tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post8869736068386479288..comments2024-03-28T12:43:12.893+05:30Comments on सिताब दियारा : एक दर्शक की निगाह में ईरानी सिनेमा - पहली कड़ी रामजी तिवारी http://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-40770946361181009462013-09-09T12:15:45.296+05:302013-09-09T12:15:45.296+05:30Haardik Dhanyavaad...Haardik Dhanyavaad...कमल जीत चौधरीhttps://www.blogger.com/profile/02329691172978131438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-77584292567198025372013-08-24T11:38:45.767+05:302013-08-24T11:38:45.767+05:30अब फिल्मों को देखे बिना चैन नही आएगा . मैं इस वक्त...अब फिल्मों को देखे बिना चैन नही आएगा . मैं इस वक्त केवल आपके प्रति आभार प्रकट करना चाहता हूँ |Nityanand Gayenhttps://www.blogger.com/profile/14656349243336915008noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-50425214011256008612013-08-22T22:12:00.664+05:302013-08-22T22:12:00.664+05:30आपको बहुत-बहुत साधुवाद! ‘चिल्ड्रेन आॅफ हैवेन’ देख ...आपको बहुत-बहुत साधुवाद! ‘चिल्ड्रेन आॅफ हैवेन’ देख रखी है मैने। मेरी समझ से भाई-बहन की साथगोई पर आधारित यह कहानी ईरानी-मन के करीब हमें कुछ इस तरह ले जाती है कि फिर वहाँ से हमारा लौटना मुश्किल हो जाता है। माजिद मजीदी की यह फिल्म मुझे तो सामूहिक हँसी, संतुष्टि, कल्पना और स्वप्न की अतःसाझेदारी मालूम देती है। गरीबी का भूगोल हर जगह ऊसर, बंजर या अनुर्वर ही होता है। यह आँकड़ेबाजी के उल्लेख में विश्वास करने वाले मुझ जैसे शोधार्थी जानते होंगे बेहतर। लेकिन, माजीद मजीदी के बाल-पात्रों के लिए तो अपने जूते की पहचान को अपने भीतर जिलाए रखना ही सबसे बड़ी शर्त है, जिजीविषा की प्रतीकात्मक चेतना है। वैसे दौर में जब अमीरों की सहानुभूति अपनी ही बिरादरी के बच्चों के प्रति नहीं है; माजीद मजीदी के बाल-पात्र उस गरीब लड़की से जूते इसलिए वापिस नहीं माँगते हैं कि वह लड़की अपने अँधे पिता की आँख है और उनकी दृष्टि में स्वयं से ज्यादा जरूरतमंद है। यह कहानी इसलिए अनूठी है और संवेदनशील भी कि वहाँ कोई बात बनावटी नहीं है। रंग भरे हुए नहीं है। चित्र ठूंसे हुए नहीं हैं। कई-कई जगह आपको तिलमिला देने वाली बेचैनी के साथ फिल्म निर्बाध यात्रा करती है। कुल मिलाकर जब अंत में आप फिल्म समाप्त करके अपनी आँखें भींचते हैं, तो आप कई-कई लोगों के प्रभाव में होते हैं...माजीद मजीदी का नाम सचमुच सबसे ऊपर है। issbaarhttps://www.blogger.com/profile/14842589178871143639noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-54801587510209086252013-08-22T19:57:53.891+05:302013-08-22T19:57:53.891+05:30इरानी फिल्मों पर आपकी टिप्पणियों से मजीदी की इन फि...इरानी फिल्मों पर आपकी टिप्पणियों से मजीदी की इन फिल्मों को देखने की इच्छा जग उठी है। आपने बहुत कम शब्दों में जिस तरह इन फिल्मों की समीक्षा की है वह रोचक है। आभार हर बार की तरह कुछ अलग करने के लिए। अगले कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी। santosh chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/05850303341274524229noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-451441218761672842013-08-22T00:18:46.634+05:302013-08-22T00:18:46.634+05:30Ramji bhai, achchee shuruaat hai , bas ek hi salaa...Ramji bhai, achchee shuruaat hai , bas ek hi salaah hai ki harek film par baat karte hue thoda thahare, aur tharkar likhna aap jaante hain, fir yah silsila kaayam raha to beshak Shirish ke kahe anusaar ek aur achchee kitab hame chaapne ko mil jaayegi. khair badhai is jaurui kaam ke liye.thegrouphttps://www.blogger.com/profile/04758016889603488979noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-51073198903367108762013-08-21T19:20:43.829+05:302013-08-21T19:20:43.829+05:30बढ़िया प्रस्तुति |क्या ये फिल्मे हिन्दी में उपलब्ध ...बढ़िया प्रस्तुति |क्या ये फिल्मे हिन्दी में उपलब्ध हैं ?sujit sinhahttps://www.blogger.com/profile/17436949204891966340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-78708684743840147662013-08-21T18:00:16.056+05:302013-08-21T18:00:16.056+05:30इस सिरीज़ को पूरा करें। मैं एक सार्थक पुस्तक देख ...इस सिरीज़ को पूरा करें। मैं एक सार्थक पुस्तक देख रहा हूं इसमें। विष्णु खरे के बाद हिन्दी सिनेमा पर आलोचना का तेज़ी से लोप हो रहा है। आपका काम उस परम्परा को समृद्ध करेगा। शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-68895985752372067792013-08-21T17:45:12.070+05:302013-08-21T17:45:12.070+05:30बहुत बढ़ियाबहुत बढ़ियाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/03465868126002607220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-24585567544006774292013-08-21T15:52:01.920+05:302013-08-21T15:52:01.920+05:30आज से कोई पंद्रह बीस वर्षों पूर्व दूर दर्शन पर सिन...आज से कोई पंद्रह बीस वर्षों पूर्व दूर दर्शन पर सिनेमा इरानी आया करता था...प्रत्येक शुक्रवार रात ग्यारह बजे प्रारंभ होने वाले शो मे कुछ बहुत ही अच्छी व हृदय को छूने वाली ईरानी फिल्में देखी थीं...एक अलग ही दुनिया ...आपने ईरानी फिल्मों की याद दिला दी....बहुत बढ़िया आलेख मुबारक ... <br />पद्मनाभ गौतम ..।<br />Padmnabh Mishrahttps://www.blogger.com/profile/01972602291883206141noreply@blogger.com