गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

सुधीर कुमार सोनी की कवितायें


                               सुधीर कुमार सोनी 

          

             प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर सुधीर कुमार सोनी की कवितायें


एक ...
            
' नदी होती स्त्री ''


ये सारे शहर /गाँव के
गली मोहल्ले में
स्त्रियाँ /लडकियाँ
दौड़-दौड़ पानी भरती दिखती हैं
बर्तन
खाली -खाली
भरे-भरे
आते-जाते हैं
बर्तन खाली/भरे होते रहतें है
और लडकियाँ /स्त्रियाँ
दौड़-दौड़ कर नदी हो जाती हैं


दो ...

'' सोच की शक्ल ''


किसी चीज को शक्ल में होने से पहले
सोच में होना होगा
और सोंच को मस्तिष्क में
सभी सोचा गया शक्ल बनतें हैं
यह तय नहीं है

जहर के विषय में आदमी की सोच
मात्र मृत्यु है
जहर से
मृत्यु को रोका जाना भी तय हुआ है

चिड़िया की सोच क्या है ?
घोंसला /दाना-पानी
और खुली हवा

अनपढ़ बेटे के लिए
मजदूर की सोच
एक हाथ ठेला गाडी

महल बना
पर सोंचा जैसा नहीं था
बार बार तोड़ा गया

झोपड़ी बनाने की सोचा
बनाया
पर छत टपकती है
हिल जाती है तेज हवाओं में

राजा सोचता है
पर मंत्रीगण
सोच को पूरी शक्ल नहीं देते

किसकी सोच है
जो दंगो ने शक्ल ली
घुल गया मौसम में जहर
दहशत /नफरत /दरारों का सिलसिला
जारी रहा
सभी सोंचते हैं
सिपाही /सेना /जांच दल /सत्ता पक्ष /विपक्ष
परिणाम
किसी परीक्षार्थी से
न हल किया जा सकने जैसा कोई प्रश्न


तीन

'' घर का अर्थ ''


हवाओं के थपेड़ों से
टुटा हुआ है  घोंसला
न उड़ने स्थिति में है
चिड़िया के साथ
उसके नन्हें कोमल बच्चे
अभी वे सब
कंपा देने वाली
हवाओं की शरण में है
घर नहीं है
मैंने शब्दकोष देखा
घर का अर्थ
किसी भी भाषा के शब्दकोष में नहीं मिलता
मन ने कहा
घर का अर्थ
किसी शरणार्थी से पूछो
मैं शरणार्थी से पूंछने की हिम्मत जूटा  भी पाता
पर इस समय
चिड़िया
और उसके कोमल बच्चे को
एक घोंसला बनाकर देने की तरकीब
नहीं सुझती मुझे


चार

'' बिखरे दिन ''


एक पुरानी संदूक
मटमैली काली लोहे की
पुरखों की धरोहर
बरसों बाद साफ़ करती है माता
मुझे देती है उसमें से निकालकर
छोटी सी लकड़ी की पेटी
उस पर छोटा सा ताला लगा हुआ था
पर चाबी गुम
क्या होगा आखिर इसमें
बिखरे दिन बचपन के
मैं इकठ्ठे नहीं कर पाता हूँ
तोड़ता हूँ ताला
पाता हूँ उसमें
कागज की कुछ नाव
रेत के कुछ चमकीले पत्थर
एक बंद किताब
जिसमें बंद कुछ फूल
तितलियों के टूटे हुए पंख
और बचपन की बासी महक
ताज़ी हवा सबने आज ही पी है
खोलते ही सब एक साथ बोल पड़ते हैं
एक जगह इकठ्ठे होते जाते हैं
बचपन के बिखरे हुए दिन


पांच

'' निर्णय ''


तमाम कोशिशों के बावजूद
मेरे हाथ से चिड़िये उड़ गए
मैंने डाला था दाना बाहर
और पिंजरा खोल दिया था
उसके बाद
निर्णय उनका अपना था
एक तरफ था
ऊपर विशालकाय खुला आसमान
नीचें नन्हा सा पिंजरा
मैं वर्षों में जो न कर पाया
चिड़ियों ने पल में कर दिया
उड़ गए आसमान की ओर 


छः

'' बच्चे की नींद ''


आधी रात के बाद
नन्हा बच्चा रोता है
माँ जागती है
पुचकारती है
गीले बिस्तर बदलती है
बच्चा फिर रोता है
नींद टूटने से
सास कोसती है
पति चिड़चिड़ाता है
माँ फिर बच्चे का माथा चूमती है
गाल चूमती
टहलती है आंगन में
लोरी सुनाती है
बच्चा सोता है
पति सोता है
माँ जागती है
बच्चे की नींद गहराने तक



सात

'' हवा पूछती है घर ''


डंडे की मार से
लहराती हुई हवा में
दूर गिरी है गिल्ली
अभी-अभी

अभी-अभी
बच्चे ने उछाला है
गेंद हवा में

बीड़ी का धुआँ
धीरे से उडकर दुबक गया
हवा के खीसे में अभी-अभी-


यह किसने तोप दागा
उछाला बम
बारूदों से लिपटा हुआ
साफ़-साफ़ देख रहा हूँ मैं
खांस-खांस कर
हाँफते हुए हवा को

मेरे काँधे पर
सर रखकर
हवा पूछती है घर 



परिचय और संपर्क

नाम -  सुधीर कुमार सोनी
जन्म - 26 05 1960 [रायपुर ,छत्तीसगढ़ ]
विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
ब्लॉग  -
srishtiekkalpna.blogspot.in
 
  मेल  - sudhirkumarsoni1960@gmail.com
मो. न. -  09826174067 
संपर्क ...अंकिता लिटिल क्राफ्ट ,सत्ती बाजार ,रायपुर [छत्तीसगढ़ ]


                       


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