बुधवार, 13 मार्च 2013

पंखुरी सिन्हा की कवितायें


                                   पंखुरी सिन्हा 


पंखुरी सिन्हा को एक कथाकार के रूप में हम सब जानते हैं | लेकिन इधर के कुछ वर्षों में उन्होंने कविता की विधा में भी हाथ आजमाया है , और जिसे कई महत्वपूर्ण ब्लागों ने छापा भी है | उनके इस प्रयास में ‘सिताब दियारा’ भी अपनी भागीदारी जोड़ता है |
                                      
      प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लाग पर पंखुरी सिन्हा की पांच कवितायें

1....
क्लोन
शिथिल हो गयी हों जैसे दिमाग की सब शिराएं,
खून का पहुँचना बंद उन तक,
किसी बेहद ठंढी वैज्ञानिक प्रयोगशाला के फ्रीजर में,
जैसे रखे गए हों,
कुछ आधे जिंदा लोग,
कांपते हो हाथ उनके, आधी बेहोशी में,
कई बार पूर्णतः निर्मित जीन्स से,
कई बार असल के जन्मे लोग,
सारा तंतु हमारे होने का, सारा तंत्र,
नतमस्तक, विज्ञानं के आगे,
एक सधी हुई मुस्कराहट के,
कि हम जीन्स से बना सकते हैं,
आदमी,
पूरी तरह खड़ा कर सकते हैं,
उस बुत को,
उसे आधा जिंदा रख सकते हैं,
बरसों,
किसी की कोई उम्र नहीं।


2 ....

फ़कत धूप के सहारे


फ़कत धूप के सहारे,
जी जाने वाली एक पूरी सुबह,
सुबहें,
फकत धूप के सहारे,
खड़ी एक पूरी मुक़्क़मल सुबह,
कामयाब सुबह,
लबरेज़ धूप से,
खटखटाती,
तुम्हारे शोकाकुल मन के भीतर,
खटखटाती अन्तःपुर के द्वार,
अन्तःकक्ष को खटखटाती,
आवाज़ देती,
कि पकड़कर उसका हाथ तुम,
निकल आओ शयन कक्ष से अपने,
उठकर चली आओ मंत्र मुग्ध,
कि सूरज बजाता है वाद्य कोई,
नूतन, नवीन, मृदंग, जलतरंग, सरोद।
आकर खड़ी होओ तुम धूप के उस चौकोर, लम्बोतरे, दाएरे में,
धूप में,
जिसकी वैज्ञानिक परिभाषा है, किन्तु छोड़ो उसे,
सिर्फ धूप में खड़ी रहो तुम,
समेटो भी मत कम्बल रजाई अपने,
कि उसकी माँ का दिया,
कैंथा स्टिच का कैथा याद आता है,
पिछले साल मोड़कर रख दिया,
लाल रंग का लिहाफ याद आता है,
लाल रंग के मखमल की मुलायमियत याद आती है,
हाथ मत लगाओ,
खादी के कम्बल को अपने,
छुओ मत रुखड़ापन उसका,
उसके साथ खरीदे तमाम सिंथेटिक कम्बलों का टिमटिमाता रंग याद आता है,
फ़कत धूप के सहारे,
जी जा सकती है, सुबह,
बिताई जा सकती है,
उठो तुम, जुटो तुम,
दिन में,
अपने चुनिन्दा अकेलेपन की प्रखर धूप में,
काम में जुटो तुम,
फ़कत काम में,
ऐसे नहीं,
कि हटाने हों, पत्थर राह से,
ऐसे नहीं कि अवरोध हों राह में,
जबकि हों अवरोध राह में,
ख्याल करो तुम बोए हुए मटर की लताओं
 का,
लकड़ी से जिन्हें बाँधा तुमने,
छा जाओ जंगली लता की तरह हर दीवार पर,
छत पर,
जाल की तरह ज़मीन पर,
जंगल की तरह ज़मीन पर,
फकत धूप के सहारे।



3 ...
लोक कथाएँ

लोक कथाएँ नहीं,
केवल धारणाएं हैं ये,
मान्यताएं,
किमवदंतियाँ,
खिस्से,
कोई पड़ताल नहीं,
लोगों की बातें,
लोग कहते हैं, ऐसा है अमुक जगह,
जंगल गाता है वहां,
पेड़ गाते हैं,
ख़ास है हवाओं का बहना,
उन पत्तियों में,
शाखों में उलझना,
लोग कहते हैं,
उस लड़की की रूह रहती है वहां,
उस रास्ते पर चलती है वह,
अँधेरे और रौशनी में,
नदी किनारे वाली उस राह पर,
लोग कहते हैं,
स्टेशन भी वह भुतहा है,
वहां गाड़ियों की दुर्घटनाएं होती हैं,
अक्सर, अकारण,
बोगियाँ उलटती हैं,
डब्बे, धराशायी,
जबकि कुछ नहीं मिलता उन पटरियों में,
कोई गड़बड़ी नहीं,
खूनी है रूह उसकी, प्यासी……….



4 ....

फाँसी की सज़ा                

ये क़त्ल करने के बाद उसने जाना, कि उसे फाँसी होनी थी,
पर बहुत ज़रूरी था उसे मारना,
जो लगातार बोल रहा था,
और जिसे सिर्फ देह की भाषा समझ आती थी।


5 ....

सेकेण्ड हैण्ड किलिंग

जैसे बन्दूक उठाकर, गोली दाग दे कोई,
आवेग में, आवेश में,
या उसके ठंढ़ा हो जाने के बाद भी,
वैसे मरवाना, क़त्ल करवाना,
इस हद तक असंभव बना दे कोई किसी का जीना,
काम करना,
ये बात का सिर्फ एक पहलू है।
लोग बेवजह मरवाए जाते हैं।
ये भी बात का सिर्फ एक पहलू है।




परिचय और संपर्क
              

पंखुरी सिन्हा
                                  
संपर्क--- 510, 9100, बोनावेंचर ड्राइव, कैलगरी, SE, कैनाडा, T2J6S6
403-921-3438---सेल फ़ोन
जन्म ---18 जून 1975       
किताबें ----- 'कोई भी दिन' , कहानी संग्रह, ज्ञानपीठ, 2006
                  'क़िस्सा--कोहिनूर', कहानी संग्रह, ज्ञानपीठ, 2008
                   कविता संग्रह 'ककहरा', शीघ्र प्रकाश्य,    



18 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut achi kavitaye.... sitabdiyara ka abhar.... pankhuri ji ko shubhkamnaye

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  2. सभी कवितायेँ बहुत सधी हुई और अच्छी लगी, पंखुरी जी को बधाई एवं अनंत शुभकामनायें ......शुक्रिया सिताब दियारा

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  3. innovative...balanced...impressive emotions...!!

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  4. aapki sabhee kavitaen achchhi lagin aur achchha prabhav chhodne men saksham hain,sundar.

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  5. Lekhan to aap ka ati sunder tha mai FB per dekh raha hun aaj yeh sab dekha to man bahut khush hua aur, duva kari ga us khuda sey woh aap ko aur sunder likhney kee shakti dey taaki hum usko ,li jama pehna sakey. Bahut Sunder rachnaye hain.

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  6. Bahut khub kiha hai, shayad lafzo sey bayan na kar saku prantu yeh kavitai dil ko chti hai bilkul original hain, kuch kehtee hain, ya khuda likhtee rahein hum hai inko chaney key liye God bless you keep it up.

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  7. उम्दा रचना आपकी पंखुरी जी.

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  8. बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर स्तरीय कवितायें पंखुरी सिन्हा की बधाई और शुभकामनाएं !
    डॉ सरस्वती माथुर

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  9. पंखुरी की कविताएँ बेहतर लगीं. शुभकामनाएं एवं बधाई.

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  10. बहुत ही सुन्दर हैं सारी कवितायेँ .........हार्दिक बधाई

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  11. ;fakat dhoop ke sahare' aur 'lok kathayen' jaisi kavitaon ke liye bahut-bahut badhai.

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  12. सुन्दर एवं प्रशंसनीय कविताएँ बधाई ..

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  13. जी सभी बेहद खूबसूरत हैं, खास कर "सेकेण्ड हैण्ड किलिंग" और "फांसी की सजा" बेमिशाल है.....आपकी कविता "लोक कथाएं" के बारे में एक बात कहना चाहूँगा.....मैंने एक कहानी संग्रह पढ़ी थी जोड़ा हारिल की कथा जिसे राकेश कुमार सिंह ने लिखा और ज्ञानपीठ ने छापा था, उसमे एक कहानी थी 'भूत'....... एक पल को लगा कुछ उसी पर आधारित है, फिर मैंने आपकी कविता कई दफे पढ़ी और खुद पर हसना आया, किमवदंतियाँ जो लोक कथाओं का आधार रही है वो भी कुछ इसी तर्क पर सुनी और सुनायी जाती रही है, बिना सूक्ष्म पड़ताल के जैसे की मैंने दो बिलकुल ही अलग रचनाओं को एक सी प्रतिकृति मान ली........"फकत धूप के सहारे" बेहद उम्दा कविता है और इसमें आपने नयी और पुरानी शैलियों का वाजिब संतुलन बनाया है,.........इन खूबसूरत रचनाओं के लिए धनयवाद और बधाई...

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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