tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post6751476870869428599..comments2024-03-28T12:43:12.893+05:30Comments on सिताब दियारा : शिक्षा की असफलता - महेशचन्द्र पुनेठा रामजी तिवारी http://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-71222555778472867832013-12-04T18:51:04.614+05:302013-12-04T18:51:04.614+05:30वंदना जी , आपकी बात अपनी जगह बिलकुल सही है कि पहल ...वंदना जी , आपकी बात अपनी जगह बिलकुल सही है कि पहल इस मानसिकता को बदलने की होनी चाहिए ....लेकिन क्या आपको लगता है कि आर्थिक सवाल को हल किये बिना यह संभव है ?Mahesh Chandra Punethahttps://www.blogger.com/profile/09695768908018459567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-84296127789295432452013-11-15T18:46:42.027+05:302013-11-15T18:46:42.027+05:30Mahesh bhai alakh jagaye rakhen... Main uch shiksh...Mahesh bhai alakh jagaye rakhen... Main uch shiksha mein padhaate hue dekh raha hun ki shikshk poori tarha se andhvishvaason aur dhaarmik andhshraddhaon ke pujaari hain... Rahi sahi kasar bekaar paathyakramon ne poori kar dee hai.. Saarthk aalekh...कमल जीत चौधरीhttps://www.blogger.com/profile/02329691172978131438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-57440705648618620282013-11-15T17:51:24.962+05:302013-11-15T17:51:24.962+05:30अंधविश्वास और पाखंड तब भी फैलते हैं जब नेतृत्वकारी...अंधविश्वास और पाखंड तब भी फैलते हैं जब नेतृत्वकारी व्यक्ति जो कहता है ,उस पर आचरण नहीं करता । राजनीति, समाज पर अपना वर्चस्व बनाकर उसे जिधर चाहती है उधर धकेलती है । अर्थ और राजनीति का गहरा गठजोड़ होता है ।यह तथ्य है कि व्यक्ति वही पढ़ना चाहता है जो उसे अर्थ-समृद्ध बनाये ।अंगरेजी माध्यम का प्रचलन तेजी से इसी वजह से बढ़ा है । जब लोग अपनी भाषा में नहीं पढ़ेंगे तो बात की गहराई को कैसे समझ पाएंगे ?आज जो शिक्षा दी जा रही है वह व्यक्ति को बाज़ार के अंधे कुए में धकेलने वाली है । बाज़ार और शिक्षा का ऐसा गठजोड़ बनाया जा रहा है कि व्यक्ति महानायक और भगवान् के रूप में या तो फ़िल्मी अभिनेताओं को देखे-माने या क्रिकेट के खिलाड़ियों को ।जो असली मुक्तिदाता हैं उनको भुला दिया जाए । बाज़ार को विज्ञापन करने वाले लोग चाहिए जिन्हे वह मीडिया के माध्यम से पैदा करने की कला जान गया है । इसलिए जरूरी यह है कि व्यक्ति का राजनीतिक प्रशिक्षण बहुत गहराई से हो । राजनीति को जाने बिना अपने समय की सचाई तक पहुँच पाना मुश्किल होता है । राजनीति में संस्कृति के नाम पर साम्प्रदायिकता को केंद्र में स्थापित करने की कोशिशें की जाती हैं जिसके साथ अंधविश्वास और पाखण्ड सिमटे चले आते हैं ।साम्प्रदायिक ताकतें सबसे पहले शिक्षा तंत्र पर कब्जा इसीलिये करती हैं कि बौद्धिकता के नाम पर एक काल्पनिक-मिथ्या इतिहास गढ़कर निरंतर पढ़ाया जाय । इन सारे पहलुओं पर समग्रता में सोचने की जरूरत है ।शिक्षा तंत्र का संचालन राज्यसत्ता के हाथ में होता है । जब एन डी ए की सरकार आयी थी तब पाठ्यक्रम में वैदिक ज्योतिष और गणित आ गए थे । जीवन सिंहhttps://www.blogger.com/profile/12928813138204126303noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-18060267757039644552013-11-15T15:18:53.950+05:302013-11-15T15:18:53.950+05:30महेश जी ,बहुत सही लिखा है आपने |दरअसल शिक्षा एक ऐस...महेश जी ,बहुत सही लिखा है आपने |दरअसल शिक्षा एक ऐसा मुद्दा है जो जातिवादिता, धर्म, आर्थिक गणित,गरीबी ,वर्ग इत्यादि जैसे ज्वलंत और तात्कालीन विषयों से अलग है |शायद इसलिए क्यूँ कि इसमें प्रत्यक्षतः तथाकथित राष्ट्र भक्तों /उद्धारकों को लाभ हानि का गणित नज़र नहीं आता | अतः ये उन सभी मुद्दों जो चुनावों /सरकारों और नेताओं के ‘’अल्पकालीन मुद्दों ‘’(चुनावी हथकंडों ) के लिए ज़रूरी हैं ,से परे है | यदि सूक्ष्म विश्लेषण करें तो पायेंगे कि कहीं न कहीं ये अशिक्षित और अन्धविश्वासी वर्ग ही सबसे बड़ा वोट बेंक का रक्षक है |इनको बहला फुसला कर कहीं अंगूठा लगवा लो,अपने चुनावी प्रचार को आसानी से इनके भोले मस्तिष्क में बिठा दो ,नारे बाज़ी करवा लो ,इनके साथ नाइंसाफी या धोखा धडी कर लो | ये सब कमोबेश सही है बावजूद इसके हम पूरा का पूरा दोष सरकार को नहीं दे सकते | कही न कहीं कमी यहाँ भी है |साक्षरता अभियान के तहत एक बार मैं सर्वेक्षण के लिए कुछ ऐसे क्षर्त्रों में गई थी जो गरीब थे निरक्षर थे |मुझे वहां जानकर बेहद आश्चर्य और अफ़सोस हुआ की वे न तो स्वयं प्रौढ़ शिक्षा केंद्र (मुफ्त) में आना चाहते हैं और ना ही अपने घर की कम उम्र विवाहिताओं /बेटियों को पढने भेजना चाहते थे |हमसे यहाँ तक कहा गया कि पढने से लड़कियां आज़ाद ख्यालों की हो जाती हैं हम ये नहीं चाहते |ये किसी एक घर की बात नहीं बल्कि पूरा इलाका ही शिक्षा के खिलाफ था |स्वयं सेवी संस्थाओं अथवा सरकारी शिक्षा योजनाओं के तहत दी जाने वाली सुविधाओं के बाद भी घरों में काम करने या मजूरी करने वाली महिलाओं /बच्चों को पढने इसलिए नहीं भेजा जाता क्यूँ की वो घर में आर्थिक मदद कर रहे हैं |इस तरह की तमाम चीज़ें हैं और पहल इस मानसिकता को बदलने से होनी चाहिए ,मुझे लगता है |वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-68223725025011665212013-11-15T10:21:16.760+05:302013-11-15T10:21:16.760+05:30आपने काफ़ी सतर्क कर दिया !आपकी ही कुछ बातें -"...आपने काफ़ी सतर्क कर दिया !आपकी ही कुछ बातें -"मूल्यों के निर्माण में शिक्षा की मुख्य भूमिका होती है ",शिक्षकों के आचरण और बातों का विद्यार्थियों पर सबसे अधिक प्रभाव होता है |"बहुत अच्छा लेख वास्तव में हमारा शिक्षक समाज ही इन तमाम बुराइयों से ग्रस्त है तो भला समाज क्यों न हो साथ ही जो पाठ्य पुस्तकें है वे भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण नहीं है |Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10223085736220343595noreply@blogger.com