tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post5266397374042196365..comments2024-03-28T12:43:12.893+05:30Comments on सिताब दियारा : सिर झुका लेने का वक्त नहीं है यह ...भरत प्रसादरामजी तिवारी http://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-25988316560418008872012-06-27T22:33:35.272+05:302012-06-27T22:33:35.272+05:30सचाई से रू -ब रू कराती रचनाएं ...सचाई से रू -ब रू कराती रचनाएं ...Nityanand Gayenhttps://www.blogger.com/profile/14656349243336915008noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-89936369952066974712012-06-21T09:25:07.449+05:302012-06-21T09:25:07.449+05:30जीवित कौन हैं ?
वे, जिन्होंने जीते जी खुद को मिटा ...जीवित कौन हैं ?<br />वे, जिन्होंने जीते जी खुद को मिटा डाला ?<br />या फिर वे, जो मौत के नाम से हाड़-हाड़ काँपते थे ?<br />जब एक सिर उठता है, तब सिर्फ एक सिर नहीं उठता,<br />जब एक कदम बढ़ता है, तो केवल एक कदम नहीं बढ़ाता,<br />जरा तबियत से एक बार खड़े तो हो जाओ,<br />न जाने कैसे अनगिनत शरीर में अड़ने का साहस आ जाएगा,<br />सिर झुके तो सिर्फ उनके लिए<br />जिन्होंने तुम्हें सिर उठाने की तहजीब दी,<br />वरना, सिर उठाओ बंधु !<br />सामने मौत बनकर नाचते अन्धकार से<br />नजरें चुराकर, सिर झुका लेने का वक्त नहीं है यह। ...........................भरत प्रसाद की कवितायेँ आत्मालोचन की कवितायेँ हैं जो ये सहसा देती हैं कि जो जैसा है उसे ना सिर्फ़ स्वीकार किया जाए बल्कि खुद से उसके बदलने कि शुरुआत की जाए...ये अपने आप में एक स्टेटमेंट जैसा है और ऐसी कवितायेँ आईना दिखाने का काम करती हैं..भरत जी को बधाई <br />-विमल चन्द्र पाण्डेयaddictionofcinemahttps://www.blogger.com/profile/09104872627690609310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-86467606545705555202012-06-20T23:09:25.541+05:302012-06-20T23:09:25.541+05:30bharat ji kavitaon k visheshata h sahajata aur sar...bharat ji kavitaon k visheshata h sahajata aur saralata.iske niv par hi ve pratirodh rachate hai.jiske ghere me khas pathak to ata hi h aam pathak v aa jate h. mai inhe jankavi k parmpra ka kavi manata hu....अरविन्द वाराणसीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-27783102662769726132012-06-20T16:46:40.930+05:302012-06-20T16:46:40.930+05:30भरत प्रसाद अपनी कविताओं में गहन संवेदना के साथ-साथ...भरत प्रसाद अपनी कविताओं में गहन संवेदना के साथ-साथ जिस तरह अपनी जीवंत अनुभूतियाँ पिरोते हैं, वह हमें देर तक सोचने के लिए विवश करता है. दुनिया में सबसे मुश्किल होता है दूसरे पर दोष न मढ़कर खुद अपने को सवालों के दायरे में खडा करना. भरत यह काम बखूबी करते हैं. वे हमारे समय के एक महत्वपूर्ण आलोचक हैं, कहानीकार हैं और साथ-साथ कवि भी. कहीं कहीं उनकी कविताओं पर उनका आलोचक हावी हो जाता है. कहीं पर उनका कहानीकार कविताओं में घुसपैठ करने लगता है. और यह स्वाभाविक भी है. विधाओं की यह आपसी आवाजाही उनकी कविताओं को समृद्ध ही बनाती है. लेकिन अधिकतर जगहों पर जब भरत का कवि मन सीधे तौर पर उनकी कविताओं से रू-ब-रू होता है वहाँ वे हम जैसे पाठकों को अपनी धारा में अनायास ही बहाते चलते हैं.<br /><br />जब तक तुम खड़ा होने के बारे में सोचोगे,<br />दुश्मन अपना मकसद पूरा कर चुका होगा<br />सच-सच बोलने की जब तक हिम्मत जुटावोगे<br />तुम्हारी जीभ कट चुकी होगी,<br />तुम्हारी मुकाबला करने वाली नजरें जब तक उठेंगी-<br />अंधा कर दिया जाएगा,<br />हमेशा के लिए मिट गये वे,<br />जिन्होंने हद से ज्यादा खुद को बचाया,<br />कहाँ हैं उनके नामोनिशान ?<br />जिन्होंने अपने आगे<br />और किसी की सुनी ही नहीं<br />भरत की बेहतरीन कविताओं के लिए उन्हें बधाई और प्रस्तुतीकरण के लिए आपका आभार.santosh chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/05850303341274524229noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-68728873223131857802012-06-20T11:52:35.532+05:302012-06-20T11:52:35.532+05:30Bharat mere priya kawi han.bhale hi kisi ko thoda ...Bharat mere priya kawi han.bhale hi kisi ko thoda loud lagen. doosare ko prawachan dene se behter hai khud se sawal karna jo wo karte han. Sahitya aur rajneet ki polymics ko gahare se samjhte hain . Kahe k pramad me ye kawitayen han....केशव तिवारीAnonymousnoreply@blogger.com