tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post3873989209545653107..comments2024-03-28T12:43:12.893+05:30Comments on सिताब दियारा : वंदना शर्मा की कवितायेंरामजी तिवारी http://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-24984968273195453582013-05-21T15:40:23.196+05:302013-05-21T15:40:23.196+05:30कस कर तमाचा मारने के बाद का अहसास करातीं कवितायेँ...कस कर तमाचा मारने के बाद का अहसास करातीं कवितायेँ ....निर्भीकता की तलवार थामे आगे बढ़ते रहने के लिए शुभकामनायें वंदना जी ....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-24312508062055512422012-05-03T18:52:14.002+05:302012-05-03T18:52:14.002+05:30वन्दना की कविताओं ने शुरु से आकृष्ट किया, अब वे अप...वन्दना की कविताओं ने शुरु से आकृष्ट किया, अब वे अपने परिपाक की ओर बढ़ चली हैं. वन्दना की कविताओं में प्रेम का मुहावरा बड़ा अनूठा है, अपनी शर्तों पर किया और जिया गया...' मैं कल्पनाओं से खारिज स्त्री' निसन्देह बहुत हतप्रभ करती है. बेबाकी और तेवर से परे मैं यहाँ भाषा की बहुस्तरीय व्यंजना को, अनूठे मौलिक प्रयोगों को देख पाती हूँ.manishahttps://www.blogger.com/profile/10156847111815663270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-81908821981249525752012-04-30T10:37:13.775+05:302012-04-30T10:37:13.775+05:30ek satri kee bebaak swabhimaan se labrez kaviteyn,...ek satri kee bebaak swabhimaan se labrez kaviteyn, shukariya tiwari jee ethee badhia kaivtao se rubru karwane ke leyeVipin Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/05090451479975418329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-41309541768590193112012-04-29T13:34:35.894+05:302012-04-29T13:34:35.894+05:30वंदना दी की कवितायेँ समाज को आइना दिखाती हुई प्रती...वंदना दी की कवितायेँ समाज को आइना दिखाती हुई प्रतीत होती हैं.....अपने हक की भीख नहीं मांगती वरन गिरेबान पकड़ कर झकझोर देती हैं, ये बेबाकी और तेवर सलामत रहे ....बधाई .......अंजू शर्माhttps://www.blogger.com/profile/13237713802967242414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-74198187452681486252012-04-28T14:37:49.501+05:302012-04-28T14:37:49.501+05:30मर्दानी भाषा से नज़रें मिला कर बोलने की कोशिश वन्दन...मर्दानी भाषा से नज़रें मिला कर बोलने की कोशिश वन्दना शर्मा को उन का अपना खास लहज़ा बख्शती है ..!यानी कोशिश फिर भी बोलने की हैं , झगड़ने की नहीं .झगडने वाला अंदाज़ अकविता- वादी कवयित्रियों का था . अब उस तरह की तेजाबी भाषा न दुहराई जा सकती है , न जरूरी है. यह अच्छा है कि इधर उभर कर आयी कवयित्रियों को संवाद की जरूरत का कमोबेश अहसास है . जिद उन की इतनी जरूर है कि संवाद होगा तो बराबरी का.आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-26439698018762408552012-04-28T12:31:01.532+05:302012-04-28T12:31:01.532+05:30दिन प्रति दिन वंदना जी के लेखन में रूचि और उसको ज...दिन प्रति दिन वंदना जी के लेखन में रूचि और उसको जो पर्कत्य /अभिव्यक्त करती जा रही है उसका में कायल हूँ ......स्त्री दशा पर पुरुष समाज की फितरत और उसकी चालों का बहुत तीखा कटाक्ष और उसके मर्म को शब्दों में शब्दों में जिवंत करने का बेबाक तरीका बहुँत सटीक होता जा रहा है ...बहुत बहुत बधाई वंदना जी ....बहुत शुक्रिया ..निर्मल पानेरीTravel Trade Servicehttps://www.blogger.com/profile/11770735608575168790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-24989371664584898082012-04-28T11:22:59.098+05:302012-04-28T11:22:59.098+05:30आज के दौर की स्वाभिमानी स्त्री जब अपनी संपूर्ण संव...आज के दौर की स्वाभिमानी स्त्री जब अपनी संपूर्ण संवेदनाओं और अनुभवों को समेटकर समाज से उसी की भाषा में बिना किसी लाग-लपेट के सीधे प्रश्न करती है तो स्वयंभू और नारेवादी टाइप के लोगों में बैचेनी छा जाती है, कौन हमारी सुविधाजनक स्थिति और बड़े होने पर प्रश्न खड़े कर रहा है, कविता लिखने के लिए इतना अधिक संवेदनशील होना जरूरी है क्या और कोई तरीका नहीं बचा है अपने को प्रसिद्ध कवि/कवयित्री कहलवाने का, इस तरह के प्रश्न जब उठने लगें तो समझ जाइए कि कोई आ गया है अपनी मौलिक और बेबाक रचनाओं के साथ, इस नेट-जेट एज में जहाँ कविताएं पढ़ना कूल ना लगता हो हो वहाँ वंदना जी की कविताएं आपको अपनी तरफ बरबस खींच लेती हैं, ऐसी कविताएं हैं वंदना जी की जो आपको सोचने और समझने पर विवश कर देंगी...आप आस-पास की आसानी से नजरअंदाज हो जाने वाली घटनाओं को महसूस करना शुरु कर देंगे...वंदना शर्मा जी की आगामी कविताओं के लिए अग्रिम बधाई, सिताब दियारा के माध्यम से वंदना जी की कविताओं को प्रस्तुत करने लिए रामजी तिवारी जी का ह्रदय से धन्यवाद....ashutoshhttps://www.blogger.com/profile/14062590602996743703noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-82816380367658410682012-04-28T09:36:33.870+05:302012-04-28T09:36:33.870+05:30अभी किसी पत्रिका के लिए वंदना शर्मा की कविताओं पर ...अभी किसी पत्रिका के लिए वंदना शर्मा की कविताओं पर एक टिप्पणी लिख रहा हूँ...उसी की एक पंक्ति -- "वंदना शर्मा ने स्त्री विमर्श के चालू मुहाविरे को बेतरह ध्वस्त करते हुए रिरिआहट और क्रन्दन के स्वर को चुनौती और संघर्ष के स्वर में तब्दील किया है. ज़ाहिर है जिनको स्त्री से इस स्वर में सवाल और जवाब सुनने की आदत नहीं, उन्हें यह शोर भी लग सकता है और अशोभन भी. लेकिन ऐसा लगना शायद कवि का प्रयोजन भी है और सफलता भी. एक और महत्वपूर्ण बात यह कि समय के साथ-साथ यह स्त्री-प्रश्नों के बहाने समाज की वृहत्तर चिंताओं से भी जुड़ता है और इस तरह विमर्शवादी धारा को भी चुनौती देता सा लगता है. मैंने इसे बेहद आशा की नज़र से देख रहा हूँ"Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-57281099844713137402012-04-28T08:53:41.887+05:302012-04-28T08:53:41.887+05:30सच बात लिखूं तो मै विस्मित सा हूँ कितने सधे लहजे म...सच बात लिखूं तो मै विस्मित सा हूँ कितने सधे लहजे में सामने से सवाल करती सच को मुंह पर दे मारती कवितायेँ जो बार बार पढने को मजबूर कर देती हैं हलचल मचा देती हैं दिमाग में ..नहीं तो कितना कुछ उलटा जा रहा है फेब बी पर आजकल कविता के नाम पर ..आपका धन्यवाद राम जी और बधाई हो वंदना जी.......अलख पाण्डेयAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-16888486575139936652012-04-28T08:52:42.079+05:302012-04-28T08:52:42.079+05:30बहन वंदना की कविताओं ने अपने लिए नए बिम्ब ,नए मुहा...बहन वंदना की कविताओं ने अपने लिए नए बिम्ब ,नए मुहावरे और बिलकुल अकल्पनीय बेबाक तेवर गढे हैं .....अभिव्यक्ति की ये 'रा ओरिजिनालिटी ' बिलकुल विस्मित करती है ......नई सदी की नई स्त्री का बोल्ड आत्मकथ्य सा है यह .. ---संतोष चौबेAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-25321089564964846072012-04-28T08:51:44.406+05:302012-04-28T08:51:44.406+05:30कविता को ठोस धरातल देती कवितायेँ
================...कविता को ठोस धरातल देती कवितायेँ <br />=========================<br /><br /><br /><br />वंदना शर्मा की चार कवितायेँ पढ़ लेने के बाद एक स्वाभाविक प्रश्न मन में उठ रहा था कि क्या हमारे हिंदी के कवियों में इस स्तर की संवेदनाएं और सामजिक चेतना मौजूद है ?यक़ीनन हमारा लेखन भी यांत्रिक सा ही हो गया है ,उसमे न तो भावनायों की प्रवणता है और न ही वर्तमान से मुखातिब होने की क्षमता .लेकिन इस दौर में भी वंदना का लेखन न सिर्फ आश्वस्त करता है बल्कि दिशाबोधक की भूमिका भी निभाता है .मशाल मजबूती से हाथों में थामे है वंदना की कलम .'ऋषियों के भेस में लक्कड़बघों की बारात मिलती है' की घोषणा करने के लिए गहरे सामाजिक अध्ययन की ज़रूरत के साथ ही व्यवस्था के प्रति आक्रोश की भी दरकार होती है जो वंदना की कवितायों में सहज ही मुखरित हो जाता है .'नग्न कर डालने के लिए इतना बहुत है /कि श्रधा से बंद हों उसके नेत्र और आप घूर रहे हों ढंका बक्ष' कहकर समाज को आईना दिखा देने की जुर्रत कितने लेखकों में बची है ?'मसले जाने की भरपूर सुविधायों के कारण ही /सराहनीय हैं चींटी के प्रयास 'में जो ध्वनि उठती है वो हमारे वहरे वक्त के लिए कितनी ज़रूरी है इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है .वंदना शर्मा के लेखन में मौजूद संभावनाएं आशवस्त करती हैं कि इस बिद्रूप समय में भी प्रकाश के जुगनू चमक रहे हैं .इस प्रयास को सलाम . परमानन्द शास्त्रीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-12147970562024604672012-04-28T08:49:22.288+05:302012-04-28T08:49:22.288+05:30समय और कथित पुरुष की हकीकत को उधेड़ती हुई एक से बढ...समय और कथित पुरुष की हकीकत को उधेड़ती हुई एक से बढकर एक कविता है .हर कविता पढकर ठिठकने ,सोचने को मजबूर करती हुई गहरी नींद से जगाती है .समकालीन समय को कविता में उतारने के लिए बधाई .....कैलाश वानखेड़ेAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-85719313303040622852012-04-28T06:48:35.258+05:302012-04-28T06:48:35.258+05:30vandana ke paas tapta hua muhavra hai .. unki kavi...vandana ke paas tapta hua muhavra hai .. unki kavitaen kuchh aisi jaise bhomadhy rekha par baar-baar hone wali barish ..unki saghnta ke bheetar keval akrosh nahi hai ..badlaav ki anivaryta wahan dikhai deti hai . <br />in kavitaon ko sajha karne ke liye Ramji ka abhaar.अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4995179813337431693.post-14892892848528355512012-04-27T20:06:08.876+05:302012-04-27T20:06:08.876+05:30युवा कवियित्री वन्दना शर्मा की कवितायें आधी आबादी ...युवा कवियित्री वन्दना शर्मा की कवितायें आधी आबादी के जज्बातों को शिद्दत से हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं. इनके बिम्बों का नयापन सहज ही ध्यान आकृष्ट करता है. <br /><br />आओ यंत्रणाओं के चरमोत्कर्ष से बचे हम <br />हरम जागीरों रखैलों की व्यवस्था खत्म हो <br />यदि मैं जीना चाहती हूँ गीष्म में शरद, शरद में ग्रीष्म सा कुछ <br />तब यह क्यों होना चाहिए कि मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में मिलूँ <br /><br />इन पंक्तियों में हमारे समय की एक कवियत्री का खुला उद्घोष है यह, जिसमें वह अपना जीवन अपने तरीके से जीने की बात करती है. यहाँ यह ‘अपना’ केवल एक का निज नहीं बल्कि यह स्त्री जगत की सार्वभौमिकता से सीधे सीधे जुड कर सम्पूर्ण विश्व की स्त्रियों की समवेत आवाज बन जाता है. वंदना को बधाई एवं सिताब दियारा का आभार बेहतर कविता पढवाने के लिए.santosh chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/05850303341274524229noreply@blogger.com