शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

सिंहासन और कूड़ेदान


अंडमान की यात्रा के चलते ‘सिताब दियारा’ ब्लॉग लगभग दो हफ्ते तक अपडेट नहीं हो पाया ....| आप सबसे माजरत के साथ उम्मीद करता हूँ कि जल्दी ही यह पटरी पर आ जाएगा | तब तक के लिए अपनी एक पुरानी कविता पोस्ट कर रहा हूँ , जो उस कथित महानायक के संन्यास लेने पर मनाये जा रहे यशोगान में थोड़ी खलल पैदा करती है ....|


सिंहासन और कूड़ेदान


मुग्ध हैं सभी
तुम्हारे खेल को देखकर
क्रिकेट के महानायकों
तुम शाट लगाते हो
और हमारा सीना चौड़ा हो जाता है
तुम शतक लगाते हो
हमारा दुख उठाने लायक हो जाता है
तुम विश्व कप जीतते हो
चाय की दुकान पर काम करने वाला लड़का
पहली बार आपने आँसुओं के बजाय
पानी से गिलास धोता है।


क्रिकेट के शब्दकोश के सभी पुराने शाटों को
तुमने नया आयाम दिया है
तुमने नयी गेंदे ईजाद की है
परन्तु देा दशक पहले आयी
उस आँधी के बाद
तुम्हारे सभी शाट, सभी गेंदें
एक जैसे दिखाई देने लगी हैं
तुमने जब भी उसे लगाया
हमारी जेब कट गयी
तुमने जब भी उसे फेंका
हम थोड़े और बौने हो गये
तुम्हारे लगाये गये सभी शतकों के बाद
भेंड़ियो के पंजों के नाखून कुछ और तीखे हो गये।


तुम इधर मैदान में बैट बाल से खेलते हो
और वो उधर हमारी जेब से खेलते हैं
हम तुम्हारी जीत पर
तालियाँ बजाने के लिए हाथ उठाते हैं
और वो इधर हमें नंगा कर देते हैं
हमारे प्यार ने जब भी तुम्हें चूमने की कोशिश की है
तुम्हारे शरीर के हर इंच पर उग आये फूल
हमारे होंठों को छलनी कर देते हैं |


मैदान के भीतर का खेल
इस बाहर के खेल की छाया है
जिसे समझने के लिए
सिर्फ क्रिकेट विशेषज्ञ होना जरूरी नहीं।


यह सवाल बेमानी है
लेकिन क्या तुम वह शाट नहीं लगा सकते
जिससे हमारी थाली में
रोटी के साथ नमक मिर्च भी बची रहे ?
वह गेंद नही फेंक सकते
कि भेड़ियों के पंजों में कोढ़ लग जाए
ऐसी जीत नहीं दिला सकते
कि हमारे दुख भी हार जाएँ ?


मैं देशद्रोही कहलाने का खतरा उठाने को तैयार हूँ
परन्तु तुम लोग जब भी हारते हो
तो मेरी जेब की चवन्नी सलामत लगती है।


उँचाई से चीजे बहुत छोटी दिखाई देती है
उसके लिए झुकना पड़ता है
और जब अकड़न अधिक हो जाए
तो यह काम मुश्किल होता है
ऐसे में काम आते हैं बौने लोग ही।


मुझे याद है जब फुलेला गोपीचन्द को
एक ऐसा स्मैश लगाने के लिए
अशरफियों की पेशकश की गयी थी
जिसमें कुछ लोगों के फेफड़ों से
चुराया जाना था थोड़ा आक्सीजन
तब गोपीचन्द ने कहा था
मैं वह स्मैश तो लगा सकता हूँ
जिससे आल इंग्लैण्ड बैडमिन्टन चैम्पियनशिप जीती जा सके
परन्तु यह स्मैश लगाने से पहले
मैं अपने आपको रैकेट के साथ-साथ
खूटियों पर टाँग देना पसन्द करूँगा।


और तुम देवताओं
जब वह शाट लगाते हो
जिससे हमारे नल सूख जाते हैं
वह गेंद फेंकते हो
जिससे हमारी धरती
कुछ और जहरीली हो जाती है
वह मैंच जीतते हो
जिससे हम लोग इतने मीठे जो जाते हैं
कि यमराज की जीभ भी लपलपा जाय
क्या तब भी तुम्हारा जमीर
‘ये दिल माँगे मोर’ ही कहता है ?


तुम्हारा तर्क है
हम नहीं तो कोई और यह खेल खेलेगा
परन्तु क्या सिर्फ इसीलिए
कोई अपने बाप की हत्या कर दे
कि उसे तो एक दिन मरना ही है।


सुनो इस बस्ती की हाहाकार को
आग लगा दी है लुटेरों ने
तुम्हारे बन्धु-बान्धव पुकार रहे हैं
बचाओ-बचाओ
गाफिल मत हो अपने दुर्गों को देखकर
आग, उनमें भी लग सकती है
खण्डहर, ये भी बन सकते हैं
फिर अशरफियों को देखा है कभी आग बुझाते हुए
किसको पुकारेंगे?
बस्ती तो शमशान हो चुकी होगी।


तुमने समय की अदालत नहीं देखी
जब शम्बूक के वंशजों ने
त्रेता के महानायक पर मुकदमा ठोका था
और तमाम नामी वकीलों की पैरवी के बावजूद
वो मर्यादा की अपील हार गये थे
जब एकलव्य की सन्तानों ने
द्वापर के महागुरू से एक अँगूठे का हिसाब माँगा था
और तमाम शास्त्रों के उद्धरणों के बावजूद
अदालत ने उन्हें एक कौम के नरसंहार का दोषी पाया था


फिर तुम्हारी क्या बिसात ?
हम तो अफीमची हैं
परन्तु कल तुम्हारे सभी शाटों और गेंदों पर
सभी शतकों और जीतों पर
एक बाँउसर भारी पड़ जायेगा
जब हमारी सन्ताने अपनी प्यास बुझाने के लिए
अपने कुओं को पाताल तक खोद डालेंगी
और उसका देवता उन्हें बताएगा
कि इन कुओं को सुखाने वालों में
तुम सब भी शामिल थे
तब तुम्हारे पास
इतिहास से ‘रिटायर्ड-हर्ट’ होने के अलावा
कोई रास्ता नहीं बचेगा
और तभी पता चलेगा
कि इतिहास
सिंहासन के बगल में
कूडे़दान क्यों रखता है।


खैर इतिहास तुम्हें जिस रूप में दर्ज करे
तुम्हारे इस खेल में
हमारे इतिहास बनने की प्रक्रिया को
बहुत तेज कर दिया है।



परिचय और संपर्क

रामजी तिवारी
बलिया , उ.प्र.

मो.न. 09450546312

5 टिप्‍पणियां:

  1. good poem sir g jo likha sach likha thanks

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  2. इस पोस्ट की चर्चा, शुक्रवार, दिनांक :-18/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -27 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....नीरज पाल।

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  3. इस जबरदस्त कविता को पढ़कर दशकों पहले पढ़ी उक्ति याद आ गई - क्रिकेट निठल्लेपन का एड्स है। कविता उससे भी आगे की गंदी तस्वीर दिखाती है। बधाई आपको।

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  4. आपने तो मेरी आँख खोल दी कथित महानायकों की सही असली चेहरा दिखा दिया बहुत बहुत शुक्रिया

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