जाहिर है , कि ‘हिन्दू धर्म’ की जड़ता ने उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य किया होगा | इसके कुछ साल पहले से ही उनकी तबियत ख़राब रहने लगी थी , और मधुमेह की बीमारी ने उन्हें अपने गिरफ्त में ले लिया था | अंततः 1956 में उनकी मृत्यु हो गयी | लेकिन यह मृत्यु केवल भौतिक ही थी , क्योंकि उसके बाद उनके विचारों को आगे लेकर , जिस तरह से सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक समानता के प्रयास ज़ारी हैं , उनमें डा.आंबेडकर आज भी ज़िंदा हैं | जाहिर है , कि ऐसे प्रयासों में ज़िंदा होना , किसी भी महान व्यक्ति का सबसे बड़ा योगदान माना जा सकता है | निश्चित तौर पर उन प्रयासों को अभी भी बहुत आगे ले जाने की आवश्यकता है , लेकिन अभी तक के उनके सकारात्मक विकास को देखकर आगे के लिए उम्मीद तो की ही जा सकती है | उस महान समाज-सुधारक और युगदृष्टा की स्मृति को हमारा नमन |

                   


परिचय और संपर्क

रामजी तिवारी                                

बलिया , उ.प्र.
09450546312








5 टिप्‍पणियां:

  1. करोड़ों भारतीयों की अस्मिता के ऐतिहासिक सर्जक -नायक के प्रति यह आपकी उचित ही श्रद्धांजलि है .

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया लेख.. बाबा साहेब के जीवन के सारे पहलू इसमें आ गये हैं.. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. भईया बेहद समग्र लेख! अपने ब्लॉग पर लगाने के अनुरोध के साथ !

    जवाब देंहटाएं
  5. परिचयात्मक ही सही, लेकिन आपके ये आलेख बहुत महत्वपूर्ण हैं. एक रचनाकार का यह भी प्रमुख दायित्व है की वह समाज को अपने पुरोधाओं से परिचित कराये. बधाई.

    जवाब देंहटाएं