tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post919131042460499844..comments2024-03-28T12:43:12.893+05:30Comments on सिताब दियारा : तुम भी कब तक खैर मनाते फैज़ाबाद - अशोक कुमार पाण्डेय रामजी तिवारी http://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-55822211013072666552014-03-10T14:27:58.824+05:302014-03-10T14:27:58.824+05:30Hamare priye kavi Ashok ji ki ek shandar kavita......Hamare priye kavi Ashok ji ki ek shandar kavita....AjAy Kum@rnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-89669875729003807642014-01-24T16:58:57.923+05:302014-01-24T16:58:57.923+05:30''यह किसका लहू है कौन मरा है ?''''यह किसका लहू है कौन मरा है ?''<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06603879595635198480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-47493585123385453232013-08-26T16:27:53.807+05:302013-08-26T16:27:53.807+05:30सही बोलने के लिए बहुत सारे शब्द, वाक्य, पैरे, पुस्...सही बोलने के लिए बहुत सारे शब्द, वाक्य, पैरे, पुस्तकें नहीं चाहिए..., वर्ग, वाद, विचारधारा, संस्था, संगठन के बैनर नहीं चाहिए; चाहिए सिर्फ कहने की तबीयत। इन कविताओं में सच कहने की तबीयत जब्बर है। इतनी लेट-लतीफी से यहाँ पहुँचा, माफी! issbaarhttps://www.blogger.com/profile/14842589178871143639noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-14594071415085517872012-11-02T00:39:08.319+05:302012-11-02T00:39:08.319+05:30यथार्थ को प्रस्तुत करती कविताएँ यथार्थ को प्रस्तुत करती कविताएँ Nityanand Gayenhttps://www.blogger.com/profile/14656349243336915008noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-45682494664421026132012-11-02T00:16:18.904+05:302012-11-02T00:16:18.904+05:30यह नकाबपोश बेनामी फ़ैजाबाद दंगों पर अफसोस नहीं ख़ु...यह नकाबपोश बेनामी फ़ैजाबाद दंगों पर अफसोस नहीं ख़ुशी से गदगद लग रहा है और चाहता है सब उसकी खुशी में शरीक हों ! इसकी समझ से यही राष्ट्रभक्ति है ,हिंदूधर्म है !अन्यथा आप पाकिस्तानी है ! वाह ,क्या अक्ल पाई है साहबजादे ने !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-45530969190130774392012-11-02T00:01:50.419+05:302012-11-02T00:01:50.419+05:30एक बेकली में लिखी इस कविता को सिताब दियारा की सबसे...एक बेकली में लिखी इस कविता को सिताब दियारा की सबसे अधिक पढ़ी गयी पोस्ट बनाने का शुक्रिया दोस्तों...और कुछ नहीं है मेरे पास लेकिन आपका प्यार और समर्थन है जो ज़िंदा रखता है और बड़े-बड़ों से टकराने की ताक़त देता है..Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-63805760437280101192012-10-29T13:23:46.501+05:302012-10-29T13:23:46.501+05:30यह सच है कि साफ पानी में कमल नहीं खिलते ......इस स...यह सच है कि साफ पानी में कमल नहीं खिलते ......इस सच के कारणों की पड़ताल करती हैं ये कवितायेँ<br />Mahesh Chandra Punethahttps://www.blogger.com/profile/09695768908018459567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-35890032420762499462012-10-29T08:36:53.497+05:302012-10-29T08:36:53.497+05:30इसका जवाब दिया जा सकता था, लेकिन जब कहने वाले को अ...इसका जवाब दिया जा सकता था, लेकिन जब कहने वाले को अपने कहे इस झूठ पर इतना भी विश्वास नहीं है कि अपना नाम दे सके (ठीक किसी दंगाई की तरह चेहरा छुपा के पत्थर फेंकने की यह संघी कला अपने आप में उसकी नीयत और हिम्मत को साफ़ कर देती है) तो इस पर सिर्फ दया किया जा सकता है और सावधान रहा जा सकता है.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-56832928382717324542012-10-29T08:34:21.349+05:302012-10-29T08:34:21.349+05:30बेनामी जी ...कितना अच्छा होता कि आप ये बाते सामने ...बेनामी जी ...कितना अच्छा होता कि आप ये बाते सामने आकर कहते ..| खैर...कविता की ही बात की जाए , तो इसमें कहाँ यह सब झलकता है , जो आप कह रहे हैं | कविता तो उस मानसिकता और स्थिति की बात कर रही है , जिसमे हमारा यह सभ्य समाज पिस रहा है , घुट रहा है और मारा जा रहा है | क्या आप इन सवालों से बेचैन नहीं होते , कि ये कौन लोग हैं , जो बार बार ऐसे तांडव मचाते रहते हैं | यह कविता तो जहाँ एक मायने में ऐसे लोगों पर सवाल खड़ा करती है , वहीँ दूसरी तरफ सभ्य समाज का आह्वान भी , कि इससे कैसे लड़ा जाए ..| आपने नाहक ही इसमें हिन्दू और मुस्लिम वाली बात छेड़ दी ...| खैर ..आप जैसी मानसिकता वाले लोग ये साधारण बाते समझ ही नहीं सकते , जिसमे लहू के एक होने की बाते की जाती हैं ...| एक क्षण ठहरकर सोचियेगा , कि आप अपने इन तर्कों में कितने दयनीय और हास्यास्पद लगते हैं ...|..खैर ...आपने राय व्यक्त किया , इसके लिए आपका आभार ...रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-64383940988228243182012-10-29T07:41:16.786+05:302012-10-29T07:41:16.786+05:30हमारे वामपंथियों की यही आदत है, किसी भी बहाने किसी...हमारे वामपंथियों की यही आदत है, किसी भी बहाने किसी भी बहाने आर.एस.एस को बदनाम करो ,जब पोप ने इस्लाम के बारे में बोला ,तो राजेंद्र यादव टीवी में आये न तो पोप को कुछ बोला न इस्लाम के बारे में सिर्फ आरे.एस.एस को गरियाते रहे ,हिमांशु कुमार परेशां है बस्तर में आर.एस.एस की घुसपैठ से ,जब बोडो आदिवासी और बंगलादेशी मुस्लिमो के बीच संघर्ष की बात होती है आदिवासी-आदिवासी का राग अलापने वाले के मुह में दही जम जाती है,शायद ये दही इस्लामाबाद से आती है मै इसे"ग्रीन कर्ड" नाम दूंगा ,हमारे वामपंथी भाई इसी "ग्रीन कर्ड फोबिया " से ग्रस्त है ,इनको जब गोधरा में हिन्दू मरते है ,मोपला में हिन्दू मरते है, बंगाल में कांग्रेस और सुहरावर्दी मिल कर हिन्दुओ का क़त्ल करते है ,तब उसे न्यायसंगत बताते है , Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-18904657318883407922012-10-28T23:38:34.167+05:302012-10-28T23:38:34.167+05:30हालिया वाकयात पर बेचैनी और गंभीरता से साथ लिखी गयी...हालिया वाकयात पर बेचैनी और गंभीरता से साथ लिखी गयी ये कवितायेँ बेहद महत्वपूर्ण हैं ....पहली कविता में आपकी नई कहन झलकती है ....कम शब्दों में और बेहद आसानी से बहुत कुछ कहती कवितायेँ ...ये ज़रूरी कवितायेँ हैं जिन्हें अधिक से अधिक पढ़ा और बनता जाना चाहिए ....शुक्रिया !कुलदीप "अंजुम"https://www.blogger.com/profile/02096435711959078271noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-42878123347109169202012-10-28T20:07:43.469+05:302012-10-28T20:07:43.469+05:30Achchi kavitayen...sitab diyara or ashok ko shubhk...Achchi kavitayen...sitab diyara or ashok ko shubhkamnayen..Vandana Sharmahttps://www.blogger.com/profile/16280957639212248298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-29604064430562806472012-10-28T18:53:52.287+05:302012-10-28T18:53:52.287+05:30हमारी आलमारियाँ किताबों से भारी हैं
और हमारी जिंद...हमारी आलमारियाँ किताबों से भारी हैं <br />और हमारी जिंदगियां सवालों से <br />सचमुच मंत्रमुग्ध होकर कई बार पढ़ा इस पंक्ति को. पूरी कविता तमाम सवाल करती हुई, सच कहें तो मन में उठाती हुई. अशोक भाई इस बेहतरीन कविता के लिए मेरी भी बधाई स्वीकार करिए. संतोष चतुर्वेदी Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-54008483652645816392012-10-28T18:05:42.281+05:302012-10-28T18:05:42.281+05:30हम है अभिशप्त गवैये
गीत अमन के गायेंगे ही
चाहें ...हम है अभिशप्त गवैये <br />गीत अमन के गायेंगे ही <br />चाहें काट दो हाथ हमारे <br />सच का ढोल बजायेंगे ही <br /><br />बहुत खूब ...इस सच के ढोल का हर सूरत में बजते रहना निहायत जरुरी है भाई .....चाहें हाथ रहे ना रहे ...अशोक भाई की उनकी ख्याति के मुताबिक कविता ..बहुत बधाईसंतोष कुमार चौबेhttps://www.blogger.com/profile/14678422623297138411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-88835205500842517932012-10-28T17:30:49.644+05:302012-10-28T17:30:49.644+05:30samaj ke satya se sakshatkar karati hui ek behtare...samaj ke satya se sakshatkar karati hui ek behtareen krantikaari kavita haiMANISHhttps://www.blogger.com/profile/18428409114588854009noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-51151274004962149092012-10-28T13:21:57.919+05:302012-10-28T13:21:57.919+05:30समसायिक होते हुए भी जैसा की आपने आरंभिक भूमिका में...समसायिक होते हुए भी जैसा की आपने आरंभिक भूमिका में कहा ---एक पुराने दर्द से रू- बी-रू करती कविता ...और यह केवल फैजाबाद की बात नहीं है...asmurarihttps://www.blogger.com/profile/16869905021434835844noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-25240104275596778882012-10-28T12:59:40.485+05:302012-10-28T12:59:40.485+05:30अशोक की कवितायेँ पढ़ना इसलिए भी सुखद है कि ये आम व...अशोक की कवितायेँ पढ़ना इसलिए भी सुखद है कि ये आम विषयों से अलग और वास्तविकता पर तीखा प्रहार करती हैं |अशोक कविता सिर्फ लिखने के लिए नही लिखते उनकी कवितायेँ सप्रयोजन ,सही वस्तुस्थिति और ना सिर्फ एक रुदन बल्कि व्यवस्था के खिलाफ एक आवाज़ और आव्हान भी हैं <br />''हम तो पाश की मौत मरेंगे /हम तो अदम के शेर कहेंगे/हम तो इस शमशान में भी /जीवन का आव्हान करेंगे ....प्रसंशनीय ...धन्यवाद सिताब दियारा वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-11137361155881010052012-10-28T12:48:50.134+05:302012-10-28T12:48:50.134+05:30अशोक कुमार पाण्डेय की सामयिक कवितायेँ सांप्रदायिक...अशोक कुमार पाण्डेय की सामयिक कवितायेँ सांप्रदायिक दंगों में जलते शहर फैजाबाद और मिडिया और प्रशासन की अनदेखी पर क्षोभ से भरे उद्गार ही नहीं बल्कि सभ्य होने का दावा करने वाले बुद्धिजीवी लोगों को एक ललकार भी हैं ! प्रतिरोध की इन सशक्त कविताओं के लिए अशोक को बधाई और रामजी का आभार !<br />अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-81781329842279758762012-10-28T12:26:38.379+05:302012-10-28T12:26:38.379+05:30इस वक़्त के प्रतिरोध की कविता है यह!इस वक़्त के प्रतिरोध की कविता है यह!Amit sharma upmanyuhttps://www.blogger.com/profile/10690429986793307279noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-73490734433669372062012-10-28T11:51:52.240+05:302012-10-28T11:51:52.240+05:30'किसी सुलगते हुए घर में एकाएक ग़ुम हो गया हूँ ...'किसी सुलगते हुए घर में एकाएक ग़ुम हो गया हूँ <br />लपटें अब भी बराबर आ रही हैं ....'--- शेमशेर <br />दागे जा रहा हूँ सवाल पर सवाल पर 'निपट मुर्ख ' उधर ..'ज़ुबान गुंग है ' (शेमशेर ) बड़ी ही निर्लज्ज ...प्रायोजित चुप्पी ...'झूठ को फैसलाकुन आत्मविश्वास से कहते हैं '<br />और इधर है मेरा जूनून ...' चाहे काट दो हाथ हमारे सच का ढोल बजायेंगे ही '.....शंभू यादवnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-65085915632688620602012-10-28T11:30:11.971+05:302012-10-28T11:30:11.971+05:30हम पागल है (थे) जो कहते है (थे)
लाल है दोनों
ह...हम पागल है (थे) जो कहते है (थे) <br />लाल है दोनों <br /><br />हम? पागल हैं ...........<br />हमारा पागलपन ही उनके लिए खतरा है और चुनौती है .भाई अशोक का आभार.प्रतिरोध बलन्द हो. teebolihttps://www.blogger.com/profile/07815873947620069762noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-62737302079875470372012-10-28T10:26:09.450+05:302012-10-28T10:26:09.450+05:30laal salaam bhai.gazab ki kavitaa hai.laal salaam bhai.gazab ki kavitaa hai.'अपनी माटी' मासिक ई-पत्रिका (www.ApniMaati.com)https://www.blogger.com/profile/11067105919381764927noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-78104477815950154432012-10-28T10:24:45.265+05:302012-10-28T10:24:45.265+05:30bahut badhia bahut badhia Vipin Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/05090451479975418329noreply@blogger.com